Bhagirath Parihar

Drama

4  

Bhagirath Parihar

Drama

गिरधर जोशी का तानाबाना

गिरधर जोशी का तानाबाना

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दीवारें उठ रही थी| भगवा ध्वज फहरा रहा था। त्रिशूल जमीन में गड़ा था। वहीँ पास में माताजी का छोटा-सा मन्दिर बना हुआ था। कंटीली बाड़ से बहुत बड़ी जगह घेरी गई थी। यहाँ पहले शाखा लगा करती थी लेकिन जबसे शाखावालों को इससे अच्छी जगह मिल गई है उन्होंने इसे छोड़ दिया है। आरएसएस की शाखा का कब्ज़ा होने से दूसरा कब्ज़ा करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। ताई का बड़ा लड़का शाखा का लीडर था सो जब ताई ने पूछा तो उसने कहा मन्दिर बनवाने में कोई दिक्कत नहीं है।

कुछ दिनों में परकोटा निर्मित हो जायगा परकोटे के अन्दर एक बड़ा–सा चबूतरा बनाया जायगा जिस पर दुर्गा माँ का बड़ा-सा मन्दिर बनाया जायगा। ‘मगर होगा कैसे?’ विमला ताई जिसकी देखरेख में यह सब हो रहा था, सोचने लगी। ‘माता की कृपा से सब होगा।’ ताई ने अपने आप को तसल्ली दी। ताई हल्के भगवा रंग की साड़ी और वैसी ही कुर्ती में साध्वी बन गई थी माँ का पूजा पाठ और आरती भी करती थी।’

‘जै माता दी’ कहकर किसी के घर पहुँच जाती। माता का मन्दिर बन रहा है एक बोरी सीमेंट भिजवा दें। माता की कृपा होगी। और बोरी नहीं तो बोरी के पैसे मिल जाते। कभी रेत के लिए तो कभी ईंट के लिए भक्तों के दरवाजे खटखटाती रहती। भाग्य उसका अच्छा था कि उसे आज दिन तक किसीने ना नहीं कहा। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था।

  गिरधर जोशी, ललाट पर लम्बा टीका लगाए, कांधे पर पटका डाले, हाथ में दण्ड लिए प्रकट हो गए। ‘जै माता दी’ के उदघोष के साथ उसने परकोटे में प्रवेश किया। ताई ने देखा और प्रत्युत्तर में ‘जै माता दी’ की हुंकार भरी।                  “ताई बड़ा शुभ कार्य हो रहा है। मैं भी इसमें सहयोग करना चाहता हूँ।”                   

“हाँ हाँ, क्यों नहीं आप लोगों के सहयोग के बिना कहीं मन्दिर निर्माण होना भला सम्भव है? देखो माँ ने आपको भेज ही दिया। मैं व्यर्थ ही चिंता कर रही थी कि मन्दिर कैसे बनेगा ?”                                                                   

“काम बड़ा है फिर मन्दिर बनने के बाद प्रतिष्ठा भी होगी, लाखों का खर्चा है ताई! मुझे तो लगता है यह कहीं एक करोड़ से आगे न निकल जाए।”                                     

“बड़ा काम है तो खर्चा भी बड़ा होगा ही, पंडितजी। माँ की कृपा से सब हो जायगा। अब देखो माँ ने आपको प्रेरणा दी और आप आ गए, हाथ बंटाने।”                       

“ध्वजा चढाई और प्रतिष्ठा का कुछ खर्चा आप मेरी तरफ से तय मान लें।”    “जै माता दी! बहुत सुन्दर विचार है। माँ की प्रतिष्ठा में ही आपकी प्रतिष्ठा है।’ “आयोजन भव्य होना चाहिए।” गिरधर पंडित ने कहा।                                       

‘हां लेकिन’                                                            

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं धर्म की ध्वजा को और ऊपर फहराना हम सब का कर्तव्य है।”                                                                                  

“पर पंडितजी इतना पैसा लाओगे कहाँ से ?”                                                 

“मेरे पास एक स्कीम है।”                                                             

“बताइए, जरा तफसील में बताइये।”                                                        

“ताई मेरे विचार में एक आयोजन समिति बनाएँ और कुछ प्रतिष्ठित लोगों को इस आयोजन समिति के माध्यम से जोड़ लें ताकि सहयोग भी मिलेगा और दान भी।”                                                         

“विचार तो आपका ठीक है।”                                                       

“ज्यादा लोग जुडेंगे तो ज्यादा दान मिलेगा और निर्माण कार्य शीघ्र पूरा होगा।” थोड़ी देर चुप्पी। “आप कहें तो मैं लाला हरदयाल, सेठ चांदमल और माता के अनन्य भक्त हिम्मतसिंह जी से बात करूँ।”                                                      

“क्यों नहीं, कहो तो मैं भी साथ चलूँ।”                                            

“आपकी जरुरत नहीं है, वे लोग चल कर आपके पास आएँगे। इससे आपकी इज्जत बढ़ेगी।” ताई चुप। दूसरे दिन गिरधर जोशी तीनों को साथ ले आए। ‘जै माता दी’ के अभिवादन के बाद बात शुरू हुई। फिर ताई के सामने प्रस्ताव पेश किया                                                                             

“ताई हम सबका विचार है कि ‘मन्दिर निर्माण और आयोजन समिति’ बना ले जिसकी अध्यक्षा आप होगी और बाकी हम चार सदस्य होंगे। खजांची आप चाहें तो लाला हरदयाल को बना लें।”                                                              

“क्या कहते हैं हरदयाल जी?” ताई ने प्रश्न उछाला।                                       

“यह काम आप चांदमलजी को दे दें।”                                                     

“भैया इन कामों के लिए समय देना पडता है। अत: पण्डित गिरधर ही ठीक रहेंगे।” ना-नुकर के बाद गिरधर पण्डित मान गए। पैम्पलेट्स छाप कर समिति का ख़ूब प्रचार किया।                                                                      

गाँव के शोहदे बोले, ‘मन्दिर का तो नाम है। ये साले सब पैसे खा जाएँगे।”                                                                  

“भगवान के नाम का पैसा खाएँगे तो नरक में कीड़े पड़ेंगे। खानदान खलास हो जायगा।”

 वे इकट्ठा होकर दान मांगने लगे। दान दाताओं की मन्दिर में पट्टिका लगेगी और उनकी तस्वीरों का अनावरण होगा। उन्हें शाल श्रीफल देकर सार्वजनिक जलसे में सम्मानित भी किया जायगा। धन बरसने लगा, निर्माण कार्य तेजी से चलने लगा। माँ की कृपा से लाभार्थियों में होड सी लग गई। माँ भगवती की कृपा से ताई पहले से भी ज्यादा प्रतिष्ठित हो गई।

ताई के मन में एक शंका घर कर रही थी कि कहीं समिति के नाम पर ये लोग मन्दिर परिसर पर अपना कब्ज़ा न कर लें। अभी तो अपने रहने के लिए आश्रम बनवाना है। परिसर का एक भाग आश्रम के लिए मुकर्रर कर रखा था जिसमें एक बड़ी सी बैठक, दो बैडरूम, दो गेस्टरूम, बड़ा सा किचन और कई लैट–बाथ का प्रावधान था। आश्रम में रहने से माता की सेवा पूजा ठीक से हो जायगी।

पहले जो पैसा आता ताई अपने पास ही रखती थी और मन्दिर निर्माण में खर्च कर देती। लेकिन समिति के बनने के बाद बैंक में खाता खोला गया। पैसा निकालने का अधिकार विमला ताई, गिरधर जोशी और लाला हरदयाल को दिया गया। इन तीनों में से कोई दो के दस्तखत से पैसा निकाला जा सकता था। अक्सर यह काम गिरधर ही करता। जब कभी निर्माण सामग्री खरीदना हो या मजदूरों का पेमेन्ट करना हो पंडित लालाजी या ताई के दस्तखत करवा लेता और बैंक जाकर पैसा निकाल लेता। गिरधर ही हिसाब किताब और बिल बुक का संधारण करता। ताई को तो रोज ही मुखजुबानी सारा खर्चा बता देता। ताई को उसने पूरे विश्वास में ले लिया था। 

गिरधर अब रोज ही मन्दिर चला आता और निर्माण कार्य की देखरेख करता, कोई जरुरत होती तो पूरी करता। ताई के साथ चाय पीते हुए सामान्य बातचीत चलती रहती आपस में हँसी-ठिठोली भी होती। मन्दिर परिसर में ताई और गिरधर चक्कर लगा रहे थे इच्छा था कि एक छोटी बगिया भी हो ताकि फूलों के लिए बाजार पर निर्भर न होना पड़े। एक जगह नीवें खुदी देखकर गिरधर बोला, ‘ये नीवें किसलिए खुदवाई हैं।”                                                                    

“यहाँ मेरा आश्रम बनेगा। माता की रसोई और भक्तों के लिए कुछ कमरे बनेंगे। आश्रम के प्रवेश द्वार पर ही दालान के चारों ओर फुलवारी रहेगी और बीच में हरियाली दूब रहेगी। यहाँ योग-ध्यान भी किया जा सकता है और आराम से बैठकर बातचीत भी की जा सकती है। क्यों कैसा रहेगा?” गिरधर को हाँ ही कहना था सो उसने कहा, “आपकी प्लानिंग गजब की है ताई।” मन ही मन बोले ‘ताई ने अपने रहने के लिए आश्रम का भी जुगाड कर दिया और मन्दिर से स्थायी कमाई का भी। अब ताई के दिन अच्छे बीतेंगे। मुझे क्या? मैं भी अपना काम कर निकल लूँगा।’

यह सोच कर उसे तसल्ली हुई कि ताई को पटाए रखने में ही उसका हित है जब तक अडंगा नहीं लगाती उसे क्या दिक्कत है।

‘जोशीजी मैं सोचती हूँ कि नींव भराई का काम भी साथ ही चालू कर दिया जाय।’ “क्यों नहीं? वैसे भी अब शिखर निर्माण चल रहा है। प्रतिष्ठा के समय तो आश्रम भी तैयार होना चाहिए।”

उसने मन में कुछ सोचकर ताई से कहा– “ताई नवरात्रा आ रहे है। माता के दिन है। एक आयोजन यहाँ रखते हैं, उसकी कमाई से नीवें भी भर जायगी।” जोशी ने लालच फेंका।                                                                         

“कैसा आयोजन?” ताई की उत्सुकता जगी।                                               

‘शोभा यात्रा निकलेगी, भजन संध्या होगी, गरबा होगा और एक लक्की ड्रा भी रखेंगे।”                                                                      

“इसमें जो पैसा खर्च होगा वह आएगा कैसे?”                                        

‘पैसा आएगा नहीं बरसेगा! आप निश्चिन्त रहे और तमाशा देखती जाय। उदाहरण के लिए शोभा यात्रा को ही लें –मंगल कलश उठाने की बोली, माता के श्रृंगार की बोली, माता को तिलक और हार चढाने की बोली, आरती की बोली, माँ के साथ रथ में बैठनेवालों की बोली आदि आदि विस्तार से समिति की बैठक में बता दूँगा। इस पूरे आयोजन में खर्चा एक रूपया और कमाई सौ रुपये होगी।’                               

“वाह ! जोशीजी आप हैं कमाल के आदमी।” उन्होंने जोशीजी की पीठ थपथपाते हुए कहा।   

‘बैंड बाजे, डीजे-ढोल धमाकों के साथ माँ की शोभा यात्रा निकलेगी जो लोग इस शोभायात्रा में विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित होना चाहते हैं उनसे कुछ तय राशि ली जायगी। वे शोभा यात्रा में अपनी ही कार में अपने परिवार के साथ रथ के पीछे या आगे चल सकते हैं। शोभा यात्रा की समाप्ति पर एक लकी ड्रा रखा जायगा जिसकी टिकटें हम अभी से बेचना शुरू कर देंगे।’

 ‘इतना ही नहीं, समारोह के अंत में लाभार्थियों का सम्मान समारोह होगा जिसमें महामंडलेश्वर और मुख्यमंत्री सभी लाभार्थियों को शाल, श्रीफल और सम्मानपत्र देकर सम्मानित करेंगे। सभी दानवीरों,प्रतिभागियों,वालिंटियर और आयोजन समिति के सभी सदस्यों को भी सम्मानित किया जायगा अखबारवाले और टीवी वाले भैया भी आएँगे।’    

अब लम्बा विवरण क्या लिखें। आयोजन सफल रहा और जो राशि बची उससे आश्रम की नीवें ही नहीं भरी बल्कि खिडकी लेवल तक दीवारें भी उठ गयी। जोशी ने अपना खेल खूबसूरती से खेला। ताई अति प्रसन्न। ताई अब जोशी के वश में थी। बाकी सदस्यों को सम्मान दिला कर उन्हें भी खुश कर दिया था जोशी ने।

अब खुला खेल फरुर्खाबादी खेलने का समय था और जोशी इसके लिए पूरा तैयार था। गिरधर जोशी का कुछ तो सितारा ही बुलंद था। हवा में चुनाव की सुगबुगाहट होने लगी। ऐसे में जोशी धार्मिक पार्टी के सदस्य बन गए। पार्टी वालों ने हृदय से उनका स्वागत किया और उन्हें जिला कमेटी का सदस्य बना दिया। वे धीरे धीरे पार्टी में अपने सम्बन्धों को प्रगाढ़ कर रहे थे ताकि मौका लगते ही उनका इस्तेमाल किया जा सके।

आभार जताने व शुभकामनाओं वाले बड़े बड़े होर्डिंग जगह-जगह लगने लगे। होर्डिंग की उपरी जगह पर समिति के सदस्यों के फोटो के साथ नीचे जोशी का बड़ा फोटो निवेदक के तौर पर। नीचे शुभेच्छुओं के बहुत से छोटे-छोटे फोटो। धीरे-धीरे होर्डिंग पूरे ब्लॉक क्षेत्र में लगने लगे। शातिर लोगों ने जोशी की राजनैतिक महत्वाकांक्षा को भाँप लिया। शातिर लोगों ने ताई से संपर्क किया और उन्हें आगाह किया कि जोशी विधायक बनने के फेर में हैं। हम चाहते हैं कि आप आगे आएं और विधायक की कुर्सी संभालें। ताई ने कहा, “मैं धर्मक्षेत्र में ही ठीक हूँ। आप जोशीजी को सपोर्ट कीजिए वे भी तो अपने आदमी है।”

शाम जब जोशीजी आए तो ताई ने सारी बात उन्हें बता दी। और पूछा कि क्या वो वास्तव में विधायक के चुनाव को लेकर गम्भीर है? पहले कदम पर ही शातिरों ने खेल बिगाडना शुरू कर दिया। उन्होंने सोचा कुछ दिनों तक चुप रहना ही ठीक होगा। उन्होंने ताई को तसल्ली दी कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है। होर्डिंग तो जनता का आभार जताने के लिए लगाए गए हैं। आखिर जनता ने ही हमारे प्रोग्राम को सफल बनाया और आश्रम के लिए धन भी मुहैया करवाया। ‘विधायक बनेगी आप ही।’                                                                                                                  ‘

नहीं, मैं इतने से संतुष्ट हूँ बस मेरा संकल्प पूरा हो जाय।’                        

‘वो तो खैर हो ही जायगा अब काम बचा ही कितना है। बेहतर है आप भी धार्मिक पार्टी की सदस्या बन जाय वे हमारे धर्म के काम को आगे बढ़ाते हैं तो हमें भी उनके राजनैतिक कार्य में कुछ सहयोग देना चाहिए उन्हें यह तो तसल्ली होगी कि हम उनके साथ है विपक्षियों के साथ नहीं।’ ताई को बात जंच गयी और एक दिन गिरधर जोशी ने फॉर्म लाकर ताई को सदस्यता दिलवा दी।

 गिरधर जोशी ने अखबार वालों से विमला ताई का प्रायोजित इंटरव्यू फिक्स करवा दिया उनसे एक प्रश्न यह भी पूछा गया कि क्या आप विधायक का चुनाव लड़ेगीं? ‘नहीं, मैं धर्मक्षेत्र में ही ठीक हूँ। माँ कि सेवा पूजा ही अब मेरा लक्ष्य है।’                 ‘जनता की सेवा भी तो माँ कि पूजा ही है’ टीवी पत्रकार ने आगे पूछा, ‘जनता अगर चाहे तो ।।? वैसे भी यहाँ पैराशूट उम्मीदवार आते है चाहे इस पार्टी के हों चाहे उस पार्टी के।’                                                   

‘हमें राजनीति नहीं आती, मुझे माफ़ करें। बेहतर होगा इस मामले में आप पंडित गिरधर जोशी का नाम आगे बढायें।’ ताई का उत्तर सुनकर पंडित मन ही मन प्रसन्न हुए। क्या पता बिल्ली के भाग से छींका टूट ही जाय।                                     

पार्टी आपका नाम फाइनल करे तो आपको कोई आपति है?’                   

‘जब ऐसा होगा तब देखा जायगा।’ 

 पार्टी में जब टिकट देने की बात आई तो ताई के नाम पर सर्व सम्मति बनी। गिरधर जोशी खबर लेकर ताई के पास आए। ‘ताई अब आपका नाम विधायक के लिए फाइनल हो गया है आपको बहुत-बहुत बधाई।’ ताई कोई बहुत खुश नजर नहीं आ रही थी। उन्हें शंका थी कि इस बहाने वे उसे मंदिर से बेदखल न कर दें। वह अपने सीमित उद्देश्य से ही संतुष्ट थी। मंदिर और आश्रम बन जाए। मंदिर की प्रतिष्ठा हो जाए और फिर वह जीवन भर माता की सेवा पूजा करती रहे।

अखबार में न्यूज के छपते ही भीड़ के जत्थे विमला ताई जिंदाबाद के नारे लगाती मंदिर परिसर में इकट्ठी होने लगी। गिरधर जोशी भी उनके साथ थे, वे जानते थे कि ताई विधायक बनती है तो उनकी ताकत भी बढ़ेगी। ताई ने सबका आभार व्यक्त किया देवी का प्रसाद सबमें बांटा और उन्हें समझाया कि राजनीति उनके डीएनए में नहीं है आप लोग जोशीजी का समर्थन करें बड़े विद्वान् व्यक्ति हैं वे राजनीति के दांव-पेच समझते हैं अपने इलाके की तरक्की के लिए उनका चुना जाना हम सबके लिए फायदे बंद है। उन्होंने अपनी यह बात कमेटी वालों को भी बता दी।                                                                               

आखिर तय हुआ कि गिरधर जोशी को टिकट दिया जाय इस शर्त पर कि ताई उनके लिए प्रचार करेगी ताकि उनकी जीत निश्चित हो क्योंकि पार्टी के लिए तो जीत महत्वपूर्ण थी। ताई को शर्त मंजूर थी। मंदिर निर्माण और आयोजन समिति के मेम्बरान भी खुश थे वे उन्हें बधाई देने पहुँच गए और अपना समर्थन दिया। बड़े धूमधड़ाके के साथ गिरधर जोशी की शोभा यात्रा निकली, लोगों ने फूलों से लाद दिया।

चुनाव जीतने के बाद उनका विजन बड़ा होने लगा मंदिर और आश्रम बहुत छोटे लगने लगे। लेकिन ताई के साथ बराबर बने रहे। उनकी निगाह देवस्थानम के अध्यक्ष पद पर थी, ताई उसमें उनकी मदद कर सकती है। जिससे माता के मंदिर निर्माण में भी सरकारी सहयोग आसानी से उपलब्ध हो जायगा। इस जिले से पार्टी के तीन और विपक्षी पार्टी के दो विधायक थे उन तीन में भी धर्म की ध्वजा ऊंची करनेवाले विद्वान् ब्राह्मण गिरधर थे सो उनका चांस बनता था। राजधानी में पार्टी की सरकार बन गई तो गिरधर की भागदौड़ भी बढ़ गई। मंत्री मंडल अभी अधूरा ही बना था आगे जाकर विस्तार होगा। विधायक दिल्ली तक दौड़ लगा रहे थे लेकिन गिरधर की पहुँच दिल्ली तक नहीं थी। सो उनकी दृष्टि देवस्थान के अध्यक्ष पद पर ही थी। पहली बार में देवस्थान के अध्यक्ष पद का जुगाड़ हो जाए यही क्या कम है? उन्होंने देवस्थान विभाग के मंत्री, ब्राह्मण लॉबी के प्रखर मंत्री और मुख्यमंत्री तक पहुँच बनाई। और उनसे आश्वासन लिया कि जब अध्यक्ष नियुक्त किये जाएंगे तो उनके नाम पर भी विचार किया जायगा। उनके लिए इतना ही बहुत था।    

 पार्टी से जीते तीन विधायक में से एक एससी के दूसरे चौधरी समुदाय से और तीसरे गिरधर जोशी थे सो चांस तो बनता ही है। क्षेत्र से जत्थे के जत्थे आने लगे उनका बंदोवस्त विधायक निवास में किया गया। जो व्यवसायिक काम के सिलसिले में आए थे वे विधायक महोदय को कोथली भेंट करना नहीं भूलते।

बस एक काम रह गया था ब्राह्मण और वैश्य बिरादरी के प्रभावशाली लोगों को पार्टी में अपने समर्थन में लगाना। राजधानी जाकर ज्ञापन देना और पैरवी करना। आखिर वो दिन भी आया जब टीवी पर खबर चली कि फलां दिन राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार होगा संभावित नामों में जोशी का नाम नहीं था। अचानक दूसरे दिन सी एम ऑफिस से बुलावा आया जोशीजी की धड़कने तेज होने लगी। पता नहीं भाग्य में क्या लिखा है !                                                                    अधिकारी ने उन्हें आदर से बैठाया। पानी का गिलास आगे किया उनका हलक वैसे भी सूख रहा था सो पूरा गिलास पानी पी गए। तभी सचिव के साथ मुख्यमंत्री नमूदार हुए। गिरधर जोशी उठे और चरण वंदना की ‘सर मै गिरधर जोशी, आपने बुलाया था सर।’ मुख्यमंत्री ने जोशीजी के कंधे पर हाथ रखा, ‘पंडितजी हम आपको बड़ी जिम्मेदारी दे रहे हैं देवस्थान विभाग में उपमंत्री का पद दे रहे हैं हमें लगा आप यह जिम्मेदारी बखूबी निभा सकते हैं।’                                                 

‘जी, आपका आशीर्वाद है।’                                                                  

अच्छा, आपको बहुत-बहुत बधाई’ उन्होंने हाथ मिलाते हुए कहा।                               

‘आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर, हम हमेशा आपके आभारी/ऋणी रहेंगे।’    

पंडित जी ने जिस पद की कल्पना नहीं की थी वह पद उन्हें मिल गया, माननीय मंत्री महोदय वे मन ही मन मुस्कराते रहे। शपथ ग्रहण के बाद वे जश्न में डूब गए धन्य हो ताई तुम्हारी वजह से यह पंडित इस ऊँचाई पर पहुंचा है वरना गाँव में केवल पंडिताई कर पेट पालता।  


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