गीता का ज्ञान
गीता का ज्ञान
जीवन में अक्सर सभी को कहते हुए सुना है कि कर्म करो लेकिन फल की आशा मत करो!
गीता में भी लिखा है कि, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"
इसका अर्थ है कि केवल कर्म पर ही हमारा अधिकार है उसके फल पर नहीं क्योंकि उसका फल कर्म हमें अवश्य देगा, यही प्रकृति का नियम है।
कर्म करते समय हमारी मंशा ही कर्म को अच्छा और बुरा बनाती है।
मुझे याद है कि एक बार विद्यालय में मुझे कविता पाठ करने के लिए कहा गया और मैं उस प्रतियोगिता में उत्साह के साथ कविता पाठ करने की तैयारी करने लगी। कविता पाठ अच्छा होने के बाद भी मुझे पुरस्कार नहीं मिला तो अचानक ही मेरी आंखों से मानों आंसुओं की नदियां बहने लगीं।
मुझे आज भी याद है कि मेरी अध्यापिका ने मुझसे क्या कहा था, "देखो अगर तुम इस प्रकार एक हार से हार मान लोगी तो फिर भविष्य में अनगिनत जीत की खुशियां कैसे मना पाओगी? जो हार स्वीकार नहीं कर सकता उसे जीत की खुशी मनाने का भी कोई अधिकार नहीं है। तुम्हारी हार ने इस बात को साबित नहीं किया कि तुम्हारे भीतर एक विजेता मौजूद नहीं है बल्कि इस बात को साबित किया है कि अभी उस विजय को हासिल करने के लिए और अधिक परिश्रम और प्रयत्न करने की आवश्यकता है।"
अपनी अध्यापिका की बातों को जीवन में धारण करते हुए और गीता के ज्ञान के मार्गदर्शन में अपने जीवन के हर पहलू को व्यतीत करते हुए मुझे सदैव आत्म संतुष्टि और परमानंद की अनुभूति होती है।
कुरुक्षेत्र में जिस प्रकार श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए गीता का ज्ञान दिया था उसी प्रकार गीता का ज्ञान, मनुष्य को उसके कर्तव्य का बोध कराते हुए उसे कर्तव्यनिष्ठ बनने के लिए प्रेरित करता है।
हम सभी को गीता के ज्ञान को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए जिससे हम सभी अपने जीवन में पूर्णता को प्राप्त करने में सफल हो और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कर्मठ बनें।
"गीता के ज्ञान को सभी के हृदय में जागृत करने,
हे कृष्ण एक बार फिर धरा पर आ जाओ,
सुप्त मनुष्य को उसके कर्तव्यों का भान कराने,
एक बार कृष्ण फिर आ जाओ,
आज चिंता और संघर्षों से मनुष्य है भाव विभोर हो रहा,
लोभ, क्रोध, मद, मोह मनुष्य के विवेक को है हर रहा,
एक बार फिर से मनुष्य के हृदय में भगवद्गीता के ज्ञान को स्थापित करने आ जाओ,
संसार में हर स्त्री को अपनी शक्ति का भान कराने,
हर शिष्य को उसके कर्तव्यों का बोध कराने,
हर बार सत्य को विजयी बनाने
एक बार कृष्ण फिर आ जाओ,
गीता का ज्ञान सुनाने हेतु,
जन जन की पीर मिटाने हेतु,
हृदय को हृदय से जोड़ता हुआ प्रेम सेतू,
एक बार फिर से धरा पर प्रकट करने,
एक बार कृष्ण फिर आ जाओ,
एक बार कृष्ण फिर आ जाओ।"