एकतरफ़ा प्यार
एकतरफ़ा प्यार
अचानक ही मेरे मुँह से निकल गया 'और दीप्ति कैसी हो, उसने मेरी तरफ़ ऐसे देखा जैसे हम एक साल बाद नहीं बरसों बाद मिले हों,
ठीक हूँ,
यही पर जॉब कर रही हो क्या?
हाँ,
चलो अच्छा है कम से कम रोज मुलाकात तो हो जाया करेगी,
ह्म्म्म, ठीक है कल मिलती हूँ, bye..
वो चली गई पर मैं वहीं एक पुतले की भांति खड़ा रहा,
अरे भई चलो ऑफिस बन्द होने का टाइम हो गया,
ये सुमित था जिसकी आवाज ने मेरी याद में विघ्न डाल दिया,
हाँ हाँ चलो,
हम दोनों अपने अपने रूम के लिए चल पड़े। कुछ देर शहर की भीड़ भाड़ से जूझ कर आखिर मैं अपने रूम तक आ पहुँचा। रोज की तरह न कपड़े चेंज किया न ही बैग रखा बस बिस्तर पर फेंक कर कोने में चुपचाप बैठ गया, सोचते लगा जब मैं पहली बार कॉलेज गया था सब कुछ बिल्कुल अलग बिल्कुल नया, सबसे अनजान मैं इधर उधर देख रहा था,
बेल बजी सभी अपनी क्लास में जाने लगे मैं भी पूछते हुए अपनी क्लास में पहुँचा, दूसरी लाइन में चौथे नंबर पर मैं बैठ गया... मैम आईं क्लास पढ़ाया चली गई। अब मेरी क्लास दोपहर बाद से थी। मैं बाहर एक पेड़ की छाया में बैठ गया। तभी वहाँ एक लड़की भी आई, कुछ दूरी पर बगल में बैठी, मैं कभी कभी उसे देख लेता फिर इधर उधर देखने लगता,
आप भी नए हैं कॉलेज में, उसने बड़ी ही शालीनता से पूछा
मैं जल्दबाजी में बस एक शब्द ही बोल पाया... जी,
हेल्लो आई एम दीप्ति...
मैं सौरभ...
उसने अपना हाथ आगे किया मैंने भी झट से हाथ आगे कर मिला लिया। कई बातें हुई फिर हम अपनी क्लास में चल दिए। दूसरे दिन मैंने पहले से की गई तैयारी के साथ उससे मिला फिर बातें हुई फिर क्लास। अब ये रोज का सिलसिला हो चुका था। धीरे धीरे हमारी दोस्ती गहरी होती चली गई रोज मिलना साथ घूमना lunch कभी कभी dinner अब तो जैसे उसकी आदत सी हो गई थी। इसी तरह न जाने कब दो साल बीत गए पता ही नहीं चला। अब जब कॉलेज से विदाई लेने का समय आ गया तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मैं तो दोस्ती की हद से काफी आगे प्यार तक जा पहुँचा था, पर उसे बताने की कभी हिम्मत नहीं हुई शायद इस वजह से की कही वो बुरा न मान जाए। अब मैं करता भी तो क्या, कल ही विदाई है कैसे होगा सब कुछ। मैं रात भर इसी कशमकश में लगा रहा कि कैसे दीप्ति को अपने दिल की बात बताऊँ.... सुबह हो गई धीरे धीरे 10 बजने वाले थे मैं कॉलेज के लिए निकल गया।
कॉलेज पहुँचते ही सामने दीप्ति को देखकर मैं थोड़ा हड़बड़ा गया पर वो हँसते हुए चली गई, मेरे इस एकतरफा प्यार को अगर कोई तीसरा जानने वाला था तो वो सुमित था दो साल में एक वही मेरा अच्छा दोस्त बन पाया था। क्या हुआ आज तो बोल दोगे न दीप्ति से कि तुम उससे.....
हम्म! मैंने उसे बीच में ही रोक दिया।
समारोह शुरू हुआ, मेरी धड़कनों की तरह वह भी जल्दी से बीतने को आ गया अब तक मैं सिर्फ 6बार उसे देख पाया था, समारोह खत्म हो गया सब एक दूसरे से मिलकर जाने लगे मेरा ध्यान दीप्ति की तरफ था। अब वो मेरे पास आई...
अच्छा सौरभ अब तो चलते हैं भगवान ने चाहा तो फिर मुलाकात होगी।
मेरे होंठ ही नहीं खुल पाये बस सिर हिला के हूं बोल पाया। चली गई वो दूर बहुत दूर। मैं वहीं बैठ गया बिल्कुल हताश...
क्या हुआ सौरभ क्या कहा उसने?
वो बोली हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं... झूठ बोल दिया मैंने सुमित से, सफेद झूठ। हम वापस अपने अपने रूम में आ गए। रात भर रोता रहा खुद को कोसता रहा पर अब हो भी क्या सकता था।। दो दिन, चार दिन, हफ्ते, महीनों साल बीत गया, अब हम और सुमित जॉब भी करने लगे थे। धीरे धीरे जख्म भरा था पर आज उसे फिर अपने सामने पाकर फिर से मन में तरंग उठने लगी थी, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि कॉलेज के कुछ ही दिनों बाद उसकी शादी हो गई थी।
मैंने भी अपने दिल को समझाना सीख लिया था। अब इंतजार था मुझे कल सुबह का ताकि मैं उससे पहले की तरह तो नहीं पर थोड़ी दोस्ती कर सकूँ।
