हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

एक्स्ट्रा

एक्स्ट्रा

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आज सुबह नींद नहीं खुली । श्रीमती जी ने भी नहीं जगाया । वो क्या है कि वे कल रात से ही "रूठी रानी" बनी हुईं हैं । मैं कोई महाराज दशरथ तो हूं नहीं जो उन्हें "दो वरदान" दे देता । लेकिन उन्हें वो सब कुछ चाहिए जो वे चाहती हैं । वैसे एक बात बता दूं कि मैंने भी सभी दूल्हों की तरह विवाह के अवसर पर उन्हें सात वचन जरूर दिये थे । लेकिन उन्होंने भी तो इतने ही वचन मुझे दिये थे , पर क्या उन्होंने एक भी वचन निभाया ? जब उन्हें याद दिलाया तो बुरा मान गए । बस, यही कारण था रूठने का । कहतीं हैं कि वचन निभाने का काम पति का होता है पत्नी का नहीं । अब आप ही बताइए कि हम क्या करें ? 


हंसमुख लाल जी के फोन से मेरी नींद खुली । हमेशा की तरह खिलखिलाते हुए वे कहने लगे 

"भाईसाहब , आज एक और श्रद्धा पचास टुकड़ों में फ्रिज में सड़तीं हुई पाई गई है, आपने आज का अखबार नहीं पढ़ा है क्या" ? 


हमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि हंसमुख लाल जी समाचार तो एक औरत के कत्ल का सुना रहे थे मगर उसे चटकारे ले ले कर सुना रहे थे । हमें बड़ा बुरा लगा । 

"एक जवान स्त्री अपने जीवन से हाथ धो बैठी और आप उस पर हंस रहे हैं ? कुछ लाज शर्म बची है कि नहीं ? और हां , आप अपनी हंसी ऐसे सार्वजनिक मत किया करो । आजकल मर्दों को हंसते देखकर नारीवादी खफा हो जाते हैं" हमने थोड़ा नाराज होते हुए कहा । 

"भाईसाहब, कहते तो आप सही हैं । आजकल पति का हंसना तो वैसे भी समाज में अपराध बन चुका है , बस संसद से अधिनियम पारित होना शेष रह गया है । पति की कहां मजाल कि वह पत्नी के होते हुए हंस सके" ? उन्होंने एक बार फिर से ठहाका लगाया । 


हंसमुख लाल जी के ठहाकों से हम चिढ़ गये । एक तो हम पहले ही "दूध के जले हुए थे" , उस पर हंसमुख लाल जी के ठहाके सुबह सुबह कहर ढा रहे थे । 

"बड़ी हंसी फूट रही है आजकल , लगता है कि भाभीजी मैके गई हुई हैं" हमने अनुमान लगाते हुए कहा । 

"सही पकड़े हैं । उनके रहते होंठ ऐसी हिमाकत करते ही नहीं हैं । बहुत दिनों बाद बेचारे होंठों को आजादी मिली है जिसे वे एक उत्सव की तरह मना रहे हैं । अरे, इसे छोड़ो, आप तो ये बताओ कि ये श्रद्धाऐं और कितनी कटती रहेगी ? बेचारे फ्रिज ? अब तो वे भी तंग आ गये हैं श्रद्धाओं के टुकड़े संभालते संभालते" ! अब उनका स्वर उदास हो गया था । हंसमुख लाल जी भी कभी कभी बहुत गंभीर बात कह जाते हैं । 

उनकी बात पर गौर करते हुए मैंने कहा 

"जब तक हमारे समाज में प्यार के नाम पर मनमाना आचरण करने की प्रवृत्ति रहेगी, हत्यारों को फांसी नहीं होगी तब तक ऐसे ही चलता रहेगा । हर लड़की को लगता है कि "उसका अब्दुल ऐसा नहीं है" और हर अब्दुल ने हर बार सिद्ध किया है कि वह वैसा ही है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया है तो फिर श्रद्धाओं को तो फ्रिज में रहना ही होगा । अच्छा , आप ही बताइए कि श्रद्धाओं को कौन कहता है कि वे फ्रिज में रहें ? क्या आपने कहा किसी को ? मैंने तो नहीं कहा कभी" ! हमने अपनी गुगली फेंक दी थी लेकिन हंसमुख लाल जी ने अपना पैड आगे कर दिया और वे साफ बच निकले 

"भाईसाहब, हम तो अपनी बीवी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं करते, दूसरे की बीवी को कैसे कह सकते हैं" । 

"हंसमुख लाल जी, इतना सब कुछ होने के बाद भी ये पढ़ीं लिखीं महिलाऐं किसी सैलून वाले से , किसी टेलर से , किसी डिलीवरी ब्वाय से , किसी मैकेनिक से , नौकर से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स कर लेती हैं तो उनका ये अंजाम होना निश्चित है । जब किसी ने विवाह कर लिया तो आपकी समस्त जरूरतों को पूरा करने के लिए पति / पत्नी हैं ना ! फिर इधर-उधर मुंह क्यों मारना ? शास्त्रों में इसे "व्यभिचार" कहा गया है और मॉडर्न सोसायटी इसे "सच्चा प्यार" कहकर इसका महिमा मंडन करती है । क्यों कोई विवाहित पुरुष पड़ोसन के आगे पीछे घूमता है ? क्यों कोई विवाहित महिला किसी अब्दुल की सेज सजाती है ? इसका मतलब है कि उन्हें जितना मिल रहा है उतने से उसे संतुष्टि नहीं मिल रही है इसलिए उन्हें कुछ एक्स्ट्रा चाहिए । क्यों है ना यही बात" ? 

इस बार हमने "यॉर्कर" बॉल डाली थी । पर हंसमुख लाल जी भी पक्के खिलाड़ी निकले । उन्होंने यॉर्कर बॉल को हॉफ वॉली की तरह अपने बल्ले के बीचोंबीच लिया और उसे सीधे बाउंड्री से बाहर भेज कर छक्का जड़ दिया । 

"भाईसाहब, हम भारतीयों की सदा से यही तो कमजोरी रही है । हमें कुछ न कुछ "एक्स्ट्रा" चाहिए । हम सब्जी वाले से एक्स्ट्रा धनिया मिर्च मांगते हैं । पानी पूरी वाले से एक्स्ट्रा पतासी मांगते हैं । चायवाले, दूधवाले से एक्स्ट्रा मलाई मांगते हैं । रिश्तों में एक्स्ट्रा "अटेंशन" चाहते हैं । भोजन में एक्स्ट्रा "मनुहार" चाहते हैं तो फिर विवाहित जीवन में भी पुरुष भाभी, साली , नौकरानी, सेक्रेटरी, पड़ोसन से कुछ "एक्स्ट्रा" की डिमांड कर ही देता है । इसी तरह विवाहित स्त्री भी जीजा, देवर , नौकर , सहकर्मी से कुछ "एक्स्ट्रा" ले लेती हैं । यदि उन्हें वहां से नहीं मिलता है तो आजकल हर जगह "अब्दुल" उपलब्ध है । वह सैलून में है, मेंहदी वाले में है, टेलर के रूप में है, प्लंबर है, मैकेनिक है, डिलीवरी ब्वाय है , ऑटोवाला है । उसके हजारों रूप हैं । उसने तो ठान रखा है कि "लव जिहाद" के चलते इस देश को "दार -उल - हर्ब" से "दार - उर - इस्लाम" में बदलना है । लेकिन हमारी औरतें महान पतिव्रता सावित्री, कुन्ती, द्रोपदी, मंदोदरी, अनुसूइया को छोड़कर "मलाइका" या लियोनी क्यों बन रहीं हैं ? जब हम शास्त्रों को पढ़ना बंद कर देते हैं और कॉमेडी के नाम पर "भाभीजी घर पर हैं" जैसे फ़ूहड़ और अपसंस्कृति परोसते धारावाहिक देखते हैं , उसी दिन से हमारा भटकाव हो जाता है । अपसंस्कृति के चैंपियन एकता कपूर और करन जौहर की फिल्में देखेंगे तब लोग "प्ले ब्वाय" या "सविता भाभी" ही बनेंगे , श्रीराम और माता सीता नहीं । इसलिए हमें चाहिए कि मनोरंजन के नाम पर ऐसी फिल्में, धारावाहिक नहीं देखकर रामचरितमानस का रोजाना पाठ करें और नल दमयंती, सत्यवान सावित्री जैसे आख्यान अपने बच्चों को सुनाऐं । जीवन में संयम और संतोष दोनों बहुत आवश्यक हैं । इनके बिना मनुष्य भोग विलास के दल-दल में फंसेगा, यह तय बात है । इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में "कामनाओं" को छोड़ने की बात कही है । और हां, एक बात और कहना चाहता हूं कि आजकल न्यायालय भी न्याय करने के बजाय "समाज सुधारक" बन गये हैं । वे अपराधियों को उचित दंड देने के बजाय उन्हें उपदेश देकर छोड़ रहे हैं । ऐसी दशा में अपराधी न जाने कितनी श्रद्धाओं को अपने फ्रिजों में बंद करेंगे" । 


आज पहली बार हंसमुख लाल जी ने मुझे निरुत्तर कर दिया था । मैं उनकी तकरीर पर प्रशंसा किये बिना रह न सका । सच में ये "एक्स्ट्रा" न जाने कितनी एक्स्ट्रा मुसीबतें लेकर आता है लेकिन लोग फिर भी एक्स्ट्रा के लालच में अपनी पूंजी भी गंवा बैठते हैं । 



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