एक थी नृत्या
एक थी नृत्या
सौंदर्य और नृत्य कला का अद्भुत संगम थी नृत्या । उसके अंग अंग से सौंदर्य टपकता था और नृत्य की हर भाव भंगिमा में साक्षात नटराज के दर्शन होते थे । भगवान की बनाई हुई अनुपम कृति थी नृत्या । जो कोई भी उसे एक बार देख ले तो बस उसका ही होकर रह जाए । और अगर एक बार उसका नृत्य देख ले तो ? वह स्वर्ग लोक की अप्सरा "उर्वशी" को भूल जाये ।
शास्त्रीय नृत्य की प्रत्येक विधा कत्थक , भरत नाट्यम, कुचिपुड़ी, कथक्कली , ओड़िशी , मणिपुरी सभी में पारंगत थी वह । इनके साथ साथ लोक नृत्य जैसे राजस्थान का घूमर , गुजरात का गरबा , पंजाब का गिद्दा और भांगड़ा , महाराष्ट्र का लावणी इन सब में भी प्रवीण थी नृत्या । ना केवल मुंबई में अपितु पूरे देश विदेश में भी उसके नाम का डंका बज रहा था ।
मुंबई में एक संस्था है "ऑल इज वैल" । यह संस्था समाज सेवा के विभिन्न प्रकल्प चलाती है । इस संस्था की सिल्वर जुबली आने वाली थी जिसमें महामहिम राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और बड़ी बड़ी हस्तियों को आमंत्रित किया गया था । इस कार्यक्रम में आयोजक नृत्या का एक प्रोग्राम भी प्रस्तुत कराना चाहते थे । वैसे तो नृत्या अपने हर कार्यक्रम के लिए दस लाख रुपए का पारिश्रमिक लेती है मगर चूंकि यह कार्यक्रम एक समाज सेवी संस्था के द्वारा आयोजित किया जा रहा था इसलिए उसने महज एक रुपए के पारिश्रमिक पर अपना प्रोग्राम देना मंजूर कर लिया ।
नियत दिन कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । मुख्य अतिथि महामहिम राष्ट्रपति महोदय थे । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी वहां पर मौजूद थे । नृत्या ने एक शानदार कत्थक नृत्य की प्रस्तुति दी । पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा । नृत्या के सौंदर्य की बिजली ना जाने कितने दिलों पर गिरी और उन्हें भस्म कर अंतर्धान हो गई । नृत्या की एक मुस्कान पर ना जाने कितने मर मिटने को आतुर थे । हर एक की ज़ुबां पर बस नृत्या का ही नाम था ।
नृत्या अपना प्रोग्राम देकर अपने कमरे में आ गई । मेकअप हटाया , कपड़े बदले और लौटने के लिए जैसे ही वह अपने कमरे से बाहर निकली , दो मजबूत हाथों ने उसे दबोच लिया । उसकी नाक के आगे एक रुमाल घुमाया और वह बेहोश हो गई।
जब आंख खुली तो उसने अपने आपको एक पलंग पर पाया । तन पर एक भी वस्त्र नहीं । उसने शर्मा कर अपने हाथ से अपने बदन को छुपाने की निष्फल कोशिश की । कमरे में एक जोरदार अट्टहास गूंजा । नृत्या ने उस दिशा में जब देखा तो एक बहुत भयानक आदमी जिसकी शक्ल राक्षसों जैसी थी , दिखाई दिया । वह लगातार अट्टहास किये जा रहा था और नृत्या के नजदीक आ रहा था ।
नृत्या पसीने से लथपथ हो गई । वह उस राक्षस के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगी और छोड़ने के लिए अनुनय विनय करने लगी ।
वह राक्षस जोर से हंसा और बोला "मेरा नाम अलाउद्दीन है । डॉन अलाउद्दीन । पूरी मुंबई पर मेरा राज़ चलता है । महाराष्ट्र की सरकार मेरी मदद से ही बनती है इसलिए तू ये मान लें कि ये मेरी ही सरकार है । इस तरह पूरे महाराष्ट्र में अपुन का राज चलता है ।
कल जब तुझे और तेरे नाच गाने को देखा तो अपनी तबीयत थोड़ी फिसल गई । अब तू है ही इतनी चिकनी कि मक्खन मलाई भी तेरे सामने पानी मांगते हैं । और उस पर वो तेरा नृत्य ! पागल बना दिया है मुझे । अब तू राजी राजी अपने आप को मेरे हवाले कर दे तो तू खुश रहेगी नहीं तो जान से हाथ धोना पड़ेगा तुझे । जल्दी सोच ले " । वह नृत्या के बाल पकड़ कर अपनी ओर खेंचने लगा ।
नृत्या खूब रोई , गिड़गिड़ाई मगर उस राक्षस का दिल नहीं पसीजा । आखिर उस दुष्ट ने अपने मन की की । फिर अपने गुर्गों को आदेश दे दिया कि वे उसे उसके घर छोड़ आयें ।
डॉन के गुर्गे उसे लेकर उसके घर गये । वहां पर उसे पहले बिस्तर पर लिटाया फिर उसका गला दबा दिया । नृत्या तड़प तड़प कर मर गई । उसके बाद उन लोगों ने एक रस्सी ली और उसका फंदा बनाकर उसे उपर पंखे से लटका दिया ।
दूसरे दिन सभी अखबारों और न्यूज चैनलों पर एक खबर प्रमुखता से छपी : एक मशहूर नृत्यांगना ने अवसाद में आकर आत्महत्या की । मुंबई के पुलिस कमिश्नर का भी बयान छपा था उस खबर पर उन्होंने कहा था "प्रथम दृष्टया यह मामला आत्महत्या का लग रहा है । इस केस की जांच यहीं पर बंद की जाती है" । और वह फाइल वहीं पर बंद हो गई ।
कुछ तो सत्ता की धमक और कुछ सिक्कों की खनक
ईमान को बिकने में भला देर कहां लगती है ?
