एक तालीमयाफ्ता फ़क़ीर

एक तालीमयाफ्ता फ़क़ीर

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बात जुमे के दिन की है, मस्जिद बाज़ार के क़रीब में थी तो हुजूम ज़्यादा था, इसलिए मस्जिद में भी आहिस्ता आहिस्ता भीड़ हो रही रही थी, तभी एक नौजवान पर नज़र पड़ी देखने में वह पढ़ा लिखा तालीम याफ्ता मालूम लग रहा था, हाथ में एक बैग लिए हुए था और बैग रखने के लिए मुनासिब जगह तलाश कर रहा था तो बैग को उसने सीढ़ियों के नज़दीक रख दिया, वह शख़्स शहर में नया लगता था इसलिए उसने एक आदमी से वज़ूख़ाने का रास्ता मालूम किया और वज़ू करने लगा, और आगे आकर बैठ गया फिर उसने मस्जिद के एक ज़िम्मेदारान से उनके कानो में कुछ कहा तो उन्होंने कहा ''आप नमाज़ के बाद मसला बताएगा '' नौजवान सर हिलाते हुए कहा ''जी ठीक है'' कहते हुए बैठ गया,

पास में बैठे हुए एक बुज़ुर्ग ने पुछा ''क्या शहर में नए हो"?

नौजवान ने कहा "जी हाँ"।

बुज़ुर्ग ने कहा : ''क्या ग़र्ज़ है अगर मुनासिब समझो तो बताओ "

नौजवान : जी जनाब ''मैं यहाँ एक डॉक्टर से मिलने आया हूँ''

बुज़ुर्ग : ''क्या हुआ तुम्हें, सब ख़ैरियत तो है'' ?

नौजवान : ''जी मुझे कुछ नहीं हुआ, मेरे वालिद अमराज़ ए क़ल्ब (दिल की बीमारी) में मुब्तिला है'' उन्हीं के इलाज के ख़ातिर यहाँ लेकर आया हूँ।

बुज़ुर्ग ने नौजवान के सर पर शफ़क़त का हाथ रखते हुए उसे दुआ दी, और कहा बेटा जी "तुम्हारे वालिद जल्द अज़ जल्द सेहतयाब हो जायेंगे, इत्मीनान रखो"

नौजवान : ''आमीन''

नमाज़ का वक़्त हो चला और मुअज़्ज़िन ने सफें दुरुस्त करने की तलक़ीन और मोबाइल को स्वीच ऑफ करने की हिदायत देते हुए इमाम से नमाज़ शुरू करने को को कहा , नमाज़ शुरू हुयी तो नौजवान ने एक बार अपने बैग की तरफ नज़र डाली और नमाज़ पढ़ने लगा, नमाज़ ख़तम हुयी तो नौजवान उठ खड़ा हुआ और वह ज़िम्मेदारान शख़्स के पास गया और अपना मसला बयान किया, ज़िम्मेदारान शख़्स खड़े हुए और बाआवाज़ बुलंद कहा "ये नौजवान शहर में नए है इनके वालिद दिल के मर्ज़ से मुब्तिला हैं आज उनका ऑपरेशन है, आपसे गुज़ारिश है इनके वालिद हक़ में दुआ करें"

नौजवान अपने बैग के क़रीब गया और उसमें से कुछ काग़ज़ निकाले वह शायद पर्चे थे, उसे दिखते हुआ कहा आप दुआ ज़रूर करे मगर एक मसला यह है कि "मेरे पास पैसे ख़तम हो गए हैं आप हज़रात से गुज़ारिश है मेरी मदद करदें, मेरा घर यहाँ से बहुत दूर है रक़म लाने और मंगवाने में ऑपरेशन में ताख़ीर होगी, मेरी बात का अगर आपको यक़ीन नहीं तो आप मेरे साथ चल कर देख सकतें हैं"। ये कहते हुए वो ज़ार व कतार रोने लगा। वहां बैठे तमाम लोग उसकी बेबसी पर ग़मगीन हो गए, दुआ मांगी गयी सब अपने अपने काम की तरफ बढ़ने लगे और नौजवान अपना बैग लिए मस्जिद के दरवाज़े के नज़दीक खड़ा हो गया। लोगों ने अपनी हैसियत के मुताबिक़ उसकी मदद की। उसकी आँखों में बेबसी साफ़ ज़ाहिर हो रही थी और उसे शर्म भी लग रही थी। मगर मरता क्या न करता,

मस्जिद धीरे धीरे ख़ाली हो गयी, नौजवान अपना बैग और मिले हुए पैसे समेटने लगा और जूते पहनकर बाहर निकला पीछे से मैंने आवाज़ दी और कहा ''मियां ये पैसे रख लो'', उसने पैसे बैग में डाले और शुक्रिया अदा किया और जाने लगा, तो मैंने कहा आप किस अस्पताल में जा रहें है ? उसने पता बताया। मैं ने कहा चलो "मैं आपको वहीं छोड़ देता हूँ"। मैं उसके साथ अस्पताल पहुंचा तो देखा एक खातून उसकी तरफ दौड़ी वह शायद उसकी बीवी थी, और पुछा "पैसों का इंतज़ाम हो गया ?", नौजवान ने कहा "हाँ कुछ पैसों का इंतज़ाम हो गया है", मैं सारा माजरा समझ गया और कहा अगर पैसे कम पड़े तो मैं आपकी मदद कर दूंगा। नौजवान की आँखों में आंसू छलक पड़े और मेरा फिर शुक्रिया अदा किया, हम फिर डॉक्टर से मिले और ऑपरेशन शुरू करने को कहा।........

याद रखें हर मांगने वाले फ़क़ीर नहीं होते कुछ मांगने वाले बेबस और मजबूर हो जाते हैं इसलिए अपने रवैये को हमेशा नरम रखें अगर आपके पास कोई मांगने वाला आये तो आप उसको हक़ीर न समझे और न ही उसपर तंज़ और तनक़ीद करे, अगर आपके पास है तो ज़रूर दें, और कुछ नहीं देने को तो उनके साथ बदसुलीकी भी न करें।........


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