Karan Ahirwar

Drama Tragedy Children

4.3  

Karan Ahirwar

Drama Tragedy Children

एक सच्ची कहानी भाग - 2

एक सच्ची कहानी भाग - 2

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एक सोमवार का दिन था, वह रोज की तरह सुबह सुबह उठकर तैयार होकर स्कूल के लिए जाने लगा। रोज़ की तरह बस बस स्टैंड पर पहुंचा, रोज़ की तरह बस आईं लेकिन राजू नहीं आया, उसने बहुत देर तक उसकी राह देखी पर वो नहीं आया। दिन गुजरा तो फिर अगली सुबह वही जगह वो इंतजार करता रहा लेकिन राजू आज भी नहीं आया। आज एक हफ्ता हो चुका था। इस घटना ने करन को सोचने पर मजबूर के दिया कि ऐसा क्या हो गया जो क्लास का सबसे अच्छा बच्चा, को हमेशा पहला आता है वो एक हफ्ते से स्कूल ही नहीं आ रहा है। 

        वो शाम को अपने पिताजी के साथ सैर पर निकला। अपनी मस्ती में हंसता खेलता हाथ पकड़े पापा का चले जा रहा था। अचानक उसकी नजर एक ठेले पर पड़ी जहां पर कुछ नए खिलौने की दुकान थी। उसने जल्दी से पापा का हाथ पकड़ कर खींचा और उस ठेले पर लगी दुकान की ओर इशारा करके कहा

   "पापा पापा वो देखो खिलौने, मुझे भी दिलाओ ना , प्लीज!!!"

  "बेटा! तुम्हारे पास तो कितने सारे खिलौने है, अब और खिलौनों कि क्या जरूरत है तुम्हें?"

  "पापा वो सब पुराने हो गए है, अब मुझे नए खिलौने चाहिए "

  " बेटा एक बार मना किया ना चलो अब घर चलो बहुत घूम लिया चलो, हां ठीक बेटा चलो!"

          वो मुंह फुलाए गुस्से में घर की ओर मुड़ा कि पीछे से आवाज आयी - "करन"

उसने पीछे मुड़कर देखा तो बो बोला - "अरे ! राजू, तू यहां?"

" हां भाई "

" लेकिन तू ये बता कि पिछले 1 हफ्ते से स्कूल क्यों नहीं आ रहा?"

" अरे करन! वो मेरी तबीयत खराब हो गई थी इसीलिए नहीं आया लेकिन अब मैं बिल्कुल ठीक हूं तो कल से पक्का स्कूल आऊंगा।"

" चल कोई बात नहीं, अब तबीयत ठीक है तो कल स्कूल जरूर आना ठीक है।"

" हां ठीक है फिर कल स्कूल में मिलते है। "


इतना कहकर वो खुशी खुशी घर जाने लगा और कल की सुबह का इंतज़ार करने लगा कि वो कब राजू के साथ बस की और स्कूल की सीट पर बैठेगा और दोनों मिलकर खूब मस्ती करेंगे। 


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