Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

SHAKTI MANI

Drama Romance Crime

2.9  

SHAKTI MANI

Drama Romance Crime

एक पिली रंग कि नोटबुक मेरे तीसरे जन्म की कहानी

एक पिली रंग कि नोटबुक मेरे तीसरे जन्म की कहानी

6 mins
299


ये कहानी  तीसरे जन्म से शुरू होती है इससे पहले के दो जनम थे याद नही पर जब विचार  करती हूँ तो आँखें चौथे वर्ष में खुलती है शायद यही मेरा पहला जन्म है जहां माथे पर तिलक लगाए सब घर घूमा करती मेरी प्रवृति चंचल थी मैं एक पुजारी के घर पैदा हुई थी मैं एक अकेली पुत्री थी समय के साथ

साहूकारों के साथ काम करना जिससे घर खर्च के लिए मेरी तरफ से भी सहयोग हो जाता था,मेरी ईश्वर से प्रार्थना थी कि अगर मेरा विवाह हो तो मेरी ओलद मेरे जैसा जीवन ना जिए

 उम्र 23 की होने वाली थी मेरे पिताजी मेरे लिए वर तलाश कर रहे थे , मैं विष्णु भक्त यही मांगती की आने वाला समय अच्छा हो।

रोज की तरह मैं मंदिर गई मैं प्रार्थना में थी कि एक व्यक्ति जिसने काफी अच्छे कपड़े पहने थे और साथ में नोकर थे उसका लगातार देखना अजीब था, मैं 

घर आयी पिता जी ने बताया की जब वह गांव में कुंडली निर्माण के लिए गए थे तो उन्हें पता चला कि गांव में राजसत्ता के लोग भ्रमण कर रहे है

 शायद यह गांव की आर्थिक मदद कर सके ,पिता जी ने कहा देवांगीनी तुम्हें क्या लगता है क्या उनके भ्रमण से कुछ फायदा हो पाएगा?

नहीं वह व्यक्ति मैंने आज मंदिर में देखा उसके स्वभाव से तो वह उच्च अधिकारी लग रहा था परंतु वो योग्य नहीं की मदद कर पाए।

पंडित जी विचार करने लगे …?

कुछ दिन बाद जब पंडित जी पूजा कर घर वापस आ रहे थे तब उस राजाधिकारी ने उन्हें रोका और कहा -

मेरा नाम रामेश्वरम है और मैं इस गांव का निरीक्षण करने आया हूं और मदद भी, मैं देख रहा हूं कि यह सिर्फ एक दो पंडित आते है

 परंतु ठहरता कोई नहीं है क्या इसका अर्थ है कि मन्दिर का कोई निजी पंडित नहीं है ?

मेरे पिता जी ने कहा अगर कोई निजी रूप से रहने लगा तो क्या वह अपने घर का खर्च उठा लेगा ?

रामेश्वरम ने कहा अगर आप रहे और घर खर्च मैं दूँ या दान से निकाल लिया जाए तब ?

पिता जी ने कहा संभव है परंतु मुझे अपनी पुत्री का विवाह करना है जिसके चलते खर्च ज्यादा है

रामेश्वरम ने बिना देर लगाए कहा कि गांव में भैरवी पूजा का होना बहुत जरूरी होता है एक अनुष्ठान जरूरी है

 मैंने आपकी पुत्री को पुजारण के रूप में देखा है वो सक्षम है इस अनुष्ठान के लिए।

पिता जी ने कहा यह तो विष्णु मंदिर है ?

रामेश्वरम ने कहा मैं यह भैरवी की स्थापना करुंगा। विष्णु जी से अलग।

शाम को जब पिता जी घर आए तो यह बातें बताई मैंने हाँ कह दिया क्यूंकि पिता जी बहुत मेहनत किया करते थे मैं उनको थोड़ा आराम देना चाहती थी ।

उसकी निगाहें तीन दिन के अनुष्ठान में मुझ पर ही रही

वो व्यक्ति जिसे में जानती नहीं थी उसने यह कहा कि पिता जी मरवा दिए जाए तो ?

मेरे साथ जबरदस्ती संभोग कर मुझे तीन दिन तक वहीं रखा, गांव में यह बात फैल चुकी थी

 पिता जी को सब अलग अलग सलाह दिए जा रहे थे मेरा मन अब मरने का था परंतु ऐसा करती तो पिता जी का क्या होता मां तो मर ही जाती ।

 महीने बीते मैं सदमे में घर में ही रहती सारी चंचलता खतम थी ।

पिता जी से कोई भी अब कुंडली निर्माण के लिए नहीं पूछता सब खत्म होता जा रहा था,मेरे पिता जी अन्य पंडितो के साथ भी रहा करते थे उनमें से एक ने 

प्रस्ताव रखा कि हम आपकी पुत्री का विवाह करवा सकते है, एक व्यापारी से जिसे अपने व्यापार के लिए कुशल व्यक्ति की आवश्यकता है और आपकी पुत्री ज्ञानवान है मेरे पिता जी ने उस व्यापारी को निमंत्रण कर 

विवाह का प्रस्ताव रखा , और मैंने सब कुछ यथा कथित बताई और कहा शायद मैं गर्भवती हूं।

उस व्यापारी का मुंह निराशा से भरा था और वो उठ के चला गया, मैंने सोचा क्यूं ही करेगा कोई विवाह, परंतु उसने विवाह के लिए हाँ कहा?

मुझे यकीन नहीं हुआ परंतु वो मुझे अपनाने की बात कर रहा था,विवाह का समय कुछ महीने बाद का रखा तभी एक दिन वो राजसत्ता का अधिकारी हमारे घर आकर

 हमसे विवाह का प्रस्ताव रख हमारा नाम पूछने लगा मैं उसे घूर रही थी मैने मना कर दिया ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकती

 तुम दोबारा पूछने आए हो इससे पहले ही मेरा रिश्ता हो चुका है और ऐसे व्यक्ति से कौन विवाह करेगा जो जिस्मो को बदलता है, मर जाऊंगी पर रामेश्वरम से विवाह नहीं करूंगी।

वो व्यक्ति मुझे देखता रहा और चला गया मैं कुछ समझी नहीं और उसे जाने को कहा।

मेरा विवाह अरविंद गोस्वामी व्यापारी से हो गया वो नेक दिल का था उसने कहा मुझे तुम्हारे इस बच्चे से कोई दिक्कत नहीं बस तुम साथ रहकर मेरा 

व्यापार संभालो ।

मैंने कहा हाँ ठीक है, दिन अब अच्छे कट रहे थे उनसे शायद प्रेम नहीं था परंतु वो एक काबिल व्यक्ति थे मेरी पुत्री चार वर्ष की होने वाली थी उसका नाम जयरानी रखा,

रामेश्वरम का उस गांव में भी बोल बाला था वह अब उच्च ज्ञानी भी बन गया था जब वह मेरे से आखिरी बार मिला तो शायद विचारों और बुद्धि से बदल चुका था

 पर मेरा फैसला कभी नहीं बदला वो पछतावे में जी रहा था ।

कुछ दिन बाद खबर आयी की मेरे पति की किसी ने चाकू मार के हत्या कर दी है मुझे बहुत गुस्सा आया,

 हे विष्णु क्या मैं सुख भोगने योग्य नहीं। मैं इस दुख में जी ही रही थी कि एक देर रात को मेरी कुटिया पर कोई आता दिखाई दिया दूसरी तरफ मेरी जायरानी सो रही थी।

वो रामेश्वरम था उसने बताया कि उसके पति को उसने ही मारा, मैं सदमे से चुप रही वो कहता गया देवांगीनी तुम्हारी वजह से मैं नश्वर जीवन से बाहर आया था

 जो कि बहुत अच्छा था परंतु मैं फिर नश्वर नहीं बनना चाहता, तुम हमारी शायद ना हो और आज हम किसी का होने भी नहीं देंगे।

मुझे मारते वक़्त उसके हाथ कांप गए वो बाहर गए एक नौकर अंदर आया उसने गले को कस लिया मैं रामेश्वरम को देख रही थी आंखे फिर बंद ही हो गई।।


आंखे खुली तो एक नए ही रूप में इस बार मेरा जन्म व्यापारी के घर हुआ मेरा नाम लक्ष्मी था यह शायद मेरा दूसरा जन्म था पास के नगर से मुझे एक रिश्ता आया इस व्यक्ति को मैं जानती थी यह एक छोटा व्यापारी था

 जो हमसे ही व्यापार करता था इसका नाम था वैभव,परंतु मुझे अभी विवाह नहीं करना था या फिर मेरे मन में कोई और ही था वो गुनी ज्ञानी व्यापार में अव्वल था 

बलराम उसका हमारे साथ व्यापार में साझा था वो बहुत ही शांत और चालाक स्वभाव का था मुझे वो पसंद था

 व्यापार के चलते उससे मिलना हुआ करता था, मानो भगवान ने मेरे मन की बात सुन ली हो पिता जी से कहने से पहले उसने मुझसे मिलने पर कहा कि

 लक्ष्मी शायद हम बहुत करीब है तो क्यूं न व्यापार को 

एक कर के मतलब  आप राजी है तो हम आपसे विवाह करना चाहते है।

मैं मन ही मन खुश थी मैंने कहा आप पिता जी से बात करे ओर चली गई।

पिता जी को कोई आपत्ती नहीं हुई और बलराम से विवाह करवा दिया बलराम को मैंने अपना सारा व्यापार सौंप दिया हमारा व्यापार कच्चे तेल का था ,

व्यापार से दूर हट में अब भविष्य में बच्चों की सोच रही थी परंतु एक दिन अचानक बलराम कुछ दिनों से अजीब बातें कर रहे थे वो हमेशा दूसरी कन्याओं 

से संबंध का मन जता रहे थे जो मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।

मैंने एक दिन उनसे गुस्से में पूछा आपको क्या चाहिए उन्होंने एक सांस में कहा तुमसे छुटकारा मैं तुमसे प्रेम नहीं करता तुम्हारे लिए वैभव ही ठीक था, मुझे व्यापार से प्रेम है ।

मैंने कहा क्या कह रहे हो, उन्हें देखती रही लालच दिख रही थी एक धोखा भी एक छल भी जिसका सार भी व्यापार सहारा भी व्यापार, 

मेरा सार बहुत है लेकिन मेरा सहारा ख़तम हो गया था उसी दिन। मैं घर वापस आयी तो पिता नहीं रहे यह बात भी आज ही पता चली ।

एक दिन वैभव से मिली वो उस वक़्त मुसीबत में था मुझसे मदद मांग रहा था परंतु मैं तो खुद बेजान हो चली थी

 वैभव ने पहले मेरी बात सुनी उसे बिल्कुल अचंभा नहीं हुआ कि बलराम ने धोखा दिया, और वैभव भी कुछ ओर बातें सुना कर चला गया।

नदी के किनारे जहाँ बचपन में रोज पिता जी सैर करवाते कभी नहलाया भी करते पिता कि उंगलियों को पकड़ कर 

जब डुबकी लगाया करती ओर छपक उंगली मुझे ऊपर खींच लेती पर इस बार जब 

डुबकी लगाई तो वो सहारा नहीं मिला मैं फिर कभी बाहर ही नहीं आ पाई….

 

 मेरा तीसरा जन्म २००२ को मेरा चौथा जन्मदिन…………….

 

 PART 2

अरविंद गोस्वामी व्यापारियों में सोलवीं सदी का जाना माना नाम मुझे हर एक चीज जो व्यापार से जुड़ी है उससे प्रेम था 

बहुत मेहनत कर मैंने इस व्यापार को बढ़ाया अनाजों का व्यापार बहुत ही लाभदायक है, परंतु हिसाब रखने हेतु मुझ पर कोई भरोसेमंद सहायक नहीं था कुछ दिन पहले ही मेरी पत्नी का 

किसी रामेश्वरम द्वारा दुष्कर्म हुआ मुझे यह खबर नहीं थी पर मेरी पत्नी ने आत्महत्या कर ली मेरे अंदर उसे जान से मारने की भावना प्रकट थी परंतु वह 

बहुत बलशाली था फिर भी मैं उसे अपने हाथों से मारना चाहता था एक दिन मेरे पास एक रिश्ता आया पुजारिन का, 

पहले मैंने मना किया पंडित जी ने कहा देख आने में क्या हो जाएगा, मैं चला गया उस लड़की का नाम था

 देवांगीनी उसने बताया कि कैसे रामेश्वरम नाम के व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म अंजाम दिया मैं चौका और घर वापस आया 

वहां कन्या बहुत ज्ञानी थी और पीड़ित भी और यहां रामेश्वर से जुड़ी हुई थी देवान्गिनी ने बताया कि रामेश्वरम मुझे पसंद करने लगा है और उसे पाने के चक्कर में खुद में बदलाव 

ला रहा है, इस मौके पर मुझे पीछे नहीं हटना था मैंने तुरंत पंडित से विवाह जल्दी से जल्दी करने का समय निकलवा लिया रामेश्वरम को तड़पा तड़पा के ही मारूंगा 

एक जरिया होगी और देवांगीनी और मेरा हाथ भी व्यापार में बढ़ा देगी और ऐसा ही हुआ हमारे विवाह के बाद रामेश्वरम भागा फिरता

 पागल जैसी स्थिति कर बैठा था मेरे मन को शांति मिल रही थी अचानक एक दिन रामेश्वरम मेरे पास आकर प्रेम संबंधी बातें करने लगा तब मुझे 

सुकून मिला रहा था उसकी बातों से ध्यान हटा ही नहीं और उसने मेरे पेट में चाकू घुसा दिया उसने कहा खत्म होगा यह सिलसिला

 परंतु मैं खुश था दूसरे के साथ खिलवाड़ करने वाला आज खुद खिलवाड़ हो गया है.

मेरा दूसरा जन्म भी व्यापारी के घर हुआ मेरा नाम वैभव रहा मेरे पिता जी ने मछलियों का व्यापार किया था

 इस व्यापार में व्यय के लिए हमने लक्ष्मी ट्रेडर्स कि मालकिन लक्ष्मी से सौदा किया मुझे लक्ष्मी बहुत अच्छी लगती थी

 लक्ष्मी का व्यापार करने का तरीका बहुत अलग था वह मेरी भावनाओं को जानती थी परंतु उसने कहा था

 कि तुम मुझे पसंद नहीं व्यापार मात्र ही तुम जानकर हो अच्छा होगा यहाँ सम्बन्ध व्यापार तक ही रहे मैं लक्ष्मी में ही खोया था

 कि पता चला हमारा व्यापार बर्बाद हो चुका है जो मछलियाँ हम बाजार में बेचते थे उनमें जहर पाया गया है मैं जानता था

 इसके पीछे बलराम है क्यूंकि जब हमने उसके साथ सौदा नहीं किया तो वो थोड़ा गुस्से से चला गया था परंतु मेरे पास कोई सबूत नहीं था

जैसे तैसे मैंने कपड़ों का छोटा व्यापार करा परंतु मैं कर्ज में डूबता जा रहा था कुछ सालों में ही आर्थिक रूप से कमजोर हो चला 

मैंने सोचा क्यों ना लक्ष्मी केपास जाकर मदद मांगी जाए उसके पास पहुंचा तो पता चला उसे धोखा दिया बलराम ने, 

मैंने बलराम के बारे में बताया कि वहां कितने लोगों का व्यापार हड़प कर बैठा है यदि तुम हमारे साथ रहने के लिए हां कर देती तो शायद भविष्य यहां नहीं होता 

मैं उसे इतना बोल कर चला गया मैं अपने कर्ज से छुटकारा पाने के लिए बलराम के पास गया उसने मना कर दिया 

परंतु उसने सौदा किया उसने कहा कि गांव के मंदिर में मैंने सोने के विष्णु की मूर्ति के लिए हां कर दी है और वहां सोने की मूर्ति एक हफ्ते बाद मंदिर में आएगी

 तुम्हें करना यह है कि मंदिर में आने से पहले मूर्ति को बदलना है और सोने के रूप में डलवा कर मुझे वापस देना है,

 मैंने कहा परंतु आप ही ने तो इसे बनवाया है तो बलराम ने कहा इतनी कीमती चीज को मूर्ति रूप में नहीं डलवा सकते हैं, यह सोना तो तिजोरी में ही बेहतर लगेगा

तुम चोरी इस हिसाब से करोगे कि वहां दूसरी नकली मूर्ति रखी जा सके उसके बाद तुम्हारा सारा कर्ज मैं पूरा करके दूंगा,

मैंने यहां किया जहां मूर्ति निर्माण हो रहा था मैं वहां गया उसकी जगह पर दूसरी मूर्ति ले गया जब मूर्ति मंदिर के लिए आ रही थी

 तब मैंने मौका देख मूर्ति बदलकर विष्णु की सोने की मूर्ति लेकर भागा परंतु मुझे लोगों ने देख लिया मैं घबराता हुआ बलराम ले घर में प्रवेश कर चुका था 

अचानक घर से ही आवाज़ आयी चोर चोर तभी एक व्यक्ति मेरी तरफ आया मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैंने उसे तीन चार बार मूर्ति से हमला कर दिया

 मुझे नहीं पता वह व्यक्ति कौन था शायद बलराम ही रहा हो मैं डरा था काशी पहुंचते मैंने मूर्ति को गंगा में बहा दिया वहां से चला गया 

वापस आया तो पता चला बलराम को किसी ने मार दिया है मैं डरा हुआ था मैं कुछ समझ नहीं पाया

 मैं उसी गंगा में वापस गया जाते समय बलराम के तिजोरी से कुछ जेवर और धन भी उठा लिया था

 मैं अब उस गाँव से दूर निकल रहने लगा मैंने एक शिल्पकार कि पुत्री से विवाह किया उसका नाम समीक्षा था उसके पास सम्पत्ति बहुत थी

 समीक्षा ने बताया कि उनकी दादी के पास बहुत ही सम्पति थी मेरे पिता जी बताते है कि वह किसी व्यापारी कि कन्या थी मैंने कहा उनका नाम क्या था ?

 समीक्षा ने कहा जयरानी, मेरा दूसरा जीवन सुखद था पर अधूरा लक्ष्मी की याद धुंधली ही सही परन्तु आज भी वो पल याद आ जाते है

 जब साथ में व्यापार के बारे में बातें किया करते थे उसे पन्ने कि चाह मान में थी और बस मन में ही रही .......

मेरा तीसरा जन्म एक कुलीन परिवार के घर हुआ २००२ मेरा चौथा जन्मदिन आने वाला है.....???

 

 PART 3


एक पिली रंग कि नोटबुक जो आज ही मैंने खरीदी ये मन में था कि वो कहानी लिखू जो मुझे शायद अपनी सी लगती है इस कहानी को नाम नहीं दिया है यहाँ कहानी मेरे अभी के व्यक्तित्व कि है मैं इस बार क्या कर रहा हूँ इस पिली नोटबुक में मैंने अब तक कि सारी बातें लिखी है इस कहानी को में अपना तीसरा जन्म कहता हूँ वो कहानी तो नहीं पर उसका सार जरुर बता रहा हूँ, वो पिली नोटबुक मेरे जीवन का लेखा जोखा है जिनमे से सिर्फ कुछ बातें ही बता रहा हूँ ....

The Yellow Note book

Story of my third birth.

 

  २२ जनवरी १९९६ को मेरा तीसरा जन्म हुआ इस बार मेरा नाम गायत्री वल्लभ रहा मेरा जन्म २०० साल पहले का था जब मेरा नाम बलराम रहा इन जन्म कि शुरुआत १६०० में हुई, मैं चार वर्ष का हो चुका था मेरा नाम रामेश्वरम महंत था मेरी उम्र जैसे जैसे बढ़ती जा रही थी मैं भ्रष्ट बनता जा रहा था, गुंडागर्दी मेरी आदत बन गयी थी मेरा जीवन नश्वर था मुझे सम्भोग का जीवन ही भाता इस प्रकार मैंने दुष्कर्म किये, मैं राजसत्ता का अधिकारी था ताकत तो मेरे कदमो में थी, जब सम्भोग कि इक्छा होती तब एक कन्या मेरे नाम कि होती मेरे जीवन का बदलाव देवांगीनी से शुरू हुआ मैं समाज में पहले ही बदनाम था उस समय मेरे पास असीम ताकत व जरिया था, लोग चाहकर  मेरा कुछ भी नहीं बिगड़ सकते थे में उच्च कुल का नागरिक था मेरी उम्र २४ वर्ष कि हो गयी थी मुझे अब अन्य गांवों कि भी जानकारी लेनी थी मेरा मन हुआ कि इस गाँव से भी किसी के साथ सम्बन्ध बनाया जाये मेरी नजर एक पुजारी कि कन्या पर गयी जिसके बाल व आंखे बहुत सुंदर थे राज सत्ता के चलते उस कन्या को मंदिर कि पुजारिन बनवा दिया गया मैंने मौका देखते ही मंदिर की कुटिया में उसके साथ ज़बरदस्ती सम्भोग किया मैंने तीन दिन भैरवी कि पूजा का अनुष्ठान बता कर उस पुजारिन को उसके घर से दूर रखा तीन दिन अपना मन भर मेने उसे जेवरो से भर दिया वह से स्थान छोड़ दिया, मैं हर सम्भोग के बाद उस घटना को भूल जाता या उस शख्स को परन्तु उस सुंदर बाल वाली कन्या को विचार कर रहा था उसके बारे में सोच रहा था उधर गाँव के लोग इस बात से परिचित थे कि यह दुष्कर्म रामेश्वरम द्वारा किया गया है परन्तु मेरी सत्ता का बोलबाला था ,मैं सोच रहा था कि मुझे उस पुजारी कि कन्या से फिर मिलना चाहिए कहीं उसने आत्महत्या न कर ली हो या फिर उसके समाज ने उसे मार न डाला हो ,मेरे जाते ही लोगो के रंग उतर गए मैंने पंडित से मिलने कि चाह करी उनके घर गए तो मैंने उस कन्या का नाम जानना चाहा वो पुजारिन मुझे घूर रही थी पंडित ने डरे स्वभाव से कहा देवान्गिनी।

देवांगीनी उस समय न्याय चाहती थी हो सकता है वो गर्भवती हो जाये मैंने न्याय के रूप में शादी का प्रस्ताव रखा रामेश्वरम चालाक था उसे पता था कि यह के लोग उसे जिन्दा नहीं जाने देंगे इसलिए शादी का प्रस्ताव बेहतर है उसने शादी का प्रस्ताव इंकार कर दिया वो उच्च बुद्धि कि नजर आ रही थी उसने कहा मैं शादी नहीं करना चाहती यहाँ व्यक्ति सिर्फ अंगो के साथ खेल सकता है यह किसी को समझने हेतु नहीं बना हैं मैं उस व्यक्ति के साथ जीवन व्यतीत नहीं कर सकती जो सिर्फ सम्भोग के आलावा कुछ भी ज्ञान न रखता हो ,मैं यह सुन वापस चला गया अब उसे पाने का मन ज्यादा था उसका घमंड था कि बुद्धि बलि से ही विवाह करेगी ,मैंने शास्त्रों का ज्ञान शुरू किया हर एक ज्ञान के आधार को समझा करता मेरी काबिलियत के साथ मेरी सत्ता बहुत मजबूत हो गयी थी मैं फिर गया परन्तु फिर भी देवांगीनी ने मेरा प्रस्ताव ठुकरा के किसी और के साथ विवाह किया , देवांगीनी ने कहा तुम्हारे विचार अच्छे हो गये हो या फिर तुम एक विद्वान परन्तु मैं तुमसे प्रेम नहीं करती मैंने कहा जिससे से विवाह कर रही हो क्या उससे प्रेम हैं ? उसने कहा नहीं पर वह साथ रहेगा और मुझे उससे प्रेम भी हो जायेगा 

उसकी शादी हो गयी मैं फिर भ्रष्ट कार्यो में आ गया उसकी एक पुत्री हुई उसके चार वर्ष होने वाले थे और मैं अभी तक उसे पाने कि चाह रखता मैं पागल बना फिरता वही आदत पर सम्भोग से परे ,मैंने एक दिन उसके पति से मुलाकात कर उसे बताया कि वह जो पुत्री है वो मेरी है वो ज्ञानी है और तुम अलहड़ हो फिर भी तुमने शादी क्यूँ कि, उसने कहा वो सक्षम गृहणी है और तुमने अभी तो कहा वो ज्ञानी है और अच्छी भी फिर मुझे उसकी नाजायज बच्चे से कोई दिक्कत नहीं है वैसे भी उसका बुरा वक्त था जो कि तुम थे, मैं उसकी खुशिया हूँ 

एक रात देर जब मैं देवांगीनी कि कुटिया पर गया तो उसकी पुत्री दूसरे कोने में सोयी थी मैं उसके करीब आया, मुझे नहीं पता प्रेम का सही अर्थ और तुम कभी भी मेरे जीवन में वापस नहीं आ सकती, मैंने उस दिन उसकी हत्या करवा दी मैं न समझ हो गया था, मैं किसी और के हाथों नहीं मरना चाहता था मैंने अपनी सम्पत्ति देवांगीनी पुत्री के नाम कर आत्महत्या कर ली उसका घमंड यहाँ नहीं था कि वो बुद्धि बलि से विवाह करेगी बल्कि उसका घमंड था कि वो वो मुझसे ही विवाह नहीं करेगी चाहे मर ही क्यूँ न जाये .....????

मेरा दूसरा जन्म एक व्यापारी के घर हुआ वर्ष १८०० के आस पास मैं बहुत ही लालची व्यापारी था मैं चालक व् छली व्यापारी था और धनवान भी ,मुझे किसी भी चीज़ कि कोई कमी नहीं थी मेरा प्रेम लक्ष्मी नाम की लड़की से रहा जो उच्च कुल के व्यापारी के कन्या थी मैंने उससे शादी करी जीवन सुखद था परंतु लक्ष्मी से ज्यादा मुझे उसके व्यापार से प्रेम था उससे शादी के बाद उसका संपूर्ण व्यापार अपने नाम कर उसे त्याग करना चाहा और किया भी, मैं नहीं समझ पाया कि मैं क्या कर रहा हूं मैं इस सोच में था कि अपना नया जीवन देखेंगे परंतु मैंने सब तबाह कर दिया उसने कहा हमारी मृत्यु पानी में होगी वजह आप होंगे मेरे जीवन का सार अभी खत्म नहीं हुआ परंतु सहारा खत्म हो चुका है उसने डूब कर आत्महत्या किए परंतु मैं तो बलराम था व्यापार ही प्यार था ना जाने कितने व्यापार हड़पे परंतु सुखी जीवन नहीं हो पाया, सुबह उठते ही शाम को सोने तक व्यापार पैसों में उलझा रहता मेरी उम्र बढ़ रही थी सहारा बहुत थे परंतु मेरी जिंदगी का सार नहीं था, जब कुछ समय अपने आप को दिया तो तब जो याद आया वह लक्ष्मी रही मैं फिर उसे पाने की इच्छा करता रहा, कुछ चोरों ने मेरी मृत्यु कर दी उसके बाद मेरी संपत्ति का क्या हुआ मुझे अंदाजा नहीं 

इस बार भी शायद मैं किसी के मृत्यु कारण बनू परंतु मैं चाहता हूं भविष्य का निर्धारण बदल जाए इसलिए मैंने इस जीवन में ज्ञान को अर्जित किया है सब 

सही रहा तो यहां जीवन मेरा अंतिम होगा उस कन्या का संपूर्ण जीवन होगा

मेरा नाम गायत्री है मैं जानता हूं उसका आधार मैं ही बनूंगा अगर मैं उसकी मृत्यु का कारण बना तो उससे पहले ही मैं अपनी मृत्यु का कारण बन जाऊँगा, इस बार में किसी की अधूरी मौत का कारण नहीं बनूँगा क्योंकि मैं अपना जीवन समय के साथ नहीं बल्कि आगे जी रहा हूं मेरी मौत इस बार निश्चित समय से पहले डूबकर या डूबाकर होगी और यहां मेरे जीवन का अंत होगा, इस तरह से पंच महापुरुष योग में जन्मा एक बौद्धिक बालक के रूप में मरूँगा जब मैं मरू ना कोई मुझे हाथ लगाने वाला नहीं पूछने वाला इस तरह खत्म होगा यह तीसरा जन्म

इस बार भी वो मिली पर मैं नहीं चाहता कि भविष्य आगे चलकर फिर मौत बन जाये उसका मिलना हर बार मुझमे ठहराव लाता है,इस बार मैं नहीं ठहरना चाहता यूँ मिली तो हो इस बार भी पर इस बार सबका जीवन पूरा हो .....हम तीनों का मिलना निश्चित है और मैं मिला भी हूँ .....समय चक्र बदल दिया है।

 

 


Rate this content
Log in

More hindi story from SHAKTI MANI

Similar hindi story from Drama