टेल ऑफ़ ए नाइट
टेल ऑफ़ ए नाइट
बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों के बीच जब - जब विश्वास का संकट पैदा होता है तब - तब दोनों ही एक-दूसरे से खतरा महसूस करने लगते हैं और स्वयं को असुरक्षित पाते हैं। तब ऐसे अवसरों का लाभ नेता, राजनेता और मज़हबी व धार्मिक संगठनों के संचालक अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति हेतु उठाते हैं। वे बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों को आपस में लड़वाकर भारत की धर्मनिरपेक्षता को ठेस पहुँचाते हैं, तब प्रसिद्ध कथन "भारत मतलब विविधता में एकता" के मायने बेमानी हो जाते हैं।
खौफनाक अनुभवों से गुजरा हिन्दू - मुसलमान आज तक अपने अतीत से कुछ भी नहीं सीख पाया है। एक बार फिर से मज़हबी तकरार में एक-दूसरे पर टूट पड़ता है। धार्मिक उन्माद का नंगा नाच एक विशेष शहर तक सीमित न रहकर कई शहरों में फैल चुका है।जिसका कहर ऐसे मजलूमों पर टूटा है जो धार्मिक कट्टरता में नहीं बल्कि दो जून की रोटी के जुगाड़ में बहने वाले पसीने में विश्वास करते हैं।
सुलेमान भाई का फोन घनघना उठता है। सुलेमान भाई एक समाजसेवी हैं। उन्हें उनके द्वारा बनाए गए संगठन "हम सब इंसान हैं" के कार्यालय में तुरन्त बुलाया है। क्योंकि दंगे भड़क गए हैं और वे व उनके संगठन के साथी सदस्य, जो हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी कौमों से हैं, खंडित हुई कौमी एकता को एक बार फिर से बहाल और मजबूत करने की कोशिश करेंगे।
सुलेमान भाई का घर एक मुस्लिम बहुल इलाके में है। वे तुरंत ही अपने घर से निकल गए। लेकिन जाते - जाते अपने तीनों बच्चों, सबसे बड़ी तरन्नुम, उससे छोटी गीता और सबसे छोटा पीटर को हिदायत देकर गए हैं कि घर का दरवाज़ा अपनी मम्मी के आने पर ही खोलें जोकि इस वक्त घर से बाहर हैं। वे शहर की जानी-मानी डॉक्टर हैं और वे शहर के ही सरकारी अस्पताल में कार्यरत हैं।
सुलेमान भाई और उनके संगठन के साथी सदस्य दंगाइयों के संकीर्ण विचारों को तब्दील करने की असंभव कोशिश शुरू कर चुके हैं। लेकिन उनकी समझाइश का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा। शायद वे भूल गए कि वे ऐसे हैवानों को इंसानियत का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनका रोम -रोम शैतानियत के जहर से पूरा का पूरा भर दिया गया है। उन्मादी भीड़ शांत होने के बजाए वहशी बन गयी है। उसके सिर पर खून सवार हो गया है। स्थिति अनियंत्रित हो गयी है। सुलेमान भाई और उनके साथी बुरी तरह से चोटिल हो गए हैं। गनीमत रही कि पुलिस समय से पहुँच गई और वे उन्मादी भीड़ के प्रकोप से बच गए। अब वे सभी अस्पताल में भर्ती हैं।
डाॅक्टर रेहाना घर लौट चुकी हैं। लेकिन वे अभी तक अपने शौहर के साथ हुए वाकये से नावाकिफ हैं। वे अपने तीनों बच्चों को बता चुकी हैं कि आज की रात उन्हें घर में अकेले रहना है। क्योंकि उनके पापा शहर में कौमी एकता बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि उन्हें उन मजलूमों का इलाज करने अस्पताल जाना है जिन्हें धर्म के नाम पर, मज़हब के नाम पर अधमरा करके छोड़ दिया गया है।
अचानक दरवाज़े पर दस्तक होती है। सभी बच्चे डर जाते हैं। लेकिन डॉक्टर रेहाना जोकि कई बार ऐसे मंजरों का सामना कर चुकी हैं, वे बिल्कुल भी नहीं डरतीं। वे आगंतुक का परिचय पूछ डालती हैं। आगंतुक बताता है कि उसकी बच्ची बीमार है और वह डाॅक्टर रेहाना की मदद चाहता है। डाॅक्टर रेहाना जोकि कभी भी अपने फर्ज़ से मुँह नही मोड़ती, तुरंत ही उस शख्स को घर में बुला लेती हैं।
यह शख्स सोमेश्वर नाथ है जोकि बजरंग दल का एक नेता है और हिन्दुत्व में गहन विश्वास रखता है, इस्लाम और मुसलमानों से सख्त नफरत करता है। परंतु आज तड़पती हुई बच्ची की कराह, गिड़गिड़ाती और रोती हुई बच्ची की माँ की मिन्नतें तथा एक बाप का अपनी बच्ची के प्रति अदम्य स्नेह, प्यार और फर्ज उसे एक मुस्लिम डाॅक्टर के घर लाकर खड़ा कर चुका है। उसके साथ उसकी पत्नी और उसका सात साल का लड़का शोभित भी है।
डाॅक्टर रेहाना इलाज शुरू कर चुकी हैं। बच्ची को तेज बुखार है। दवाई दी जा चुकी है। अब बच्ची की हालत में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। डाॅक्टर रेहाना ने एक बार फिर से बच्ची को जाँचा। बच्ची की हालत अब स्थिर हो चुकी है। डाॅक्टर रेहाना अब अस्पताल के लिए निकलती हैं। वे जानती हैं कि बाहर काफी खतरा है लेकिन उनका फर्ज़ कहता है कि कई जिंदगियों को बचाने के लिए एक जिंदगी को दाँव पर लगाना ही पड़ेगा । जाने से पहले वह सोमेश्वर नाथ को हिदायत दे चुकी हैं कि माहौल शांत होने तक वे उनके घर में ही रूकें, क्योंकि वे एक मुस्लिम बहुल इलाके में हैं जहाँ कुछ देर पहले पाँच हिन्दू परिवारों को घर समेत जिंदा जलाया जा चुका है। इसलिए अपनी जान जोखिम में न डालें।
सोमेश्वर नाथ जिसने कुछ दंगाइयों का नेतृत्व करते हुए सुलेमान भाई व उनके साथियों को जान से मारने की कोशिश की थी, वही सोमेश्वर नाथ अब सुलेमान भाई के घर पनाह लेने का मन बना चुका है। क्योंकि वह अपने परिवार की जान को खतरे में नही डालना चाहता है। लेकिन वह अभी तक बेखबर है कि उसकी बच्ची को नई जिंदगी देने वाली खातून सुलेमान भाई की बेगम हैं और तीनों बच्चे जो उससे और उसके परिवार से दोस्ती करना चाहते हैं, बातें करना चाहते हैं सुलेमान भाई के गोद लिए हुए बच्चे हैं जिनके माँ-बाप साम्प्रदायिक दंगों में मारे गए।
मजहब को जरिया बनाकर जो छौंक हिन्दूओं -मुसलमानों में लगाई गई थी, अब उसने जोर पकड़ लिया है। माहौल बिगड़ता ही जा रहा है । लेकिन सुलेमान भाई के तीनों बच्चे अपने कट्टर हिन्दू रोगी मेहमान के परिजनों से दोस्ती करने की असफल कोशिश कर रहे हैं। कट्टर हिन्दू सोमेश्वर नाथ का भय कि कहीं धर्म भ्रष्ट न हो जाए उसे और उसकी पत्नी व लड़के को उन बच्चों से मित्रता करने से बार-बार रोक दे रहा है।
सोमेश्वर नाथ यह देखकर हैरान है कि वह जिस मुस्लिम परिवार में पनाह लिए हुए है, उसका प्रत्येक सदस्य प्रत्येक धर्म में विश्वास रखता है। वे गीता पढ़ते हैं, कुरान पढ़ते हैं,तो बाईबिल भी। वे पूजा करते हैं, प्रार्थना करते हैं तो नमाज़ भी पढ़ते हैं। सोमेश्वर नाथ दिग्भ्रमित हो गया है कि आखिर किस धर्म से ताल्लुक रखते हैं उसे और उसके परिवार को पनाह देने वाले। तरन्नुम ने सोमेश्वर नाथ के भ्रम को दूर कर दिया है। उसे तरन्नुम से पता चला कि उन तीनों के माँ-बाप साम्प्रदायिक दंगों में मारे गए तब उन्हें उनके नए मम्मी - पापा ने गोद ले लिया और उनकी मज़हबी पहचान को कायम रखा उसे बदला नहीं। इसीलिए उसके परिवार का प्रत्येक सदस्य सभी धर्मों को मानता है उससे बढ़कर उनके लिए इंसानियत सबसे बड़ा मज़हब है।
रात गहरी हो चुकी है। माहौल बिगड़ गया है। दंगाइयों को भनक लग चुकी है कि एक हिन्दू परिवार सुलेमान भाई के घर पनाह लिए हुए है। दंगाई, जिनका कोई मज़हब नहीं होता, सुलेमान भाई के घर हिन्दू परिवार के खात्मे के वास्ते धमक जाते हैं। लेकिन उन्हें वहाँ कोई भी हिन्दू परिवार नहीं मिलता।
तीनों बच्चे तरन्नुम, गीता व पीटर जो अब सोमेश्वर नाथ की नजरों में फरिश्ते बन गए हैं, वहीं हिन्दुत्व का पुजारी सोमेश्वर नाथ इंसानियत का पुजारी बन गया है। वह समझ चुका है कि मजहबी लड़ाई में इंसानियत घुट-घुट के दम तोड़ देती है, गरीब, मजलूमों की जानें जाती हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं और हमवतन आवाम के बीच गैरों सी नियत पनप जाती है।
सोमेश्वर नाथ दुःखी है। उसे यह जानकर गहरा आघात लगा है कि धार्मिक उन्माद की अंधी आग में उसने जिसे मारने की कोशिश की थी वह और कोई नहीं उसे और उसके परिवार को बचाने वाले तीनों फरिश्तों के नए पापा हैं। सोमेश्वर नाथ दृढ़ संकल्प कर चुका है कि वह प्रायश्चित करेगा। वह इस जघन्य अपराध के जुल्म में स्वयं को पुलिस के हवाले कर देगा।
सुबह हो गई है। सूरज निकल आया है। रात भर मचा तांडव धीरे-धीरे शांत हो रहा है। डाॅक्टर रेहाना पुलिस को लेकर घर पहुँच गई हैं। उन्होंने मेहमानों को पुलिस के सुपुर्द कर दिया है ताकि मेहमान सुरक्षित अपने घर पहुँच सके। पुलिस मेहमानों को लेकर निकल चुकी है।
सोमेश्वर नाथ जिसने पुलिस के समक्ष अपना जुल्म कबूल कर लिया। कुछ साल की सजा काटने के बाद वह सुलेमान भाई के पास गया है ताकि "हम सब इंसान हैं" संगठन की सदस्यता ले सके। सुलेमान भाई और उनके साथियों ने सोमेश्वर नाथ को माफ़ कर उसे अपने संगठन की सदस्यता दे दी है। सुलेमान भाई और डाॅक्टर रेहाना काफी खुश हैं कि उनके बच्चों की एक रात की सोहबत में एक कट्टर हिंदू इंसानियत का पुजारी बन गया।