द्वंद्व - युद्ध - 9

द्वंद्व - युद्ध - 9

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वाल्ट्ज़ के बहरा कर देने वाले शोर से काँपते हॉल में दो जोड़े नृत्य कर रहे थे। बबेतिन्स्की पंखों की तरह कोहनियाँ फड़फड़ाते हुए, ऊँची तल्मान के साथ, जो किसी पत्थर के स्मारक जैसी ख़ामोशी के साथ नाच रही थी, जल्दी जल्दी पैर चला रहा था। हल्के रंग के बालों वाला भारी-भरकम अर्चाकोव्स्की छोटी सी, गुलाबी-गुलाबी युवती लिकाचोवा को अपने चारों ओर घुमा रहा था, हौले से उस पर झुकते हुए और उसकी केश रचना को देख रहा था; एक ही जगह पर खड़े खड़े वह अलसाहट और असावधानी से पैरों की हरकत कर रहा था, जैसा कि अक्सर बच्चों के साथ नृत्य करते हुए करते हैं। पन्द्रह अन्य महिलाएँ दीवार से टिकी हुई अकेली अकेली बैठी थीं और यह दिखाने की कोशिश कर रही थीं कि उन्हें इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जैसा कि हमेशा रेजिमेंट की मेस में होता है, पुरुषों की संख्या महिलाओं की संख्या के मुकाबले में बस एक चौथाई थी, और शाम की शुरुआत उसके बोरिंग होने का संकेत दे रही थी।

पीटर्सन, जिसने अभी अभी बॉल का आरंभ किया था, जो कि महिलाओं के लिए विशेष फ़ख्र की चीज़ होती है, अब छरहरे, सुदृढ़ अलिज़ार के साथ नाच रही थी। उसने पीटर्सन का हाथ इस तरह थाम रखा था मानो वह उसके बाँए कूल्हे से चिपका हो; अपनी ठोड़ी को उसने दूसरे हाथ पर टिका रखा था जो अलिज़ार के कंधे पर रखा था, और सिर को पीछे, हॉल की ओर मोड़ लिया था, असहज और कृत्रिम मुद्रा में। राउंड पूरा करने के बाद वह जानबूझकर रमाशोव से कुछ दूर बैठी जो महिला प्रसाधन कक्ष के दरवाज़े के निकट खड़ा था। उसने जल्दी से अपने पंखे को हिलाया और अपने सामने झुके हुए अलिज़ार की ओर देखते हुए भारी आवाज़ में गाते हुए से अंदाज़ में बोली, “ ओह, नहीं, क-हि-ए काउंट, मुझे हमेशा गर्मी क्यों लगती है ? प्ली---ज़ – ब-ता-इ-ए न !”

अलिज़ार ने आधे झुक कर अभिवादन किया, अपने भुजरोध को हिलाया और मूँछों पर हाथ फेरने लगा।

 “मैडम, यह तो मार्टिन ज़ादेका भी नहीं बता सकेगा।”

 और चूँकि इस समय अलिज़ार उसके सपाट खुले गले की ओर देख रहा था, उसने जल्दी जल्दी गहरी गहरी साँसें लेना शुरू कर दिया।

 “आह, मेरा बदन हमेशा गरम रहता है !” रईसा अलेक्सान्द्रव्ना कहती रही, इस बात की ओर इशारा करते हुए कि उसके शब्दों में कोई विशिष्ठ, भद्दा अर्थ छिपा है, “ इतना गरम स्वभाव है मेरा !”

अलिज़ार थोड़ा सा, अस्पष्ट सा हँसा।

रमाशोव खड़े खड़े कनखियों से पीटर्सन को देखता रहा और घृणा सेओह, कितनी घिनौनी है यह ! और इस औरत के साथ पूर्व में बनाए गए निकटतम शारीरिक संबंध को याद करके उसे ऐसी घिन होने लगी मानो वह कई महीनों से नहाया नहीं हो और उसने अपने अंतर्वस्त्र भी नहीं बदले हों।

 “हाँ, हाँ, हाँ, आप मुस्कुराइए नहीं, काउंट। आप नहीं जानते, कि मेरी माँ ग्रीक है !”

 ‘और बोलती भी कैसे घृणित ढंग से है,’ रमाशोव ने सोचा। ‘ अजीब बात है कि मैंने अब तक इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। बोलती ऐसे है जैसे उसे हमेशा ज़ुकाम रहता है या उसकी नाक भरी हुई हो: “बेरी बाँ ग्रीख है”।’

इसी समय पीटर्सन रमाशोव की ओर मुड़ी और पलकों को सिकोड़े हुए चुनौतीपूर्ण ढंग से उसकी ओर देखने लगी।

आदत के मुताबिक रमाशोव ने ख़यालों में कहा : उसका चेहरा किसी नक़ाब की तरह अभेद्य हो गया।

 “हैलो, यूरी अलेक्सेयेविच ! क्या बात है, आप मिलने नहीं आ रहे ? ” रईसा अलेक्सान्द्रव्ना ने सुर में कहना शुरू किया।

रमाशोव निकट गया। उसने अपनी आँखों की दुष्ट पुतलियों से, जो अचानक असाधारण रूप से छोटी और तीखी हो गई थीं, देखते हुए उसके हाथ को कस कर पकड़ लिया।

 “आपके अनुरोध पर मैंने तीसरी काद्रिल आपके लिए रखी है। उम्मीद है, आप भूले नहीं होंगे ? ”

रमाशोव ने झुक कर अभिवादन किया।

 “कितने रूखे हैं आप,” पीटर्सन कहती रही। “आपको कहना चाहिए था, बहुत ख़ुश हूँ, मैडम (बउद घुझ हूँ, बैडब- रमाशोव को सुनाई दिया) ! काउंट, यह सचमुच में बोरे जैसा है न ? ”

 “क्या बात है।।।मुझे याद है,” कमज़ोर स्वर में रमाशोव बुदबुदाया। “इस सम्मान के लिए धन्यवाद।”

बबेतिन्स्की ने शाम को रंगीन बनाने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं किया। वह बड़ी निराशा से और एहसान जताने वाली बेदिली से संचालन कर रहा था, जैसे कोई ऐसा कर्तव्य पूरा कर रहा हो, जो औरों को तो बड़ा महत्वपूर्ण लगता है मगर उसे ज़रा भी नहीं भाता। मगर तीसरी काद्रिल से पहले वह अचानक जोश में आ गया और हॉल में उड़ते हुए, मानो स्केट्स पहनकर बर्फ पर भाग रहा हो, शीघ्र, फिसलते हुए क़दमों से ज़ोरदार आवाज़ में चिल्लाया:

 “काद्रिल-मॉंन्स्ट्र ! पार्टनर्स, महिलाओं को निमंत्रित करें !”

रमाशोव और रईसा अलेक्सान्द्रव्ना ऑर्केस्ट्रा वाली खिड़की से दूर खड़े हो गए, मीखिन और लेशेन्का की पत्नी के रूबरू, जो अपने पार्टनर के कंधे तक मुश्किल से पहुँच रही थी। तीसरी काद्रिल तक नृत्य करने वालों की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी, जिससे जोड़ों को हॉल की लंबाई और चौड़ाई में खड़ा होना पड़ा। और दोनों ओर खड़े जोड़ों को बारी बारी से नृत्य करना पड़ा, और इसलिए हर मुद्रा को दो-दो बार दुहराना पड़ा। "बात साफ़ कर देनी चाहिए, यह सब ख़त्म कर देना चाहिए," ऑर्केस्ट्रा वाली खिड़की से बैंड और ताम्र-वाद्यों के शोर से बहरा गए रमाशोव ने सोचा। ‘बहुत हो चुका !’ – ‘उसके चेहरे पर दृढ़ निश्चय का भाव था।’

रेजिमेंट के नृत्य-संयोजकों में एक प्रथा पड़ गई थी कुछ विशेष हरकतें करने की और कुछ प्यारे से मज़ाक करने की। तो, तीसरी काद्रिल के दौरान यह ज़रूरी समझा जाता था कि मुद्राओं को गड्ड्मड्ड किया जाए और कुछ बेसोची समझी प्यारी सी गलतियाँ की जाएँ, जिससे नर्तकों को परेशानी हो और हँसी के फ़व्वारे फूट पड़ें। और बबेतीन्स्की ने, काद्रिल-मॉंस्ट्र शुरू करने के बाद अचानक दूसरी मुद्रा से पुरुषों को सोलो करने पर मजबूर कर दिया और फ़ौरन उसी क्षण कुछ सोचकर, उन्हें वापस अपनी अपनी पार्टनर के पास जाने के लिए कहा, फिर एक गोल चक्कर में सबको खड़ा किया और तितर बितर करके फिर से उन्हें अपनी अपनी पार्टनर को ढूँढ़ने के लिए कह दिया।

 “महिलाएँ, आगे, पीछे ! पार्टनर्स, अकेले अकेले ! माफ़ कीजिए। अपनी अपनी महिलाओं को वापस ले आइए ! पीछे जाइए, पीछे !”

इस दौरान रईसा अलेक्सान्द्रव्ना ज़हरीले सुर में, दुष्टता से फुफकारती हुई बात कर रही थी, मगर चेहरे पर ऐसी मुस्कुराहट थी मानो बड़ी ही ख़ुशनुमा और प्यारी चीज़ों के बारे में बातचीत हो रही हो:

 “ मैं अपने साथ इस तरह का बर्ताव करने की इजाज़त नहीं दूँगी। सुन रहे हैं ? मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ। हाँ। शरीफ़ लोग इस तरह का बर्ताव नहीं करते। हाँ।”

 “गुस्सा नहीं करेंगे, रईसा अलेक्सान्द्रव्ना,” रमाशोव ने मनाते हुए नर्मी से कहा।

 “ओह, बड़ा घमंड है – गुस्सा नहीं करेंगे ! मैं आपकी सिर्फ निंदा कर सकती हूँ। मगर मुझ पर ताने कसने की इजाज़त मैं किसी को नहीं दूँगी। आपने मेरे ख़त का जवाब देने की तकलीफ़ क्यों नहीं की ? ”

 “मगर आपके ख़त ने मुझे घर में नहीं पाया, क़सम से कहता हूँ।”

 “हा ! तुम मेरा दिमाग़ ख़राब कर रहे हो ! जैसे कि मैं जानती ही नहीं हूँ, कि आप कहाँ रहते हैं मगर यक़ीन रखो।”

 “पार्टनर्स, आगे ! पार्टनर्स, गोल घेरा बनाइए। ओह, गॉश ! बाएँ, बाएँ ! ओह, बाएँ, महाशय ! ओह, बिल्कुल भी नहीं समझते ! ज़्यादा जोश, महाशय !” बबेतिन्स्की चिल्ला रहा था, नर्तकों को बड़े घेरे में आने को मजबूर कर रहा था और वे अनजाने में एक दूसरे के पैर कुचल रहे थे।

 “मुझे इस औरत की, इस लिलिपुट की सारी हरकतें मालूम हैं,” जब रमाशोव अपनी जगह वापस आया तो रईसा अलेक्सान्द्रव्ना ने अपनी बात आगे बढ़ाई। “बेकार ही में वह अपने बारे में डींगें मारती है ! है तो एक चोर नोटरी की बेटी।”

 “ मैं अनुरोध करूँगा कि मेरे सामने मेरे परिचितों के बारे में इस तरह की बातें न करें,” रमाशोव ने संजीदगी से उसे रोकते हुए कहा।

तब एक तमाशा हो गया। पीटर्सन ने शूरच्का के बारे में भद्दी भद्दी गालियाँ बकना शुरू कर दिया। वह अपनी कृत्रिम मुस्कान के बारे में भी भूल गई, और अपने धब्बेदार चेहरे से, ज़ुकाम वाली आवाज़ में संगीत के शोर को मात करते हुए चिल्लाने लगी। रमाशोव अपनी असहायता और अनमनाहट के कारण, अपमानित की जा रही शूरच्का के प्रति दर्द के कारण, और इस वजह से भी कि काद्रिल के बहरा कर देने वाले शोर के बीच वह एक भी शब्द नहीं कह पाया, और ख़ास तौर से इसलिए भी कि अब उनकी तरफ़ लोग ध्यान दे रहे थे, शर्मिन्दा हो गया, उसकी आँखों में आँसू आ गए।

 “हाँ, हाँ, उसके बाप ने चोरी की थी, उसे अपनी नाक ऊँचा रखने का कोई हक नहीं है !”  पीटर्सन चीखी। “ कहिए, प्लीज़, वह हमसे नफ़रत करती है। हम उसके बारे में भी थोड़ा बहुत जानते हैं ! हाँ !”

 “मैं आपसे इल्तिजा करता हूँ,” रमाशोव ने फुसफुसाते हुए कहा।

 “थोड़ा ठहरिए, आप और वो अभी मेरे नाखूनों का मज़ा लेंगे। मैं इस बेवकूफ़ निकोलायेव की आँखें खोलूंगी, जिसे वह तीसरी बार भी अकादमी में नहीं घुसा पाएगी। और कैसे जाएगा वह बेवकूफ़ वहाँ, जबकि वह ये भी देख नहीं सकता कि उसकी नाक के नीचे क्या हो रहा है। और आगे क्या कहें – उसका एक प्रशंसक भी है !।।।”      

 “माज़ूर्का, जनरल ! चलिए !” उड़ते हुए अर्खांगेल की मुद्रा में पूरे हॉल में तैरते हुए बबेतिन्स्की चिल्लाया।

पैरों की ठकठक से पूरा हॉल काँप उठा और एक लय में थिरकने लगा, माज़ूर्का की लय में रंगबिरंगी रोशनी बिखेरते झुंबरों की लटकती लड़ियाँ खनखनाने लगीं और खिड़कियों पर लगे लेस के परदे एक लय में लहराने लगे।

 “हम सुकून से, दोस्ताना अंदाज़ में अलग क्यों नहीं हो सकते ? ” रमाशोव ने सकुचाते हुए पूछा। अपने दिल में वह महसूस कर रहा था कि यह औरत घृणा के साथ साथ उसमें एक ओछी, घृणित, मगर अपराजित भीरुता भरती जा रही है। “आप तो अब मुझसे प्यार नहीं करती हैं।।।चलिए, अच्छे दोस्तों की तरह जुदा हो जाते हैं।”

 “आ-- ! तुम मुझे बेवकूफ़ बना रहे हो ? घबराओ मत मेरे प्यारे, (उसने कहा – ‘बेरे ब्यारे’), मैं उनमें से नहीं हूँ, जिन्हें छोड़ दिया जाता है। मैं ख़ुद ही छोड़ती हूँ, जब चाहती हूँ। मगर आपके कमीनेपन से हैरान हुए बिना नहीं रह सकती।।।”

 “जल्दी ख़त्म करें,” बेसब्री से खोखली आवाज़ में दाँत भींचते हुए रमाशोव ने कहा।

 “पाँच मिनिट का मध्यान्तर। पार्टनर्स अपनी अपनी महिला का दिल बहलाएँ !” नृत्य संचालक चिल्लाया।

 “ हाँ, जब मैं ऐसा चाहूँगी। आपने बड़ी नीचता से मुझे धोखा दिया है। आपके लिए मैंने हर चीज़ कुर्बान कर दी, आपको हर वह चीज़ दी जो एक ईमानदार औरत दे सकती है।।। मैं अपने पति की, इस आदर्शवादी, ख़ूबसूरत इन्सान की आँखों से आँखें नहीं मिला पाती थी। आपकी ख़ातिर मैं बीबी के और माँ के कर्तव्यों को भूल गई। ओह, क्यों, क्यों मैं उसके प्रति वफ़ादार न रही !”

 “दे-खें-गे !”

रमाशोव अपनी मुस्कुराहट रोक नहीं पाया। सेना में दाख़िल हुए नौजवान अफसरों के साथ उसके अनगिनत रोमान्सों के किस्से पूरी रेजिमेंट में मशहूर थे, वैसे ही, जैसे कि सभी 75 अफ़सरों और उनकी पत्नियों के तथा रिश्तेदारों के बीच के प्यार के क़िस्से। अब उसे याद आये ऐसे संबोधन, जैसे ‘मेरा बेवकूफ़’, ‘ये घृणित आदमी’, ‘ये बदमाश, जो हमेशा रास्ते में खड़ा हो जाता है’ और अन्य कई ऐसे ही कठोर शब्द जो रईसा अपने ख़तों में और बातों में अपने पति के बारे में इस्तेमाल करती थी।

 “आ ! तुम अभी भी बेशर्मी से हँस रहे हो ? अच्छी बात है !” रईसा भड़क उठी। “हमें शुरू करना है !” वह बोली और अपने पार्टनर का हाथ पकड़कर आगे बढ़ी, शान से कूल्हों पर अपने शरीर को हिलाते हुए और चेहरे पर तनावभरी मुस्कुराहट लिए।

जब उन्होंने एक चक्र पूरा कर लिया तो उसके चेहरे पर फिर से चिड़चिड़ाहट छा गई, "जैसे कि एक चिढ़ा हुआ कीड़ा हो" रमाशोव ने सोचा।

 “मैं इसके लिए तुम्हें माफ़ नहीं करूँगी। सुन रहे हो, कभी नहीं ! मुझे मालूम है कि तुम क्यों इतने ओछेपन से, इतने कमीनेपन से मुझसे दूर जाना चाहते हो। तो, वह भी नहीं होगा जिसका सपना तुम देख रहे हो, नहीं होगा, नहीं होगा, नहीं होगा ! मुझसे ईमानदारी से और साफ़ साफ़ यह कहने के बदले कि तुम मुझसे अब और प्यार नहीं करते, आपने मुझे धोखा देना और एक औरत की तरह, एक मादा की तरह मेरा उपयोग करना ज़्यादा बेहतर समझा।।।मान लो, अगर वहाँ तुम्हारी दाल नहीं गली तो। हा-हा-हा !”

 “अच्छा, ठीक है, साफ़ साफ बात करते हैं,” अपने क्रोध पर काबू पाते हुए रमाशोव ने कहा। उसके चेहरे का रंग पीला पड़ता जा रहा था और वह अपने होंठ काट रहा था। “ आप ख़ुद ही ऐसा चाहती थीं। हाँ, यह सच है : मैं आपसे प्यार नहीं करता।”

 “आह, कहि-ये, मुझे कितना अपमान लग रहा है !”

 “और कभी करता भी नहीं था। वैसे ही जैसे आप मुझसे। हम दोनों ही कोई घृणित, झूठा और गंदा खेल खेल रहे थे, कोई नीच, प्यार का नाटक। मैं आपको बहुत अच्छी तरह समझ गया हूँ, रईसा अलेक्सान्द्रव्ना । आपको न तो नज़ाकत चाहिए थी, न प्यार, न ही सीधा सादा लगाव। आप तो इस सबके लिए बहुत क्षुद्र और ओछी हैं। क्योंकि,” रमाशोव को एकदम नज़ान्स्की के शब्द याद आए, “क्योंकि प्यार तो सिर्फ गिनेचुने, उमदा इन्सान ही कर सकते हैं !”

 “हा, और, शायद, आप-ऐसे ही गिनेचुने, उमदा व्यक्ति हैं !”

फिर से संगीत गूँज उठा। रमाशोव ने नफ़रत से खिड़की वाले तांबे के चमकते भोंपू की ओर देखा जो बदहवास उदासीनता से भर्राती, चिंघाड़ती आवाज़ें फेंके जा रहा था। और उसे बजाने वाला सिपाही जो गाल फुलाए, पथराई आँखों को बाहर निकाले, तनाव से नीला पड़ता जा रहा था उसे घिनौना लगा।

 “बहस नहीं करेंगे। शायद मैं ही सच्चे प्यार के योग्य नहीं हूँ, मगर बात यह नहीं है। बात यह है कि आपके लिए, अपने संकरे कस्बाई दृष्टिकोण और कस्बाई इज़्ज़त के कारण, यह ज़रूरी है कि कोई हमेशा आपके ‘इर्दगिर्द’ घूमता रहे और दूसरे लोग इसे देखते रहें। या, कहीं आप ऐसा तो नहीं सोच रही हैं कि मेस में आपकी मुझसे घनिष्ठता का, इन भावुक नज़रों का, इस आदेशयुक्त और बेतकल्लुफ़ लहज़े का मतलब मैं नहीं समझता था, जब दूसरे लोग हमारी ओर देख रहे होते थे ? हाँ, हाँ, यह ज़रूरी था कि लोग देखें। वर्ना इस पूरे खेल का आपकी नज़रों में कोई मतलब ही नहीं रह जाता। आपको मुझसे प्यार नहीं चाहिए था, बल्कि इस बात की ख़्वाहिश थी लोग आपको समर्पण की मुद्रा में देखें।”

 “इसके लिए मैं किसी और ज़्यादा दिलचस्प और बेहतर इंसान को चुन सकती थी,” गर्व से फूलते हुए पीटर्सन ने कहा।”

 “परेशान न होइए, इस जवाब से आप मुझे चोट नहीं पहुँचाएंगी। हाँ, मैं फिर दुहराता हूँ: आपको सिर्फ इतना चाहिए कि आप किसी को अपना गुलाम समझती रहें, नया गुलाम आपकी लालसा का। मगर समय गुज़र रहा है, और गुलाम कम होते जा रहे हैं। और इस डर से कि अपने आखिरी चाहने वाले को खो न दें, आप, ठंडी और निर्विकार, बलि चढ़ाती हैं अपने पारिवारिक कर्तव्यों की और पति के प्रति वफ़ादारी की।

 “नहीं, अभी तो आप मेरे बारे में और भी सुनेंगे !” दुष्टता और अर्थपूर्ण ढंग से रईसा फुसफुसाई।

तभी नृत्य कर रहे जोड़ों से बचते बचाते रईसा का पति, कैप्टेन पीटर्सन, उनके पास आया। यह एक दुबला पतला, टी।बी। पेशंट जैसा आदमी था, गंजी पीली खोपड़ी और काली आँखों वाला- जो हमेशा नम और स्नेहपूर्ण रहती थीं मगर जिनमें एक दुष्ट चिनगारी छिपी रहती थी। उसके बारे में यह कहा जाता था कि वह अपनी बीबी से बेतहाशा प्यार करता था, इस हद तक प्यार करता था कि उसके सभी चाहने वालों के साथ नज़ाकत भरी, चापलूसीपूर्ण और झूठी दोस्ती कर लेता था। यह भी सबको मालूम था कि जैसे ही ये चाहने वाले उसकी बीबी से राहत के साथ और ख़ुशी ख़ुशी अलग होते, वह घृणा से, विश्वासघात से और सेवा से संबंधित सभी संभव अप्रियताओं से उनसे हिसाब चुकाता था। 

उसने दूर ही से अपने नीले, चिपके हुए होठों से कृत्रिम मुस्कुराहट बिखेरी।

 “डांस कर रही हो, राएच्का ! नमस्ते, प्यारे जॉर्जिक। आप इतने दिनों से दिखाई ही नहीं दिए ! हमें आपकी इतनी आदत हो गई है, कि, वाक़ई में आपको ‘मिस’ करते रहे।”

 “बस, यूँ ही, थोड़ा व्यस्त था क्लासेस में,” रमाशोव बुदबुदाया।

 “ख़ूब मालूम हैं हमें आपकी क्लासेस,” पीटर्सन ने उंगली से धमकाते हुए कहा और ऐसे हँसा मानो भुनभुना रहा हो। मगर पीली पुतलियों वाली उसकी काली आँखें उत्तेजना से, कुछ ताड़ती हुई सी पत्नी के चेहरे से रमाशोव के चेहरे की ओर दौड़ने लगीं। “और मैं, मानता हूँ, कि यह सोच रहा था कि आप दोनों झगड़ रहे हैं। देख रहा था कि आप लोग बैठे हैं और किसी बात पर गर्मागर्म बहस कर रहे हैं। क्या बात है ? ”

रमाशोव ख़ामोश रहा, परेशानी से पीटर्सन की पतली, काली और झुर्रियोंदार गर्दन की ओर देखता रहा। मगर रईसा ने बेशर्म आत्मविश्वास से कहा, जो वह हमेशा झूठ बोलते समय ओढ़ लेती थी:

 “यूरी अलेक्सेयेविच फलसफ़ा बघार रहे हैं। कहते हैं कि नृत्यों का ज़माना अब गया और यह कि नृत्य करना बड़ा हास्यास्पद और बेवकूफी भरा काम है।”

 “मगर यह ख़ुद तो नृत्य करता है,” पीटर्सन ने ज़हरीली भलमनसाहत से कहा। “ तो, डांस करो, मेरे बच्चों, करो डांस। मैं आपको डिस्टर्ब नहीं करूँगा।”

वह हटा ही था कि रईसा ने बनावटी अंदाज़ में कहा, “और इस संत को, इस असाधारण आदमी को मैं धोखा देती रही !।।।और किसके लिए ! ऑह, अगर उसे मालूम होता, अगर वह जानता होता।।।”

 “माज़-ज़ूर्का जनरल !” बबेतिन्स्की चिल्लाया। “पार्टनर्स अपनी अपनी महिलाओं को वापस लीजिए !”

गर्म जिस्मों की काफ़ी देर से हो रही गतिविधियों के कारण और फर्श से उठ रही धूल के कारण हॉल में दम घुटने लगा था और मोमबत्तियों की लौ पीले पीले धब्बों जैसी नज़र आ रही थीं। अब काफ़ी सारे जोड़े नाच रहे थे, और चूँकि जगह बहुत कम पड़ रही थी, इसलिए हर जोड़े को सीमित जगह में ही नृत्य करना पड़ रहा था: नाचने वालों की भीड़ अब एक दूसरे के साथ धक्का बुक्का कर रही थी। संयोजक ने जिस मुद्रा की पेशकश की, वह यह थी कि जो पुरुष अकेला नृत्य कर रहा हो, वह किसी जोड़े का पीछा करे। उसके चारों ओर घूमते घूमते वह माज़ूर्का के स्टेप्स भी लेता रहे, जो काफ़ी मज़ाहिया और फूहड़ प्रतीत हो रहा था, वह मौके की तलाश में रहे जब नृत्य कर रही महिला का चेहरा उसके सामने आ जाए। तब वह फौरन ताली बजाता, जिसका मतलब यह होता कि वह महिला अब उसकी है। मगर दूसरा नर्तक उसकी इस कोशिश को नाकाम करने में महिला को इधर से उधर खींचता; और स्वयँ कभी पंजों के बल चलता, कभी तिरछे भागता और अपनी बाईं खाली कुहनी को आगे कर देता, अपने प्रतिद्वन्द्वी के सीने को निशाना बनाते हुए। इस मुद्रा से हॉल में हमेशा एक भद्दी, बदसूरत भगदड़ मच जाती।

 “एक्ट्रेस !” रईसा के काफ़ी निकट झुकते हुए रमाशोव भर्राई आवाज़ में फुसफुसाया। “तुम्हारी बातें सुनना बड़ा मज़ाहिया और दयनीय लगता है।”

 “शायद आप नशे में हैं !” रईसा फुफकारते हुए चहकी और उसने रमाशोव पर ऐसी नज़र डाली, जिससे उपन्यासों में नायिका खलनायक को सिर से पैर तक नापती हैं।

 “नहीं, बताइए, आपने मुझे क्यों धोखा दिया ? ” रमाशोव ने कड़वाहट से पूछा। “आपने अपने आप को मुझे सौंपा, सिर्फ इसलिए कि मैं आपसे दूर न चला जाऊँ। ओह, काश आपने ऐसा प्रेम के वश होकर किया होता, चलो, न सही प्रेम-वश होकर, बल्कि भावुकतावश ही सही। मैं इसे समझ सकता था। मगर आपने तो सिर्फ बदचलनी के कारण किया, ओछे घमंड की ख़ातिर। क्या आपको यह ख़याल डराता नहीं है कि बिना प्यार के, सिर्फ बोरियत दूर करने के ख़याल से, दिलबहलाव की ख़ातिर, उत्सुकता के भी बगैर, एक दूसरे के हो जाते समय हम कितने घृणित लग रहे थे, मानो, नौकरानियाँ त्यौहार के दिनों में सूरजमुखी के बीज चबा रही हों। याद रखिए: यह उससे भी नीचता भरा काम है, जब कोई औरत पैसे की ख़ातिर स्वयँ को बेचती है। वहाँ ज़रूरत होती है, लालच होता है।।।याद रखिए: मुझे शर्म आती है, नफ़रत होती है इस ठंडे, लक्ष्यहीन व्यभिचार के बारे में सोचकर जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता।”

माथे पर ठंडा पसीना लिए उसने बुझी बुझी, उकताई आँखों से नृत्य कर रहे जोड़ों की ओर देखा। उसके निकट तैर रही थी, अपने पार्टनर की ओर नज़र डाले बिना, मुश्किल से पैरों को उठाते हुए, अविचल कंधे और चेहरे पर किसी संजीदा छुई-मुई का आहत भाव लिए विशालकाय तल्मान और उसके साथ था ख़ुशगवार, बकरी की भाँति फुदकता एपिफानव। यह रही छोटी से लिकाचोवा, लाल-लाल चेहरा, चमकदार आँखें, अनावृत, मासूम गोरी गोरी कुँआरी गर्दन।।।यह रहा अलिज़ार सीधी और सुघड़ पतली पतली टाँगों वाला, मानो कम्पास की टाँगें हों। रमाशोव देख रहा था, उसके सिर में दर्द होने लगा और उसका मन रोने रोने को हो गया। और उसकी बगल में थी रईसा, क्रोध से विवर्ण चेहरा, उसने करारा व्यंग कसते हुए इस प्रकार कहा मानो किसी नाटक में बोल रही हो:

 “बहुत ख़ूब ! इन्फैन्ट्री का ऑफ़िसर पवित्र यूसुफ की भूमिका में !”

 “हाँ, हाँ, हाँ, भूमिका ही में।” रमाशोव भड़क उठा। “मैं ख़ुद भी जानता हूँ, कि यह बहुत हास्यास्पद और घृणित है मगर मुझे अपनी ख़त्म हो चुकी पाकीज़गी पर, अपनी जिस्मानी सफ़ाई पर अफ़सोस करने में कोई शर्म नहीं है। हम दोनों अपनी मर्ज़ी से इस गन्दे गड्ढ़े में घुसे थे, और मैं महसूस कर रहा हूँ कि मैं कभी भी एक ताज़ा, पाक प्यार किसी को नहीं दे पाऊँगा। और इसके लिए क़ुसूरवार आप हैं, - सुनिए: आप, आप, आप ! आप मुझसे बड़ी और ज़्यादा अनुभवी हैं, प्यार के खेल में आप काफ़ी माहिर हैं।”

पीटर्सन भयानक क्रोध से काँपती हुई कुर्सी से उठी।  

 “बस !” उसने नाटकीय अंदाज़ में कहा। “आप जो चाहते थे, वह आपने हासिल कर लिया है। मैं आपसे नफ़रत करती हूँ ! उम्मीद करती हूँ कि आप आज ही से हमारे घर आना छोड़ देंगे, जहाँ आपका स्वागत एक रिश्तेदार की तरह होता था, आपको खिलाया और पिलाया जाता था, मगर आप तो नमकहराम निकले। ओह, मुझे कितना अफ़सोस है कि यह सब मैं अपने पति से नहीं कह सकती। वह पाक-साफ़ इंसान, मैं उसके लिए प्रार्थना करती हूँ, और उसे यह सब बताने का मतलब होगा – उसे मार डालना। मगर यक़ीन रखिए, एक अपमानित, निहत्थी औरत का बदला वह आपसे ज़रूर ले सकता है।”

रमाशोव उसके सामने खड़ा था, और पीड़ा से आँखें सिकोड़े उसके बड़े, पतले और बदरंग मुँह की ओर देख रहा था जो घृणा से टेढ़ा हो गया था। ऑर्केस्ट्रा वाली खिड़की से लगातार बहरा कर देने वाले संगीत का शोर आ रहा था, तुरही लगातार ज़िद्दीपन से खाँसे जा रही थी, और तुर्की ड्रम की शिद्दतभरी ढमढम मानो रमाशोव के ठीक सिर पर वार किए जा रही थी। उसने रईसा के शब्दों को बीच बीच में सुना, और उनका मतलब समझ नहीं पाया। मगर उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि वे भी ड्रम की ढम ढम जैसे ही ठीक उसके सिर पर वार कर रहे हैं और उसके दिमाग को झकझोर रहे हैं।

रईसा ने फट् से अपना पंखा बंद किया।

 “ओह, नीच-कमीना !” वह अफ़सोस से बुदबुदाई और जल्दी से हॉल पार करके प्रसाधन कक्ष में चली गई।

सब कुछ ख़त्म हो गया था, मगर रमाशोव को वह ख़ुशी हासिल न हुई जिसकी वह उम्मीद कर रहा था, और उसकी आत्मा से एक गन्दा और भद्दा बोझ अचानक दूर नहीं हो गया, जैसा कि वह पहले सोचा करता था। नहीं, अब उसे ऐसा लगा कि उसने ठीक नहीं किया था, अपना नैतिक दोष उस सीमित दयनीय औरत पर उंडेलकर वह उसके साथ भीरुता और बेईमानी से पेश आया था, और वह उसके दर्द को, उसकी बदहवासी को, उसके हतबल गुस्से को, कड़वाहट भरे उसके आँसुओं को और लाल-लाल फूली-फूली आँखों को महसूस करने लगा।

 ‘मैं गिर रहा हूँ, नीचे गिर रहा हूँ,” उसने घृणा से और बोरियत से सोचा। “ क्या ज़िन्दगी है ! एक संकीर्ण, भूरी और गंदी सी चीज़।।। ये वासनाभरा, अनावश्यक संबंध, नशा, दुख, जानलेवा एकसार नौकरी, और कम से कम एक तो ज़िन्दगी से भरपूर लब्ज़ सुनाई देता, एक पल तो होता पवित्र आनन्द का। किताबें, संगीत, विज्ञान – ये सब कहाँ’ हैै ?

वह दुबारा डाइनिंग हॉल में गया। वहाँ असाद्ची और रमाशोव का कम्पनी का दोस्त, वेत्किन, नशे में पूरी तरह धुत लेख को, जो बेहद कमज़ोरी और असहायता से अपना सिर हिलाते हुए इस बात का यक़ीन दिलाने की कोशिश कर रहा था, कि वह आर्कबिशप है, हाथ पकड़कर हॉल से बाहर ले जा रहे थे। असाद्ची बड़ी गंभीरता से नीची आवाज़ में आर्कदेकन के लहज़े में कह रहा था:

 “आशीष दीजिए, परम पवित्र मालिक। सर्विस शुरू करने का समय हो चला है।”

जैसे जैसे नृत्य की यह शाम ख़त्म होने को आ रही थी, डाइनिंग हॉल में शोर और भी बढ़ता जा रहा था। हवा तंबाकू के धुँए से इतनी सराबोर थी कि मेज़ के किनारों पर बैठे हुए लोग एक दूसरे को मुश्किल से देख पा रहे थे। एक कोने में गाना चल रहा था, खिड़की के निकट कुछ लोगों का झुंड अश्लील मज़ाक किए जा रहा था, जो हर डिनर या लंच का अविभाज्य अंश होते हैं।

 “ नहीं, नहीं, महोदय।।।इजाज़त दीजिए, मैं आपको सुनाता हूँ !” अर्चाकोव्स्की चिल्लाया। “ एक बार संतरी ड्यूटी पर तैनात सिपाही खखोल के पास आता है। खखोल की एक सुन्दर बीबी होती है। सिपाही सोचता है, कैसे इसे।”

वह अपनी बात मुश्किल से पूरी कर ही रहा था कि अपनी बारी का बेसब्री से इंतज़ार करते वासिली वासीलेविच लीप्स्की ने उसे बीच ही में रोका।

 “नहीं, बात यह है, महाशय।।।मगर मैं एक मज़ेदार चुटकुला जानता हूँ।”

और वह भी अपनी बात मुश्किल से पूरी कर पाया, कि दूसरा फ़ौरन अपनी कहानी लिए टपक पड़ा।

“ये भी क़िस्सा है, महोदय। हुआ था ये ओडेसा में, मगर क़िस्सा बड़ा।”

सारे मज़ाक बड़े गंदे, अश्लील और बहुत ही साधारण थे, और, जैसा कि अक्सर होता है, वे सिर्फ़ सुनाने वाले को ही हँसा सकते थे, जो आत्मविश्वास से भरपूर और सनकी होता था।

वेत्किन ने, जो लेख को घोड़ा-गाड़ी में बिठाकर आंगन से भीतर आ रहा था, रमाशोव को अपनी मेज़ के पास बुलाया।

 “बैठ, जॉर्जिक।।।ताश खेलेंगे। आज मैं अमीर हूँ, यहूदी की तरह। कल मैं जीता था और आज भी मैं पूरी बैंक ले जाऊँगा।”

रमाशोव दिल की बात कहना चाह रहा था, किसी के सामने अपना दुख और जीवन के प्रति घृणा उंडेलना चाहता था। जाम पर जाम पीते हुए वह वेत्किन की ओर याचनाभरी नज़रों से देख रहा था और विश्वास दिलाती हुई, स्नेहयुक्त, थरथराती आवाज़ में कह रहा था:

 “हम सब, पावेल पाव्लीच, सब कुछ भूल चुके हैं, याने कि दूसरी तरह की ज़िन्दगी को। कहीं तो, नहीं जानता, कहाँ, एकदम दूसरी किस्म के लोग रहते हैं, और उनकी ज़िन्दगी ऐसी भरी पूरी है, इतनी खुशगवार है, इतनी असली है। कहीं तो लोग संघर्ष करते हैं, दुख उठाते हैं, शिद्दत से, दिल खोलकर प्यार करते हैं।।। मेरे दोस्त कैसे जीते हैं ! कैसे जीते हैं हम !”

 “हुँ, हाँ, मेरे भाई, क्या कहें, ज़िन्दगी,” अलसाए से पावेल पाव्लोविच ने जवाब दिया। “मगर आम तौर से।।।ये, मेरे भाई, नेचर का फलसफ़ा और एनर्जेटिक से ताल्लुक रखता है। सुनो, मेरे प्यारे, ये क्या चीज़ होती है – एनर्जेटिक ? ”

 “ओह, क्या करते हैं हम ! रमाशोव परेशानी से बोला। “आज नशे में धुत हो जाते हैं, कल अपनी रेजिमेंट में, एक-दो-लेफ्ट-राइट, - शाम को फिर से पीने लगेंगे और परसों वापस रेजिमेंट में। क्या सारी ज़िन्दगी बस यही है ? नहीं, आप सिर्फ सोचिए – पूरी, पूरी ज़िन्दगी !”

वेत्किन ने उसकी ओर धुंधलाई आँखों से देखा, जैसे किसी रील से देख रहा हो, एक हिचकी ली और अचानक पतली खड़बड़ाती आवाज़ में गाने लगा:

तन्हाई में रहती थी,

जंगल में वो रहती थी,

गोल गोल घुमा-ती।

सब पर थूक दो, मेरे फरिश्ते, और अपनी सेहत का ख़्याल रखो।पूरे मन से, प्यार करती चर्खे से।”

चलो, खेलने चलें, रमाशेविच-रमाशोव्स्की, मैं तुम्हारे लिए लाल वाली रखूंगा।

 ‘यह बात कोई भी समझ नहीं सकता। मेरा कोई नज़दीकी दोस्त है ही नहीं,’रमाशोव ने अफ़सोस से सोचा। एक पल के लिए उसे शूरच्का की याद आई – इतनी सामर्थ्यवान, इतनी गर्वीली, सुंदर, - और उसके दिल के क़रीब कोई शिथिल सी, मीठी सी और आशाहीन चीज़ चुभ गई।

वह उजाला होने तक मेस में रुका रहा, देखता रहा कि लोग कैसे श्तोस खेलते हैं, और ख़ुद भी खेल में हिस्सा लेता रहा, मगर बगैर किसी ख़ुशी के, बगैर दिलचस्पी के। एक बार तो उसने देखा कि अर्चाकोव्स्की ने, जो दो मूंछमुंडे सेकंड लेफ्टिनेंट्स के साथ एक अलग मेज़ पर बैठा था, बड़ी आसानी से पत्ते बाँटते हुए अपनी ओर एकदम दो पत्ते फेंक दिए। रमाशोव कुछ कहना चाहता था, उसे डाँटने वाला था, मगर तभी रुक गया और उदासीनता से सोचने लगा, 'ऐह। सब चलता है। ऐसा करके मैं कोई सुधार नहीं ला सकूंगा।’

वेत्किन, जो अपने दस लाख रुबल पाँच ही मिनट में हार चुका था, कुर्सी पर बैठे बैठे सो रहा था, निस्तेज, मुँह खोले। रमाशोव की बगल में बैठा लेशेन्का उनींदेपन से खेल देख रहा था, और यह समझ पाना मुश्किल था कि ऐसी कौन सी ताक़त है जो उसे चेहरे पर अलसायापन लिए घंटों यहाँ बैठने पर मजबूर करती है। उजाला हो गया। पिघलती हुई मोमबत्तियाँ लंबी लंबी पीली लौ में जल रही थीं और फड़फड़ा रही थीं। खेलते अफ़सरों के चेहरे निस्तेज और थके हुए लग रहे थे। और रमाशोव निरंतर ताश के खेल को, चांदी के सिक्कों के ढेर को और नोटों को, मेज़ पर जड़े हुए हरे कपड़े को देख रहा था जो चाक की लिखाई से पूरा भर गया था, और उसके बोझिल, धुंधलाए दिमाग में सुस्ती से घूम रहे थे एक ही प्रकार के विचार : अपने पतन के बारे में और उबाऊ, एकसार ज़िन्दगी की घिनौनी गंदगी के बारे में।



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