दोलो गुरू
दोलो गुरू
किन्नर समाज आज शोकमग्न है क्योंकि दोलो गुरू (मीना बाई) कई दिनों से अस्वस्थ थीं और आज तो डाक्टर ने भी जवाब दे दिया है। नये पुराने सभी चेले उनके कमरे में एकत्र होकर भजन गा रहे हैं पर दोलो गुरू बिस्तर पर संतुष्ट, शांत, मुग्ध अवस्था में लेटी थीं। उनके चेहरे पर बीच-बीच में मधुर मुस्कान आ जा रही थी क्योंकि वह खुश है, संतुष्ट है इस नयी किन्नर पीढ़ी की दृढ़ता व आत्मविश्वास से।
उन्हें आज भी याद है, जब वह समाज से तिरस्कृत घर-घर बधाई देने व ताली बजाकर नाचने व कभी कभी तंगी में माँग कर खाने के लिए मजबूर हो जाती थी तब अत्यंत शर्मनाक व अपमानित महसूस करती थी। ऐसे में एक शिक्षिका के घर में बधाई माँगने जब वह गई तो जीवन में अनोखा परिवर्तन आया।
उस शिक्षिका ने कपड़े, मिठाई, व रूपयों के साथ उसे साक्षरता अभियान का एक बस्ता दिया, जिसमें पढ़ने लिखने की साम्रगी थी व सिर पर हाथ रख कर दृढ़ता से आँखों में देखा। फिर दृढ़ पर आत्मिय आवाज में कहा, "इसे खोलना, पढ़ना, समझना तब देखना, जिंदगी में बधाई दोगी नहीं लोगी।
यह आवाज भीतर तक उतरी, तब से परिश्रम से खुद पढ़ी अपने चेलों को भी गंडा बाँधते हुए एक ही गुरू मंत्र देती- "समाज में अपना नाम अब बधाई देने नहीं लेने के लिए आगे लाना है।"
शुरुआत में सब ने दोलो ,दोलो कह कर खूब चिड़ाया,अपमानित किया पर मीना बाई ने हार नही मानी। शिक्षा व गृह उद्योग में पारंगत किया। अनेकों को नारकीय जीवन से बचाया और कब मीना बाई से दोलो गुरू बनी पता ही ना चला।