Monika Agarwal

Drama

4.1  

Monika Agarwal

Drama

दो बोल प्रशंसा के

दो बोल प्रशंसा के

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 सुबह से अंजु किचन में जुटी हुई थी, मटर पनीर, छोले, दही बड़े, चावल भिगोकर उसने सलाद काटना शुरू ही किया था कि हॉल में बैठे हुए जेठ जी की भारी आवाज़ सुनाई दी,

“पूनम, गुड़िया की गोद भराई की रस्म तो अच्छे से निबट गई, पर अभी तो शादी का असली मोर्चा बाक़ी है, किसी बात की कमी नहीं होनी चाहिए, कहीं ऐसा न हो सारे किए कराए पर पानी फिर जाय, ”

“आप निश्चिन्त रहिए, ”जिठानी पूनम का तीखा स्वर अंजु के कान में पड़ा, "सगाई के समय मैंने पूरा काम कितनी अच्छी तरह निबटाया था, भूल गए क्या?"

अंजु का मन किया ठहाका मार कर हँसे, आत्मप्रशंसा में तो इनका जवाब नहीं, कितनी ख़ूबसूरती से उन्होंने सारा श्रेय ख़ुद ओढ़ लिया, कोल्हू के बैल की तरह कल से काम में जुटी हुई है, घर सजाने से लेकर, सभी के नाश्ते-खाने और गुड़िया की ससुराल वालों की ख़ातिर तवज्जो नहीं करती तो ऐसी छीछालेदर होती कि सबकी समझ में आ जाता, जेठानी जी से तो विदाई के लिए साड़ी और गोदी में डालने वाले शगुन के लिफ़ाफ़ों के पैकेट तक भी नहीं बनाए गए , उधर बेटी , सुबह से ब्यूटी पार्लर में जाकर बैठी है, कुछ ही देर में ये ख़ुद भी सजने सँवरने के लिए चल देंगी पार्लर , बेटी की माँ जो ठहरीं, स्मार्ट समधिन से मुक़ाबला जो करना है, उस पर तुर्रा ये कि ,

"काम के चक्कर में फ़ुर्सत ही नहीं मिली" मन मारकर साड़ियों के पैकेट सजाने के लिए ग़ोटा और रंगीन काग़ज़ निकाले ही थे कि, राजन का स्वर सुनाई दिया, ”

"अरे सात बजने को आए और तुम मैली साड़ी लपेट कर बैठी हो?भई, जवाब नहीं तुम्हारी काहिली का, सबके सामने अपना फूहड़पन दिखाओगी ज़रूर, सारा घर तैयार बैठा है, लड़के वाले बस आते ही होंगे, और तुम, आराम फ़रमा रही हो, "

अंजु का मन भारी हो आया, "ख़ुद को होम भी कर दो इस घर के लिए, फिर भी प्रशंसा के दो शब्द मिलने मुश्किल हैं, उधर सासु माँऔर छोटी नंनद तो , राजन के शब्द सुनकर ही तृप्त हो गयी होंगी,

अंज़ू लिफ़ाफ़े तैयार कर ही रही थी कि बड़ी ननद आ गईं, एक वो ही हैं इस घर में जिन्हें अंजु से प्यार भी है सहानुभूति भी, कभी कभी उसे लगता है, चालाक लोमड़ियों की इस भीड़ में भोले मेमने सी ये ननद कैसे आ गयी? "अरे अंजु, !तुम तैयार नहीं हुई अब तक, बच्चे भी ऐसे ही घूम रहे हैं, उठो तैयार हो जाओ, लिफ़ाफ़े मैं तैयार कर देती हूँ"। 

लड़के वाले पहुँच गए लेकिन, अब तक न गुड़िया पहुँची थी न जेठानी जी, राजन अपनी चिढ़ कभी सब्ज़ीयों के डोंग़ों पर उतार रहे थे, कभी बोन चाइना के डिनर सेट पर, आख़िर अंजु के मुख से निकल ही गया,

"सुबह से अकेली ही लगी हूँ, फिर भी आप हैं कि ज़लील करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते, "

"तो कोई एहसान नहीं किया है, मैडम"

अंजु ने एक लंबी साँस ली, राजन की ऊँची आवाज़ बैठक में उपस्थित लोगों के ठहाकों में डूब कर रह गयी वरना कितनी फ़ज़ीहत होती, राजन को कितनी बार समझाने की कोशिश भी की है उसने पर नहीं समझते, ज़रा बड़े भैया को तो देखें, कुछ न करते हुए भी, भाभी की प्रशंसा कैसे करते रहते हैं,

जब भैया भाभी यही, साथ में रहते थे , घर का पूरा काम करती थी, अंजु, और गुणगान भाभी का होता था, हरदायहीनता का आवरण ओढ़े, अम्माँ भी हमेशा भाभी की वाहवाही में जुटी रहतीं, इन लोगों ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की कि, इनके निष्ठुर व्यवहार ने अंजु की समवेदनशीलता की हत्या कर दी है, स्नेह स्त्रोत ही सूख गया है उसका,

इसीलिए उसका ज़रा मन नहीं था, कि, गुड़िया की शादी घर से हो, पूरा दिन खटने के बाद भी , पूरे परिदृश्य से उसे, बड़ी सहजता से हटा दिया जाएगा, चाहे कुछ भी हो, इस बार उसने भी ठान लिया कि अगर वो इतनी अकर्मन्य है तो दिखा कर रहेगी अपनी काहिली, देखें कोई क्या कर लेता है, बड़ी ननद भी इसी बात पर ज़ोर दे रही थीं,

     छोटी ननद की शादी में कैसी त्राहि त्राहि मची थी, अंजु ने याद किया, जब एन शादी से एक हफ़्ता पहले उसे, निमोन्निया हो गया था, जेठानी जी किचन में खड़े खड़े , कभी कामवाली मुन्नी पर चिल्लाती थीं कभी भैया और अम्माँ पर, एक दिन मुन्नी ने रोकर उससे कहा था, "भाभी आप जल्दी ठीक हो जाओ, नहीं तो मै काम छोड़ दूँगी, " उस समय तो, राजन की आँखों में भी प्रशंसा के भाव तिर आए थे,  

   रात को डरते डरते उसने राजन से कहा, "इस बार सारी व्यवस्था होटल से ही होती तो अच्छा रहता"

राजन ने उसे ऐसे घूरा कि, सकपका कर रह गयी अंजु, आगे कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हुई, "अभी गरजने लगेंगे, पूरे दुर्वासा के अवतार हैं"

   डिनर टेबल पर भैय्या ने ख़ुद ही बात छेड़ दी,

"भई गुड़िया की शादी होटल से होनी चाहिए या घर से, ?"

   जेठानी जी ने तो ख़र्चे की बात करके बात को रफ़ा दफ़ा कर दिया, अम्माँ ने भी बड़ी बहू की बात का अनुमोदन किया, अंजु मन ही मन चिढ़ उठी, भैया की आँखे अभी भी राजन पर टिकी थीं, उन्हों ने राजन से सलाह माँगी, तो चश्मे के भीतर से झाँकती उनकी आँखे किसी सोच में डूबी थीं,  

"आप सब लोग सही कह रहे हैं, घर की रौनक़ की बात ही कुछ और रहती है, लेकिन मुझे अंजु से पूछना पड़ेगा, कहने को दूसरी औरतें भी हैं इस घर में लेकिन जहाँ ज़िम्मेदारी की बात आती है वो अंजु के अलावा कोई नहीं लेना चाहता, ऐसे में, अंजु अकेली पड़ जाती है, याद है छोटी कि शादी में कैसा हड़कम्प मचा था!समय से किसी को नाश्ता भी नहीं मिला था, मेहमान अलग कुंड़कुड़ा रहे थे, कि तैयारी नहीं थी तो बुलाया क्यों?" 

राजन बोल रहे थे, अंजु स्तब्ध हतप्रभ सी सुन रही थी, ऐसा लगा, जैसे निर्मल-शीतल ठंडी ठंडी बयार ने उसके सारे अस्तित्व को अपने में समेट लिया हो, जैसे किसी ने उसके जलते सुलगते ह्रदय पर ठंडा ठंडा फ़ाहा रख दिया ही, सब की निगाहें उस पर केंद्रित थीं लेकिन अंजु को होंश कहाँ था?वो तो राजन के कहे शब्दों की ठंडक के एहसास तले डूब-उतर रही थी, अनायास ही आँखे सजल हो उठीं उसकी, प्रकम्पित होंठों से इतना ही निकला, "मुझसे क्या पूछना, गुड़िया मेरी बेटी नहीं है क्या।"


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