"दंगे की राख से प्रेम की लौ"
"दंगे की राख से प्रेम की लौ"
आशियाना गांव, अपनी हरियाली, खुशहाली, और भाईचारे के लिए मशहूर था। यहां कई अलग कबीलों के लोग मिलजुल कर रहते थे। गांव में विष्ना और धर्मा की दोस्ती का एक अलग ही रुतबा था। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि लोग उनकी मिसालें देते थे।
विष्ना और धर्मा की दोस्ती बचपन से ही गहरी थी। जब वे पांच साल के थे, तब उनकी मुलाकात गांव के तालाब के किनारे हुई थी। विष्ना का पतंग ऊँचे पेड़ पर अटक गया था, तब धर्मा ने पेड़ पर चढ़कर पतंग निकाला। तभी से उनकी दोस्ती की शुरुआत हुई। वे साथ में स्कूल जाते थे, साथ में खेलते थे, और हर त्योहार को मिलकर मनाते थे।
होली दीवाली राखी उनके लिए सिर्फ त्योहार नहीं बल्कि उनकी दोस्ती का एक और रंग थे। जहां दीवाली पर दोनों मिलकर दीये जलाते तो होली पर रंग गुलाल से लथपथ हो जाते । उनकी दोस्ती इतनी मजबूत थी कि लगता था जैसे कोई भी इसे नहीं तोड़ सकता।
विष्ना और धर्मा को बचपन से ही संगीत का शौक था, और दोनों सुनने के बड़े शौकीन थे। जब भी वे खाली समय पाते तो गाने सुनते और उनमें खो जाते। उनका पसंदीदा गाना था "आशियाना प्यार से हमनें सजाया है इक हंसी सपनों का हमनें घर बनाया है" जिसे वे अक्सर साथ गुनगुनाते थे। यह गाना उनकी दोस्ती और जीवन के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक बन गया था।
वक्त के साथ उनकी दोस्ती और भी मजबूत होती गई। लेकिन गांव के कुछ कपटी लाल्याराम और रेवड़मल, इस दोस्ती और गांव की शांति को बरकरार नहीं देखना चाहते थे। लाल्याराम और रेवड़मल, दोनों ही राजनीति में थे और हमेशा हर जगह राजनीति करके अपना फायदा देखते थे। वे जानते थे कि अगर गांव में सभी कबीले एकजुट रहे, तो उनका राजनैतिक स्वार्थ पूरा नहीं हो पाएगा। इसलिए, उन्होंने विष्ना और धर्मा की दोस्ती को निशाना बनाने का मन बना लिया।
एक दिन, विष्ना अपने खेत में काम कर रहा था, जब उसने देखा कि धर्मा की बकरी उसकी सब्जियों को खा रही है। विष्ना ने बकरी को डराने के लिए एक पत्थर उठाकर बकरी की तरफ फेंका, जो सीधे बकरी के सिर पर जा लगा और वह मर गई। विष्ना को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने तुरंत धर्मा से माफी मांगने का फैसला किया। धर्मा, जो अपने बचपन के दोस्त पर भरोसा करता था, इस घटना से आहत हुआ, लेकिन वह समझता था कि यह एक दुर्घटना थी।
लाल्याराम और रेवड़मल ने इस मौके का फायदा उठाने की ठान ली। उन्होंने गांव में अफवाहें फैलाना शुरू कर दीं कि विष्ना ने जानबूझकर धर्मा की बकरी को मारा है। वे दोनों जानबूझकर गांव के लोगों के बीच नफरत फैलाने लगे ताकि उन्हें अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिल सके।
लाल्याराम और रेवड़मल ने गांव के दोनों कबीलों के बीच आग भड़काने का काम शुरू कर दिया। उन्होंने एक तरफ विष्ना के कबीले के लोगों को यह यकीन दिलाया कि धर्मा के परिवार ने विष्ना को धमकाया है, वहीं दूसरी ओर धर्मा के कबीले को भड़काया कि विष्ना ने द्वेष के कारण बकरी को मारा है। धीरे-धीरे, गांव में तनाव बढ़ने लगा।
एक दिन, लाल्याराम और रेवड़मल ने अपने कुछ गुंडों को गांव में आगजनी और लूटपाट के लिए भेज दिया। देखते ही देखते, पूरे गांव में दंगे फैल गए। लोग जो कल तक एक-दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली करते थे, वे आज एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। गांव के घरों को आग के हवाले कर दिया गया, दुकानों को लूट लिया गया, और सैकड़ों लोग बेघर हो गए।
विष्ना और धर्मा, जो कभी एक-दूसरे के बिना कुछ नहीं करते थे, अब गुस्से की आग में कई घोर आपराधिक कार्यों के दोषी बन गए। अपने कबीलों के दबाव और आक्रोश में आकर, दोनों ने ऐसे अपराध किए जो उन्हें भी तबाह कर गए। धर्मा ने गुस्से में आकर विष्ना के छोटे भाई को मार डाला, जबकि विष्ना ने बदले की भावना में धर्मा के पिता की हत्या कर दी। यह भयानक कदम उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल बन गए।
गांव में हुए दंगे ने उसे पूरी तरह तबाह कर दिया। नफरत और बदले की भावना ने कई जिंदगियों को खत्म कर दिया। विष्ना और धर्मा की दोस्ती भी इस आग में जलकर राख हो गई। दोनों को समझ में आ गया कि यह सब लाल्याराम और रेवड़मल जैसे दुष्टों की चाल थी, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।
लाल्याराम और रेवड़मल ने अपनी राजनीति के लिए गांव को बर्बाद कर दिया, लेकिन उनकी खुद की ज़िंदगी भी इस तबाही से अछूती नहीं रही। दंगे में उनके परिवार भी सुरक्षित नहीं रहे, और उन्हें भी अपनी करनी का फल भुगतना पड़ा।
विष्ना और धर्मा आज भी जेल में बंद हैं, अपने किए पर पछताते हुए। उनकी दोस्ती की कभी-कभी धुंधली यादें उन्हें सुकून देती हैं, लेकिन उनकी गलतियों का बोझ उन्हें चैन नहीं लेने देता। वे अब भी कभी-कभी अपने पसंदीदा गाने "आशियाना प्यार से हमनें सजाया है इक हंसी सपनों का हमनें घर बनाया है" को याद करते हैं, जो उनकी टूटी हुई दोस्ती का एकमात्र निशान रह गया है।
इस घटना को 17 वर्ष बीत चुके हैं। विष्ना का बेटा, जय, और धर्मा की बेटी, मंतिषा, जिन्हें परिवार ने दंगे के बाद उन्हें शहर भेज दिया था, अब जवान हो चुके हैं। जय ने डॉक्टर की पढ़ाई पूरी की है, जबकि मंतिषा कलेक्टर बन चुकी है।
उनकी ज़िंदगी अब बिल्कुल अलग दिशा में चल रही है। जय और मंतिषा अभी तक एक-दूसरे से अंजान थे। एक दिन, मंतिषा की गाड़ी एक पेड़ से टकरा जाती है और मंतिषा घायल हो जाती है। उसे जिला अस्पताल में भर्ती किया जाता है, जहां जय इमरजेंसी डॉक्टर के रूप में तैनात होता है।
जब जय मंतिषा का इलाज कर रहा होता है, तो वह उसे पहचानता नहीं है, और मंतिषा भी जय के बारे में कुछ नहीं जानती। लेकिन जैसे ही जय को पता चलता है कि मंतिषा धर्मा की बेटी है, उसे पुराने दिन याद आ जाते हैं। वह हैरान होता है कि कैसे उसका और मंतिषा का परिवार कभी एक-दूसरे के साथ थे। इस मुलाकात के दौरान, जय और मंतिषा के बीच एक सहज आकर्षण महसूस होता है, जो धीरे-धीरे दोस्ती में बदलने लगता है।
जय और मंतिषा की दोस्ती धीरे-धीरे गहरी होती जाती है। उनका आपसी आकर्षण प्रेम में बदलने लगता है। वे एक दूसरे से लगातार मिलने लगते हैं और अपनी मुलाकातों का एक खास आधार बना लेते हैं—एक विशेष कॉफी, जिसे वे दोनों बेहद पसंद करते हैं। यह कॉफी उनके लिए एक संजीवनी का काम करती है, और उनकी मुलाकातों का एक विशेष हिस्सा बन जाती है।
जब जय और मंतिषा की दोस्ती और प्रेम ने गहरी दिशा ले ली, तो उन्होंने सोचा कि अब अपने परिवारों को मिलाने का समय आ गया है। वे दोनों गांव लौटने का निर्णय लेते हैं। उनकी वापसी से गांव में पुरानी घटनाओं की यादें ताज़ा हो जाती हैं और लोगों के बीच हलचल मच जाती है।
गांव में उनकी वापसी के साथ ही, पुरानी दुश्मनी और विवादों का पुनरुत्थान शुरू हो जाता है। कुछ लोग जो अभी भी दंगे और संघर्ष के जख्मों को नहीं भुला पाए थे, वे इस नई दोस्ती और प्रेम को स्वीकार नहीं कर पाते। लाल्याराम और रेवड़मल के समर्थक, जो अभी भी गांव में सक्रिय थे, इस नई दोस्ती का विरोध करते हैं और पुरानी दुश्मनी को फिर से भड़काने की कोशिश करते हैं।
जैसे ही जय और मंतिषा गांव में खुलकर मिलते हैं, उन्हें विरोध और संघर्ष का सामना करना पड़ता है। कई लोग उनकी वापसी को पुरानी दुश्मनी की वापसी मानते हैं और इस पर प्रतिक्रिया देते हैं। गांव के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन होते हैं, और पुराने विवादों की आग फिर से भड़क जाती है। लाल्याराम और रेवड़मल के समर्थक लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि जय और मंतिषा की प्रेम कहानी दरअसल पुराने झगड़ों की वापसी है। वे विरोध प्रदर्शन और अफवाहों के जरिए इस नई दोस्ती को और भी जटिल बना देते हैं।
गांव में उथल-पुथल के बावजूद, जय और मंतिषा का प्रेम सच्चा और मजबूत था। दोनों ने एक दृढ़ संकल्प लिया कि वे अपनी शादी से गांव में शांति और खुशहाली वापस लाएंगे। इसके लिए, उन्होंने गांव में सामंजस्य और भाईचारे को पुनः स्थापित करने का फैसला किया। वे जानते थे कि इस चुनौती को पार करना आसान नहीं होगा, लेकिन उनके दिलों में एक दूसरे के प्रति गहरा प्यार और गांव के प्रति एक नेक इरादा था।
जय और मंतिषा ने सबसे पहले गांव के बुजुर्गों और प्रमुख लोगों से संपर्क किया। उन्होंने अपनी योजनाओं को साझा किया और बताया कि वे अपने विवाह के माध्यम से गांव में भाईचारे और प्यार को फिर से प्रोत्साहित करना चाहते हैं। शुरू में कुछ लोग इस प्रस्ताव को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, लेकिन जय और मंतिषा की सच्ची भावना और उनके प्रयासों को देखकर, धीरे-धीरे लोगों का समर्थन प्राप्त होने लगा।
गांव के सबसे बड़े बुजुर्ग, जिनका गांव में गहरा सम्मान था, ने जय और मंतिषा के प्रेम को स्वीकार किया और उन्हें अपना समर्थन दिया। उन्होंने गांव के लोगों को यह समझाया कि अब वक्त है पुराने घावों को भरने का और एक नए सिरे से शुरुआत करने का।
फिर भी, लाल्याराम और रेवड़मल के समर्थक जय और मंतिषा की शादी का विरोध जारी रखते हैं। वे अपने पुराने विवादों को भड़काकर, गांव में नई समस्याएँ उत्पन्न करने की कोशिश करते हैं। लेकिन जय और मंतिषा ने इस समय को अपनी ताकत बनाया। वे गांव के सभी कबीलों के लोगों से संवाद करते हैं, उन्हें समझाते हैं कि अब समय है पुरानी नफरत को पीछे छोड़ने का और एक नई शुरुआत करने का।
जय और मंतिषा की शादी एक ऐतिहासिक घटना बन गई। गांव के सभी कबीलों के लोग मिलकर इस खुशी के मौके को मनाते हैं। शादी की तैयारी धूमधाम से की जाती है। गाँव की गलियों में रंग-बिरंगे झंडे और दीप जलाए जाते हैं। शादी के दिन, पूरा गांव एक साथ आता है, पुराने विवाद और नफरत को भुलाकर, एक नई शुरुआत की ओर बढ़ता है।
जय और मंतिषा की शादी के दौरान, एक भव्य समारोह आयोजित किया जाता है। शादी की रस्में बड़े धूमधाम से होती हैं, और सभी गांव वाले खुशी के मारे झूम उठते हैं। उनके प्यार और एकता की यह कहानी अब गांव में एक प्रेरणा बन गई है। शादी के बाद, गांव में धीरे-धीरे खुशहाली और अमन लौट आता है।
जय और मंतिषा की शादी ने आशियाना गांव में एक नई शुरुआत की। उनकी प्रेम कहानी, संघर्ष और समर्पण ने गांव को एक साथ जोड़ दिया और पुरानी नफरत और घृणा को मिटा दिया। वे न केवल एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं, बल्कि गांव में प्रेम और समझदारी की एक नई धारा बहाते हैं।
गांव के लोग जय और मंतिषा की शादी को एक नई उम्मीद और खुशहाली की संजीवनी मानते हैं। उनके सहयोग और प्रेम ने यह साबित कर दिया कि सच्चे प्यार और समझ से बड़े से बड़े संघर्ष को पार किया जा सकता है। गांव के लोग उनकी शादी को हमेशा एक यादगार पल के रूप में याद करेंगे, जिसने उन्हें एकजुट किया और उन्हें दिखाया कि प्रेम और एकता से बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी हल किया जा सकता है।
