दिल्ली का इश्क़
दिल्ली का इश्क़
दिल्ली का इश्क़
राजीव चौक से लौटते हुए इस बार उस मोहब्बत के पैर लड़खड़ा रहे थे , वो इश्क को बहुत बेदर्दी से याद कर रही थी , वो मेरी बातों को अपने कानों से सुन रही थी ,सालों जो हो गए थे सुने हुए | उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था क्यूँ समय का फेरबदल उसके साथ बार-बार होता है ? ना जाने कितने सवाल घूम रहे थे उसके मन में और सब मन के ख्यालों का जबाब था “why with me” ?
अचानक मैं उसके ठीक सामने से ऐसे गुजरा जैसे एक छोटे से स्टेशन से सुपर फास्ट एक्सप्रेस | वो एक झलक का मेल ,उस हिंदी फिल्म की समाप्ति सा था ,जिसमें शाहरुख़ खान को हीरो होते हुए भी मरना पड़ता है | उस एक मिनट में मैंने उसकी आँखों को बंद देखा , बंद होठों पर गुमनामी देखी हज़ार जबाबों की|
हाँ , मैं देखने के आलावा भी क्या कर सकता था । मैंने एक काम तो किया और वो था उसके पलटने का इन्तजार और उसकी बंद आँखों के खुलने का इंतजार और सबसे खास उसके सालों से बंद होठों से आने वाले जबाब का इन्तजार |
जब भी इस इन्तजार की गिनतियों को किसी यार को गिनवाया वो ना मुझे और न तुझे समझ पाया |
वो आने वाली मेट्रो में बैठी , भीड़ तो राजीव चौक नाम सुनके ही सबके दिमाग में आ जाती है लेकिन वो शुरू से किस्मत वाली थी क्यूंकि उसे सीट जो मिल गयी थी (वैसे मेरा प्यार भी किसी किस्मत से कम नहीं था ) | और बैठते ही उसने अपना leanovo K3 नोट निकाला और कैंडी क्रश शुरू | दो चार बार गेम ओवर होने के बाद , मायूसी से फ़ोन पॉकेट में रखा और लगी सोचने कि “ अगर ये ना होता तो वो होता , गर वो होता तो ये दिन न होता | और फिर जो हुआ अच्छा हुआ सोच के फिर से कैंडी क्रश शुरू कर दिया उसने।
हमने पीछा करना नहीं छोड़ा था ,उसी मेट्रो के डिब्बे में जो घुस गए थे हम भी निहार रहे थे उसका leanovo K3 नोट | जैसे ही रेस कोर्स मेट्रो स्टेशन आया उसके चेहरे में जान आई और दिल में यूँ शोर मचा कि उसकी आँखों में साफ़ साफ़ एक आवारा आशिक को देखा जा सकता था | वो ठीक 8 साल पहले पहुँच चुकी थी जहाँ मुझे वो इन्तजार करते पाया करती थी , कैसे विश्वविद्यालय जाने वाले लोग अपने रास्ते बदलते हैं ये भगवान् भी आज तक पता नहीं कर पाया ,पर वो सब जानती थी।उन बातों को याद करते करते वो मन ही मन मुस्कुरायी और तभी मैं उसकी ठीक बगल में जा बैठा और पूछा ---
"क्या ये मंगल सूत्र और मांग का सिन्दूर तुम्हारा है ?