दीपों का सौदागर
दीपों का सौदागर
सड़क के पास एक महिला अपने 6 साल का बेटा अमर के साथ मिट्टी की दिये बेच रही थी।
वहाँ से जो भी ग्राहक गुजरता रंगबिरंगे दिये बगल वाले दुकान से खरीद लेता था। इस तरह रोज़ ही वह महिला निराश होकर घर लौट जाती थी। घर में एक दिन की खाने की व्यवस्था थी। भगवान से वह प्रार्थना करते हुए कहती है कि "हे भगवान मुझ पर कृपा कीजिए। मेरे दीयों को भी तो बिका दीजिए। कोई ऐसा ग्राहक भेज दीजिए जो मेरे मिट्टी के दीयों को भी ले ले। आज मैं अपने बच्चे को खिला रही हूँ पर कल का क्या होगा? कृपा करो भगवन कृपा करो। "वह रोते-रोते सो गई।
अगले दिन जब वह फिर से अपने बेटे को नहला धुला कर , मिट्टी के दीये लेकर बाज़ार चल देती है। यही आशा के साथ कि आज तो उसके दीये बिकेंगे। जब वह जाकर मंडी में बैठती है, तो वहाँ एक लड़का जो 14 साल का था वह आकर उस महिला से सारे दीये खरीद लेता है और उसको ढेर सारे पैसे देते हुए कहता है, "जाओ माई कल तुम्हारा भी तो दीपावली का त्यौहार है। खूब अच्छे से मनाना।" तो उस महिला के आँखों से आँसू बहने शुरू होते हैं। वह उस भगवान को धन्यवाद देते हुए कहती है "हे भगवान इस बच्चे के रूप में आकर मेरे सारे दिये लेकर मुझे और मेरे परिवार को भी दीपावली मनाने का एक अवसर दिया तेरा शुक्रिया। "
और उस लड़के को मन से आशीर्वाद देते हुए वहाँ से आनंदपूर्वक चली जाती है।
यह वही लड़का था जो महिला के झोपड़ी से कुछ ही दूर रहता था और हर दिन वह इस महिला को निराश होकर आते देखता था। इसलिए उसको लगा कि इस दीपावली कोई पुण्य का कार्य किया जाए, फिर क्या था अपने पॉकेट मनी से उसने यह अभूतपूर्व पुण्य कमा लिया।
नीति: इस दीपावली अपने आस पड़ोस को भी देख लीजिए कोई दुखी या निराश तो नहीं।
