धारावाहिक : बहू पेट से है
धारावाहिक : बहू पेट से है
भाग - 16 : लिफाफा संस्कृति
"हरि अनंत हरि कथा अनंता" की तरह "लेडीज क्लब" की बातें भी अनंत होती हैं। कभी भी समाप्त नहीं होने वाले आसमान की तरह। इन बातों से पेट कभी भरता नहीं और भूख कभी मिटती नहीं। मगर समय की घड़ी तो टिक टिक चलती ही रहती है। जब शादियों की बात चल निकली तो भला लाजो जी कहां पीछे रहने वाली थीं। उन्होंने कहा "चाहे खाना खाओ या ना खाओ , लिफाफा तो देना ही पड़ता है। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि चाहे शादी में जाओ या मत जाओ मगर लिफाफा भिजवाना ही पड़ता है। शादी का कार्ड आने का मतलब ही यही है कि लिफाफा भिजवाना है , चाहे आप आयें या नहीं। इसलिए मैं तो ऐसा करती हूं कि जब भी कोई कार्ड देने आता है, उसी को लिफाफा पकड़ा देती हूं और कह देती हूं कि 'भैया , अगर बन सका तो शादी में आ जायेंगे नहीं तो हमारा प्रतिनिधित्व ये 'लिफाफा' करेगा।" वह बंदा भी बड़ा खुश होता है कि भीड़ भी कम होगी और लिफाफा तो मिल ही गया है। कभी कभी तो लगता है कि लोग कोई भी आयोजन केवल लिफाफे के लिए ही तो नहीं करते हैं कहीं ? जिस तरह लिफाफों का चलन हर काम में होने लगा है उसे देखकर तो लगता है कि आने वाले समय में लोग "तीये की बैठक" में भी लिफाफा लेकर जायेंगे।
लाजो जी ने बातों बातों में एक बहुत बड़ी समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट कर दिया। लिफाफे की परंपरा "कन्यादान" से शुरु हुई थी। कन्यादान करना एक पुण्य का काम माना जाता है इसलिए यह परंपरा स्थापित हो गई कि शादी में चाहे जाओ या नहीं जाओ मगर कन्यादान अवश्य भिजवाना है। बाद में लोग लड़के की शादी में भी "लिफाफा" देने लगे और कहा ये गया कि यह तो "बहू की मुंह दिखाई" है। मगर मजे की बात यह है कि बहू के मंडप में आने से पहले ही लोग खा पीकर लिफाफा पकड़ाकर निकल लेते हैं और इस प्रकार बहू का बिना मुंह देखे ही "मुंह दिखाई" की "रस्म" पूरी होती है।
अब तो लिफाफे में रखी जाने वाली राशि दो बातों पर निर्भर करती है। एक तो शादी में जाने वाले लोगों की संख्या पर और दूसरे शादी में खाने की वैरायटी और गुणवत्ता पर। जैसी क्वालिटी वैसा लिफाफा। जितने ज्यादा व्यंजन उतना बड़ा लिफाफा। जैसे शादी समारोह कोई "संस्कार" न होकर "होटल में खाना खाने का कार्यक्रम" हो। मगर जनता जनार्दन है , जो कर ले सब ठीक। आजकल ऐसा ही हो रहा है।
जितने मुंह उतनी बातें। सबके पास अनुभवों का अथाह खजाना है। भांति भांति की शादियां और भांति भांति के किस्से। जब बात भुक्खड़ सिंह की आई तो बेचारे भुक्खड़ सिंह की "भोजन क्षमता" का उपहास उड़ाने में लग गई सब औरतें। ये तो छमिया भाभी नहीं थीं वहां पर नहीं तो किसी की क्या मजाल जो भुक्खड़ सिंह के बारे में एक शब्द भी कोई कह जाये। मगर पीठ पीछे बुराई करना बड़ा आसान होता है और कोई इस मौके को छोड़ता नहीं है। सब लोग बहती गंगा में अपने हाथ धो लेते हैं। यहां कौन पीछे रहने वाला था ?
सभा समाप्त हुई और सब औरतें अपने अपने घरों को चली गईं। लाजो जी भी आ गई । उनके चेहरे पर फिर से सिलवटें पड़ गई थीं। आज उन्होंने तय कर लिया था कि वे रितिका और प्रथम से बच्चे के बारे में बात करके ही रहेंगी।
घर आकर देखा कि अमोलक जी वहां पर पहले से ही बैठे हुए हैं। लाजो जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस समय अमोलक जी यहां क्या कर रहे हैं ? कहीं कोई चक्कर तो नहीं है इनका ? एक बार तो मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाया। मगर अगले ही पल यह कहकर कि इतने सज्जन आदमी पर शक करना ठीक नहीं है। बेचारे वैसे ही परेशान हैं उनसे। ज्यादा शक वगैरह किया तो कहीं घर बार छोड़कर "संयासी" न बन जायें ? अब इस उम्र में उनसे कौन नैन मटक्का करेगी ?
फिर उन्हें याद आया कि छमिया भाभी तो आजकल यहां हैं ही नहीं , तो फिर वे अमोलक जी की ओर से निश्चिंत हो गईं। उन्हें बस, छमिया भाभी का ही खटका था।
"अरे, आप और इस वक्त घर पर ? क्यों क्या हुआ ? मेरी याद आ रही थी क्या" ? मन ही मन खुशफहमी पाले बैठी लाजो जी बोलीं
अमोलक जी ठहरे संत आदमी। झूठी सच्ची बातें नहीं बनाते हैं। इसलिए सीधे सीधे बोले "अरे, एक वकील ने आत्महत्या कर ली थी कल। आपने अखबार में पढ़ा होगा ना।"
"हां, पढ़ा तो था। मगर इस घटना से आपका घर पर रहने का क्या संबंध है" ?
"है, लाजो जी , बहुत गहरा संबंध है। आज देश के सब वकीलों ने पूरा देश जाम कर दिया है। सरकारी कार्यालय बंद करा दिए। बाजार बंद करा दिए। सड़कों पर गाड़ियों में तोड़ फोड़ कर आग लगा दी। स्कूल कॉलेज सब बंद करा दिए।"
"पुलिस ने उन्हें रोका नहीं" ?
"पुलिस की क्या औकात जो इन्हें रोक सके ? ये तो आजकल खुद को राजा महाराजा समझते हैं ना।"
"पर, ऐसा क्यों" ?
"ऐसा इसलिए कि इन वकीलों में से ही तो जज बनते हैं। ये वकील अच्छी तरह जानते हैं कि जब तक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उनके "भाई" वकील जज के रूप में बैठे हुए हैं , उनका कुछ भी बाल बांका नहीं होगा। इसलिए ये खुलेआम हुड़दंग करते हैं पुलिस को मारते हैं , पीटते हैं। एक महिला एस पी की तो सरेआम वर्दी फाड़ दी थी इन्होंने। बीच सड़क पर उसके साथ गुंडई की थी। बड़ी मुश्किल से उस महिला एस पी की इज्जत बचाई जा सकी थी। और हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया ये जानती हो" ?
"क्या आदेश दिया" ?
"नहीं, बता नहीं सकता हूं वर्ना मुझ पर कंटेम्प्ट का केस चल जाएगा"
"क्यों ? इतना सा बताने से ही" ?
"हां , आजकल ये हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अपने आपको भगवान से भी बड़ा मानते हैं। ये जज लोग न तो सरकार को कुछ मानते हैं और न ही अधिकारियों को। जो मन में आ जाए वही फैसला सुना देते हैं। और अगर इनके फैसले पर कोई प्रश्न उठा दो तो कंटेम्प्ट का केस चला देते हैं। इन पर न तो कोई भ्रष्टाचार का केस चलता है और न ही कोई और तरीका है इनके खिलाफ कार्रवाई करने का। ना ही इन्हें हटाया जा सकता है। ये समझो कि एक बार जो हाईकोर्ट में जज बन गया वह "भगवान" से भी बड़ा बन गया"
"इनकी नियुक्ति कौन करता है" ?
"ये तो खुद ही जज बनाते हैं वकीलों में से। यहां भी "खानदानों" का बोलबाला है। जज का बेटा जज बन जाता है , बेटी बन जाती है। उन्हीं के बल पर ये वकील भी खुद को जज समझने लगे हैं। गजब की दादागीरी है इन वकीलों की। मगर बेचारी जनता की कौन सुने ? वह तो पैदा ही झेलने के लिए हुई है।"
"उस वकील ने आत्महत्या क्यों की" ?
"ये तो पता नहीं चला। पर कुछ लोग कह रहे थे कि वास्तव में वह वकील किसी और को मारना चाहता था मगर गलती से पेट्रोल उस वकील पर ही गिर पड़ा और यह हादसा हो गया। इस घटना की जांच करवाना नहीं चाहते हैं वकील। क्योंकि अगर इसकी जांच हो जाएगी तो सच सामने आ सकता है। इसलिए वकीलों ने आज भारत बंद करा दिया। उस वकील का शव सचिवालय के गेट पर रख दिया। ना किसी को आने दिया जा रहा है और ना जाने दिया जा रहा है। उधर हाईकोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान ले लिया और पूरी सरकार को हाईकोर्ट बुला लिया और उनसे ऐसे सवाल जवाब किये जैसे सरकार ने ही उसे मारा हो"
"ये तो सरासर तानाशाही है"
"शशशशशशश , धीरे बोल। कोई वकील सुन लेगा तो आपके खिलाफ हाईकोर्ट में कोई रिट लगा देगा और हाईकोर्ट आपके खिलाफ कुछ भी फैसला दे सकता है।"
"बड़ी अजीब बात है"
"हां, इसलिए भलाई इसी में है कि चुपचाप बैठे रहो। जो हो रहा है वो होने दो"
इस चक्कर में लाजो जी अपनी बात भूल गई।
क्रमश :
