देवदास
देवदास
"यह क्या देवदास सा हाल बनाया हुआ है।जतिन में अनुज के कमरे की लाइट जलाते हुए बोला।कुछ नहीं यार रात पढ़ते-पढ़ते लेट हो गया था इसलिए उठा नहीं।देर हो गई.....चल अब कॉलेज नहीं चलना।"
"नहीं....".अनुज ने कुछ सोचते हुए जबाब दिया।"आज नहीं जाऊंगा..... कल जाऊंगा।"
"तू बहुत आजकल छुट्टियां मारने लगा है। बस कुछ दिन बीच में छोड़कर फिर चलूंगा सारा सिलेबस कवर हो गया है।फिर महीने बाद तो पेपर है ही घर पर ज्यादा पढ़ा जाता है।" अनुज ने जतिन को लॉजिक देते हुए कहा।
"बस.....कर मैं नहीं जानता।क्यों नहीं......जाना चाहता तू कॉलेज।"अनुज ने कोई उत्तर नहीं दिया और किताबें उठाने लगा।निखिल ने फिर कहा.... "मैं जानता नहीं हूं कि तू क्यों नहीं कॉलेज जाना चाहता क्योंकि मेघना ने कॉलेज छोड़ दिया है......तो इसका यह मतलब नहीं कि जिंदगी रुक गई।तेरी पढ़ाई रुक गई।तुझे जो बोलना है बोल.........यार अच्छा नहीं लगता। देखो वो भी तो आगे पढ़ने के लिए गई है।अगर तू उसकी जुदाई में ऐसे कमरे में लाइट बुझा कर अपनी स्टडी के साथ ऐसे करेगा तो देवदास की तरह अपनी जिंदगी ही बर्बाद करेगा ।
जिंदगी में आगे बढ़ ताकि जो लोग आपको छोड़ कर गए हैं वह तेरी ऊंचाई देख कर तेरी तरफ वापस लौट सके। दिल लगाकर पढ़ाई कर और आगे बढ़ जतिन की बातों ने अनुज के मन को छुआ।मन ही मन में सोच रहा था सही कह रहा है। मेघना इस शहर को छोटा समझ कर बड़े शहर में पढ़ने के लिए गई थी।जैसे छोटी जगह पर रहने वाले लोग किसी काबिल ही नहीं होते लेकिन अगर मैं भी उसकी याद में ऐसे जीना छोड़ कर.....मेरे ममी - पापा को भी मुझसे उम्मीदें है उनका क्या..... उसकी यह बात सच हो जाएगी मुझे बताना पड़ेगा कि छोटी जगह से भी उठकर कोई इंसान ऊँचाई को छू सकता है।" अनुज उठा और अपनी बुक्स लेकर बोला।
"सही कहता है यार तेरे दो शब्द मेरे मन में घर कर गए। बिल्कुल मैंने देवदास बन कर अपनी जिंदगी नहीं बर्बाद करनी।मुझे जिंदगी में आगे बढ़ना है।मैं जरूर कॉलेज जाऊंगा" और दोनों मुस्कुराते हुए कॉलेज के लिए निकल पड़े।
