देशभक्ति
देशभक्ति
"लोग अपने को समझते क्या हैं। जहाँ देखों वहाँ गन्दगी फैलाये रखते है।" मृदुला बाज़ार से आते ही शुरु हो गयी।
" क्या हुआ, इतने गुस्से में क्यों है देवी जी। लो एक गिलास ठंडा पानी पियो।" मृदुला के पति राजीव ने पानी का गिलास मृदुला को देते हुए कहा।
" होगा क्या, लोग जहाँ देखते हैं, वहाँ कूडा फेंक देते है। चिप्स खायेगे तो रैपर सडक पर, केला खायेंगे, तो छिलका सडक पर। यहां तक कि लोग गाडी मे बैठे बैठे भी सडक पर ऐसे कूडा फेंकेंगे जैसे सडक इनके बाप की हो। फिर जब बरसात आती है और नाले बंद हो जाते है तो सारा दोष प्रशाशन का। " मृदुला पूरे गुस्से मे थी। उसे ना घर मे और ना बाहर गंदगी फैलाना पसंद था।
राजीव ने शांत कराने की कोशिश की पर आज तो मृदुला पूरी भडास निकालने के इरादे मे थी।
"ऐसे लोग विदेश जायेंगे तो वहाँ की साफ सफाई का गुणगान करेंगे।साफ सफ़ाई रखेगे, और अपने देश मे आते ही यहाँ वहाँ कूडा फेंकना शुरु कर देगे। अभी स्वतन्त्रता दिवस आयेगा ना, तब देखना यही लोग कैसे देशभक्ति की डींगे हांकेगे। अरे अपनी गली, अपने शहर, अपने देश को साफ रखना भी हमारा कर्तव्य है, हमारी देशभक्ति है।"
"तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो, लेकिन हम क्या कर सकते हैं। हम तो केवल खुद को ठीक कर सकते है पूरे समाज को तो नही।
राजीव ने कहा।
"नही राजीव। कुछ तो करना होगा। ऐसे सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे तो कुछ नही होगा। कुछ तो करना ही होगा।"
"तो तुम सोचती रहो क्या कर सकती हो। मैं तो चला अपनी शाम की सैर पर।" यह कहकर राजीव चला जाता है।
कुछ देर तक मृदुला बैठी सोचती रहती है। थोडी देर बाद वो एक एक कर अपनी सोसाइटी की सहेलियो को फ़ोन मिलाती है और सबको कल ग्यारह बजे उसके घर आने को बोलती हैं।
अगले दिन उसकी सहेलियां मीनू, रीता, मधु और गीता, चारो उसके घर पर होती हैं। मृदुला उन सबसे कहती है,
"मैनें तुम चारो को एक जरूरी बात करने के लिये बुलाया हैं। तुम चारों की सोच भी मेरे जैसी ही है बस इसीलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम सब मेरा साथ दोगी।"
"बात क्या है।"
"देखों, लोग आसपास इतनी गन्दगी फैलाते है। हम लोगो उनका हाथ पकड कर रोक तो नही सकते लेकिन गांधीगीरी कर समझा जरुर सकते है।"
"मतलब" चारो एक साथ बोल पड़ी।
"सीधे शब्दो मे जो आसपास लोग इतना कूडा सडक पर इधर उधर फैलाते है, हम चारों वो कूडा इक्कठा कर सही तरह से निस्तारण करेंगी। खाली दीवारो पर स्वच्छता के नारे लिख लोगो को जागरुक करेंगे। हमे हमारे आसपास एक साफ वातावरण बनाना ही होगा। यह गंदगी ही बिमारियों का कारण बनती है, यह समझाना ही होगा।"
" बात तो तुम्हारी ठीक है......,लेकिन इतना आसान भी नही ये सब करना।" मीनू ने कहा।
"हाँ, मीनू सही कह रही है।" बाकियों ने भी कहा।
"जानती हूँ आसान नही है, लेकिन नामुमकिन भी तो नही है। एक नयी बदलाव की शुरुआत को करना आसान होता भी कहाँ है। पर कोशिश तो की ही जा सकती है। ये हमारी अपनी मातृभूमि की सेवा ही तो होगी। मेरे कहने से कल अपने घर के आसपास से ही शुरुआत करते हैं।"
" ना बाबा ना, मुझसे तो ना हो पायेगा।"
"मुझसे भी नही।" मीन, रीता और मधु तीनों मना कर देती है। पर गीता मृदुला का साथ देने को तैयार हो जाती है।
अगले दिन वह दोनो बच्चों और पति के चले जाने के बाद अपनी सोसाइटी के बाहर पहुंच जाती है और हाथो मे दस्ताने पहन, मुहँ पर मास्क लगा, लग जाती है अपने सफाई अभियान पर। सडक पर आते जाते लोग उन्हें घूर घूरकर देखते, पर वे अपने काम मे लगी रही। देखते ही देखते वो दोनो पूरी सडक साफ कर देती हैं।
अब ये उनका रोज का सिलसिला हो गया था। वे दोनो पूरे इलाके मे मशहूर हो गयी थी। अब धीरे धीरे और भी लोग उनसे जुड चले थे। उन लोगों ने दिवारों पर सुंदर चित्र बना दिये थे जिससे लोग दिवारों पर ना थूके।
आस पास के रहने वाले लोग भी उनके काम की तारीफ करते ना थकते थे। उनकी मेहनत रंग ला रही थी। इलाके के लोगो मे भी जागरुकता आ गयी थी। अब लोग सडक पर कूडा ना डालते। डस्टबिन का ही इस्तेमाल करते। इधर उधर ना थूकते।
उनके काम की चर्चा दूर दूर तक फैल गयी थी। एक दिन एक अखब़ार मे भी मृदुला और गीता का इंटरव्यू छपता है।
एक दिन मृदुला के घर एक चिट्ठी आती है। राजीव उसे खोलते है। खोलकर पढ़ना शुरु करते है और,
"मृदुला, मृदुला कहाँ हो। जल्दी आओ।"
"आ रही हूँ। क्या हुआ। ऐसे क्यों चिल्ला रहे हो।"
"ये देखो क्या आया है। तुम्हे और गीता को राज्य सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत पुरस्कार के लिये चुना गया है। खुद माननीय मुख्यमंत्री जी अपने हाथों से तुम्हें ये पुरस्कार देंगे।"
मृदुला यह खबर गीता को सुनती है। दोनो बहुत खुश होती है। उनकी सच्ची देशभक्ति का पुरस्कार जो मिल रहा था उन्हें। उन दोनों ने देशभक्ति की एक नयी परिभाषा लिख दी थी।