देश प्रधान और हम सब देशवासी महान
देश प्रधान और हम सब देशवासी महान
बात पुरानी है पर दिलचस्प और हमने अपनी ज़िंदगी में भी अपना ली है। हम लोग ट्रेन में सफ़र कर रहे थे और हमारे संग एक सिन्धी परिवार बैठा हुआ था। कुछ क्षणों में कुछ मुद्दों पर हमारे मन मिल गये और एका एक दोस्ताना हो गया और यह भी प्रतीत हुआ की दोनों मियां बीवी बड़े ही मिलनसार हैं। दोस्ताना इतना बढ़ गया की उन्होंने भोज के दौरान खाने की दावत भी दे दी और पल्लवग्राही नहीं परन्तु एक आत्मीय आग्रह। उनके खाने की सुगंध को सूंघकर हमारे पेट में भी उदबिलाव कूदने लगे। और हमने भी अपने खाने की पोटली खोल दी और सफ़र वाले नियत्त व्यंजन को कागज़ की तश्तरी में सजाना शुरू कर दिया। शायद इस अप्रत्याशित भूख का मुख्य कारण यह भी था की क्यों ना व्यंजनों का आदान प्रदान करके खाने में विविधता लायेंगे। चलो साहब यह सपना भी पूर्ण हो गया। अचानक सिन्धी साहब आलू की सब्जी की तारीफ करने लगे और बोले "वाह! भाभी आलू के सब्जी बड़ी स्वादिष्ट है। इस तरह के मसाले मिश्रित सब्जी मैंने पहली बार खाई है। भाभीजी आप तरला दलाल हैं"। मैंने सोचा की साली उंगलियाँ मेरी जल गयी उबले आलू छीलते छीलते और तरला दलाल यह बन गयीं। मैंने अचानक टोका "साहब यह सस्ती और आसान सब्जी का इजाद मैंने किया है।" "अरे साहब तो फिर आप संजीव कपूर।" सिंधी साहब ने पलट कर मेरी तारीफ कर डाली। परंतु सिंधी साहब की इस नामकरण की आदत से मैं कुछ सोच में पड़ गया। खैर इस आदत की पुनरावर्ती सफ़र में कई बार देखने को मिली।
कुछ समय बाद टी टी साहब आये और जब उन्होंने सिंधी साहब से identity proof माँगा तो सिन्धी साहब ने अपना इलेक्शन आई कार्ड की खोज बीन शुरू कर दी और उसमे काफी वक्त लगने लगा। शायद उन्होंने इस कागज़ात को कुछ ज्यादा संभाल कर रख दिया था। टी टी साहब ने कुछ समय तक तो धीरज दिखाई परन्तु फिर ताव में आ गये और बोले "साहब मुझे आगे ७० मुसाफिरों की टिकट अभी चेक करनी है, कहो तो पर्ची काट दूँ।"
काफी समय बीतने के बाद साहब को इलेक्शन आई कार्ड मिल ही गया। आई कार्ड मिलते ही वह टी टी साहब की तरफ लपके और बदले में टी टी साहब ने लम्बा चौड़ा सीख वाला वक्तव्य दे डाला और डराने के तौर पर हम सब को सम्मुख करते हुए अपनी वीर गाथा भी सूना डाली। मानो की बगैर टिकेट के मुसाफिरी करने की गुस्ताखी की सजा वोह कैसे दिलवाते हैं। परन्तु सिन्धी साहब एक कदम आगे थे और बोले "साहब आप जैसे लोग की वजह से रेलवेज चल रही है। आप शिवाजी हो।" और ऐसा दो तीन बार सुनते ही टी टी साहब शांत हो गए। टी टी साहब की नाम पट्टिका पर नजर पड़ते ही पता चला की वह मराठी हैं और ज्यादा दोस्ताना से पता चला की वह बड़ोदा के निवासी हैं।
सफ़र के दौरान कई ऐसे कई मौके आये जब इन सिंधी साहब ने इस किस्म की उपाधियाँ कई लोगों को दे डाली। जैसे की चाय वाले को उन्होंने कह दिया की "भाई तू तो मिल्खा सिंह है" और जहां जहां पंगा हुआ उन्होंने सामने वाले को चुप करने के लिए कह दिया "भाई तू शिवाजी।" खैर मुझे इस तरह के वार्तालाप में काफी समझदारी लगी और मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में अपना ली।
जब भी श्रीमती घर में बे कारण गुस्सा हो जाती हैं तो मैं यह वक्तव्य अपना लेता हूँ "भाई तू लक्ष्मी बाई, तू रानी ऑफ झांसी।"
वेल मुझे भी उनके द्वारा कई उपाधियाँ मिल चुकी हैं इस दौरान जैसे की "तुम भगत सिंह, तुम महात्मा गाँधी।