डर के आगे जीत है
डर के आगे जीत है
सुरेश ! रमा और कौशल की अकेली सन्तान, सुरेश ने जब से आर्मी ज्वाइन करने का फैसला किया, तभी से रमा के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे। उसकी ये हालत देख सुरेश, पिता के पास पहुंचा,
"पापा, आप समझाइये ना माँ को। अगर ऐसा ही रहा तो, ...
"कौशल ! तुम निश्चित रहो, तुम्हारी माँ की मनोस्थिति मैं समझ रहा हूँ, असल में उसके चाचाजी भी आर्मी में ही थे। कारगिल के समय उनकी शहादत से पूरा परिवार ही सदमे में रहा,और अब तुम... तो वो तुम्हे रोक नहीं पा रही, पर जाने भी नहीं देना चाहती।"
"पर .... पापा हर कोई ऐसा सोचने लगे तो फिर देश सेवा ? और सरहद पे कौन जायेगा ? क्या देश के लिए हमारा कोई फ़र्ज़ नहीं, गवर्नमेंट जॉब सब को चाहिए, इंजीनियर, प्रोफेसर, बैंकर ही क्यों ... ?
पापा कौशल बेटे का आक्रोश समझ रहे थे।
"कोई जाये या ना जाये ! मैं नहीं भेजना चाहती तुझे बस।" माँ ने अचानक से कमरे में आते हुए कहा।
"माँ डर के आगे जीत है, मैं तो बस इतना जानता हूँ।" तभी कौशल भी बोले, "रमा ! हमें तो गर्व होना चाहिए की हमारा बेटा इतना बहादुर है और देश सेवा के लिए जाना चाहता है।"
"जिंदगी को खतरा तो हर मोड़ पर होता है, अगर सम्भल के नहीं चले तो हादसा कहीं भी हो सकता है। तो क्या हम चलना छोड़ देते हैं ?"
"करेक्ट ! पापा अब की ना आपने मेरे पापा होने वाली बात।" सुरेश माँ की तरफ देखकर बोला।
ठबस .... माँ, जाने दो कब तक ....?
"नहीं रोकूंगी," रमा ने आँसू पोछते हुए कहा।
'तेरे पापा ने बिल्कुल सही कहा .... चल मैं तेरे जाने की पैकिंग कर देती हूँ।"