डोली ( एक आलेख )
डोली ( एक आलेख )
आज का विषय बहुत ही ज्यादा हृदय से जुड़ा हुआ है, जो हर एक के जीवन से संबंधित है। इस छवि को देख उस डोली में बैठी दुल्हन की मन को इस तरह व्यक्त करती है —
बाबुल का आंगन छोड़ उनके घर की शोभा कहलाऊंगी,
दुल्हन होने का अपना हर फर्ज निभाऊंगी।
अपने हृदय में यही आशा लिए एक बेटी अपने मायके से ससुराल की ओर रुख करती है।
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही बेटी को दुल्हन के रूप में डोली में बिठाकर विदा करने की बहुत ही अनोखी परंपरा रही है इस अनुपम दृश्य को देखकर नर–नारी , बच्चे–बूढ़े सभी बड़े ही आनंदित होते हैं, लेकिन इस पर गहन दृष्टि डाला जाए तो हम पाएंगे, क्या यह सभी के लिए आनंद ले कर आता है ?
चित्राधार विषय जिससे हम अंदाजा लगा सकते हैं एक डोली .. डोली में बैठी दुल्हन ..वाह! कितना सुंदर लग रहा है यह दृश्य ..
इसे देखते ही हर लड़की के मन में स्वयं को है वहां देखना, हर माता-पिता के लिए अपनी बच्ची को वहां देखना , हर भाई का अपनी बहन के लिए ये सपना होना.... पर क्या इन सब को यह उतना ही आनंद दे पाता है।
एक घर में बच्ची के जन्म होते ही मां-बाप की आंखों में यह दृश्य अवश्य ही घर करता है लेकिन हां हर मां-बाप के मन में अलग-अलग भाव भी उत्पन्न होते हैं : आनंद, दुख ,चिंता, जिम्मेदारी, बोझ....
अपनी बच्ची के कन्यादान का सुख हर मां बाप के लिए बहुत ही प्रिय होता है लेकिन अपने जिगर के टुकड़े को विदा करते वक्त उन्हें हृदय –विदारक दुख भी अवश्य होता है। एक मां–बाप के लिए अपनी बच्ची को स्वयं से दूर एक नए परिवेश में सदा के लिए भेज देना एक चिंता का भाव भी उत्पन्न करता है। क्या उसे वहां अपनाया जाएगा ! अपनों का प्यार दिया जाएगा, कैसे रहेगी वह हमसे दूर जिसे दुनिया की बुराइयों से बचाए सदा अपनी नजर के सामने रखा । कहीं अपनेपन की जगह वहां उसे दुख, क्षोभ, पीड़ा, उलाहना, षड्यंत्र, साजिश.. को ना झेलना पड़े।
साथ ही बेटी की विदाई मां बाप के लिए एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी होती है, अगर इसमें जरा भी देरी हो जाए तो समाज के उलाहने सुनने पड़ते हैं। इस कारण कुछ मां-बाप बेटी को बोझ भी समझने लग जाते हैं क्योंकि जिस समाज में वो अपनी बेटी को ब्याहने जाते हैं वहां उन ऑक्टोपस की फैली बांहों की मांगो को भरने में अगर वो असमर्थ होते हैं तब या तो वे खुद दम तोड़ देते हैं या फिर उन ऑक्टोपस की बांहों में जाकर वो बच्ची दम तोड़ देती है।
... डोली में बैठी दुल्हन के इस सुखमय और आनंदित दृश्य के पीछे इतना हृदय –विदारक और क्रूर दृश्य भी हो सकता है इसका विचार मात्र भी हमें द्रवित कर देता है !
जुदाई की इस पीड़ा और मिलन की खुशी के बीच की इस अहम कड़ी को हम अपने सत् विचारों और सद्भावनाओं से हमेशा के लिए सुखमय बना सकते हैं।
अंततः हमारी इस मानवीय समाज से इसी मानवता की आशा है कि इस सुंदर और मनभावन दृश्य की सुंदरता में चार– चांद लगाने का प्रयास करें इसे कुरूपता का वेश ना दें ...