ढूंढो अपनी पहचान
ढूंढो अपनी पहचान
“टिंग टोंग, टिंग टोंग, डॉग …..” अलार्म क्लॉक बज रही थी। सुबह के 5:30 बजे थे। “अरे कोई इसे बंद क्यों नहीं करता?" सुभाष नींद में बड़बड़ा रहा था। सरिता ने बाई आंख खोल कर घड़ी की ओर देखा। “हाय! अभी तो सोई थी ,सुबह इतनी जल्दी कैसे हो गई? थोड़ा और सो जाती हूं सिर्फ 5 मिनट” अपने आप से कहती सरिता ने आंखें बंद कर ली।
डिंग डोंग डिंग डोंग.. की आवाज सुनकर सरिता झटके से उठकर बिस्तर पर बैठ गई। उसने मुड़कर घड़ी की तरफ देखा 6:45 बज रहे थे। हे राम! दूध वाला भी आ गया।
आज तो मैं बहुत देर सो गई । अब नाश्ता कैसे बनेगा? बच्चों को आधे घंटे में तैयार कैसे करूंगी? इसी उधेड़बुन में सरिता बिस्तर से उठी, जल्दबाजी में उसने चप्पले उल्टी पहन ली और धड़ाम से फर्श पर जा गिरी। हाय! मर गई। कहती हुई फर्ज से उठते हुए उसने अपने पति की तरफ मुड़कर इस उम्मीद से देखा कि शायद वह उठकर उससे पूछेगा कि कहीं उसको चोट तो नहीं लगी । किंतु वह तो मस्त सपनों की दुनिया में खर्राटे मार कर सो रहे थे। सरिता ने खुद को संभाला और दौड़ती हुई दरवाजे पर पहुंची दूध लिया और फिर भागती हुई बच्चों के कमरे में पहुंचकर उन पर चिल्लाने लगी ”अरे ! जल्दी उठो आज बहुत देर हो गई। मैं किचन में जा रही हूं तुम दोनों उठकर तैयार हो जाओ, कहती हुई उसने अपना मुंह किचन की तरफ करा और पलक झपकते ही किचन में पहुंच गई।
क्या बनाऊं, क्या बनाऊं बड़बड़ाते हुए एकदम उसकी आंखों के सामने मैगी के पैकेट नजर आए। जी हां ! वही नूडल्स जो हर मुसीबत के समय , जब खाना बनाने का टाइम ना हो या फिर काम से जी चुराना हो तो ऑल टाइम फेवरेट स्नेक बनके प्रकट हो जाती है। सरिता ने एक क्षण की भी देर न करते हुए मैगी के 4 पैकेट खोल के फटाफट पानी डालकर चढ़ा दिए।
इधर मैगी उबल रही थी उधर सरिता दौड़ती हुई बच्चों के कमरे में पहुंची सुरीली और वैभव नहाकर बाहर आ गए थे। बच्चों को तैयार देखकर उस सरिता थोड़ी राहत मिली।
सुरीली जल्दी कंगी लेकर इधर आ जाओ। आज तो सरिता को सुरीली की चोटियां बनाना भी आफत लग रहा था।।“ काश मैंने इसके बाल कटा दिए होते तो फटाफट कंगी करती और बस काम खत्म” सोचती हुई सरिता ने जैसे-तैसे सुरीली की टेढ़ी-मेढ़ी दो चोटियां बना दी।
तभी उसे याद आया कि मैगी तो सिर्फ 2 मिनट में झटपट तैयार हो जाती है। वह दौड़ती हुई वापस किचन में पहुंची। “बाल-बाल बच गई और 10 सेकेंड लेट होती तो तो भगवान ही मालिक था।“ सोचती हुई सरिता पसीने से नहा चुकी थी। आज तो योगा क्लास में नहीं जाऊंगी सरिता ने अपने मन में कहा।
पीपीपी, मोड से गाड़ी के होरन की आवाज सुनाई दे रही थी। चलो, चलो , तुम्हारी स्कूल की वैन आ गई है, चलो भागो। सरिता ने जल्दी से दोनों बच्चों के टिफिन उनके बैग में डालते हुए उनसे कहा।
“अरे सरिता मेरा नाश्ता तैयार कर दो, मैं नहाने जा रहा हूं” कहता हुआ सुभाष बाथरूम में चला गया। उफ! मेरी कमर! सरिता ने अपनी कमर पर हाथ रखते हुए दर्द महसूस किया। पर करती भी तो क्या वापस किचन में पहुंचकर फटाफट गोभी की सब्जी बनाने लगी और दूसरी तरफ रोटियां सेंकने लगी।
“मेरी शर्ट और पेंट दे दो “सुभाष चिल्ला रहा था। सुभाष को उसके कपड़े पकड़ने के बाद सरिता ने उसका नाश्ता टेबल पर रखते हुए टिफिन भी टेबल पर ही रख दिया। “अच्छा अब चलता हूं “कहता हुआ सुभाष ऑफिस के लिए निकल पड़ा।
सरिता अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त हो गई। बर्तन, झाड़ू-पोछा और कपड़े करते हुए कब 2:30 बज गए उसे तब पता चला जब बच्चे शोर मचाते हुए वापस घर आ गए। “मां खाना दो बड़ी भूख लगी है।" दोनों चिल्ला रहे थे।
सरिता रोज सोचती थी, कि आज मैं अपने लिए समय निकाल लूंगी लेकिन कब सुबह से दोपहर और कब दोपहर से रात हो जाती उसे पता ही ना चलता। कभी-कभी तो उसे लगता जैसे कि वह है आधा इंसान और आधा मशीन का रूप ले चुकी है।
बच्चों को खिलाना-पिलाना, पढ़ाना ,कपड़े धोना फिर सूखे कपड़ों को इस्त्री करना, सारे कपड़ों को अपनी जगह ठिकाना, बर्तन धोना और फिर दोबारा खाने की तैयारी में लग जाना। बस यही थी उसकी दिनचर्या और उसकी पहचान सिर्फ एक ग्रहणी की।
आज सरिता कुछ उदास थी। उसे कुछ अधूरापन सा महसूस हो रहा था। तभी ना जाने सुरीली को कहां से सरिता के हाथ की पेंट करी हुई एक बहुत सुंदर बेडशीट मिल गई। वह दौड़ती हुई अपनी मां के पास पहुंची और” मां, मां देखो यह कितनी सुंदर है ।यह आपने ही पेंट करी है ना?”
सविता को जैसे सारी बुरी बातें याद आ गई। सुरीली ने उसे एहसास दिलाया कि वह कितनी सुंदर पेंटिंग करती थी । परंतु रोजमर्रा की उलझनों में फंस कर वह अपने आप को और अपनी पसंद को जैसे भूल ही गई थी। सरिता का उदास चेहरा एकदम से चमक गया। वह उस बेडशीट को सीने से लगाते हुए बोली। हां, सुरीली यह बेडशीट्स मैंने अपनी मां के साथ मिलकर बनाई थी।
“मां, यह पेंटिंग तो बहुत सुंदर है। मुझे भी आपके साथ पेंटिंग करनी है।“सुरीली दौड़ती हुई अपने कमरे से स्केचबुक और रंगों का डिब्बा ले आई। आज सरिता को अपना अधूरापन पूरा करने का साथी मिल गया था। वह बहुत खुश थी । दोनों बेटियों ने मिलकर बहुत सुंदर उगते हुए सूरज की सीनरी बनाई। असल में यह उगता हुआ सूरज सरिता के जीवन के आधे इंसान को पूरा इंसान बनाने का प्रतीक था।
"बेटा, जिंदगी में चाहे तुम कितनी भी व्यस्त क्यों ना हो जाओ , लेकिन अपनी इच्छाएं मार कर मत जीना। अपनी खुशियों के लिए समय अवश्य निकालना" सरिता ने सुरीली को प्यार से समझाते हुए गले से लगा लिया और उसे धन्यवाद कहा।
