डायरी जून 2022
डायरी जून 2022
उखाड़ दिया
सखि,
एक कहावत तो सुनी होगी कि जो जैसा बोता है वह वैसा ही काटता है। यह बात सब लोग जानते हैं मगर मानते नहीं हैं। लोग इतने मतलबी हैं कि जब मौका मिलता है तो गधे की तरह दुलत्ती झाड़कर वे अपने ही मालिक को नीचे गिरा देते हैं। इस संसार में कोई अपना नहीं है। सब मतलब के हैं। जो अपने नजर आते हैं वे अपने नहीं होते। यह एक मायाजाल है बस , और कुछ नहीं। अगर मेरी बात मानो तो यह गलतफहमी अपने दिल से निकाल देना सखि, कि कोई अपना है। आजकल तो पत्नी भी अपने पति का कत्ल कर देती है। बेटा अपनी मां की हत्या कर देता है और लोग तो पैसे के लिए पता नहीं क्या क्या कर जाते हैं ?
सखि, आजकल विश्वासघात के किस्से एक से बढ़कर एक सुनने को मिलते हैं। हमने महाराष्ट्र में देखा ही है सखि। मैं एक कहानी सुनाता हूं आज आपको। फिर बताना कि क्या सही है और क्या गलत ?
एक मौहल्ले में एक गुंडा बहुत बदमाशी करने लगा था। लोग उस गुंडे से परेशान हो गये थे। तो एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा कि ऐसा करो तुम सब मिलकर सरपंच के पास जाओ। सरपंच साहब उस गुंडे को जरूर सबक सिखाएंगे। बेचारे गांव के लोग सरपंच के घर शिकायत लेकर पहुंच गये।
सरपंच के घर जाकर क्या देखते हैं कि वह गुंडा तो सरपंच साहब के घर पर बैठकर भोजन कर रहा है और सरपंच की घरवाली उसे बड़े प्रेम से भोजन करा रही है। उसका आदर सत्कार ऐसे हो रहा था कि जैसे वह उनका दामाद हो। यह दृश्य देखकर सारे गांव वाले चकरा गये। वे समझ गए कि सरपंच क्या सबक सिखायेगा इसको ? वह तो खुद इसकी आवभगत कर रहा है। तब भीड़ में से एक युवक ने गरज कर कहा कि वह इसे सबक सिखाएगा। वह युवक हीरो बन गया। लोगों ने उसका नाम रख दिया शेर।
उस युवक ने अपने जैसे कुछ युवकों को इकट्ठा किया और एक "सेना" बना ली। अब वह सेना उस गुंडे से लोहा लेने लगी थी। गुंडे की गुंडई अब कम हो गई थी और शेर की धाक बढ़ने लगी थी। ये शेर ही था जिसे लोग अपना मसीहा समझने लगे थे।
थोड़े दिनों बाद मौहल्ले में एक और युवक आ गया। उसके ललाट पर तिलक लगा हुआ था। गुंडे ने तिलक लगाने की मनाही कर रखी थी मगर इस युवक ने कोई परवाह नहीं की। शेर और इस तिलकधारी के विचार आपस में मिलते थे। लोगों को इकठ्ठा करके तिलकधारी ने एक "पार्टी" बना ली थी। गुंडे को पराजित करने के लिए "सेना" और "पार्टी" दोनों मिल गए और उस गुंडे का प्रभाव बहुत सीमित कर दिया। गुंडे ने भी अपनी ओर "सरपंच" को मिला लिया था। गांव में अब दो खेमे बन गये। एक खेमा "सेना" और "पार्टी" का था तो दूसरा "गुंडा" और "सरपंच" का खेमा था।
दोनों खेमों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई । सेना और पार्टी ने मिलकर गांव में चुनाव लड़ा और गांव वालों ने उन्हे भारी बहुमत से जिता भी दिया। मगर "सेना" के उस शेर युवक के मन में बेईमानी आ गयी। वह "पार्टी" का बरसों पुराना साथ छोड़कर गुंडा और सरपंच के खेमे में जा मिला और "पार्टी" को ठेंगा दिखा दिया। सब गांव वाले ठगे से रह गये। जिनकी हराया था उनके साथ शेर मिल जाएगा, यह तो सोचा ही नहीं था। मगर ऐसा हो गया था। यह तो वैसा ही हो गया कि कोई पत्नी अपने पति को छोड़कर उसे आए दिन छेड़ने वाले एक "छिछोरे" के संग भाग जाये और बेचारा पति ठगा सा देखता रह जाये और गाता रह जाये
तूने दिल मेरा तोड़ा, कहीं का ना छोड़ा
सनम बेवफा , ओ सनम बेवफा
अब जब "शेर" के हाथ में सत्ता आ गई तो वह बौरा गई । उसने सत्ता के मद में चूर होकर क्या क्या नहीं बका ? उसका एक "जोकर" रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर करके बताया करता था कि उसने आज इसका "उखाड़" दिया और कल उसका उखाड़ देगा। अब वो क्या उखाड़ेगा, कैसे उखाड़ेगा ये किसी को नहीं पता। हां , सुना है कि किसी अभिनेत्री का भी कुछ उखाड़ दिया था उसने। गांव में अब "उखाड़ संस्कृति" का बोलबाला हो गया था।
लोग कहते हैं कि उसके राज में दो साधुओं की भी पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी और वह "शेर" दुम दबाए बैठा रहा जबकि वह साधुओं की रक्षा करने वाला बताता था खुद को। उसी की पुलिस की मौजूदगी में साधुओं को पीट पीटकर मार डाला गया। मजे की बात तो यह है कि आज तक उन अपराधियों का कुछ अता पता नहीं चला है।
वो "जोकर" कभी प्रधानमंत्री जी को गाली देता था तो कभी किसी अभिनेत्री को "हरामखोर" भी कह देता था। एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के एक नामी गिरामी पत्रकार को एक झूठे केस में फंसाकर उसने जेल भी भेज दिया। उसके अलावा शेर के राज में खुलकर गुंडई होने लगी थी। जिस गुंडागर्दी के विरोध में वह खड़ा हुआ था , आज उसके ही समर्थन में वह दिख रहा था।
इस "गुंडा सेना" ने ढाई साल में जो लूट मचाई है, वह किसी से छुपी हुई नहीं है। कितने लोगों को जबरन जेल भेजा गया, इसका कोई हिसाब ही नहीं है।
कहते हैं कि पाप का घड़ा तो एक दिन फूटता ही है। तो आज वह घड़ा फूटने को है। जैसे सेना के बल पर शेर कूदा करता था वह सेना ही उसे छोड़कर भाग गई । अब शेर अकेला रह गया। अब तिलकधारी की "पार्टी" ने तथाकथित शेर को "उखाड़" दिया है। अब इनको रोने को मजदूर तक नहीं मिल रहे हैं। इनके कुछ साथी जेल की रोटी तोड़ रहे हैं कुछ और साथी जेल जाने वाले हैं। वे अभी से जेल की प्रैक्टिस कर रहे हैं।
तो सखि, एक बात ध्यान रखना। बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है। इसलिए किसी का अगर भला नहीं कर सको तो कम से कम बुरा तो मत करना। वर्ना अखबारों में छपता फिरेगा "उखाड़ दिया"। क्यों सखि, सही है ना ?
अच्छा, तो अब चलते हैं सखि, कल फिर मिलेंगे। बाय बाय
