दान
दान


बरसों पुरानी बात है, हमारी कोठी की बाउंड्री वाल दाऐं हाथ वाली दूसरी कोठी से मिलती थी। उसमें में रहते थे सटैटिकस के प्रोफ़ेसर व उनकी पत्नी। उसी कालेज में, जिस कालेज में हम भी पढ़ते थे और हमारे पापा भी प्रोफैसर थे, बगल वाले को सब संत जी के नाम से जानते थे। उनके घर में बड़ा सा मंदिर था जिसमें भव्य संगमरमर की मूर्तियाँ थी।जन्माष्टमी को रात १२ बजे ताईजी - ताऊजी ( उस समय दाऐं हाथ की कोठी वाले ताऊजी - ताईजी और बाऐं हाथ की कोठी वाले, चाचा जी - चाची जी , ये ही संबोधन होते थे ) भोग लगाते आरती करते तब हम भी उनके यहाँ से प्रसाद लेकर व्रत खोलते थे।
वे वि:संतान थे, काफ़ी वृद्ध होने लगे तो अकेलापन खटकने लगा और उनकी पत्नी ने अपनी बहन का लड़का गोद ले लिया था। बहरहाल आज उनकी याद आई किसी और कारण से, ताईजी अक्सर मेरे से अमरूद के पेड़ की छाँह में, मैं इस तरफ़, वे उस तरफ़, बात किया करते थे। अधिक बात तो नहीं होती थी। कभी -कभी वे अपने बाग़ीचे के फूल पौधे की हिदायत देने बाहर होती और मैं भी शायद अमरूद की तलाश में अमरूद के पेड़ पर चढनें की फ़िराक़ में, दाएँ हाथ की बाऊंडरी वाल पर दिख जाती, तो वो कुछ - कुछ बातें किया करती। सादी खद्दर की सीधे पल्ले की धोती, कुर्ता टाईप बलाउज, सच तो यह है कि धोती पूरी सिर पर ढकी होती थी, , आज दिमाग़ पर ज़ोर डालने पर भी वो कैसा ब्लाउज़ पहनती थी याद नही कर पा रहीं हूँ ! बहुत गोरा रंग किंतु कोई चेहरे मोहरे की तरफ़ देखने लायक कुछ भी नहीं,मैं शायद बी . ए. में पढ़ती थी। एक दिन पता नहीं किस बात का सिल -सिला था ,उस सिलसिले का छोर पकड़ने की बहुत कोशिश की पर याद नहीं आ रहा बस जो याद रहा वो इस प्रकार था।
शायद दान पर चर्चा हो रही थी ,अपुन को इस विषय में कोई ख़ास ज्ञान नही था। सिवाय इसके कि पापा बताते थे कि ,हमारे बाबाजी ज़मींदार थे। ज़मींदार की छवि तो तनिक भी अच्छी नहीं थी, हमने उनके जुलमों सितम के बारे में पढ़ा भी था और फिल्मों में देखा था । परंतु पापा कहते थे वे ‘जोगी ‘के नाम से प्रसिद्ध थे, वे बहुत दयालु व दानी थे।, अब दान के बारे में इतना ही सीमित ज्ञान था।
हॉ, तो वे दाएँ हाथ वाली कोठी की ताईजी मुझसे “ दान “ क्या होता है बता रही थी, वे बोली, ‘ बीबी ‘(वो मुझे ' बीबी' संबोधित करती थी, पता नही क्यों ?) बीबी दान वो नही होता कि आपके पास हज़ार, सौ, हो और आप दस- बीस दे - दें ! “
“ तो फिर ? “ सोचा क्या ताईजी हरीशचंद्र की या दानवीर कर्ण की कथा सुनाने वाली है।
वे बोली, “ दान हमारी सास ने किया था।”
“वो क्या और कैसा था ? “ मेरी उत्सुकता बढ़ी।
वे बोली “ दस जोड़ी दामन में से एक जोड़ी दे देना दान नहीं है, मेरी सास के पास दो जोड़ी दामन थे —-.”
‘दामन’ क्या होता है ? यहॉ ये बताना ज़रूरी है, मैं वाकिफ थी इस terminology से| आज का युग इस वस्त्र को नही चिन्हेगा। पहले बहुत समय पहले हमारी दादी पहना करती थी। लहंगा और पेटीकोट के बीच का परिधान होता था , कुरता व् ओढ़नी मिला कर एक जोड़ी दामन बनता था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहना जाता था और शनैः शनैः इसका चलन ख़त्म हो गया और स्त्रियां ,धोती / साड़ी पहनने लगी।
वे बता रहीं थी ,
“ हमारी सास के पास सिर्फ़ दो जोड़ी दामन थे और एक दिन कोई भिखारिन उनकी ड्योढ़ी पर आई, उसके कपडे फटे थे , उसकी दरिद्रता देख कर,उन्होंने अलगनी से उतार कर अपना दामन उसे दे दिया था, ये होवे है दान, बीबी इसे कहवे है दान।” उनकी आँखों में चमक थी। यह वृतांत मैं आज तक नहीं भूली हूँ।
करोना के चलते देश में बदहाली , श्रमिको तथा कपड़ा कारीगरों की दुर्दशा के समय बहुत से लोग दान आदि कर रहे है।कोई राशन का प्रबंध कर रहा है कोई प्राइम- मिनिस्टर राहत कोष में राशि जमा कर रहा है , और कोई ,डाक्टरों के लिए जरूरी सामान खरीदवा रहा ही।
मेरे अपने घर में जोगी बाबाजी की दानी फितरत का डी एन ऐ ( DNA ) कुछ - कुछ दृष्टि टिगोचर हो रहा है। यद्यपि दाऐं हाथ की कोठी वाली ताईजी की सास जैसा नहीं।