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चिड़िया

चिड़िया

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ऊँची उड़ान, खुले आसमान की चाह में,
छोड़ जंगल का घर, चिड़िया आ गयी थी शहर, 
पर शहर आकर, चिड़िया डर गयी है,
उसके उड़ने की आरज़ू, मर गयी है,
चिड़िया जान गयी है, यहां गली-गली में शिकारी हैं,
बहरूपिये सदाचारी हैं,
जाने कब कहां से कोई आ के उसे दबोच ले,
जाने कब कोई उसके मुस्कुराते पंख नोच ले,
अब चिड़िया नहीं चाहती आज़ादी,
नहीं चाहती खुला आसमान, नहीं चाहती पंख
अब उसे सूरज के उजालों से, कहीं ज्यादा रोशन लगता है,
पत्तों के झुरमुट का अँधेरा,
खुली हवाओं से ज्यादा सुकून देती हैं,
उसे तिनकों के घोंसले की चुभती दीवारें,
चिड़िया सचमुच बहुत डर गयी है,
मैंने बहुत दिनों से उसे नहीं देखा,
लगता है, वो फिर से, 
अपने जंगल वाले घर गयी है । 

 

 


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