Aravind Singh

Tragedy

4.7  

Aravind Singh

Tragedy

॥ छल ॥

॥ छल ॥

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321


हर दिन की तरह आज भी मैं, सुबह, सुबह खेल के मैदान की तरफ बढ़ ही रहा था कि, पीछे से घबराहट भरी आवाज़ मेरे कानो पर पड़ी, मै उस आवाज़ को नजरअंदाज करते हूए आगे को बढ़ना चाहा, परन्तु वो आवाज़ मेरा ही नाम लेकर पुकार रही थी, अब चूकि वो आवाज़ मेरे लिए हि आ रही थी, तो मैं रूककर पीछे मुड़ा, पीछे की तरफ देखकर स्तभ्ध सा रह गया, मैंने देखा कि जतिन, मुझे रुकने के लिए आवाज़ लगाता हुआ मेरी तरफ दौङता हुआ आ रहा था ।


मैं, उसको इस तरह से अपनी तरफ आते हुए देख थोड़ा घबरा सा गया, तथा किसी अनहोनी से आशंकित हो ऊठा, क्योकि जतिन अकारण सुबह के लगभग ५ बजे उठकर इस तरह से आने वालो में से नहीं था, वो हमेसा हि, दिन चठने तक सोता रहता, तथा क्लास में भी लेट ही पहुँचता था, न जाने कितनी क्लासें उसने अपने इसी आलस्य के वजह से छोड़ दी, वो जतिन आज इतना सुबह सुबह दौड़ते हुए अगर मुझे रुकने के लिए आवाज़ लगा रहा है,तो निश्चय ही किसी न किसी अनहोनी के तरफ इशारा ही है, इन्ही खयालो में डूबे हुए मैं जतिन के पास आने तक ठिठक सा गया ।


जतिन के पास आते ही, मैं आशंकित नजरों से देखते हुए घबराहट भरे आवाज़ में पूछा, तो जतिन ने हाँफते हुए इसारो से सब कुछ ठीक बता रहा था, परन्तु जतिन के इन बातो से मेरे मन को तसल्ली नहीं हो पा रहा था, फिर भी मैं जतिन के बातो से सहमत होते हुए पूछा कि, फिर ये सुबह सुबह तुम कैसे दौड़ लगा रहे हो, तुम्हारा तो सो कर जागने का समय भी नहीं हुआ है, तब जतिन हॅसते हुए जबाब दिया कि, अब से वो भी मेरे साथ प्रतिदिन इस समय जगकर खेल के मैदान में चला करेगा, इतना सुनकर मेरे मुँह से अनायास ही निकल पड़ा कि,आज लगाता है सुर्यदेव पश्चिम में उदित होंगे, और देखते है कल भी वो पश्चिम में ही उदित होते है, या फिर अपनी यथास्थित बना लेते है, और फिर हम दोनों जोर से ठहाका लगाकर हस पड़े ।


यह दिनचर्या काफी दिनों से चलती रही, अतः अब मुझे जतिन की आदत सी पड़ गयी, कभी अगर थोड़ा सा भी वो आने में लेट करता तो मै उसके इंतजार में रुका ही रहता, उस दिन से करीब करीब ७ से ८ महीने बाद एक दिन जतिन का इंतजार करते करते मै खेल के मैदान में नहीं जा पाया, वो न तो सुबह खेल के मैदान में आया और न ही वो यूनिवर्सिटी में मिला, मुझे लगा कि हो सकता है कही गया हो या फिर कोई अचानक कार्य पड़ गया होगा, लेकिन जब अगले सुबह फिर से जतिन नहीं आया तो मुझे उसकी चिंता सताने लगी ।


धीरे धीरे २ से ३ दिन निकल गए लेकिन, जतिन ना तो शुबह खेल के मैदान में मिल रहा था और ना ही यूनिवर्सिटी में, अतः मैंने यह निश्चय किया कि यूनिवर्सिटी से लौटते समय मै, उससे मिलते हुए ही अपने कमरे पर आऊंगा, ताकि कारण का पता लग सके ।


अतः मै, यूनिवर्सिटी से निकलकर सीधा जतिन के कमरे तक पंहुचा, और बाहर से ही जतिन को आवाज लगाया, परन्तु अंदर से कोई उत्तर न मिलने के वजह से, थोड़ा आशंकित मन से जतिन के कमरे के गेट को खटखटाया, और फिर से थोड़ा ऊंचे स्वर में आवाज लगाया, आवाज़ लगाने के थोड़े अंतराल बाद जतिन ने दरवाजा खोलकर मुझे अंदर प्रविस्ट होने को बोला,तथा सामान्य दिखने कि कोशिस करते हुए मुझे अंदर आकर बैठने को बोला, परन्तु उसके हाव भाव और बातो में असमानता साफ़ सी दिख रही थी ।


स्थिति को समझने कि कोशिस करते हुए मै, जतिन से पूछ बैठा कि, "भाई कोई परेशानी तो नहीं है, २ - ३ दिनों से तुम दिखाई नहीं दे रहे हो, सब सामान्य तो हैं न ...?", इसपर असामन्य होते हुए भी जतिन ने सब ठीक होने का बात कह मेरे लिए चाय बनाने लगा, थोड़ी बात आगे बढ़ाते हुए फिर से मैंने उससे पूछा कि, "फिर कल सुबह ठीक समय से मिलोगे", यह सुनकर जतिन थोड़ा ठिठक सा गया, और कुछ छुपाने कि कोशिश करने लगा ।


अब तक मै समझ चूका था कि, मामला कुछ गंभीर है, अतः मै, जतिन से सीधे शब्दों में पूछ लिया कि, सही सही बता दो नहीं तो मै फिर यहाँ से चलू अपने कमरे की तरफ, मेरे इस वाक्य को सुनकर जतिन थोड़ा रुआंसा सा हो गया, तत्पश्चात बोला, "भाई मै आपसे नजरें नहीं मिला पा रहा हूँ, क्योकि मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है, और अगर मै आपको सब सही सही बता दूंगा तो सायद आप कभी भी मुझसे बात नहीं करोगे, अतः आप अभी मुझे अकेला छोड़ दीजिये ।"


थोड़ा शांत चित से मैंने, जतिन से वादा किया कि मै, उससे नाराज नहीं होऊँगा अगर वो सब कुछ सही सही बता देगा तो, इतना सुनते ही जतिन फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगा, रोते रोते बोला कि, "भाई मै आरती को बहुत पसंद करता हु, चुकी वो आपसे बात करती रहती है और मेरी तरफ देखती तक भी नहीं,अतः मुझे ये सक था कि,आप दोने एक दूसरे को पसंद करते हो, अतः मै आपसे जलन कि, भाव रखने लगा और तो और जितनी बार आप मुस्किलो में पड़े हो, वो सब का कारण मै ही था, मैंने आपको बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, परन्तु जब मुझे पता चला कि आरती आपके जान पहचान कि है, तो मुझे बहुत ही आत्मग्लानि होने लगी, और अब मै आपसे नजरें नहीं मिला पा रहा हु ।"


जतिन के इन बातो को सुनकर मनो मेरे पैरों तले ज़मीन ही खिशक गयी, मै स्तभ्ध सा शून्य में खो गया, और मेरे पैर अनायास ही वहाँ से वापस हो लिए, आरती जिसकी शादी मेरे ही एक परम मित्र के साथ तय थी, और मै उसे शुरू से ही भाभी बोलता था, उसके लिए जतिन ने इस कदर षड्यंत्र रचा, और मुझे भनक तक नहीं लगने दिया, ऐसा वविश्वास घात और छल सहन करने की मुझमे हिम्मत नहीं थी, मैं अपना वादा तोड़ चला .....॥


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