चेहरा
चेहरा
बार-बार समझाने के बावजूद जब विभा ने उसकी बात नहीं मानी तो जाने-माने साहित्यकारों के सम्मान समारोह में आमंत्रित प्रथम पंक्ति में अपनी सहेली के साथ बैठी हुई आभा अकेली ही उस मंच की ओर बढ़ गई जहाँ पीछे की तरफ कार्यक्रम के कार्यकर्ता साहित्यकारों को निर्धारित शुल्क पर हर श्रेणी के सम्मान बेचकर आगे मंचासीन करवा रहे थे। कुछ ही देर में आभा हाथ में श्रीफल, गले में गुलहार और कंधों पर शॉल लपेटे गर्व से सिर ऊँचा किए हुए ओजमय चेहरा लिए विभा के पास पहुँच गई लेकिन विभा ने उसे देखकर ऐसी मुखमुद्रा बनाई जैसे उसे पहचाना ही नहीं। वो विभा को झिंझोड़कर बोली-
“तुम्हें क्या हुआ सखी, देखा नहीं कि मेरा कितना सम्मान हुआ? इंटरव्यू, कविता पाठ की वीडियो रिकार्डिंग, आहा! मन को कितना सुकून पहुँचा, तुम भी चलती तो...”
विभा ने चुपचाप अपना बैग खोला और एक छोटा सा आईना निकालकर आभा के सामने करके बोली-
“यह क्या तुम्हारा ही चेहरा है आभा?”