गृह-प्रवेश

गृह-प्रवेश

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“मित्रवर! कल हमारे गृह-प्रवेश के शुभ अवसर पर आयोजित स्नेह-भोज में तुम्हारी सपरिवार उपस्थिति अनिवार्य है...” कहते हुए विमल ने एक सुंदर सा निमंत्रण-पत्र कमल की ओर बढ़ा दिया।

“अवश्य मित्र, तुम्हारी खुशी में शामिल होने मैं न आऊँ, यह कैसे हो सकता है?” मुस्कुराते हुए कमल ने उत्तर दिया।


एक ही दफ्तर में एक जैसे पद पर कार्यरत विमल और कमल में गाढ़ी मित्रता थी। दोनों के विचार काफी मिलते थे केवल एक ही बात पर मतभेद था-रिश्वत लेना… न लेना।

अति सुंदर और सुसज्जित महलनुमा भवन के उदघाटन के बाद कमल ने नम्रतापूर्वक शुभकामनाओं के साथ लाए हुए उपहार का पैकेट विमल की ओर बढ़ाकर विदा ली।

उत्सुक विमल ने सबसे पहले उसी का उपहार खोला तो एक छोटा सा दमकता हुआ दर्पण देखकर उसका चमकता हुआ चेहरा विवर्ण हो गया।


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