चाय गर्म टन्न गिलास
चाय गर्म टन्न गिलास
"इंसाँ को मुहब्बत की ज़रूरत है बहुत........"
मलखे चाचा जिन्हें पूरा गांव "चचा" कहकर सम्बोधित करता था और "चाय गरम टन्न" कह कर चिढ़ाता भी था क्योंकि मलखे चचा को चाय से बहुत चिढ़ थी। इसी कारण जो कोई भी चचा के घर के सामने से गुज़रता "चाय गरम टन्न गिलास" कहकर गुज़रता तो मलखे चचा उस व्यक्ति पर गालियों की बोछार कर देते और सब हँसते हुये भाग जाते। कुछ भले लोग अपने बच्चों को डाँटते भी कि मलखे चचा बूढ़े और कमज़ोर हो गये है। उन्हें चाय गरम टन्न गिलास कहकर चिढ़ाया मत करो। दस मिनट तक लगातार गालियाँ बुलवाकर तुम सब क्यों रोज उनका खून जलाते हो ? यह सुन चचा चिल्लाते- भाग जाओ सब। एक दिन चचा अचानक कहने लगे- अब हम लोग मज़दूरी के लिये दिल्ली जा रहे हैं, फिर सताते रहना इन दीवारों को। यह बात सुन पड़ोस की चाची बोली- काहे.. दिल्ली काहे चचा ? चचा बिना कुछ बोले अपने कच्चे कमरे के फर्श पर पानी छिड़क कर वहीं चुपचाप लेट गये और पंखा डुलाने लगे।
कुछ देर बाद खुसुर-फुसर की आवाज़ ने मलखे चचा का ध्यान भंग कर दिया और वह घर के पीछे लगे आम के पेड़ों के ओर बढ़ चले तो देखकर दंग रह गये कि एक घूँघट में वृद्ध औरत और रूमाल बाँधे अधेड़ आदमी दोनों अश्लील हरकते कर रहे हैं। मलखे चचा ने मन ही मन कहा- घोर कलयुग है, जून की तपती दोपहरी में भी चैन नही ! फिर इधर-उधर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा, तो फिर चचा चुपचाप छिप कर सब देखते रहे। जब वे लोग चले गये तो चचा वहीं कच्चे फर्श पर आकर लेट गये पर उनके मन-मस्तिष्क पर वही अश्लीलता हावी हो रही थी और अब बार-बार देखने को उनका जी करने लगा। पर वह करें भी तो क्या ? लेकिन जब मन ना माना तो उन्होनें मन ही मन वही सब देखना शुरू कर दिया जो वह देखना चाहते थे और बहुत आनंद की अनुभूति में गुम थे कि उनकी पत्नी गाय के सामने घास रखते हुये बोली- खाना नही खाया आपने क्यों ? मलखे चचा आँख बंद किये किसी दूसरी दुनिया में मगन थे। चाची ने हिलाकर कहा, ''सो रहे क्या ?"
मलखे चचा ने आँख खोली और चाची को घूरने लगे और हाथ पकड़ के कुछ बोलते कि चाची ने हाथ झटक कर कहा- कोई लाज शर्म है कि नहीं, उम्र का कुछ तो लिहाज करो। चौके में रोटी सब्जी रखी है खा लेना। मैं गाय को पानी पिला आऊँ।
यह देख मलखे चचा की फैलती महत्वाकांक्षा फिर से मानो सिकुड़ कर वहीं दफ्न हो गयीं।
बाहर चबूतरे पर बैठे मलखे चचा स्वप्नलोक में इस क़दर खोये हुये थे कि गली के बच्चे चाय गर्म टन्न गिलास चिढ़ाकर वहीं खड़े थे पर मलखे चचा लेटे-लेटे मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। मुहल्ले के सभी लोग हैरान थे कि आखिर मलखे चचा जो हमेशा चिड़चिड़े रहते और सभी को खूब गालियाँ देते पर आज इतने शांत क्यों हैं ? रात सभी ने सामान बाँधा और अपनी गाय सामने वाली चाची को सौंप कर दिल्ली ट्रैन से रवाना हो गये। पहली बार दिल्ली शहर की चकाचौंध देख मलखे चचा हैरान रह गये। फिर गली कूचों से होते हुये बताये गये पते पर पहुँचे जो बहुत बड़ा बंगला था। बाहर खड़े गार्ड ने अंदर से बनवारी को बुलाया जो वहाँ बागवानी का काम देखता था। बनवारी, चचा-चाची को देख कर बहुत खुश हुआ और कहा गेट के अंदर आ जाओ चचा । हाँ यहीं..यही काम करना है हम सबको। दोनों सहमे क़दमों से अंदर पहुँचे जहाँ बनवारी ने पौधे कटिंग से लेकर सब काम समझा दिया और एक कमरा भी दिखा दिया कि इसमें मैं मेरी पत्नी और लड़के की विधवा बधू साथ रहते हैं। पास वाले कमरे में आप दोनों रहो। रात को मालकिन आएगी तो मिलवा देंगे। मलखे और उनकी पत्नी दोनों चुपचाप अलग-अलग कोना पकड़ कर लेट गये। रात बनवारी ने कहा कि मालिक-मालकिन आये हुये हैं उस हॉल में हैं तुम दस मिनट बाद जाकर मिल लेना अकेले। मैं सब्जी लेने जा रहा हूँ। मलखे चचा वहीं टहलने लगे और टहलते हुये मालिक से मिलने हॉल में जा पहुँचे। वह अंदर बढ़ते कि मलखे चचा के क़दम अचानक रूक गये और वह वहीं खिड़की पर खड़े हुये अंदर का नजारा देखने लगे कि खूबसूरत भारी बदन की अधेड़ मालकिन अधेड़ मालिक के साथ रोमांस कर रही और लिपटे हुये उन्हें शराब पिला रही हैं। चचा सब देख ही रहे थे कि पीछे से बनवारी ने आकर कहा- बाहर से क्या देख रहे हो चचा। यहाँ ये सब आम बात है। चलो अंदर। मलखे अंदर पहुँचे फिर भी मालिक, मालकिन गले में हाथ डाले रहे, काम समझाते हुये बोले- कर तो लोगे न, बाक़ी बनवारी ने बता ही दिया होगा।
तभी मालकिन उठ कर आयी और चचा के कंधे पर हाथ रख कर बोली- यहाँ आपको कोई तकलीफ नहीं होगी। हम लोग औरों जैसे कठोर नहीं। कहते हुये मालिक के हाथ को पकड़ कर हँसते हुये अंदर कमरे की ओर चली गयीं। मलखे चचा ने कहा- बनवारी ये लोग अच्छे लोग हैं।
तो बनवारी बोला- हाँ चचा।
दोनों कमरे में लौट आये। बनवारी कि विधवा पुत्र वधू ने सभी के लिये खाना परोसा और सब खा पीकर अपने कमरे में जाकर सो गये। आधी रात को अचानक मलखे चचा की नींद खुलीं तो उन्होंने अपनी पत्नि को हिलाया तो वह चिल्ला कर बोलीं सो जाओ चुपचाप यह गांव नही हैं समझे। मलखे चचा मन मसोस कर प्यासी इच्छाओं को सिर पर लादे बाहर निकल टहलने लगे और उनके कदम मालकिन के रूम तक कब बढ़ गये ये उन्हें भी पता न चला। बस चचा चुपचाप रूम की खिड़की से झाँकने लगे और अंदर का नजारा देख उनके पाँव तले जमीन खिसक गयी कि मालकिन बनवारी के साथ हमबिस्तर हैं और दोनों इतने निश्चिंत कि मानो किसी का डर नहीं। चचा काफी देर खड़े देखकर आँखों को सुकून देते रहे पर उनका मन बैचेन हो उठा और वह अपने कमरे की तरफ लौटने लगे कि पेड़ो के पीछे वही खुसुर-फुसुर सी आवाजें सुन मलखे चचा ने पेड़ों की ओट से देखा कि बनवारी की जवान पुत्रवधू और मालिक दोनों प्रेम में डूबे हुये हैं।
यह सब देख मलखे चचा की जिस्मानी हसरतें पूरी तरह जाग उठीं और वह अपने कमरे में आकर दूर लेटी अपनी पत्नी लाजवंती से जैसे ही लिपटना चाहा कि वह चिल्ला उठीं, यह क्या कर रहे हो आप ? शर्म नहीं आती। कुछ तो उम्र का लिहाज़ करो। यह सब सुन मलखे चचा चुपचाप बड़ी मुश्किल से सोने का प्रयास किया। दूसरे दिन सब लोग अपने-अपने काम में लग गये। दोपहर में बनवारी ने कहा- आप सब लोग काम करो। मैं बहू को दवा दे आऊँ। कल मंगवाई थी उसने। मैं देना भूल गया।
यह कहकर बनवारी तेज कदमों से अपने रूम की तरफ बढ़ चला। यह देख मलखे चचा भी चुपचाप बनवारी के पीछे लग गये । मलखे चचा का शक उस समय हकीकत में बदल गया जब उन्होंने देखा कि ससुर, बहू दोनों जिस्मानी सम्बंध बनाने में रत् हैं। काफी कुछ देख मलखे चचा वापस लौट आये और पौधों को पानी देने लगे। पीछे से बनवारी हँसता हुआ आया और बोला कैसे हो चचा ? यहाँ का माहौल तो अच्छा लग रहा न ? मलखे चचा ने पूछा- बनवारी तेरी उम्र क्या होगी तो वह बोला- क्यूँ चचा ? , वैसे 49 पार हो गयी चचा, 50 में लगने वाला है। फिर मलखे ने पूछा और मालिक की कितनी उम्र होगी ? तो बनवारी ने कहा कि मालिक की उम्र 65 वर्ष और मालकिन की 55-60 के करीब होगी, क्यों क्या हुआ ? यह सुन मलखे चचा चुप हो गये तो बनवारी ने पूछा, चचा चुप क्यों हो गये ? तो मलखे ने कहा कि तुम सब पर उम्र का असर क्यों नहीं दिखता और तुम सब इतना खुश कैसे हो ? बनवारी ने कहा कि हम सब खुद को जवान समझ कर जीते हैं और जो मन करता वो करते हैं बस। मलखे ने कहा जो मन करता है से का क्या मतलब ? तो बनवारी कान में बोला कि अपनी पत्नी को हर तरह से खुश रखता हूँ और खुद भी खुश रहता हूँ।
मलखे चचा ने कहा मैं नही मानता ? इस उम्र पर बीवी को छुओ तो वह कहती कि उम्र का लिहाज़ करो। बनवारी ने कहा नहीं चचा प्यार मोहब्बत में उम्र बीच में कहाँ से आ गयी। चचा सेक्स की ज़रूरत तो हर उम्र में होती है। सच कहूँ तो इस उम्र में अधिक। फिर बनवारी ने मलखे चचा को अपने रूम में ले जाकर पर्दे के पीछे खड़ा कर दिया और कहा बोलना मत केवल देखना। पीछे से बनवारी की अधेड़ औरत कमरे में आयी और बनवारी उसे चूमने लगा तो उसकी औरत उसे दुगनी तेजी से चूमते हुये बोली- कि दिन में भी तुमको चैन नहीं यार। तो बनवारी ने अपनी पत्नी को बाँहों में भरकर कहा- जानेमन दिन हो या रात तन की ज़रूरत समय का पाबंद नही होता और यह कहते हुये दोनों एक-दूसरे से लिपट गये जिसे देख कर मलखे चचा धीरे से कमरे से बाहर निकल आये।
कुछ देर बाद बनवारी ने आकर कहा देखा चचा ? पता चला न कि हम लोग बुढ़ापे में भी जवान कैसे हैं, शायद इस लिए कि हम मानसिक रूप से संतुष्ट हैं और आप लोग हैं कि वही पुरानी बातें, दूर-दूर रहना और चिड़चिड़े होकर घुट-घुट कर मर जाते हो। मलखे चचा को बनवारी की बातें अच्छी लगीं क्योंकि यही बातें वह सुनना भी चाहते थे। मलखे चचा दिन-रात स्वप्नों में देखते कि वह मालकिन के साथ रोमांस कर रहे हैं। ध्यान भंग होता तो काम में लग जाते। हर दिन मालिक-मालकिन, बनवारी और उसकी बहू और पत्नी सबको जिंदगी के मजे लेता देख चचा खुद को बहुत असहाय और अकेला महसूस करने लगे। एक दिन मलखे चचा ने सोचा कि बहू और मालिक के नाजायज सम्बन्ध के बारे में आज बनवारी को बता ही दें। बहुत हिम्मत कर मलखे चचा ने बनवारी से कहा कि आजकल शहर में ससुर-बहू के नाजायज रिश्ते बहुत बढ़ चले हैं। यह सुनकर बनवारी ने कहा कि मॉडर्न युग है चचा सबको जीने का हक मिलना ही चाहिए और चचा अगर तुम्हारा इशारा मेरी तरफ है तो साफ सुनो मेरी बहू को हेपटाइटिस बी की गम्भीर बीमारी हैै और वह कुछ महीनों की मेहमान है। यह बात वह भी जानती है। अगर वह मालिक या किसी अन्य के साथ वक्त बिता रही, खुश है तो बुरा क्या है ? गांव में लोग विधवा वधु को जीने नहीं देते। उसे बोलते कि आदमी को खा गयी कमबख्त, अपशगुनी, डायन और उसे किसी पूजा-पाठ और शुभ कामों में बैठने नहीं देते। अनेकों शब्द बाणों से उसे दिन रात ज़ख्मी करके पल-पल मरने को मजबूर कर रखा था और मैंने सोचा दूसरा ब्याह कर दूँ पर लोग पूछते तुम्हारी बहू की सरकारी नौकरी है क्या ? मैं मना कर देता कि वह पढ़ी-लिखी है कोई ट्रैनिंग करवा दो तो लग भी सकती है पर इस लालची और ढ़ोंगी समाज को तो पकी पकायी खीर जो चाहिए थी। बाद में सब बहाना बनाकर पल्ला झाड़ कर चल निकलते। फिर रोज-रोज के तानों से और अपनी इच्छाओं की पूर्ति न होने से वह बीमार हो गयी। तब उसे उसके मायके वालों ने भी रखने से मना कर दिया। जब मैं यहाँ लाया तो मालिक ने इसका बहुत इलाज कराया। अब दोनों दोस्त की तरह हँस खेल कर खुश हैं तो मैं क्यूँ उनकी खुशियों का गला घोट दूँ। हाँ मैं मॉर्डन हूँ। क्यूँकि मुझे पता है कि जिस्मानी जरूरत एक मर्द होने के नाते जितनी मुझे है ठीक उतनी मेरी पुत्रबहू को भी है। यह बात इस समाज को जिस दिन समझ आयेगी तब औरत को सम्मान मिलेगा वरना संस्कारों की दुहाई देकर वह हर पल घुटन से मरती रहेगी और यह समाज उसे देवी थान बनाकर पूजता रहेगा। मैं उसका छिप कर शोषण नहीं करता बल्कि मैं उसकी मर्जी से उसे जिंदा रखने की कोशिश जरूर करता हूँ। इसीलिए मैं शहर आकर खुश हूँ क्योंकि यहाँ कोई किसी की निजि जिंदगी में ज्यादा दखल नहीं देता।
मलखे चचा बनवारी का हाथ पकड़कर बोले- तू सचमुच जी रहा है और जीने भी दे रहा है। हम जैसे दकियानूसी सोच के लोग अपनी सिकुड़ी जिंदगी ढ़ो रहे हैं बस। जिसमें कोई रस नहीं। हम 60 के हो गये तो परिवार क्या पत्नि भी यही समझने लगती है कि हम तो कल ही मर जायेगें मानो। बनवारी ने हँसते हुये कहा कि सही कह रहे हो पर इसमें भी हम पुरुषों की ही गल्ती हैं कारण हमने ही उन्हें ऐसा दमघोटू माहौल दिया। कोई महिला अपनी इच्छाओं को दफ्न करके मर जाये तो संस्कारी और कोई महिला अपनी दिल की सुन कर जी ले तो वह मॉर्डन और कुलक्षणी हो गयी। ये कहाँ का न्याय ? मलखे चचा ने कहा सही कह रहे हो बनवारी। छोटी सी जिंदगी जी भर जियो। तो बनवारी ने कहा- नहीं चचा, जिंदगी छोटी नहीं होती हैं.. लोग जीना ही देर से शुरू करते हैं और जब तक रास्ते समझ में आते हैं तब तक लौटने का वक़्त हो जाता हैं...।
मलखे चचा ने कहा- सही कहते हो बनवारी चलो थोड़ी पी लें चलकर।
बनवारी ने कहाृ- बिल्कुल चचा शाम को चलते हैं। तभी मलखे की पत्नी ने बनवारी की पत्नी से कहा मुझे इशारे से लग रहा यह दोनों दारू पीने जायेगें। चलो रोक दें, चलो झगड़ा करें। बनवारी की औरत ने कहा अरे ! रुको चाची। मर्द हैं दिन भर धूप में काम करते थोड़ी पी लेगें तो क्या जायेगा, कौन सा दिन-रात पियेगें। ज्यादा टोका टाकी रिश्ते बिगाड़ देती है चाची। मलखे की पत्नी बोलीं, दिन भर धूप में हम तुम बहू भी थक गयी तो क्या हम सब भी दारू पियें बोलो ? वह हँसी और बोली पी भी लेगें तो क्या ? चलो रूम पर। तीनों रूम पर पहुँची तो मलखे की पत्नी हैरान रह गयी देखकर जब बनवारी की पत्नी ने तीन गिलास में थोड़ी - थोड़ी दारू डाली और कहा छिपाकर रखी थी। लगा जाओ चाची सारी थकान खत्म। फिर क्या था जबरदस्ती चाची को दारू पिला दी गयी और तीनों ने जी भर के अपनी दिल में छिपे दर्द को बाहर निकाल डाला और कब आँख लग गयी पता ही न चला। दूसरे दिन जब बनवारी की पत्नी ने कहा चची कैसा लग रहा तो चची ने घूरते हुये कहा कि मुझे मॉर्डन नहीं होना। मुझे गंवार ही रहने दो, तुम दोनों ने मिलकर मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया। यह सुन बनवारी की पत्नी जोर से हँस पड़ी। वह दोनों बात कर ही रही थी कि बड़ी सी गाड़ी से मालकिन अपने किसी पुरुष दोस्त की बाँहों में लड़खड़ाते हुये रूम के अंदर चली गयीं।
यह सब कुछ देखना तो बनवारी और मलखे की पत्नी के लिये आम बात हो गयी थी लेकिन यह सब देख कर भी मलखे की पत्नी पूरी तरह खुल न सकी। वह उन जैसा नही बनना चाहतीं थी। इधर चचा मन ही मन मालकिन के सपने देखते पर सोचते कि नहीं यह गलत है और मुझे बनवारी जैसा तो नहीं बनना। मुझे मेरी लाजवंती ही चाहिए पर लाजवंती से प्रेम की उम्मीद बिल्कुल असम्भव थी क्योंकि वह पूजा-पाठ वाली धार्मिक और संस्कारी महिला थी। यह सब सोच मलखे चचा जुगनू की तरह कभी जलने कभी बुझने लगे और अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति न हो पाने के कारण स्वप्नदोष नामक बीमारी से ग्रसित होकर मनोरोगी भी हो गये और मन ही मन टूट कर बिखरते चले गये।
उन्हें तो बस प्यार चाहिए था जो वह किसी से कभी न कह सके। बनवारी सभी को लाफ्टर क्लबों में ले जाता। सब हँसते पर मलखे की पत्नी अपने पति की खराब तबियत के कारण न हँस पाती न खुश रहती और इधर मलखे चचा बिल्कुल खामोश.. मानो पत्थर की कोई मूरत। वह पता नहीं किस दुनिया में गुम रहते किसी को कुछ समझ नही आ रहा था। फिर बनवारी ने उनका काफी इलाज कराया पर डाक्टर उनका दिन- प्रतिदिन गिरते स्वास्थ्य और अचानक रात में उठकर बड़बडाने लगते तो कभी किसी अजीब चीज को देखकर चिल्लाना शुरू कर देते तो कभी बिल्कुल खामोश हो जाते, पर वजह समझने में असमर्थ रहे। परिणामस्वरूप मलखे चचा और चाची गांव लौट आये। गांव में भी सरकारी अस्पताल व तमाम झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज व पाखंडी बाबाबाओं द्वारा जादू टोना सब कर कराने के बाद भी मलखे चचा बिस्तर से न उठ सके। वह इतने बीमार थे कि लोग कहने लगे कि मलखे का जीवन अब जैसे आज मेरे कल दूसरा दिन।
इसी बीच बनवारी का शहर से गाँव आना हुआ और जब मलखे चचा की हालत देखा तो उसे बहुत तरस आया। उसने एक दिन शहर से एक लड़के को लेकर आया और बताया कि यह पास के गांव नगला सुमार का रहने वाला है आज यह बहुत बड़ा मनोचिकित्सक बन गया है इसका नाम है डा. उसमान। मलखे चचा उसे देखते रहे पर कुछ नहीं बोले। इलाज़ के दौरान एक दिन उसमान ने अपने मोबाइल में एक रोमांटिक फिल्म दिखायी तो मलखे चचा ने पूरी फिल्म देखी। उसके बाद उसमान ने एक ब्लू फिल्म लगाकर वहीं रख दी और वह बाहर आकर बैठ गया। मलखे चचा ने जैसे ही अजीब आवाजें सुनी तो मोबाइल उठाकर पूरी फिल्म देख डाली। उसमान अंदर आया तो मलखे चचा हड़बड़ा गये। तो उसमान ने अपनी डायरी निकाल कर कुछ प्रश्न किये जिनका मलखे चचा हाँ और ना में जवाब देते चले गये।
डॉ. उसमान पूरा केस समझते हुए मन ही मन बोले मिल गया इलाज। और अब वह बिल्कुल सही नतीजे पर पहुँच चुके थे कि इनके साथ करना क्या है? उसमान ने कहा चाची जी मेरे साथ आओ। फिर उसमान ने उन्हें सब समझाया और एक सशक्त प्रश्न किया कि तुम्हें सुहाग चाहिए या संस्कार, आज तय कर लो। वह तुरंत बोली मुझे सुहाग चाहिए बस। जो बोलोगे करने को तैयार हूँ बेटा। वह बोला आज शाम मेरी बीवी आयेगी जैसा वो कहे बिल्कुल वैसा करना। वरना हम लोग चाचा जी को हमेशा के लिए खो देंगे। चाची आँसू भर के बोलीं क्या बीमारी है उनको ? तो उसमान ने कहा कि इस बीमारी को हिस्टीरिया कहते हैं। यह मनोरोग है। अक्सर यह बीमारी महिलाओं में होती है पर पुरुषों में भी देखी गयी। इस बीमारी की कोई दवा नही और कोई इलाज नहीं। हाँ बस हिप्नोसिस, साइकोएनेलेसिस द्वारा कोशिश कर सकते हैं। यह सुनकर चाची ने कहा बेटा यह सब मेरे समझ के बाहर है। हाँ तेरी दुल्हन जो बोलेगी वह मैं करूँगी बेटा। तुम बस उन्हें बचा लो। उसमान ने कहा बिल्कुल पूरी कोशिश करूँगा।
इधर मलखे चचा खाट पर लेटे दिमागी फैंटसी की कैद से खुद को आजाद करना चाहते थे पर.. वह हक़ीक़त और स्वप्न मे फर्क नहीं कर पा रहे थे कि यह सच है या सपना। वह लेटे - लेटे कब सो गये पता ही न चला कि अचानक आँख खुली तो सामने शहर की मालकिन को अपने खाट पर अपने करीब बैठा देख वह चौंक गये। तभी वह मलखे चचा पर किसी कॉलगर्ल की तरह टूट पड़ीं और अतिभद्दे शब्द बोलने लगीं और मालकिन की छुअन से मलखे चचा मानो महीनों से आज जाग उठे और मालकिन के हाथ से दारू का गिलास लेकर पीने लगे फिर चचा भी हर गाली हर बुरा शब्द बोलते चले गये। आज दिल की वर्षों पुरानी गाँठें खुल चुकी थी और मन आज़ाद पंक्षी की तरह आज सुकून के आकाश में उड़ रहा था। मानो वर्षों पुरानी कोई माँग आज भरपूर तरीके से पूरी हुई थी। फिर आज जो सुकून भरी नींद आयी उससे रात के मायने ही बदल गये। क्योंकि यह रात मलखे के लिये उनकी नयी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल था। सुबह हुई सूर्य भगवान चचा के सिर पर आ चुके थे, वह उठ बैठे। अब वह ठीक हो चुके थे। सामने खड़े उसमान ने चचा के पास आकर कहा कि कैसें हैं चचा ? तो चचा ने कहा, ''आज की रात मुझे बहुत सुकून की नींद आई और आज मैं बहुत हल्का महसूस कर रहा हूँ...। डाक्टर बेटे तुमने मुझे ठीक कर दिया, भगवान् तुम्हें सदा खुश रखें।
मनोवैज्ञानिक उसमान ने कहा, ''शुक्रिया चचा, पर आपकी डॉक्टर तो आपकी बीवी है यानि मेरी चाचीजी।''
... मलखे चचा चौंक उठे कि यह सपना है या हक़ीक़त। तभी सामने मलखू की पत्नी पानी देते हुये बोलीं क्या बातें हो रही बेटा। मलखे चचा ने कहा उसमान बेटा मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा। तो उसमान ने मलखे चाचा के कान में कहा कल रात आपके साथ कोई मालकिन नही थीं बल्कि वह हमारी यहीं चाची थीं। चाची हमारी उस मालकिन से ज्यादा प्यारी हैं। मलखे ने सामने खड़ी अपनी पत्नी की तरफ देखते हुये कहा पर तुम तो गांव की चुप-चुप रहने वाली लाज की वंती फिर कल रात इतनी अंग्रेजी हिन्दी में अश्वील गाली शब्द कहाँ सीखे तुमने ? वह मुस्कुरायीं और मलखे के कान में रात वाले कुछ रफ शब्द दोहराये जिसे सुन मलखे चचा अवाक् रह गये और फिर जब तक वह कुछ और सोच पाते कि वह बोलीं, आपके साथ शहर मैं भी तो गयी थी यार ... और वहाँ बहुत कुछ मैंने भी तो देखा था...डार्लिंग। मलखे, लाजवंती के मुँह से डार्लिंग शब्द सुनकर सन्नाटे में आ गये और फिर एकाएक जोर से हँस पड़े। फिर वह अपनी पत्नी और उस मनोवैज्ञानिक लड़के डॉ.उसमान से बोले... यह स्वप्न है या हक़ीक़त ? तो चाची और उसमान, चचा के दोनों कान में एक साथ बोले- यह स्वपन नहीं हक़ीक़त है और यही तो इस बीमारी का इलाज़ था।
चाचा... .पर स्वप्न समझ कर यह सब भूल जाओ...! तभी पास के कुछ बच्चे निकले और बोले चचा आप तो ठीक हो गये, चाय पियोगे चचा ? तभी दूसरा बोला चाय गर्म टन्न गिलास। यह सुनकर मलखे चचा ने मुँह भर-भर कर गालियाँ देना शुरू कर दिया। अचानक चचा के मुँह से गालियाँ की आवाज़ सुन पड़ोस के सब लोग दौड़ के आ गये कि अरे! वाह चचा ठीक हो गये। उसमान ने कहा तुम लोग सुधर जाओ समझे, मेरे प्यारे चचा को चिढ़ाया न करो। चलो अब जाओ चचा के लिये चाय ले आओ। तो चचा ने उसमान का गला पकड़ कर कहा,डॉक्टर तुम भी न...! वहीं पास खड़ीं पड़ोस की चाची बोली चचा की गाली में भी अपनापन होता है। महीनों से सन्नाटा पड़ा था मुहल्ले में.... आज रौनक लौट आयी। दूर खड़ी लाजवंती चाची मन ही मन बोलीं आज वर्षों बाद जरूरत लौट आयी और फिर लाजवंती चाची चारों तरफ सबको देखते हुये अंदर गईं और एक छोटे गिलास में चाय लाकर मलखे को देखते हुये कही कि बहुत दिनों बाद आप सबके चचा ठीक हुये तो आज गर्मागर्म चाय हो ही जाये... तो मलखे चचा यह सुन लाजवंती की तरफ गुस्से से देखे और फिर हँसकर बोले कि.. "और टन्न से कुछ हो भी जाये..." तो लाजवंती शर्म से इधर-उधर देखने लगी कि मलखे उसके हाथ से चाय का गिलास लेकर चाय की चुस्की लेने लगे.. यह देख पड़ोस की चाची मन ही मन सोचने लगी कि कल तक जिस चाय से मलखे इतना चिढ़ते थे आज वही चाय, चाह में कैसे बदल गयी ? आस-पास खड़े सभी लोग यही प्रश्न लिये चचा के चबूतरे से उतरते चले गए.... कि अचानक मलखे चचा के हाथ से गिलास गिरने की आवाज़ आई और सभी एकाएक पलट कर देखने लगे कि चाचा चाची में झगड़ा तो नहीं हो गया पर यह देख सब हैरान राह गए कि चचा, लाजवंती चाची के पाँव पर गिरी चाय को अपने अंगोछे से पोछते हुये मजाकिया अंदाजा में कह रहे थे "कुछ तो शर्म करो लाजो...।"