बुरे काम का बुरा नतीजा
बुरे काम का बुरा नतीजा
बुरे काम का बुरा नतीजा
1977 में एक मूवी आई थी "चाचा भतीजा।" धर्मेंद्र और रणधीर कपूर की यह मूवी थी जिसका टाइटल सोंग बहुत प्रसिद्ध हुआ था। "कोई माने या ना माने
सच कह गये हैं लोग पुराने
बुरे काम का बुरा नतीजा
क्यों भई चाचा , अरे हां भतीजा "
हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि जैसी करनी वैसी भरनी। जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। लेकिन शायद लोग इसे भूल गए और "सब कुछ" करने लगे। क्या सही क्या ग़लत ? इसका निर्णय भी खुद ही करने लगे। पाप और पुण्य की परिभाषा भी खुद ही गढ़ने लगे। धन दौलत , प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए "कुछ भी" करने को तैयार हो गए लोग।
सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों ने तो अपने "तथाकथित आकाओं" के सामने ऐसे दुम हिलानी प्रारंभ कर दी कि दुम हिलाने के लिए मशहूर जानवर भी शरमा गया। उसका परिणाम यह हुआ कि नौकरशाही अपना कर्तव्य भूलकर सत्ता की गुलाम हो गई।
अभी हाल के दिनों में एक वीडियो बहुत तेजी से वायरल हो रहा है। उस वीडियो में कुछ पुलिस के अधिकारी , सिपाही एक व्यक्ति को जबरन घसीटकर गाड़ी में धकेलकर पुलिस थाने लेकर जा रहे हैं। वह व्यक्ति कह रहा है कि "मैं नहीं जाऊंगा। नहीं जाऊंगा। मैं ऐसे नहीं जाऊंगा"। और वह व्यक्ति एक थप्पड़ उस पुलिस अधिकारी को धर देता है जो उसे पकड़ कर थाने ले जाने के लिए पुलिस की गाड़ी में बैठा रहा था। उस व्यक्ति के पीछे पीछे उसकी पत्नी भी कुछ कुछ कह रही थी।
अब प्रश्न यह उठता है कि वह आदमी कौन है और पुलिस उसे क्यों पकड़ कर थाने ले जा रही थी और वह आदमी ऐसे क्यों कह रहा था कि मैं ऐसे नहीं जाऊंगा ? यदि ऐसे नहीं जाएगा वो तो फिर कैसे जाएगा ?
इस वीडियो के बारे में जानकारी जुटाना कोई बड़ा काम नहीं रह गया है क्योंकि आजकल सोशल मीडिया पर सब कुछ सामग्री उपलब्ध है। जैसे ही वीडियो खोलते हैं तो यू ट्यूब पर उस जैसे कई और वीडियो सामने दिख जाते हैं। नाम आता है पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर का। थोड़ा आश्चर्य होता है कि एक पूर्व आईपीएस अधिकारी का इस वीडियो से क्या संबंध है ? तो अब गूगल मैडम की सहायता लेकर इन अमिताभ ठाकुर का इतिहास खंगालने बैठेंगे तो पता चलेगा कि सन् 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं अमिताभ ठाकुर। एक पूर्व आईपीएस अधिकारी और उसकी गिरफ्तारी ? और वह भी इस तरह ? एकदम से माथा घूम जाता है। कल तक जो छोटे अधिकारी और सिपाही उसे सैल्यूट करते थे वही सिपाही आज उसे घसीटकर , धकेलकर गाड़ी में बैठा रहे हैं और वह पूर्व अधिकारी कह रहा है कि "ऐसे नहीं जाऊंगा"। कम से कम उनसे तो ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वे इस तरह पुलिस पर ही आक्रमण कर देंगे। अब तक तो हमने यही सुना और देखा था कि आदतन अपराधी , हार्डकोर अपराधी, आतंकवादी , सभी प्रकार के माफिया ही ऐसा काम करते हैं। अब इसमें नया नाम जुड़ गया अमिताभ ठाकुर का।
अब प्रश्न यह उठता है कि वह कैसे जाने की बात कर रहा है ? बड़ी सीधी सी बात है।वह एक पूर्व आईपीएस अधिकारी है और आईपीएस अधिकारियों को पूरे लाव लश्कर के साथ चलने की आदत है। यू चार पांच लोगों के साथ जाने की ना तो आदत है और ना ही वैसा स्टेटस है जैसा होना चाहिए। चूंकि अमिताभ ठाकुर आई जी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। क्षमा कीजिए , सेवानिवृत्त हुए नहीं हैं , किये गये हैं जबरन। मतलब सरकारी भाषा में बोलें तो "अनिवार्य सेवानिवृत्ति" को प्राप्त हुए हैं। एक अधिकारी को अगर जबरन सेवानिवृत्त किया जाता है तो उससे अंदाज लगा लीजिए कि वह कैसा होगा ? गूगल पर इनका बहुत सारा इतिहास भी स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। इसलिए यहां पर ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं हैं।
सन 2015 में ये तब बहुत चर्चित हुए थे जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फोन करके इन्हें कहा था कि " नैक सुधर जाओ। नहीं तो हम तुम्हारा हाल 'जसराना' से भी बुरा करेंगे"।
दरअसल 'जसराना' के तत्कालीन विधायक रामवीर सिंह यादव ने अमिताभ ठाकुर के साथ हाथापाई की थी। उस वीडियो में मुलायम सिंह यादव साहब एक तरह से धमकी दे रहे थे कि 'जसराना' में तो केवल हाथापाई ही हुई थीं अब वे इससे ज्यादा करेंगे। उस समय के सपा विधायक गायत्री प्रसाद प्रजापति को छुड़वाने के लिए वे कह रहे थे। इस प्रकार अमिताभ ठाकुर साहब प्रारंभ से ही चर्चा के केंद्र में रहे हैं।
इनकी खासियत यह भी है कि उन्होंने अपने घर के बाहर जो नाम लिखवा रखा है उसमें "जबरिया सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी" भी साथ में लिखवा रखा है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने घर के बाहर एक पट्टिका भी लगा रखी है जिस पर लिखा है "कोई महिला अकेली घर में प्रवेश ना करे।" बड़ी चौंकाने वाली पट्टिका है वह। यह पट्टिका क्यों लगवाई उसके पीछे की भी कहानी आगे बतायेंगे।
तो इतने चर्चित व्यक्ति को ऐसे साधारण तरीके से लेकर नहीं जाना चाहिए। यही बात वो पुलिस के सिपाहियों को समझा रहे थे। आखिर "स्टेटस" भी कुछ होता है कि नहीं ? पूरी बारात के साथ चलता है दूल्हा। दूल्हे को कभी अकेले चलते देखा है क्या ? उनकी सवारी के लिए हाथी घोड़े लाने चाहिए थे। बैंड बाजा बजना चाहिए था। जुलूस निकलना चाहिए था। इसी प्रकार की "यात्रा" की मांग कर रहे थे वे वास्तव में। बस, इसी बात का ही तो विरोध था। और कुछ थोड़े ही था। फिर जो सिपाही, थानेदार उनके जरा से इशारे पर सस्पेंड हो जाते थे , वही थानेदार और सिपाही उन्हें धकेलकर गाड़ी में पटक रहे हैं। यह भी कोई बात हुई भला ? कानून वानून नाम की चीज भी कुछ होती है क्या देश में ? दरअसल ये कानून वगैरह तब याद आते हैं जब आप पीड़ित होते हैं। मगर जब आप एसपी थे , आई जी थे , तब आपकी पुलिस भी यही काम करती थी और हो सकता है इससे भी बुरी तरह पेश आती होगी। मगर तब आपको कानून की याद कभी नहीं आई ? इसे ही दोगलापन कहते हैं जो भारतीयों में कूट कूट कर भरा हुआ है।
अब आते हैं असल मुद्दे पर। आखिर पुलिस उन्हें पकड़कर क्यों ले गई ? बात यह है कि एक युवती ने एक रिपोर्ट दर्ज कराई कि लोकसभा क्षेत्र घोसी, उत्तर प्रदेश के वर्तमान सांसद अतुल राय ने उस युवती के साथ दुष्कर्म किया था। तब अमिताभ ठाकुर आई जी थे। युवती का आरोप है कि सांसद अतुल राय ने एक प्रत्यक्षदर्शी युवक के सामने उसके साथ दुष्कर्म किया था और तत्कालीन आई जी अमिताभ ठाकुर और दूसरे पुलिस अधिकारी उसकी रिपोर्ट पर कार्यवाही करने के बजाय अतुल राय को बचाने में लगे रहे।
बस, सारा मामला इतना ही है। उस युवती का कथन है कि अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर ने उसे रोजगार दिलाने के बहाने घर बुलाया। अतुल राय ने उसके साथ दुष्कर्म किया और अमिताभ ठाकुर उसे बचाने में लगे रहे हैं ? उस FIR में सह आरोपी अमिताभ ठाकुर और अन्य पुलिस कर्मी हैं। इस घटना के बाद से उन्होंने अपने घर के बाहर वह पट्टिका लगा दी जिस पर महिला के अकेले घर में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी।
यह रिपोर्ट लोकसभा चुनाव 2019 के पहले की है। चुनावों में भी यह मुद्दा खूब उछला। चुनाव समाप्त होने के बाद में अतुल राय बहुजन समाज पार्टी से सांसद बन गए। चुनावों के तुरंत बाद उन्होंने समर्पण कर दिया और वे गिरफ्तार भी हो गये जिनकी जमानत आज तक नहीं हुई। लेकिन अमिताभ ठाकुर चूंकि पुलिस के आला अधिकारी रहे हैं इसलिए इनकी गिरफ्तारी नहीं हुई। अमिताभ ठाकुर भी कोर्ट दर कोर्ट अग्रिम जमानत अर्जी लगाते रहे और वह अर्जी खारिज होती रही । आखिर माननीय उच्चतम न्यायालय से भी जब अग्रिम जमानत नहीं मिली तब गिरफ्तारी होना तय हो गया।
उधर जब उस युवती ने देखा कि अतुल राय के अलावा और किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है तब वह काफी निराश हुईं। इस देश में कोई कार्यवाही करवाने के लिए कुछ लोगों की बलि देनी पड़ती है तब सरकारें या जिम्मेदार जागते हैं। अवैध शराब के खिलाफ तब तक कार्यवाही नहीं होती जब तक कोई जहरीली शराब दस बीस लोगों को मार ना दे। जैसे ही दस बीस लोग मरते हैं , सरकारें, न्यायपालिका सब एकदम से जाग जाते हैं। थोड़ी सी कार्यवाही करके फिर सो जाते हैं और अगली घटना घटने का इंतजार करते हैं। उस युवती और उस प्रत्यक्षदर्शी ने भी ऐसा ही माना। इसलिए उन दोनों ने माननीय उच्चतम न्यायालय के पास आत्मदाह करने की कोशिश की। दोनों को बचा लिया गया। हालांकि बाद में वह प्रत्यक्षदर्शी मर गया था।
इस घटना के बाद सारी संस्थाएं हरकत में आ गई। सरकार ने एक जांच एजेंसी गठित कर दी जिसने पीड़िता के बयान लिए और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। उस रिपोर्ट के आधार पर अमिताभ ठाकुर को गिरफ्तार किया गया था। चूंकि अमिताभ ठाकुर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो चुकी थी इसलिए गिरफ्तारी तय थी।
एक पूर्व आईपीएस अधिकारी को पुलिस के साथ धक्का-मुक्की करने के बजाय सहयोग करना चाहिए था लेकिन उसने थप्पड़ जड़ दिया। अब अमिताभ ठाकुर के विरुद्ध एक और केस दर्ज हो गया राज-काज में बाधा डालने और मारपीट करने का।
अभी कुछ दिनों पूर्व मुंबई में भी एक ऐसी ही घटना घटी थी। सचिन वाज़े , सहायक पुलिस निरीक्षक ने एक न्यूज चैनल के मालिक को एक पहले से बंद केस में आतंकवादियों की तरह उठाकर बख्तरबंद वाहन में ले जाकर जेल भेज दिया। बाद में पता चला कि वह अपने आकाओं के इशारे पर काम कर रहा था और सौ करोड़ रुपए की मासिक वसूली कार्यक्रम चला रहा था। यहां तक कि आतंकवादी कार्रवाई करते हुए एक प्रसिद्ध उद्योगपति के मकान के बाहर विस्फोटकों से भरी गाड़ी खड़ी कर दी और धमकी देकर पैसे वसूलना चाहता था। वही सचिन वाज़े आज जेल की हवा खा रहा है और उसका बॉस तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह पुलिस से आंख मिचौली खेल रहा है। भूतपूर्व गृह मंत्री भागा भागा फिर रहा है।
ये सब घटनाएं ये बताती हैं कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है। सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों को नियमानुसार ही कार्य करना चाहिए क्योंकि पिछले किये गलत काम कभी भी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। जब आदमी फंसता है तो कोई "आका" मदद नहीं करता है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए।
