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NIKHIL KUMAR

Drama

4.0  

NIKHIL KUMAR

Drama

बत्तीसमार्खा

बत्तीसमार्खा

4 mins
549


एक बार की बात है की एक गाँव में एक विधवा धोबिन रहती थी। उसका एक छोटा – सा बच्चा था। धोबिन अपने घर की देखभाल गाँव के लोगो के कपड़े धो कर करती थी। वह प्रतिदिन अपने बेटे को कुछ खाने के लिए देकर कपड़े धोने नदी पर चली जाती थी और उसी से अपना गुजारा करती थी। समय बीतता रहा लड़का चार वर्ष का हो गया।

एक दिन की बात है धोबिन अपने बेटे को गुड़ दे कर कपड़े धोने चली गयी। तभी वहाँ पर मीठे की वजह से मक्खियाँ आने लगी। लड़का उन्हे मारने लगा। मारते – मारते बत्तीस मक्खियों को मार डाला। जब उसके माँ कपड़े धो कर आई तो उनको इस घटना के बारे में बताने लगा। यह सुन कर उसकी माँ ने उसकी नाम बत्तीसमार्खा रख दिया। धीरे धीरे वह इसी नाम से जाना जाने लगा।

एक बार उसके राज्य मे एक बाघ ने आतंक मचा रखा था। वह दिन में छिपा रहता था और रात में कोई भी दिखता तो उस पर हमला कर देता। उस राज्य के लोग बहुत डरे हुए थे। जब यह बात राजा के पास पहुंची तो राजा इसका समाधान ढूँढने के मंत्रियों से सलाह मांगी। उनमें से एक मंत्री जो बत्तीसमार्खा के घर के पास रहता था, उसके बारे में बताया। यह सुन कर राजा ने उसे बुलाने का आदेश दिया। अगले दिन बत्तीसमार्खा को दरबार में पेश किया गया। वह बहुत डरा हुआ था। राजा ने उसे बाघ को पकड़ने का आदेश दिया, वह चाह कर भी राजा को मना नहीं कर पाया। अंततः यह बात उसने अपनी माँ को बताई। उसकी माँ ने राज्य छोड़कर भाग जाने का विचार बनाया और वे रात में ही निकल पड़े। दिसंबर का महीना था, रात में कड़ाके की ठंडा पड़ रही थी। उनके पास एक गधा भी था। वे उस गधे पर सामान रख कर ले जा रहे थे, ठंड की वजह से वह आधे रास्ते में ही रुक कर एक छोटी सी झोपड़ी में ठहर गए। जब उसने गधे पर से सामान को उतार कर रख दिया, तो उसकी माँ ने उससे बोला कि अपने गधे को पास के खंभे से बांध दो। वह बाहर निकलकर गधे को बांधने गया तो शीत की वजह से कुछ साफ़-साफ दिखाई नहीं दे रहा था, फिर भी किसी भी तरीके वहां पर ठंड में बैठे गधे को बांध दिया। जब सुबह हुई तो वे भागने के लिए उठे तो उस समय भी कोहरे की वजह से कुछ दिखाई नही दे रहा था। जब व

ह गधे को लेने गया तो वहां पर बाघ को बंधा देख कर हैरान हो गया। थोड़ी देर में यह समाचार पूरे रज्य में फैल गया तभी राजा के कुछ सैनिक आकर बाघ को मार गिराया। इस बात से राजा बहुत खुश हुए और उसे वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया। वे दोनो फिर घर वापस आकर ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगे।


अब उसे गाँव में इज़्ज़त मिलने लगी। वह खुशीपूर्ण अपना जीवन व्यतीत करने लगे। पड़ोसी राज्य इस राज्य की खुशहाली को देखकर जलने लगे और पड़ोसी राज्य इस राज्य पर आक्रमण कर युद्ध करने की योजना बनाई। राज्य के गुप्तचरों ने इसके बारे में राजा को सूचना दी। यह सुनते ही राजा ने आदेश दे दिया कि जो व्यक्ति लड़ने के लिए काबिल है वह सेना में भरती हो जाए। राजा ने विशेषकर बत्तीसमार्खा को कहा। सभी सैनिक अपने लिए अच्छे-अच्छे हथियार और घोड़े लेने लगे। बत्तीसमार्खा युद्ध में बचने के लिए लंगड़ी घोड़ी चुन ली जिससे वह रणभूमि में सबसे पीछे रहे और अपना बचाव करने के लिए एक छोटा सा चाकू चुनता है। जब युद्ध आरंभ होता है, तो सभी लड़ाई के लिए दौड़ते है परंतु वह और उसकी घोड़ी सबसे पीछे रह गये। वह थोड़ा सा तेज़ भागने के लिए घोड़ी का लगाम ज्यों ही खींचता है वह तुरंत तेज़ी से दौड़ने लगाती है, बत्तीसमार्खा उसे रोकने की कोशिश करता परन्तु वह और तेज़ी से भागने लगती है वह युद्ध में सबसे आगे हो जाता है और वह डरने लगता है तब वह बचने के लिए रास्ते में खड़े पेड़ को पकड़ता है परंतु वह भी उखड़ जाता है और बत्तीसमार्खा पेड़ को भी हाथ में पकड़ कर भागने लगता है। यह देखकर दुश्मन डर जाते है और भागने लगते है। जब तक दुश्मन अपने राज्य के अंदर नहीं चले जाते तब तक घोड़ी दौड़ती रहती है, फिर जब घोड़ी रुकती है तो पीछे से सैनिक आते है और उसकी वीरगाथा गाने लगते है। इस घटना से राजा बहुत खुश होते है कि बत्तीसमार्खा अकेले ही पूरी सेना पर भारी पड़ गया। राजा इससे बहुत खुश हो कर उसकी शादी अपने पुत्री से कर देते है और उसे उत्तराधिकारी घोषित कर देते है बत्तीसमार्खा अब खुशी-खुशी अपना राजसी जीवन माँ और पत्नी के साथ व्यतीत करने लगता हैं ।



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