बस-स्टैंड (एक प्रेम कहानी )
बस-स्टैंड (एक प्रेम कहानी )
कल शाम को जब मैंने अपनी घड़ी में टाइम देखा तो ५:३० बज गए थे, जो रास्ते दोपहर कि गर्मी झेलते हुए सुनसान से पड़े रहते है वो ही शाम की ठंडक से आदमियों की चहल पहल से भर गए थे। बस स्टैंड पर कुछ ख़ास लम्बी कतार नहीं दिख रही थी, मेरे पीछे सिर्फ़ ३-४ लोग ही खड़े थे। वो दिन भी बाकी ठण्ड के दिनों से कुछ अलग नहीं था। हल्की ठंडी हवा धीरे-धीरे कानो में लग के अपने होने का एहसास करवा रही थी। मेरे दोनों हाथ जैकेट के जेब में ही थे। बस के इंतज़ार में करीब १० मिनट निकल गए थे पर आज में बस बस के लिए इंतज़ार न करके बस उस मौसम का आनंद लेना चाह्ता था।
अपने ही मूड में गाना गुनगुनाये जा रहा था, मन में जितनी परेशानी थी यहाँ तक कि ऑफिस की सारी उलझन मुझे रोक नहीं पा रही थी। वो दिन भी आम दिनों सा होकर भी कुछ अलग था। मैं अपने ही ख्यालो में डूबा, अपनी मस्ती में गाना गा रहा था कि अचानक ही मुझे बस के लिए लगी लाइन के पीछे एक चेहरा दिखा। न जाने क्यों मेरी निगाहें उस चेहरे पे रुक सी गयी। मैं अपने ख़्यालों से बाहर निकल उस चेहरे को लगातार देखने लगा(अगर अपनी भाषा में कहूँ तो मैं तो उसे घूर ही रहा था) वह लाइन के आखिर में खड़ी लड़की थी, जिसकी पोशाक सादा केसरी रंग का सलवार सूट था। हाथ में एक बैग तथा पैरों में सादी चप्पल जिसे हम ऑफिस स्लिपर बोलते है पहनी हुई थी। अगर उस समय कोई मुझे देखता था तो वह मुझे जरूर टोकता। पर मेरी खुशकिस्मती थी किसी का ध्यान मुझ पे नहीं था, यहाँ तक कि उस लड़की का ध्यान भी मेरी ओर न होकर हाथ में पकड़े मोबाइल में था। मैं कुछ सेकंड में पीछे मुड़ कर उसके चेहरे को देखना चाहता था, पर कभी मेरे पीछे खड़े बुजुर्ग बीच में आते थे तो कभी उसके वो काले बाल जिसे वह हर बार सामने आने पर अपने एक हाथ से कान के पीछे तक ले जाती थी। उसके मोबाइल कि तरफ झुके चेहरे ने उसके लिए मेरा आकर्षण को और भी बढ़ा दिया था। मैं अनायास ही छुपी नज़रो से उसकी सुंदरता को अपने दिमाग में बंद कर लेना चाहता हूँ।
पर मेरा यह खेल ज्यादा देर नहीं चलने वाला था। अगले ही क्षण मेरे देखते ही, मेरी नज़रे उसकी नज़रो से मिल गयी। अचानक ही मेरे दिल कि धड़कने बढ़ने लगी, उसके समझने के पहले ही मैं ने अपनी दिशा बदल ली तथा अपने हाथों से अपने बाल ठीक करने लगा। आसपास देखा कि कहीं कोई मुझे देख तो नहीं रहा, कहीं किसी ने मुझे ऐसा करते देख लिया तो मेरे बारे में क्या सोचेंगे। कुछ देर मैंने खुद को बहुत रोकने का प्रयास किया पर अगले ही पल आयी आवाज ने मुझे मेरी विचार बदलने के लिए मजबूर कर दिया। "एक्सक्यूस मी ३०४ नंबर की बस यही आएगी क्या?" इतना सुनते ही मैं पीछे घूमा, मैं इस मौके का लाभ लेने ही वाला था कि मेरे पीछे खड़े बुजुर्ग ने मुझसे यह मौका भी छीन लिया। "हाँ बेटी यहीं आएगी", और मुझे चुपचाप आगे देखना पड़ा। उन बुजुर्ग के लिये मन में सोचा 'कि एक मौका मिला था वो भी छीन लिया, जाने अब कोई मौका मिले या नहीं। 'पर मन के खातिर मैंने अपनी सारी हिम्मत को समेटा और उसकी ओर देखने लगा। यह क्या वह तो मेरी और ही देख रही थी, मैं क्या करूँ क्या नहीं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। दिमाग स्तब्ध सा हो चूका था और आँखें उस पल झुकना नहीं चाहती थी। आख़िरकार मैं उसको देखते हुए धीरे से मुस्कुरा दिया, अरे यह क्या कर दिया मैंने। मन में अचानक विचार आया क्या कर दिया मैंने, अरे पागल समझेगी वो। कहेगी लड़की को देख लाइन मार रहा है, अरे होशियार तुझे चिप समझेगी। अब तो कुछ नहीं हो सकता, मैं तो मुस्कुरा चुका। गयी हाथ लगी एक और संधी, पर यह क्या दिल ठहर जाय उस पल। मुझे देख वह भी मुस्कुरायी और फिर से अपने मोबाइल पर कुछ करने लगी। मैं ने पलट के एक लम्बी सांस ली और सोचा "ये तो हसीं और हसीं मतलब फसीं। मैं आत्मविश्वास से ओत प्रोत हो गया। मैं किला फ़तेह करने के लिए दुबारा पीछे मुड़ा तो देखा तो वो सामने ही देख रही थी। मैं कुछ कहने का प्रयास करूँ इससे पहले ही उसने मुझे आवाज दी। "ओ भाई आगे चलो बस आ गयी है" मेरी तो उसने मानो नो बॉल पे विकेट ही ले ली हो। मानो जैसे भगवान् ने सामने आइसक्रीम रख कर मुझे मुँह देना भूल गए हो। मैं चुपचाप हारा सा खड़ा रह गया। मुझे चुप खड़ा देख मेरे पीछे वाले बुजुर्ग मुझे हटा कर आगे निकल गए, ठीक उसी तरह वो लड़की भी मेरे सामने से निकलते हुए मुझे सॉरी कह कर चली गई। क्या वह मेरी भावना समझ गयी थी, क्या सिर्फ सॉरी बोलने से मेरे ज़ख्म भर जायेंगे। उस लड़की ने मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई है, इसलिए मैंने अपने सम्मान के लिए यह फैसला लिया कि मैं उस बस से नहीं जाऊँगा। और मेरे देखते ही देखते वह बस निकल गयी। उस बस के जाने के बाद मैंने जब अगली बस का टाइम देखा तो मुझे पता चला कि वो तो आखरी बस थी...
