बँटवारा
बँटवारा
अक्सर 'सुविधा' खिड़की के सामने कुसीऀ रखकर बैठा करती। बाहर सड़क के आने-जाने वाले वाहन, स्कूल आने-जाने वाले बच्चे,वृद्ध युवा और कभी-कभी पॖेम में पगे युवा दम्पति वहाँ से गुजरते, इन्हें देखकर उसका मन बहलता रहता। कभी-कभी वहाँ से गुजरते वक्त किसी पेॖमी-पेॖमिका को देखकर उसके हृदय में भी टीस उत्पन्न हो जाती।
बाहर से गुजरने वाले राहगीर की ओर देखते तो ठगे से रह जात। सुविधा का लावण्य उन्हें खीच लेता। सुविधा की उम्र अठारह वषऀ, रंग गोरा, चटक, गुलाबी नशीला आँखे, नुकीली पतली नाक,कमर तक नागिन से लहराते बाल, कुल मिलाकर अदभुत सौन्दर्य।
वह केवल हायर सेकेन्डृी पास है। न कभी स्कूल जा पाई और न कॉलेज में पढने की इच्छा हुई,जो कुछ पढा घर पर ही पढा। किन्तु है बुध्दि की तीक्ष्ण, समय की नब्ज पहचानाती है, व्यवहारकुशल है, मृदु भाषिणी है। घर के नौकर चाकर उसे अच्छी दीदी कहकर उसका सम्मान करते हैं,उसकी आवाज सुनते ही दौडकर उसके सामने हाथ जोडकर खडे होजाते और उसके आदेश की पृतिक्षा करने लगते हैं।
किन्तु उसके पापा 'राजूराय' मम्मी 'सन्ध्या राय' बहुत चिन्तित है। सुविधा की अपंगता उन्हें हमेशा ही चिन्तित बनाए रखति है,वे सम्पन्न है,बहुत बडा अनाज का व्यपार है,कोई कमी नही है।उसके दोनो बडे भाई तो उसे दया का पात्र समझते है,उन्हें यह चिन्ता लगी रहती है की सुविधा का ब्याह कैसे हो पाएगा।
सुविधा अपंग है, दोनो पैरों से लाचार है फिर भी वह किसी के कंधे पर हाथ रखकर जीवन नहीं बिताना चाहती, अपना जीवन खुद बनाना चाहति है।
उसे देखने कई परिवार आ चुके हैं किन्तु अब तक सभी नकारा सिद्ध हुए हैं। राजू राय बहुत परेशान है, सुविधा सबकुछ जानति है,एक दिन उसके मन मे आया कि पापा से कह दे, क्यों परेशान हो रहे है उसके लिए,वह आपकी बेटी है,आपके परिवार के सारे संस्कार उसके खून मे घूले है, वह बिना शादी के जीवन काट लेगी,कभी भी परिवार पर कोई आँच नही आने देगी,शायद उसकी किस्मत में यही लिखा है
जब सम्पन्न परिवार में रिश्ता तय नहीं हो पाया तो राजू राय के मन में विचार आया क्यों ना बेटी का ब्याह वह किसी पढे लिखे सामान्य परिवार के लडके से कर दे और उनके जीवन का सारा खर्च स्वयं बहन कर ले।
वह अपनी इस खोज में जल्दी सफल हो गए । उन्हें धीरेंद्र शाह नाम का युवक प्राप्त हो गया। धीरेंद्र सुविधा से शादी करने तैयार हो गया, वह सिद्धांत वादी युवक था, अपंग दुखी पीड़ित मानवों की सेवा करना अपना धर्म समझता था, वह राजू राय की आत्मा वेदना को भी समझ गया था साथ ही उसका सबसे बड़ा सिद्धांत यह था कि हमें किसी अपंग के साथ दया का नहीं समानता का व्यवहार करना चाहिए ।उसने राजू राय से निवेदन किया कि वह शादी से पूर्व एक बार सुविधा से अकेले में मिलना चाहता है। राजू राय सहमत हो गए।
सुविधा अपने कमरे में पलंग पर बैठी है, धीरेंद्र ने प्रवेश किया। उसने बैठे-बैठे ही धीरेंद्र का अभिवादन कर बड़े सम्मान के साथ बैठने को कहा। बड़ी देर तक वह धीरेंद्र की ओर देखती रही, वह भी सुविधा के सौंदर्य को देख रहा था, सोच रहा था कितनी सुंदर है सुविधा !काश! ईशवर ने इसे दोनों पैर दिए होते ।मैं खो गया उसके सौंदर्य को देखकर। सुविधा सब कुछ समझ गई। उसने मॉल तोड़ते हुए कहा-" धीरेंद्र जी!" वह हड़बड़ा सा गया।वह आगे बोली-" धीरेंद्र जी क्षमा करें क्योंकि आप मेरे जीवन साथी बनने को तैयार हैं, मैं भी साथ निभाने तैयार हूं किंतु शादी के पूर्व एक बात बताना मैं अपना परम कर्तव्यय समझती हूं। y यद्यपि मैं अपंग हूं दोनों पैरोंंं से हिना हूं किंतु मेरा अंत बड़ा शक्तिशाली है और जीवन में बहुत कुछ कर गुजरने की क्षमता मुझ में है चाहती तो यह भीी हूं की आकाश के तारे तोड़ दूं ।"
" बस- बस सुविधा जी आपने मेरे सिद्धांतों को ही बल दिया है आप मेरे सिद्धांतों के अनुकूल है सुविधा जी।" सुविधा ने मुस्कुराते हुए कहा-" सुविधा जी नहीं के केवल सुविधा कहे धीरेंद्र जी और आप नहीं मैं तो तुम सुनना चाहती हूं आपके मुखारविंद से।"
-" और ऐसा ही मुझे भी कहो सुविधा। दोनों एक साथ मुस्कुरा उठे । धीरेंद्र ने मुस्कुराते हुए एक बात और कहीं-" हमारी सहमति तो हो गई सुविधा किंतु एक बात बताओ तुम्हारे पापा हमें सारी सुख सुविधाएं देखकर यही अपनी हवेली में रखना चाहते हैं, यह ना तुम्हारे सिद्धांतों के अनुकूल है और ना मेरे, इसे हम कैसे मान लें और फिर तुम जैसा कहो ,अब तो।"
-" मैं बिल्कुल नहीं चाहती शादी के बाद यहां रहना किंतु पापा की बात को एकदम से नकारा भी नहीं जा सकता मम्मी की चाहत को एकदम से बुलाया नहीं जा सकता। शादी के बाद हम रहेंगे तो यहां किंतु स्वयं कोई कामकाज कर आत्मनिर्भर बनकर रहेंगे।"
और दोनों परिणय बंधन मैं आबध्द हो गए। हवेली का एक भाग सुविधा और धीरेंद्र के लिए दे दिया गया ।पूरे घर में आनंद ही आनंद ।राजू राय की खुशी का ठिकाना नहीं रहा मम्मी संध्या बहू बेटा और बेटी दामाद को पाकर खुश थी।
भरे पूरे राजू राय अब सब ओर से निश्चिंत थे बेटे उनका कारोबार संभाल चुके थे ।एक दिन उन्होंने पूरे परिवार को बुलाया और अपनी मनु इच्छा प्रकट करते हुए कहा अब मैं पूरे कार्यभार से मुक्त हूं बूढ़ा भी हो रहा हूं मेरी इच्छा है कि हम दोनों-" अब तीरथ धाम करावे जीवन रहे तो लौटेंगे अन्यअन्यथा।" उनकी बातें सुनकर सब उदास हो गए किंतु उन्होंने सभी को समझा दिया ।दूसरे दिन व्रत संपत्ति चल पड़े सभी से विदा लेकर।
यहां से विदा हुए वहां घर का नक्शा ही बदलने लगा बड़ी बहू और छोटी बहू के तेवर बदलने लगे दोनों ने अपने पति देवों के कान भरना शुरू कर दिए छोटी ने छोटे से कहा यह भी कोई बात है बाबूजी ने शादी कर दी भरपूर दहेज दे दिया उनकी इच्छा के अनुकूल सुविधा ने यहां रह भी लिया किंतु क्या जिंदगी भर बाबूजी ने इन्हें यहां रहने को कहा है कौन बेटी जिंदगी भर नहर में रहती है अब इनकी विदा कर दी जावे तो अच्छा है देखो ना धीरेंद्र का पता ही नहीं चलता क्या करते हैं कहां रहते हैं दिनभर ससुराल में रहकर मौज मस्ती कर रहे हैं छोटे बेटे की पत्नी की बात कुछ समझ में आई किंतु वह चुप रहा अब बड़ी बहू ने भी बड़े बेटे के कान भरे बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं दोनों ऊंचे ऊंचे सिद्धांत बढ़ते हैं किंतु ससुराल के टुकड़ों के बिना पेट नहीं भरता आखिर कब तक यह हमारे बोझ बनकर रहेंगे।" एक दिन चारों बहू बेटों की सलाह सलाह हुई की सुविधा और धीरेंद्र को यहां से दफा करने में ही भलाई है अन्यथा कब संकट के बादल हम पर बरस जावे कहा नहीं जा सक।"
सुविधा के कान में बात पहुंची किंतु वह जानकर भी अनजान बनी रही उसने धीरेंद्र से कुछ नहीं कहा और एक दिन तो हद हो गई, सुविधा अपने कमरे में थी। धीरेंद्र अभी अभी वापस लौटे थे और दोनों बहुएं उनके दरवाजे पर चिल्ला रही थी बड़ी कह रही थी-" लंगडी का भाग्य तो देखो घर बैठे आज्ञाकारी पति मिल गया मजे से खाता पीता है और हवेली में आलीशान पलंग पर इट लाकर मौज उड़ाता है छोटी बहू ने बात आगे बढ़ाई खिलाई नहीं तो क्या करें हराम का खाना मिलता है खून पसीना का खाए तो गराॆहट कम हो।"
शायद धीरेंद्र और सुविधा ने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी वह खून के घूंट पीकर रह गए किसी तरह रात कटी सुबह दोनों भाई उसके दरवाजे पर खड़े थे बड़ा कह रहा था अब तो दुनिया ही उलट गई कहां का रीति रिवाज है यह शादी में दूल्हे की विदा कराकर दुल्हन ले आई और वर्षा हो गए दूल्हे राजा ससुराल के टुकड़े तोड़कर शान में घूमते हैं
बात बेलाद थी गोली की तरह दोनों का सीना छलनी कर गई दोनों भाई जब चले गए तो सुविधा धीरेंद्र के गले लग कर खूब रोइ मैं कह रही थी हम तो पापा के वचनों से बंद कर यहां रह रहे थे वह जहां भी है अभी जिंदा हैं किंतु वाह रे संसार बाहरी संपत्ति दोनों भाइयों ने जीते जी उन्हें मरा समझ लिया और अब संपत्ति पर भी अधिकार करना चाहते हैं अब हम 1 दिन भी यहां नहीं रहेंगे धीरेंद्र ने भी समझ लिया अब यहां से जाने में ही भलाई है और दोनों ने जाने की तैयारी कर ली जाते वक्त सुविधा ने सबको बुलाया सब को प्रणाम किया बड़े संयत और विनम्र शब्दों में बोली भाइयों और पूज्य भाभियों कान खोलकर सुनो मैं तो पापा के वचनों पर अडिग थी पापा जहां भी है अभी जिंदा है मैं चाहती हूं कि दुनिया में एक अनहोनी हो और पापा सर्वदा जीवित रहें लेकिन तुम लोग तो सोच कर रखे थे कि पापा किसी तरह भी सदा के लिए घर से जाएं और तुम लोग संपत्ति पर अधिकार जमा हो आदरणीय भाइयों और भाइयों एक बात तो मैं आप लोगों को अवश्य बता देना उचित समझती हूं कि अब पिता की संपत्ति के हिस्सेदार बेटी भी होती हैं इस संपत्ति के तीन बराबर हिस्से होंगे व्यापार में लगी संपत्ति का भी हिसाब किताब होगा मैं तो जा रही हूं पापा मम्मी हम दोनों को आशीर्वाद दे गए हैं चलते वक्त आप लोगों का आशीर्वाद चाहती हूं किंतु यह भूल कभी मत करना बटवारा मात्र दो हिस्सों में ना करना बल्कि जब भी बंटवारा होगा तीन हिस्सों में होगा और यह भी सुन ले भगवान ने मुझे इतना अच्छा शहर दिया है कि मुझे इस संपत्ति का १ तिनका भी अपने उपयोग के लिए नहीं चाहिए मेरा हिस्सा गरीबों के लिए होगा अनाथालय के लिए होगा उन अपंग भाइयों बहनों के लिए होगा जिन्हें समाज ने कोई आश्रय नहीं दिया आप सब खूब तरक्की करें पापा का नाम रोशन करें ,बस इतना जरूर समझ ले आपकी बहन अपाहिज है आप उसका तिरस्कार कर रहे हैं ,दुनिया में हजारों लाखों अपंग है कभी किसी अपंग का तिरस्कार ना करना उससे हे दृष्टि सेना देखना उसका अपमान ना करना क्योंकि इस जिंदगी के खेल बड़े विचित्र है।"