Roli Abhilasha

Drama

5.0  

Roli Abhilasha

Drama

बिखरे पन्नों पर कहानी

बिखरे पन्नों पर कहानी

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जिया ने अपना सर साहिल के बाएं पैर के घुटने के थोड़ा ऊपर रख लिया। झिझकते हुए उसने पैर को पीछे खींचना चाहा तो जिया ने उस पैर पर बाहों की पकड़ कस ली। अंगूठे से मिट्टी कुरेदने के अलावा उसके पास कुछ न बचा था। उसकी असहजता को कम करने के लिए जिया उठ गई। साहिल एक मन से जिया को अपने पास देखना चाहता था पर दूसरा मन उसकी झिझक को बढ़ा रहा था।

"ऐसा कब होगा कि आप मेरे साथ बिल्कुल कंफर्टेबल हो जाएं?" जिया सामने वाले मिट्टी के ढेर पर बैठी घास पर हाथ फिरा रही थी और साहिल वहीं पास के ढलान पर।

"मैं हूं ना तुम्हारे साथ कंफर्टेबल। तुम्हें गलतफहमी कैसे हो गई?"

"मैं कुछ पल आपके साथ गुजारकर अगर ख़ुश हो लूं तो हर्ज ही क्या है" जिया ने बहुत कातर दृष्टि से साहिल को देखा। इस बार उससे नहीं रहा गया और वो जिया के पास आकर बैठ गया। उसकी उंगलियों से खेलते हुए कब पैरों पर सर रख लिया अहसास ही नहीं हुआ। जिया का मन रोमांचित हो उठा। उसका पसंदीदा लेखक आज इतने करीब और वह भी पहली मुलाक़ात में, किसी सपने से कम नहीं था। वो साहिल के बालों में उंगली फिराने लगी और वह यथावत बैठा रहा जैसे मूक सहमति दे दी थी कि जिया पूरा न सही अपने प्यार का कुछ हिस्सा तो उस पर लुटा कर संतुष्ट हो ले।

"आपने अपनी पत्नी को बताया कि मुझसे मिलने आए हैं?"

"नहीं, कैसे बता दूं तुम्हीं बताओ। तुम इतनी नादान हो कुछ समझती क्यों नहीं ?"

"अरे, बने रहने दीजिए न मुझे नादान क्या जाता है आपका?"

"सब कुछ तुम्हारे मन की ही तो कर रहा हूं।" इस बार जिया का हाथ साहिल के चेहरे पर था। आंखों में आंखें डालकर कुछ पढ़ने की कोशिश की। अचानक ही जाने क्यों उसने अपनी नज़रें झुका लीं।

"क्या हुआ मेरी कौवी को ?"

"अच्छा कौवी कबसे हो गई मैं ?"

"तुमसे अच्छा कांव-कांव तो कौआ भी नहीं करता होगा" दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े। हवा का एक झोंका जिया के बिखरे हुए बालों को उड़ा गया। साहिल एकटक ताक रहा था। बहुत साधारण से नाक नक्श वाली दुबली सी सांवली लड़की क्या वही जिया है जिसके पत्र पढ़कर मन में जाने क्या-क्या तस्वीर बनाया करता था उसकी।

पहली बार जब अख़बार में साहिल की एक कहानी छपी थी तो अख़बार के संपादक ने उसे बुलाकर एक चिट्ठी ये कहते हुए दी कि कहानी से भी रोमांस बनाए रखना। पीले रंग के लिफाफे में हल्के बादामी सादे कागज पर मोहक हस्त लिखित, चंद शब्द उसके दिमाग़ को झकझोर गए थे। ये कोई प्रेमपत्र नहीं बल्कि हर शब्द ज़हर से भरा था। आप लोगों को तो लिखने के लिए मसाला चाहिए बस। कभी सोचा है कि एक ग़लत कलम चलने से किसी की जान भी जा सकती है। आपकी लिखी हुई कहानी मेरी पहचान की लड़की की है और किस बिना पर उसे आपने बदचलन करार दिया। वो उस आवारा लड़के की नहीं हुई तो बदचलन हो गई। लानत है आप जैसे लोगों पर जो लोकप्रिय होने के लिए कुछ भी लिख देते हैं । नीचे उसका नाम जिया और पते के लिए पोस्ट बॉक्स नंबर दिया था।

वो पहला दिन था जब साहिल जिया के नाम से परिचित हुआ था। शायद जिया सही कह रही हो क्योंकि शिशिर को वो जानता ही कितना था जिसके कहने पर यह कहानी लिखी। एक पूरी रात जद्दोजहद करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि चिट्ठी का जवाब देना जरुरी है। एक माफीनामा लिखते हुए साथ यह भी लिख दिया कि आखिर कहानी का सच क्या है वही बताए उसके आधार पर अगली कहानी लिखेगा और उसी दिए हुए पोस्ट बॉक्स नंबर का पता लिखकर भेज दिया। फ़िर तो उत्तर की प्रतीक्षा थी। उधर जिया तो जैसे इंतज़ार ही कर रही थी। हफ़्ते भर में ही जवाब आ गया। एक छोटा सा माफ़ीनामा उधर से भी था। शायद यही कि बिना किसी को जाने यह सब नहीं कहना चाहिए था। ख़ैर पत्रों का सिलसिला चल निकला था। जिया हर कहानी पर बेबाकी से अपनी प्रतिक्रिया लिख दिया करती थी, वहीं साहिल अपनी कहानियों में जिया को एक पात्र के रूप में शामिल करने लगा। पाकीज़ा, मासूम सी भावनाओं वाली जिया साहिल के मन में घर करती जा रही थी। टेलीफोन और माकूल पते के अभाव में दोनों एक दूसरे को सिर्फ साहिल और जिया भर जानते थे। साहिल का पता दिल्ली का एक पब्लिशिंग हाउस था वही जिया बनारस के एक पोस्ट बॉक्स नंबर की मालकिन भर।

बातों ही बातों में एक दिन जिया ने अपने मन की भावनाओं का इजहार कर दिया। कहीं मैं आपसे प्यार तो नहीं करने लग गई! साहिल वहां कुछ होने से बेखबर तो नहीं था पर कई बार होनी को भी सुनकर कानों पर विश्वास करने का मन नहीं होता। ऐसा ही कुछ मन हो चला था साहिल का। उसने बस इतना ही जवाब दिया क्या एक बार आप मुझसे मिलना नहीं चाहेंगी? इसके बाद कई हफ्तों तक कोई जवाब नहीं आया। साहिल उसे एक ख़ूबसूरत इत्तेफ़ाक की तरह यादों में रखा। वहीं जिया मन में उगे प्रेम के पलाश समझने लगी थी। पत्र न भेजने का एक कारण मिलने में झिझक थी। क्या जवाब देती साहिल को इससे बेहतर था कि कुछ कहा ही नहीं।

उस दिन जिया की ख़ुशी का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला उसके विश्वविद्यालय के वार्षिकोत्सव में साहित्यकार विष्णु दत्त "साहिल" अा रहे हैं। उधर साहिल को भी ये उम्मीद हो चली थी कि मोहतरमा अपने शहर में एक बार मुलाक़ात तो करेंगी ही। प्रतीक्षा दोनों तरफ़ थी पर एक दूसरे की खबर नहीं थी। घड़ी के कांटों ने मीलों सफ़र तय किया तब वो मुकाम आया। बाईस सितम्बर दिन मंगलवार समय अपराह्न तीन बजे, जाने कितनी ही बार जिया ने आते जाते इस सूचना को पढ़ा था। उस दिन तो प्रिंसिपल सर से ख़ूब बहस भी हुई जब पता चला साहिल जी का स्वागत मात्र स्नातक अंतिम वर्ष की छात्राएं करेंगी। बहुत मनुहार करने पर भी द्वितीय वर्ष पर विचार नहीं हो सका और वो पैर पटकते हुए कमरे से बाहर निकल आई। कितनी उम्मीद सजा रखी थी उसने इस दिन के लिए कि अपने हाथों से साहिल जी को माला पहनाएगी। पर होता तो वही है जो नियति निर्धारित है।

अनमने ढंग से वह उस दुकान की और बढ़ी जा रही थी जहां अपनी पसंद के पीले रंग का सूट सिलवाने के लिए डाल रखा था कि वार्षिकोत्सव में पहनेगी। गुस्सा तो इतना था कि ड्रेस में ही पहुंच जाती। उसके कदम अचानक एक रिक्शे को देखकर ठिठके। सामने शैलजा उतरी और भागकर जिया को गले लगा लिया।

"अब तू आराम से अपने साहिल जी को अपने हाथों से माला पहनाना।"

"मजाक मत कर।"

"मैं मजाक नहीं कर रही। दिव्या ने अपना नाम वापस ले लिया। तेरे आने के बाद प्रिंसिपल तुझे ढूंढ रहे थे।"

जिया को इतने से विश्वास कहां होने वाला था। तीन बार उससे वही बात दोहराने को कही। हारकर शैलजा ने यहां तक बोल दिया ।तेरे साहिल जी की कसम,

"चुप कर, किसी की ऐसे कसम नहीं खाते।"

"मैं तो खाऊंगी। बहुत पका लिया है तूने हम सबको। साहिल जी ये, साहिल जी वो। अब मैं भी तो देखूं क्या बला हैं साहिल जी। अच्छा एक बात बता अगर तेरे साहिल जी शादी शुदा हुए तो ?"

"तो क्या?"

"तू प्यार करने लगी है न उनसे?"

जिया की संवेदनाएं उलझ गईं। उससे कुछ बोलते नहीं बना इसलिए नहीं कि वो सच में साहिल से प्यार करती थी और छुपाना चाहती थी बल्कि इसलिए कि वो अपने मन की पावन और सुंदर भावनाओं को लोगों को समझाए कैसे!

"क्या सोचने लगी चल इसी रिक्शे से मैं तुझे छोड़ देती हूं।" सूट लेकर दोनों घर चले गए। जिया के लिए तो जैसे यह रात कटने वाली ही नहीं थी। बार-बार घड़ी देखती मगर सुइयां तो अपने हिसाब से ही चल रहीं थीं। चिड़ियों की चहचहाहट से पहले ही वह उठ गई। किसी तरह नहा तो लिया पर नाश्ता किसे करना था। पीला सूट, माथे पर पीली बिंदी, सुरमे वाली आंखें, कानों में पीले मीना वाले झुमके, लिप ग्लास से तर होंठ, हर दिन से कुछ तो अलग लग ही रही थी। पहुंचते ही हर किसी ने उसकी जमकर तारीफ की। मगर उसे तो केवल एक नजर की स्वीकृति चाहिए थी और वह थी उसके साहिल जी की नजर। समय तीन बजे का था मगर इन लोगों को सुबह 11:00 बजे एकत्रित होना था। सभी अपनी अपनी तैयारियों में व्यस्त थे, जिया का पूरा दिमाग तीन बजने वाले अलार्म में लगा हुआ था। प्रतीक्षा उस कली की मानिंद ठहरा हुआ समय है जिसे पूरा होने के लिए खिलकर फूल बनना ही होता है और ऐसा ही कुछ यहां भी था। तीन बज गए सबने अपनी-अपनी अपनी जगह ले ली। 30 मिनट प्रतीक्षा करने के बाद पता चला गाड़ी एक घंटे विलंब से आ रही है। लगभग 4:15 बजे साहिल का आगमन हुआ। आते ही लोगों के हुजूम ने उन्हें घेर लिया। यह तो अच्छा हुआ कि मैं माला पहनाने स्टेज पर जा रही हूं नहीं तो मन भर देख भी न पाती।अपने आप से बड़बड़ाती हुई जिया मन मसोसकर रह गई।

हाथ में माला लिए उसकी नज़रें साहिल जी से टकराईं। लंबा कद, पारम्परिक कुर्ता पायजामा और नागरा जूते, झुके हुए कंधे, कंधे तक बिखरे हुए लच्छेदार बाल कुछ भी बहुत ख़ास नहीं था पर गौर वर्ण चेहरे पर अलग ही आभा दिख रही थी। औपचारिकता पूरी होते ही वह मंच से उतर आई और सामने वाली कतार में कुर्सी पर बैठ गई। साहिल जी मंचासीन थे और वो ठीक सामने। दिल दिमाग जद्दोजहद से भरा हुआ था कि आखिर साहिल जी को कैसे बताया जाए कि वही जिया है और उनसे मिलकर कुछ बात करना चाहती है। किसी तरह बात बनते न देख बहुत उलझ गई क्या साहिल जी उसके शहर, उसके सामने इस तरह आकर चले जाएंगे और वो मिल भी नहीं पाएगी। भाषण का सिलसिला ख़त्म होते ही मंच पर उपस्थित लोग नीचे उतर आए।

साहिल जी को दो दिन के लिए विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में रुकना था, इतनी खबर उसे मिल गई। जब पूरे कार्यक्रम भर उसकी बात नहीं हो पाई तो वह शाम 7:00 बजे के करीब गेस्ट हाउस पहुंच गई। साहिल जी के लिए एक चिट पर अपना नाम लिखकर वहां के नौकर को दे दिया। जिया बाहर गमले पर लगे पौधे को निहारने लगी तभी नौकर ने आकर कहा, साहब ने बुलाया है आपको।

सुबह से घूमते हुए बेतरतीब सी हो चुकी थी। वो तो बस साहिल जी की ललक उसे यहां तक ले अाई थी। कमरे में पैर रखते ही बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई। आत्मविश्वास तो जैसे उतारकर गमले में छोड़ अाई हो।

"तो आप ही हैं जिया ?"

"जी, म म मैं ।"

"चिट्ठियों में तो कोई हिचक नहीं दिखी कभी। इतना बड़ बड़ करने वाली, पहली ही बार में बेहिचक डांटने वाली वो लड़की, आप जिया हो ही नहीं सकतीं। यूं भी हम तो पहले ही मिल चुके हैं।"

"पहले कब ?"

"हम्मम तो आप भुलक्कड़ भी हैं। हम दो घंटे पहले ही तो मिले हैं।"

"जी, वो तो।" इतना बोलते ही जिया की जबान पर जैसे ताले लग गए थे। साहिल जी का जप करने वाली लड़की आज उनके सामने शब्द नहीं ढूंढ पा रही थी कि बात करती।

"देखिए इस वक़्त रात का आठ बज रहा है। आपका यहां इस कमरे में मेरे साथ कुछ देर भी रुकना ठीक नहीं है और मुझे अभी गंगा घाट दर्शन के लिए भी जाना है। पत्नी इंतज़ार कर रही होंगी।"

"जी मैं भी तो बहुत दूर से आपसे मिलने के लिए अाई हूं।" जिया ने स्वयं को संयत करते हुए कहा।

इस बार साहिल चुप थे। दोनों कमरे से बाहर निकल आए।

"अगर आपको जी, ह्म्म से आगे बढ़ना है तो आप मेरे साथ गंगा घाट तक चल सकती हैं।" ताला लगाते हुए साहिल ने बस इतना ही कहा।

क्या अजीब हैं, चिट्ठियों से तो बिल्कुल अलग और कहानियां ये तो इनकी लगती ही नहीं। सभी को समझते हैं बस मुझको ही नहीं, अपने आपसे बड़बड़ाती वो पीछे चलती रही।

"आपने कुछ कहा मुझसे ?" साहिल की मुस्कराहट बता रही थी कि जिया की हर बात समझ रहे हैं। बस एक बात समझ में नहीं अा रही थी कि अपनी बीवी के बारे में बताने पर भी जिया की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कहीं साहिल उसके प्रेम को पढ़ने में गलती तो नहीं कर रहा। कहीं ये प्रेम सूरजमुखी के समान तो नहीं जो सूरज को मात्र देखकर भी खिला रहता है। मगर साहिल स्वयं क्या सावन की बारिश सा धुला है जो उसे निराश कर दे!

"यहां से रिक्शा ले लिया जाए?" साहिल ने रास्ते से अनभिज्ञता जताते हुए कहा।

"लगभग डेढ़ किलोमीटर है यहां से। अगर आप चाहें तो।" जिया पैदल ही ये रास्ता तय करना चाहती थी पर साहिल ने रिक्शे को आवाज़ दी। बनारस के रिक्शे अधिक ऊंचाई वाले और आम तौर पर कम जगह वाले होते हैं। जिया का चढ़ते हुए पैर फंस गया साहिल ने हाथ आगे बढ़ा दिया। वो सहज होकर पास में बैठ गई। दुपट्टा सही करते हुआ अचानक साहिल के कंधे पर लहरा गया।

"रुहानी अहसास!" साहिल के इतना कहते ही जिया इतनी सहज हो गई मानो कोई सूद मन से उतर गया हो।

"कल मेरी बड़ी बेटी भी दिल्ली से अा रही है। आपको पता है उसकी उम्र आपसे कुछ ही कम है।"

"फ़िर आप मुझे जिया क्यों नहीं कहते। ये जी मुझे नहीं अच्छा लगता।"

"जो हुक्म। हम लेखक तो आप पाठकों के गुलाम होते हैं। हम वही दिखते हैं बस जो आप देखना चाहते हैं।"

"ये किताब आपने सीने से क्यों लगा रखी है ?"

"तुम्हीं ने तो कहा था बीवी कभी प्रेमिका नहीं हो सकती तो मैं अपनी प्रेमिका को साथ लिए फिरता हूं। मुझसे बातें नहीं करती है तो क्या हुआ, चुप सी वो मेरे साथ रहती है। मुझे उलझनों में उलझाती है, बहुत उलझ जाती है जब ख़ुद में भी तो मेरे साथ एक सिरा थामकर बहुत दूर निकल जाती है।"

"वाह, वाह, वाह"

"तुमने झूमर कहानी को पढ़कर यही प्रतिक्रिया दी थी न!"

"जी, और आपने झुमकी के प्यार को जस्टिफाई क्यों नहीं किया था उस कहानी में? गलती क्या थी उसकी, उसने बस नरेन को प्रेम ही तो देना चाहा था। नरेन को भी झुमकी में वो सब दिखता था जो एक अच्छे दोस्त में होता। मुझे उसका एंड बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। आपने नरेन की पत्नी की नज़र में झुमकी को गुनहगार क्यों बना दिया?"

"जिया ये जो रुहानी रिश्ते होते हैं, बस रुह तक सिमटकर रह जाते हैं। सच्चा प्यार करने वाले अपने प्यार में ख़ुदा को देखते हैं। ये तो साधारण लोगों को दिखता है कि गुनाह हुआ पर प्यार करने वालों को कभी नहीं। ये नरेन की मजबूरी थी कि अपनी पत्नी के सामने झुमकी को सही नहीं ठहरा सकता था। झुमकी का दिल बस नरेन के लिए धड़कता था वो ही तो ऐसी थी जिसपर नरेन अपना विश्वास जी सकता था। समाज इस तरह के रिश्ते को मानता ही कब है। कितना भी पक्का हो प्रेम नाम दिया जाएगा, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का और इस कहानी में उस पेचोखम को नहीं रखना चाहता था।"

"कितनी नूरानी होती हैं आपकी बातें।" खोई हुई जिया बोली। इतने में ही रिक्शेवाले का स्वर उभरा, "कहां उतार दें साहब ?"

कितनी जल्दी सफ़र ख़त्म हो गया पता ही नहीं चला। साहिल विदा लेते हुए चले गए और जिया अपने रास्ते अा गई। कैसे मुलाक़ात थी ये कि मिले भी और मिल न सके। साहिल जी से मिलकर तो और भी बेचैन हो गई थी। शायद पूरा मिलना बाक़ी रह गया था। ओस के चाटने से प्यास बुझने भर की थी ये बात। आज की रात फ़िर करवटों में ही बीतनी थी। खयालों में बहुत सी बातें थी कि ये कहेगी, वो कहेगी। आधी रात तो औंधे मुंह पड़े रहकर इसमें निकाल दिया कि आज पहले ही क्यों नहीं मिल ली थी। फ़िर सुबह उठकर वही नहाना धोना, तैयार होना फ़िर निढाल होकर बैठ जाना, कहां जाएगी, क्या कहेगी ? अचानक ही उसे साहिल जी की कहानी नीला का किरदार याद अा गई। नीला जो रेडियो जॉकी से मिलने होटल कितने ही बार गई थी। उधर साहिल जिया को एक लेखक के तौर पर उसकी मुलाक़ात को यादगार बनाने के लिए कहानी का तोहफ़ा बुन रहे थे। ये सरप्राइज उसे जल्दी ही मिलेगा ऐसा कुछ सोचा था।

जिया हर बात से बेखबर बस मिलने की रट पर एक बार फ़िर गेस्ट हाउस के लिए चल पड़ी। वहां पहुंचकर उसी नौकर के हाथ चिट भेज दी। उस दिन तो साहिल जी ने तुरंत अंदर बुला लिया था और आज 10 मिनट होने को आया उसके दिमाग में उलझन बढ़ गई। वो गमले में लगी छुई मुई की पत्तियों से खेलने लगी। तभी साहिल जी की आवाज कान में पड़ी।

"अच्छा तो अभी तुम्हारे हिस्से का टाइम मेरे पास बचा हुआ है।"

"देखिए, मुझे गलत मत समझिए मैं तो बस थोड़ी देर आप से बात करना चाहती हूं।"

"तो मैं कब कह रहा हूं कि तुम मुझे भगा कर ले जाना चाहती हो।" इस बात पर दोनों ही हंस पड़े।

मिलने का स्थान मुकर्रर कर साहिल जी ने एक घंटे बाद वहां पहुंचने को बोला। 1 घंटे के लिए वह कहां जाती तो वहां पहुंचकर पहले से इंतजार करना ही बेहतर समझा।

"कहां खो गई हो, इतना गहरा क्या सोचने लगीं, ऐसा तो मैं कहानी लिखते हुए भी नहीं सोचता?" साहिल ने जिया को अतीत की यादों से झकझोरा।

"जिया, मुझे पता है तुम मुझसे प्रेम करने लग गई हो। लेकिन ये ठीक नहीं है जितना मुझमें उलझोगी, मेरे बारे में सोचोगी और प्रेम होगा। मैं चाहता तो तुम्हें अपने परिवार से मिलवा सकता था पर मुझे पता है कोई भी तुम्हारे बारे में अच्छा नहीं सोचेगा जबकि सच मैं जानता हूं और मैं यह भी चाहता हूं कि कोई तुम्हें कुछ कह ना सके। मैं ठहरा फक्कड़ लेखक, कब कहां हूं कुछ ठिकाना नहीं। सही मायनों में तो मैं अपने परिवार को भी वो वक़्त नहीं दे पाता जो उन्हें चाहिए।" साहिल कहीं से भी यह नहीं चाहते थे कि जिया उनको दीवानगी की हद तक पसंद करे पर इस वक्त कुछ भी कह कर उसे छेड़ना नहीं चाहते थे।

"आप तो मुझे समझते हैं ना और मुझे किसी की नहीं जरुरत। मैं आपके बारे में बिल्कुल भी गलत नहीं सोचती लेकिन आपको इतना ही पसंद करती हूं।" कहते हुए जिया का गला भर आया। किसी तरह से उसने खुद को रोका।

"अच्छा चलो, यह सब छोड़ो मुझे कुछ अपने बारे में बताओ ?"

"बस आपकी प्रशंसक हूं इससे बड़ा या छोटा मेरा कोई परिचय नहीं है।"

"घर में सब लोगों के बारे में बताओ न कुछ ?"

जिया ने मुंह फेर लिया और आंसू पोछने लगी।

"क्या हुआ जिया, क्या मैंने दिल दुखाने वाली कोई बात कह दी?"

साहिल हाथ बढ़ाकर जिया के आंसू पोछने लगे। इतने में जिया फफक कर रो पड़ी। साहिल ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया। साहिल के अपनेपन से अभिभूत हो चली थी जिया। कितनी देर तक उसके कंधे पर अपना सिर टिकाए रही पता ही न चला। उधर साहिल भी यही महसूस कर रहा था कि जिया का बहुत दिनों का दर्द पिघल रहा है। लेखक परिस्थितियों को जीते हुए अपना मनोविज्ञान इतना दुरुस्त कर चुका होता है कि आंख से निकले आंसुओं की तासीर पढ़ने लग जाता है। जिया को साहिल उतना मिल गया था जितना वो चाहती थी मगर साहिल ख़ुद में कहीं ज्यादा खर्च हो रहा था। उसके मन का वो हिस्सा भी द्रवित हो चला था जो जिया का था ही नहीं। मुलाक़ात का अंत ऐसा होगा दोनों ने सोचा भी नहीं था। बहुत भारी मन से एक दूसरे से विदा लेकर अपने अपने रास्ते चले गए। रास्तों को क्या पता यह कदम मुड़कर कभी वापस मिलेंगे भी या नहीं। जिया बहुत भारी मन से अनाथालय की ओर बढ़ रही थी। किसी का इतना स्नेह महसूस करके आज उसे रिश्तों से ख़ाली होने का अहसास बहुत कचोट रहा था। जानबूझकर उसने साहिल को अपनी हकीकत नहीं बताई। कहीं साहिल यह ना समझ बैठे कि प्यार से ख़ाली जिया उनमें प्यार तलाश रही है और उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचे। यह सोच कर उसने अनाथालय छोड़ने का निर्णय ले लिया क्योंकि पोस्ट बॉक्स नंबर के जरिए साहिल का वहां तक पहुंचना कोई मुश्किल नहीं था।

उधर जिया की हकीकत से अनजान साहिल बहुत उलझन में था। उसी दिन उसे बनारस छोड़ना भी था। दिल्ली की गाड़ी में रवाना होने से पहले ही उसने बनारस से वापस लौटकर आने का वादा कर लिया। जाने क्या दर्द था कि उसके चेहरे पर ख़ामोशी पसर गई। इस दौरान उसने जिया को कई चिट्ठियां भी लिखीं पर कोई जवाब न आया। कई दिनों तक लगातार ऐसा देखते हुए पत्नी ने कारण जानना चाहा। ना चाहते हुए भी साहिल ने अपने और जिया के बारे में शुरू से आखिर तक पूरी बात बता दी। कहां तक जिया का दर्द अपने दिल में रखता। पत्नी ने तुरंत ही बनारस जाकर जिया से मिलने की सलाह दी। फिर दोनों की सहमति से साथ-साथ अगले हफ्ते जाने का कार्यक्रम बना। मगर कुदरत ने कोई रास्ता ही कहां छोड़ा था। साहिल और जिया का प्रेम तो बस अमर होना था। एक कहानी के दो किरदार स्वतंत्र हो चले थे। जिया के लिए आज भी साहिल के अलावा कोई नहीं और साहिल के लिए आज भी जिया उसकी सर्वोत्तम कहानी है, जो पुरस्कृत है।


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