हरि शंकर गोयल

Comedy Horror Crime

3  

हरि शंकर गोयल

Comedy Horror Crime

भयानक

भयानक

9 mins
176


आज प्रतिलिपि सखि कहीं नजर नहीं आ रही थीं। पिछले दो साल से हम लोग आपस में जुड़े हुए हैं। सुख दुख में एक दूसरे से बतियाते रहते हैं। कभी दिल का गुबार निकाल लेते हैं तो कभी खुशियां आपस में बांट लेते हैं। प्रतिलिपि मेरी पक्की वाली सखि बन गई हैं। उसके बिना मन कहीं लगता ही नहीं है। अब तो जुबान पर हरदम प्रतिलिपि शब्द ही रखा रहता है। 

आज सुबह से हम उन्हें ढूंढ रहे हैं मगर वे "गधे के सींग" की तरह ना जाने कहाँ गायब हो गई हैं। हमने इधर उधर सब जगह तलाश कर लिया मगर उनका पता कहीं भी नहीं लगा। और तो और छमिया भाभी से भी पूछ लिया मगर उन्हें भी प्रतिलिपि सखि के बारे में कुछ पता नहीं था। हम बड़े निराश हुए।

हमारा दिल धक धक करने लगा। कुछ अनहोनी की आशंका से बैठने लगा। आजकल राजस्थान में अपराध बहुत तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। कभी यह "मरु प्रदेश" अपनी मीठी बोली, मेहमाननवाजी, पहनावा, संस्कृति और बहादुरी के लिए जाना जाता था लेकिन आजकल तो यह प्रदेश अपराधियों के लिए स्वर्ग बन गया है। आये दिन बलात्कार, सामूहिक बलात्कार हो रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों की अगर मानें तो यह प्रदेश महिला अपराधों में नंबर 1 बन गया है। 

वैसे राजस्थानियों के लिए यह खबर किसी खुशखबरी से कम नहीं है। आखिर राजस्थान का नाम कहीं पर तो नंबर 1 पर आया। आंखें तरस गई थीं हमारी राजस्थान को नंबर 1 की पोजीशन पर देखने के लिए। इस नंबर 1 की पोजीशन के लिए पुलिस और अपराधी दोनों ही बधाई के पात्र हैं। शायद ज्यादा योगदान पुलिस का रहा हो। वैसे भी पुलिस और अपराधी दोनों ही पक्के दोस्त हैं। शोले फिल्म के "जय वीरू" की तरह। इनकी दोस्ती के चर्चे पूरे अपराध जगत में गूंज रहे हैं। मगर जिन्हें पता होना चाहिए, बस उन्हें ही पता नहीं है शायद। बाकी जनता तो सब कुछ जानती है। 

ऐसे माहौल में जब छोटी छोटी बच्चियों के संग दुष्कर्म होना एक आम बात हो चुकी हो तब "प्रतिलिपि" जैसी सुंदर षोडशी के लिए खतरा बहुत बढ़ जाता है। वैसे भी हमने देखा है कि "प्रतिलिपि" पर ऐसे बहुत से "हैवान" घूमते हैं जिनके इरादे बहुत भयानक हैं। जिनकी सोच बहुत कुत्सित, कृत्य बहुत दूषित और मानसिकता बहुत कुंठित है। ऐसे भयानक हैवान किसी "शिकार" की तलाश में घूम रहे हैं यहां पर। तरह तरह के छद्म नाम रखकर, अपनी पहचान छिपाकर। और तो और अपना धर्म और लिंग बदल कर भी। जिसे हम "कमला" समझते हैं एक दिन वह "कमल सिंह" निकल जाता है। जिसे "दिलीप" समझते हैं वह एक दिन "युसुफ" निकल जाता है। किसी का कुछ अता पता नहीं है यहां। हर चेहरे पर न जाने कितने चेहरे चिपके हुये हैं। 

जब बहुत देर हो गई और प्रतिलिपि सखि नहीं मिली तो हम बहुत परेशान हो गए। एक बार तो हम पुलिस स्टेशन भी पहुंच गये और "गुमशुदा" की तहरीर भी दे दी। मगर थानेदार तो हमें ही "गुनहगार" समझने लगा। हमसे पचासों प्रश्न पूछ डाले और शक की सुई हमारे ऊपर ही घुमा दी कि हो न हो हमने ही प्रतिलिपि को गायब किया है। वो तो हमें ही "अंदर" करने वाला था कि इतने में वहां पर हेमलता आई आ गई। उन्होंने अपनी आदत के अनुसार थानेदार को जो झाड़ लगाई, उसकी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई। वह "सन्निपात" के मरीज की तरह थर थर कांपने लगा। 

हेमलता आई थानेदार से बोली "तुम जैसे लंगूरों को थानेदार कौन बना देता है ? पैसे खिलाकर थानेदार बने हो या तुम्हारा कोई फूफा बड़ा अधिकारी है। या तुम्हारा कोई मामा बड़ा नेता है या फिर तुम "आरक्षण" की देन हो। तुम्हें पता नहीं ये व्यक्ति कौन हैं ? लेखक हैं लेखक। वह भी नामी गिरामी। माना कि कभी कभी छमिया भाभी के संग थोड़ी बहुत "मसखरी" कर लेते हैं पर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि तुम इन्हें शंका की निगाहों से देखो। अपराधियों को तो पकड़ते नहीं और शरीफ लोगों को परेशान करते रहते हो"।

झन्नाटेदार डांट से थानेदार वहीं पर बेहोश हो गया। जब आई ने हमें "नामी गिरामी लेखक" बताया तो हमें आई पर बड़ा गर्व हुआ। अरे, उन्होंने कितनी मेहनत की है हमें इस मुकाम तक लाने में। अनन्या जी का भी बड़ा योगदान है। आखिर आई की बेटी जो हैं। 

 थानेदार को उसकी औकात बताने के बाद आई हमसे बोली " हरफनमौला, आप तो जाइये। प्रतिलिपि सखि को तलाश करिये। हम सब भी उन्हें तलाश करते हैं"। हमने उन्हें अल्पाहार के लिए बहुत निवेदन किया मगर उन्होंने "डायबिटीज" का हवाला देकर हमें शांत कर दिया। 

हम घर आ गये। रह रहकर प्रतिलिपि सखि को याद करने लगे। अचानक हमारा पैन नीचे गिर पड़ा। लेखकों के पास एक यही तो संपत्ति है जिससे वे दुनिया बदलने की ताकत रखते हैं और बड़े बड़े सत्ता प्रतिष्ठान उनसे घबराते हैं। भारत में ही जहां पर अभिव्यक्ति की आजादी का रोज ढिंढोरा पीटा जाता है और जिनके द्वारा पीटा जाता है उन्हीं के शासन में तसलीमा नसरीन जैसी ख्यातनाम लेखिका की पुस्तक "लज्जा" को प्रतिबंधित कर दिया गया था। और माननीय सुप्रीम कोर्ट जो "अभिव्यक्ति की आजादी" के स्वयंभू संरक्षक बने हुए हैं, तब खामोश थे। तब अभिव्यक्ति की आजादी कहाँ चली गई थी ? 

हम जैसे ही पैन उठाने के लिए नीचे झुके तो हमारी निगाह पलंग के नीचे पड़ी। वहां पर प्रतिलिपि सखि सहमी सहमी, डरी डरी, सिमटी सिमटी सी बैठी थी। चेहरे पर भयानक खौफ था। डर के मारे पूरा शरीर पीला पड़ा हुआ था। दांत कटकटा रहे थे। बदन कांप रहा था। सांसें लुहार की धौंकनी की तरह 'धाड़ धाड' कर रही थी। नथुनों से शोलों की तरह गर्म हवा निकल रही थी। 

बाहर निकालने के लिए हमने हाथ बढ़ा कर उन्हें पकड़ा तो हमें 440 वॉट का झटका सा लगा। बदन लाल सुर्ख लोहे जैसा तप रहा था। बड़ी मुश्किल से हमने उन्हें बाहर निकाला और पलंग पर बैठा दिया। शीतल जल पिलाया। ए सी ऑन किया और उनका हाथ अपने हाथ में लेकर कोमल शब्दों में कहना शुरू किया 

"सखि, इतना भय किसका है ? कौन है वो जिससे तुम इतनी भयभीत हो ? और भय का कारण क्या है" ? 

हमारी संवेदनशील बातों और हमारे सद व्यवहार ने जादू जैसा काम किया। प्रतिलिपि सखि थोड़ी नॉर्मल हुई। कहने लगी 

"सखे, भय का एक कारण हो तो बताऊं ? यहां तो वो वाली कहावत चरितार्थ हो रही है कि 'हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा' ? चारों तरफ भयानक शक्ल, इरादे, सोच वाले लोग छुट्टे घूम रहे हैं तो ऐसे में एक सुंदर सी 'अक्षतयौवना षोडशी' को तो भय लगेगा ही लगेगा। हमने रामायण और महाभारत में राक्षस, पिशाच, नराधम जैसे लोगों के बारे में तो पढ़ा सुना था मगर अब तो उनसे भी भयंकर लोग सफेद खादी में, पुलिस की वर्दी में, काले कोट में, मीडिया में और समाज में नजर आते हैं जो अपने स्वार्थों के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। 

पहले तो कुछ राजनीतिक दल एक समुदाय विशेष का "तुष्टिकरण" ही करते थे मगर अब तो उनकी आतंकी कार्यवाही को "भटके हुये नौजवान", "मासूम मास्टर का मासूम बेटा", "गरीबी से तंग हाल आदमी", "बेरोजगारी से बनने वाला आतंकी" बताकर "विक्टिम कार्ड" खेलने में कोई गुरेज नहीं करते हैं। और तो और अब तो एक आई आई टियन आतंकवादी को "विक्षिप्त युवा" का प्रमाण पत्र देकर उसकी आतंकी गतिविधियों पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो "तिलक" लगाने भर से किसी को "भगवा आतंकवादी" घोषित कर देते हैं और सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले आतंकी को "मासूम भटका हुआ नौजवान" बता कर उसके गुनाह छुपाने की कोशिश करते हैं। इन लोगों के लिए "कोई" जार जार रोई थी रात भर। समाजवाद के पुरोधा ने तो लगभग 60 दुर्दांत आतंकवादियों के केस वापस ले लेने के लिए दरख्वास्त लगा दी थी कोर्ट में। वो तो कोर्ट ने मंजूर नहीं की और ऐसे आतंकवादियों में से कुछ को फांसी और कुछ को उम्र कैद की सजा हुई थी। 

"भारत तेरे टुकड़े होंगे, इन्शाअल्लाह, इन्शाअल्लाह" और "अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं" जैसे नारे इसी देश की एक मशहूर यूनिवर्सिटी में सरेआम लगाये गये हैं। उनके समर्थन में देश के बड़े बड़े दलों के नेता खड़े हो जाते हैं। मीडिया, बुद्धीजीवी, बॉलीवुड गैंग, मोमबत्ती गैंग, बड़ी बिंदी गैंग, सब लोग उनको "मासूम युवक" कहकर उनका बचाव करते हैं। और तो और सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की उपस्थित में "अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं" के नारे लगते हैं और वह रिटायर्ड जज खीसें निपोर कर बेशर्मी से हंसते रहते हैं। आप सोचिए कि ऐसे जजों ने कैसे कैसे फैसले किये होंगे ? 

किसने मारा था अफजल गुरु को ? और क्यों मारा था ? क्यों यह बात उस जज को पता नहीं थी ? सुप्रीम कोर्ट ने ही तो उस दुर्दांत आतंकवादी को फांसी की सजा दी थी और वह भी संसद पर हमला करने के अपराध में। और फिर भी वह जज बेशर्मी से हंस रहा था तो ऐसे भयानक माहौल में डर नहीं लगेगा तो और क्या होगा ? आतंकवादियों के लिए जाने माने सैकड़ों वकील रात के बारह बजे सुप्रीम कोर्ट खुलवा लेते हैं और सुप्रीम कोर्ट खुल भी जाता है। किसी मासूम बच्ची से गैंगरेप के आरोपी को फांसी पर लटकाने के लिए ये सारे वकील क्यों नहीं सुप्रीम कोर्ट रात को बारह बजे खुलवाते ? और सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं ऐसे जघन्य अपराधियों को फांसी पर लटकाने के लिए त्वरित कार्यवाही करता है ? 

इस देश में तथाकथित मानव अधिकार वादियों को केवल आतंकियों के ही मानव अधिकार दिखाई देते हैं। उनकी पैरवी में वे दिन रात एक कर देते हैं। ऐसे तथाकथित मानव अधिकारवादी किसी जवान की शहादत पर आंसू क्यों नहीं बहाते ? जिस देश का सुप्रीम कोर्ट आतंकवादियों को जेल में  "चिकन मटन" खिलाने का आदेश देता है मगर सवा साल तक अराजक लोगों द्वारा सड़कों को जाम कर राजधानी को बंधक बनाने वालों पर चुप रहता है और टुकुर टुकुर देखता रहता है तो ऐसी न्याय व्यवस्था से डर नहीं लगेगा तो और क्या होगा ? 

एक अराजकतावादी नेता जो सरेआम कहता है कि वह अराजक नेता है, सॉफ्ट आतंकवादी है, एक विधान सभा में काश्मीर के हिन्दुओं के कत्लेआम को झूठा बताकर भयानक अट्टहास करता है। उसी के दल की एक महिला विधायक काश्मीरी महिलाओं के साथ हुए गैंगरेप पर शूपर्णखा की तरह भयानक हंसी हंसती है तो इस देश के भविष्य को सोच सोच कर डर लगता है। 

एक राज्य ऐसा है इस देश में जहां विरोधी दलों के नेता, कार्यकर्ताओं की सत्तारूढ़ दल के गुंडों द्वारा सरेआम हत्या कर दी जाती है। उनकी मां बहनों के साथ गैंगरेप किया जाता है, उन्हें पलायन को मजबूर कर दिया जाता है जिससे जनता में यह संदेश दिया जाये कि सत्तारूढ़ दल का जो भी कैई विरोधी होगा उसका यही अंजाम होगा। उस राज्य में अभी कुछ दिन पहले ही करीब 12 औरतों और बच्चों को जिन्दा जला दिया गया था और मीडिया, राजनेता, सुप्रीम कोर्ट, बुद्धिजीवी, कलाकार सब लोग मौन साधे रहे जैसे कि वहां पर कोई घटना घटी ही नहीं। या फिर वह राज्य हमारे देश का हिस्सा ही नहीं है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो उस राज्य को काश्मीर बनने से कोई रोक नहीं सकता है। जब देश का ऐसा भविष्य दिख रहा हो तो फिर भयानक वाला डर नहीं लगेगा तो और क्या होगा ? 

इतना कहते कहते वह सुबकने लगी। उसकी पीड़ा का कोई अंत नहीं था। थोड़ा संयत होकर कहने लगी कि भय का इस कदर माहौल है कि इसे बताने में उसे दो तीन दिन लग जायेंगे। मैंने भी उसे चुप रहने का संकेत किया और कहा कि चुपचाप रहो वरना तुम्हें सांप्रदायिक, दंगा भड़काने वाली, गंगा जमनी तहजीब की दुश्मन, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली और न जाने क्या क्या कह दिया जायेगा। इसलिए अन्याय को चुपचाप सहन करना सीखो। अगर इस देश में रहना है तो डर डर कर ही रहना होगा। बरसों से ऐसे ही जिंदा लाश की तरह से रह रहे हो, अब आदत डाल लो। 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy