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Mamta Raina

Tragedy

3  

Mamta Raina

Tragedy

भूत

भूत

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रोडवेज की बस पहाड़ी रास्तों पर सरपट दौडती जा रही थी। सांप जैसी बलखाती सड़क, सडक के एक तरफ कटीली ढलान तो दूसरी तरफ पहाड़ थे। उन पहाड़ों पर बनी संकरी पगडंडियाँ जो ना जाने कितने मिलो-मील दूर चली जाती थी। चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिख रही थी। वैसे भी सावन के महीनों में खूब झाड-झंखाड़ उग आते है पहाड़ों में। बरसात के दिनों में इन पहाड़ी रास्तों में फूंक-फूंक के चलना पड़ता था, मगर ड्राइवर को इन पहाड़ी रास्तों की आदत पड़ चुकी थी, वो पूरी मस्ती में बस चला रहा था। उसकी सीट के ठीक पीछे बैठे रामू ने बस की खिड़की से आती ठंडी बयार को महसूस किया। सर्द लहर से उसका तन बदन सिहर उठा। अभी दस-एक मिनट का रास्ता और बचा था उसके गाँव तक। फ़ौजी जैकेट की चेन गले तक खींचकर उसने दोनों हाथ जैकेट की जेबों में ठूंस लिए।

इस बार वो घर जाते हुए काफी खुश था, एक तो बड़ी देर बाद छुट्टी की अर्जी मंज़ूर हुई और ऊपर से छोटी बहन की शादी भी तय हो गयी थी। और इस बार सामान भी खूब था उसके पास। अखरोट-मेवे, घर की औरतों के लिए शाल, पिता के लिए रम की बोतले, कश्मीरी सेब की दो पेटियाँ और उसका फ़ौजी बक्सा और पिठू बैग तो था ही। बस जहाँ-जहाँ रूकती वो गर्दन घुमाकर सारे सामान पर एक नज़र डालता, कहीं कोई कुछ लेके ना उतर जाए।  

उसके गाँव के पास पहुंच कर बस वाले ने जोर से हॉर्न बजाया, यहाँ पर उतरने वाले काफी मुसाफिर थे। सारे जब उतर गए तो रामू इत्मिनान से नीचे उतरा, कंडक्टर ने उसका एक-एक सामान रोड के किनारे टिका दिया।  

“अच्छा दाज्यू, फिर भेंटूला” खीसे निपोरता कन्डक्टर बस की सीढ़ी पर चढ़ा, रामू ने एक 50 का नोट उसके हाथ में थमाया।

पनघट पर उसे सर पे गगरी उठाये चार-पांच औरते मिल गयी, कोई रिश्ते में चाची लगती थी तो कोई भाभी, सबकी भेंट कुशल पूछ कर वो आगे बड़ा। गोंव के कच्चे रास्ते कीचड़ से भरे थे, उसे दूर से ही आंगन में खड़ी अपनी माँ दिख गयी। बड़े-बड़े पत्थरों वाले आंगन में वो झाडू बुहार रही थी। कदमों की आहट सुनकर वो पलटी। रामू की हरी वर्दी देखते ही उसकी आँखों में चमक सी कौंध गयी। उसके जैसे कितने ही लड़के देश सेवा के लिए बारहवीं करते ही फौज में भर्ती हुए थे। गाँव की मिट्टी, हवा-पानी की याद दिल में लिए हजारों कोस दूर फौज की सख़्त नौकरी करते हुए उसे ज़रा भी मलाल नहीं होता था लेकिन माँ के हाथ के खाने और घर के दूध-दही की तो बात ही कुछ और थी।

रात के खाने पर माँ ने उसकी पसंद की चीज़े पकाई। खाने से फारिग होकर उसने बक्से का ताला खोला। जिसके लिए जो सामान लाया था उसे वो पकड़ाया। सबकी नजर छुपाकर माँ के हाथ में रूपये की गड्डी भी रखी। माँ निहाल हो गयी। बेटे की बलाए ली। रामू जानता था उसका अड़ियल बाप माँ के हाथ में एक भी पैसा नहीं रखता था। सबके चेहरो की ख़ुशी देख वो संतोष से भरा हुआ सोने के लिए अपने कमरे में चला गया।

गाँव आते ही रामू एकदम अलमस्त हो जाता था। यहाँ नियम कायदे की किसे परवाह थी भला। जो चाहे सो करो। मगर फ़ौजी अनुसाशन में उसे सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ गयी थी। चाहे कितनी भी सर्दी हो, बारिश हो, वो बिस्तर छोड़ ही देता था।

उसने ज़रा सी खिड़की खोलकर बाहर झाँका, अभी पौ नहीं फटी थी। दूर पहाड़ों पर कोहरे की मोटी चादर नज़र आ रही थी। मौसम जाड़े का तो नहीं था फिर भी पहाड़ों की बारिश भी जाड़े के दिनों का एहसास करा देती है।अपना फौजी जैकेट पहनकर वो कमरे से निकल कर आंगन में आया।चारो तरफ सन्नाटा पसरा था। ठंडी-ताज़ी हवा उसके चेहरे को छू गयी।

वो गोठ में गया ये देखने कि कहीं उसकी माँ गाय तो नहीं दुह रही। हर पहाड़ी घर में जानवरों के लिए एक कोठरी नुमा कमरा होता है जो घर के नीचे वाले हिस्से में बनाया जाता है।

माँ गोठ में नहीं थी, शायद वो अभी उठी नहीं थी। उसने घड़ी पे नजर डाली, अभी तो सुबह के चार ही बज रहे थे।

अब क्या करे वो ? वापस बिस्तर में जाने का मन नहीं हुआ। अपने आंगन से निकल कर वो गाँव की पगडण्डी पर आया। ये उसका नियम था कि जब भी गाँव आता, एक चक्कर पूरे गाँव का लगाता था, इसी बहाने सारे गाँव वालो से उसकी मुलाकात भी हो जाती थी। पुराने साथियों से मिलता, किसी के घर चाय-पानी पी आता।

वो हर एक घर को गौर से देखता चलता जा रहा था, किसी ने पक्की छत बनवा ली थी तो किसी का नया दोमंजिला नज़र आ रहा था। डिश एंटीना अब लगभग हर घर की छत पर नजर आता था, इन सबके बीच एक-दो घर अभी भी पुराने वक्त की याद दिलाते अपनी धुँधली परछाईं में जर्जर हाल में थे।पतली संकरी गलियों से निकल कर वो अब चौड़े रास्ते पर आ गया था। यहाँ से एक रास्ता गाँव के दूसरे हिस्से में बने घरो की तरफ जाता था और दूसरा रास्ता जाता था जंगल की तरफ जहाँ वो अपने बचपन के दोस्तों के साथ गाय-बकरियाँ चराने जाया करता था।उन पुराने दिनों की मीठी याद फुरेरी सी बनकर उसके दिल में उठी। जंगल में मिलने वाले खट्टे मीठे बेरो का स्वाद आज भी उसकी जबान पर था।

पास ही में बूढ़ी काकी का छोटा सा मकान था जिसकी काली पत्थरों वाली छत दूर से नजर आ जाती थी। गाँव का सबसे पुराना और टूटा-फूटा मकान। बूढ़ी काकी की उम्र क्या है, ये तो उसे मालूम नहीं मगर सारा गाँव उसे काकी ही बोलता था । वैसे वो रिश्ते में रामू की दादी लगती होगी। रामू जब भी घर आता तो बूढ़ी काकी के घर के पास कुछ देर रुककर काकी का हाल-चाल पूछ लेता था।

इस बार भी आदतन उसने काकी के घर की तरफ देखा, कोहरा अभी ठीक से छंटा नहीं था। तभी उसे काकी दिख गयी। वही झुर्रीदार चेहरा, झक्क सफेद बाल, एक सूती धोती लपेटे वो अपने घर की जर्जर सीढ़ियों पर बैठी ना जाने क्या बड़बड़ा रही थी।

रामू को जैकेट में भी ठंड महसूस हो रही थी मगर काकी एक सूती धोती में बाल खोले किसी पुरानी मूर्ती सी निश्चल बैठी रही।

रामू ने जोर से उन्हें एक आवाज़ दी। रामू की आवाज़ पर काकी ने उसकी तरफ देखा और हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया।

असमंजस में पड़ा रामू सोचने लगा कि क्या करूँ, ठंड बहुत थी और काकी के घर जाने का मतलब था जोर-जोर से अपनी बात बोल कर उन्हें समझाना क्योंकि वो ऊंचा सुनती थी।

उसने दूर से ही काकी को इशारों में समझाया कि वो बाद में उनसे मिलने आएगा और आगे बढ़ गया।

जब वो घर लौटा तो माँ को ड्योढ़ी में इंतज़ार करता पाया।

“कहाँ चला गया था इतनी सुबह, चल नाश्ता कर ले फटाफट’ उसकी माँ बोली

माँ चूल्हे के पास बैठी उसे गर्म फुल्के खिला रही थी।

खाते-खाते रामू बोला” माँ, अभी काकी को देखा, अभी भी बिलकुल वैसी है जैसी पिछली बार देखा था’

“ किस काकी की बात कर रहा है? 

“वही जो अपने गाँव की सबसे बूढ़ी काकी है” 

“अरे लला, तूझे भ्रम हुआ होगा, काकी तो पिछले महीने ही चल बसी। बेचारी बहुत बीमार रहती थी” माँ रोटी बेलते हुए अनवरत बोले जा रही थी।

“तू इतने दिनों बाद आया है ना, कल बताना भूल गयी थी,” माँ लाड़ से बोली”, एक रोटी और लेगा लला”? 

रामू के हाथ से कौर छूट कर थाली में गिर गया। वो अजीब सी नज़रों से माँ को घूरे जा रहा था। माँ की आवाज़ जैसे उसके कानों तक पहुंची नहीं, उसी तरह बुत बना वो बैठा रहा।

बार-बार पुकारने पर भी जब रामू ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसकी माँ उसके पास आई, उसे हिलाया-डुलाया लेकिन रामू शून्य में घूरे जा रहा था, फिर अचानक वो लुढक कर वही औंधे मुंह गिर पड़ा। एक ज़ोरदार चीख के साथ उसकी माँ भी वही पसर गयी। रामू की पथराई आँखें अभी भी कहीं दूर देख रही थी।

पूरे गाँव के लोग हैरान थे। फौज से छुट्टी लेकर गाँव आये रामू की अचानक दिल की धड़कन बंद हो गयी थी। मगर कैसे, ये कोई समझ नहीं पा रहा था।


 



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