राजकुमार कांदु

Tragedy

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राजकुमार कांदु

Tragedy

भिखारी

भिखारी

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" साब ! कुछ खाने को दे दो साब ! दो दिन से कुछ नहीं खाया । " लगभग दस वर्षीय मैले कुचैले चिथड़े से वस्त्र पहने एक बालक ने सुरेश का रास्ता रोक लिया था । 

" भीख मांगते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती ? " सुरेश ने नसीहत दी ।

" शर्म आती है साब ! लेकिन क्या करें ? जब पेट में भूख की आग लगती है तो सारी शर्मो हया उसमें जलकर खाक हो जाती है । काम हम भी करना चाहते हैं साब लेकिन करने कौन देता है ? वो जो सामने ढाबा दिख रहा है न वहां काम करता था और बहुत खुश था कि एक दिन किसी ने शेठ को बताया बच्चे से काम कराना कानूनन गुनाह है । बस उसी दिन से मैं बेरोजगार हो गया । मैंने हिम्मत नहीं हारी । ढाबे वाले शेठ ने मुझे कुछ पैसे दिए थे काम छोड़ते वक्त । उन्हीं पैसों से मैंने कुछ केले खरीदे और वो सामने के नुक्कड़ पर बैठकर बेचने लगा । मैं बहुत खुश था लेकिन एक दिन नगरपालिका के उड़नदस्ते ने मेरा सारा सामान जब्त कर लिया और एक बार फिर से मैं बेरोजगार हो गया । कुछ दिन पास के पैसे से काम चल गया लेकिन अब मेरे पास कुछ नहीं बचा है । दो दिनों से कुछ नहीं खाया साहब ! और हाँ ! हम गरीब हैं , शायद इसीलिए हमें काम करने का या कोई रोजगार करने का हक भी नहीं है जबकि फिल्मों में ,टी वी सीरिअल्स में , और कई रियलिटी शोज में दो या तीन साल के बच्चे भी काम करके ढेरों पैसे कमाते हैं उन्हें कोई नहीं कुछ कहता । लोग उन्हें पैसे भी देते हैं और सम्मान भी लेकिन जब हम जैसे लोग कहीं मजदूरी या रोजगार भी करना चाहें तो कानून को दर्द होने लगता है । अब तुम ही बताओ साब ! हम क्या करें ? "

 सुरेश उसकी व्यथा कथा सुनकर भावुक हो गया था । पास ही होटल में से वड़ापांव लेकर उसे दिया और अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ आगे बढ़ गया ।


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