भाई-भाई का रिश्ता
भाई-भाई का रिश्ता
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"" किसी दूरस्थ पहाड़ी के एक गांव में दिलीप सिंह नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके दो बालक थे बड़े बालक का नाम प्रताप सिंह व छोटे बालक का नाम महेंद्र सिंह था। उन दोनों भाईयों की माता जी का निधन तब हुआ जब प्रताप सिंह 10 साल का और उसका छोटा भाई महेंद्र सिंह 7 साल का था। इन दोनों भाइयों को उनके पिताजी ने बड़े लाड़-प्यार से पाला था। इनके पिताजी अपने पुश्तेनी खेती और गांव में आये सरकारी योजनाओं के माध्यम से घर गुजारा चलता था। उनके बड़े लड़के ने गांव के पास ही सरकारी इंटरमीडिएट कॉलेज से बारहवीं की परीक्षा पास कर उच्च शिक्षा के लिये दिल्ली चले गये। वहाँ पर उसने एक सरकारी कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष में एडमिशन ले लिया ओर कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ ही वह पार्ट टाइम नोकरी करने लगा ताकि उसका अपना कॉलेज का खर्च अपने आप स्वयं उठा सके। बीए के साथ-साथ वह अतिरिक्त समय में वह कम्प्यूटर एवं टाइपिंग के लिए कम्प्यूटर सेंटर में जाकर प्रेक्टिस करता था। तीन साल में उसने अपना कॉलेज पूरा करने के बाद वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में बाबू की नोकरी मिल गयी।
बहुत दिनों बाद उसे घर से चिठ्ठी आती जिसे पढ़कर प्रताप सिंह बेहोश हो जाता है, जब उसका दोस्त उसे ऊठाने की कोशिश करता है तो वह ऊठाता नहीं काफी देर फिर उसका दोस्त उस चिठ्ठी को पढ़ता है तो उसमें लिखा होता है कि उसके पिताजी की सड़क हादसे में मौत हो गई है कि प्रताप सिंह को तुरंत घर बुला रखा है व दोस्त भी सन्न हो जाता है और वह बड़ी मुश्किल से अपने दोस्त को सम्बलता है ओर उसे ढाँढस देता है। वह तुरंत उसी दिन घर के लिये गाड़ी ही बुकिंग कर गाँव जाता है और दोनों भाई अपने पिताजी की पूरी विधान से अंतिम संस्कार करते हैं और कुछ दिन तक गाँव मे ही रहता है। अब दोनों भाई अनाथ हो गये थे यह बहुत ही बड़ा सदमा था दोनों भाईयों के लिये।
कुछ दिनों के बाद प्रताप सिंह अपने छोटा भाई महेंद्र सिंह को अपने साथ दिल्ली ले आता है ओर उसे वहीँ पास के अच्छे विद्यालय में कक्षा-११वीं में दाखिला करवा दिया। प्रताप सिंह ने जल्दी शादी भी नहीं कि ताकि महेंद्र सिंह के पढ़ाई-लिखाई में अड़चन ना आये इसीलिए बहुत लेट से शादी की ओर अपने छोटा भाई को किसी चीज की कमी नहीं होनी दी। महेंद्र सिंह भी पढ़ने-लिखने में खूब होशियार था और इंटरमीडिएट की परीक्षा में उसने स्टेट लेवल पर द्वितीय स्थान हांसिल किया था ये सब देखकर बड़ा भाई खुशियों का ठिकाना ना रहा यह उनके लिये बड़े गर्व की थी और दोनों भाई सोचने याद करने लगे कि काश आज हमारे माता-पिता जिंदा होते तो मेरे छोटे भाई उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती चलो आज जहां भी होंगे तो बहुत खुश और गर्व महसूस कर रहे होंगे।
प्रताप सिंहः- अपने छोटे का दाखिला वहीँ के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में कर दिया तीन साल कड़ी मेहनत के बाद पूरे विश्वविद्यालय में उच्च स्थान प्राप्त करने पर उन्हें डिग्री के साथ स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया इस खुशी से उसका बडे भाई का सीना ओर फूल गया। उसके अगले साल ही महेंद्र सिंह ने भारत के सबसे बड़ी परीक्षा में बैठकर उच्च स्थान प्राप्त कर वह अधिकारी बन गया मानो उसके बड़े भाई के घर में खुशियां ही खुशियां आ रही है अब भी वे सब साथ रहते थे। कुछ सालों महेंद्र सिंह के बड़े भाई ने अपने छोटे भाई की शादी कर अपने ही विरादरी में ये दोनों भाई अब भी साथ रहते थे किराये के घर पर।
कुछ समय बाद महेंद्र सिंह का ट्रांसफर वहीं से दूसरे शहर में हुआ तो अपने पत्नी के साथ सरकारी बंगले में चले गये। छोटे भाई ने वहीं पास में एक छोटा सा जमीन का प्लॉट लिया था अपने बड़े भाई को बिना बातये मकान का काम भी लग गया ओर शानदार कोठी बन गया। नये घर के ग्रह-प्रवेश के लिये उसने अपने भाई को फोन किया कि आपको कल नए घर के ग्रह-प्रवेश में सब परिवार आना है। उसके भाई ने बधाई दी। ओर अपने पत्नी और बच्चों से कहा कल हमने छोटे भाई के नये घर की पूजा में जाना है।
बड़ा भाई मन ही मन में सोचने लगा कि काश बाद में बना लेता घर पहले मेरे बेटी की शादी कर लेते हम दोनों मिलकर फिर नया घर बनाते कुछ समय और रुक जाता पर कोई नहीं सब समय का खेल है अच्छी बात है। अगले दिन बड़े भाई प्रताप सिंह अपने परिवार के साथ महेंद्र सिंह के नये घर की पूजा के लिये जाते हैं जैसे ही वह नये घर में पहुँचते हैं तो नया घर देखकर वह चोंक जाता है कि यह तो शानदार कोठी बनायी है कम से कम करोड़ों रुपए लगें होंगे ये सब मन ही मन में सोच रहा था तभी उसका छोटा भाई उसकी पत्नी और कुछ रिश्तेदार आये हुये थे। महेंद्र सिंह और उसकी पत्नी ने अपने बडे भाई - भाभीजी का चरण स्पर्श कर घर के अंदर ले गए बड़े भाई ने दोनों को बधाई दी नये घर की।
तभी पंडित जी ने कहा कि पूजा का समय हो गया है दोंनो पति-पत्नी पूजा-पाठ में बैठ जाओ तभी छोटे भाई ने कहा पंडित जी मेँ ओर मेरी पत्नी पूजा में नहीं बैठेंगे, बल्कि हम दोनों की जगह मेरे बड़े भैय्याजी-भाभी जी बैठेंगें पूजा में ये बात सुनकर बड़े भाई ओर भाभी जी चोंक गये तो बड़े भाई ने कहा महेंद्र सिंह तुम ये क्या कह रहे हो हम दोनों क्यों घर तो तुमने लिया है तो पूजा में भी तुम दोनों ही बैठेंगें हम दोनो नहीं।
तब महेंद्र सिंह ने कहा "भैया जी - भाभीजी मैंने यह घर आपके लिए बनाया है और आज से आप सब इसी घर में रहेंगे क्योंकि आपने मेरे लिए जो किया ओर आज मेँ जिस मुकाम पर हूँ ये सब आपकी वजह से हूँ आपके लिये तो ये छोटा सा उपहार है इसीलिए मैने आपको कुछ नहीं बताया।" तभी बड़े भाई ने कहा "ये तुम क्या कह रहे हो ये तो एक बड़ा भाई का फर्ज है ओर कुछ नही तभी छोटे भाई ने कहा मैं समझता हूँ इसीलिए कह रहा हूँ जहाँ तक बड़ी बेटी के पढ़ाई-लिखाई ओर शादी का सवाल है तो हम दोनों भाई मिलकर धूमधाम से अपने बेटी की शादी करेंगे। इसीलिए आप दोनों से हाथ जोड़कर विनती करता हूँ कि पूजा मै बेठो"
ये सब बातें सुनकर बड़े भाई के आँखों से आँसू आ गया और दोनों भाई आपस में गले मिले ये सब देखकर वहाँ पर सब उपस्थित रिश्तेदार ओर परिवार वाले भी भावुक हो गये तभी पंडित जी ने कहा जल्दी बैठो पूजा का समय निकलते जा रहा है। फिर पूजा में महेंद्र सिंह के भैया-भाभीजी बैठे और इस तरह से नये का ग्रह-प्रवेश हो गया एक दूसरे ने बधाई दी और पंडित जी को भोजन कराकर उन्हें दान देकर विदा किया फिर ओर सबने मिठाई ओर भोजन कर सभी अपने-अपने घर चले गए।
महेंद्र सिंह के भाई ओर उनका परिवार भी अपने किराये के घर पर जाने लगे तभी महेंद्र सिंह ने कहा बड़े भाई साहब आप ओर आपका परिवार अब से नये घर में ही रहेंगे हम सब इसी घर में एक साथ मिलकर जुलकर रहेंगे आज तक आपने मेरे लिये जो किया आज एक छोटा भाई आपके लिए कर रहा है तो आप इसका अवसर भी नहीं देंगें। इस तरह से उसका भाई के मन में जो सवाल उठ रहे थे अपने भाई के प्रति वह दूर हुआ छोटा भाई चाहता तो ये सब अलग कर सकता था वह एक बड़ा अधिकारी बन गया था सरकारी बंगला मिला हुआ था तो चाहता तो बाद में भी ले सकता था या अपने नये घर में अकेले ही रह सकता था लेकिन उसके छोटे भाई ने ये सब ना कर अपने बड़े भाई के लिये जो कुछ किया वह अपने आप में एक बड़ा मिशाल है और यही सबसे बड़ा भाईचारा है आज के समय मे यह सबसे बड़ा उदाहरण है कैसे एक देवभूमि पहाड़ के दोंनो भाई ने मेहनत कर शहर में रहकर एक भाईचारा को निभाया यह एक अच्छे संस्कार है इसीलिए कहते भी हैं भाई तो भाई होता है। अगर हमारे अपने भाइयों से अच्छा भाईचारा है तो फिर हम समाज में भी अच्छे से भाईचारा निभा सकते हैं।।"
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लेखक :- दिनेश सिंह: