दिनेश सिंहः नेगी

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4.0  

दिनेश सिंहः नेगी

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कुछ घटना : यादों के झरोखे में

कुछ घटना : यादों के झरोखे में

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  ""आज से चार साल पहले मैं जिस शहर में रहता था वहीं के किसी प्राइवेट पैरामेडिकल कॉलेज में नोकरी करता था मैं वहाँ पर लैब-असिस्टेंट के पद पर कार्यरत था। पर उसके अलावा खाली समय में , मै कॉलेज के अन्य काम भी करता था साथ ही सर से लेकर अन्य स्टाफों का काम कर देता था जो भी मुझे काम के लिये बोलते उस काम को मै कभी भी मना नहीं करता था। जिस दिन मुझे कोई काम मिलता था तो मै उस काम को बड़े लगन से करता था। ओर जिस दिन काम नहीं करता था तो दिन लाइब्रेरी में बैठकर अक्सर पुस्तकें,अखबार ओर पत्रिकाएं पढ़ा करता था। वेसे तो वहाँ पैरामेडिकल से सम्बंधित ही किताबें होती थी पर कुछ अन्य ज्ञानवर्धक किताबें भी रखी होती थी। लैब मै काम भी बहुत कम रहता था क्योंकि वहाँ पर स्टूडेंट्स ही अपने आप प्रेक्टिकल करते रहते थे मेरा काम तो बस लैब के हर सामान की देखरेख करना होता था। मेरा स्टूडेंट्स के साथ भी अच्छी दोस्ती हो गयी थी।

   

    एक दिन कॉलेज के डीन सर ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया और कहा कि आप अपने साथ कुछ स्टॉफ को लेकर पुरानी बिल्डिंग में कुछ पुरानी किताबों का बंडल पड़ा हुआ हैं इन सभी क़िताबों के बंडलों को कॉलेज के नई लाइब्रेरी में रखो, मेँने कहा ठीक है सर हो जायेगा ये काम। मैं अपने साथ तीन ओर स्टाफों को लेकर पुरानी बिल्डिंग में गये ओर उस कमरे में गये जहाँ पर बहुत से किताबों का बंडल रखा हुआ था हम सबने अपने अपने सुविधा के अनुसार किताबों को वहां से नई लाइब्रेरी में रखना शुरू किया और उस दिन हमने वहीँ काम किया। मैंने डीन सर को बताया की हमने सारे किताबों के बंडल नई लाइब्रेरी में रख दिया सर ने हम सबको शाबासी दी और सबको ओफिस में बुलाया और चाय-बिस्किट की हल्की सी पार्टी दी हमारे इस काम के लिये। मुझे तो टाइम पास करना था ताकि रात को अच्छे से नींद आ जायँ। उस दिन तो मुझे ओर भी बड़ी ख़ुशी हुई कि पहली बार इन पुस्तकों के साथ समय गुजरा स्याम के पांच बजे हमारी छुटी हो जाती थी और मैं कॉलेज के किसी एक सर के बाइक में आता था उस दिन रात को खाना होटल में ही खाया और जल्दी थकान के कारण जल्दी सो गया। उस दिन मस्त होकर सो गया और सुबह कब आंख खुली पता ही नहीं चला।

  फिर हर रोज की तरह ही सुबह का नाश्ता बनाकर टिफिन में दो चार रोटी सब्जी पैक कर एक दम तैयार होकर महानगर बस सेवा से कभी लटकते खड़े होकर बस से थोड़ा बहुत पैदल चलकर ठीक सवा 9 बजे कॉलेज में उपस्थिति लगाकर अपने कॉलेज के अपने लैब में बैठ जाता ओर लैब में सारे यंत्र को सफाई और यथा स्थान पर रखता।

    दोपहर के ढाई बजे लाइब्रेरी से अरुण सर मुझे बुलाने आये कि आपको लाइब्रेरियन मैडम जी बुला रही है आपसे कुछ जरूरी काम है मैने सोचा कि चलो आज भी काम मिल गया है मैं उनके साथ लाइब्रेरी चले गया मैंने  मैडमजी जी को नमस्ते किया तभी मैडम ने "आओ दिनेश जी क्या हाल चाल है" मैने कहा "ठीक हैं"," कल तुमने बहुत मेहनत कि किताबों के बंडल को यहाँ लाके मैंने कहा ये तो हमारा फर्ज है आज उन्हीं बंडलों में से कुछ किताबें हैं जो कुछ खाली अलमारी या रैक में रखना है" विषयवर मैने कहा बिल्कुल" मैं तो तैयार हूँ बस आप इजाजत दें ओर मैं अरुण सर के साथ किताबों को सजाने लगा अलमारियों में ओर मैडमजी किताबों को विषय के अनुसार अलग करने लगी तभी अरुण सर बाथरूम गये।

   मै किताब लगाते रहा तभी अचानक अलमारी में किताबों का वजन बढ़ने लगा ओर वह डगमगाने लगा मैं उस वक्त मैडम जी मुझे किताब दे रही थी मैने मैडम जी कहा आप नीचे से हट जाओ तुरंत क्योंकि यह रैक गिरने वाला है मै इसे थाम रहा हूँ मैडम जी तुरंत अरुण सर को बुलाने गयी मैं उसे थमाता रहा किताबों से भरा वह रैक मेरे ऊपर गिर गया तभी दोनों मैडम जी अरुण सर आ गये वह नजारा देख सन रह गया कि दिनेश कहाँ गया जैसे ही वे पास आये तो उन्होंने अलमारी उठायी मेरे उपर से ओर देखा तो मै किताबों के नीचे पड़ा हुआ था उन्होंने ओर मैने तुरन्त किताब हटायी ओर मैं उठा वे दोनो मुझे देख अचंभित रह गये और कुछ देर कुछ नहीं बोल सके, फिर मैडमजी ने कहा "आज अपने हमें मरवा ही दिया था" मैंने कहा "मैडम जी अगर मैं आपको दूर हटने या जाने के लिये नहीं कहता तो यह अलमारी के साथ अन्य दो अलमारी भी गिरने की सम्बवना थी ओर इसके कारण आप भी इस भारी आलमारी के चपेट आ जाती इससे ओर भी बड़ी समस्या खड़ी हो जाती इसीलिए मैंने इस अलमारी को खाली जगह पर धीरे धीरे खिसकाते रहा जिससे यह खाली जगह में गिर गया।" मैने कहा "आप दोनों चिंता मत करो मैं ठीक हूँ किताब के कारण मुझे कोई चोट नहीं आयी है।" मैने मजाक में कहा" मैडमजी आज मुझे कुछ हो जाता तो ख़ुशी होती कि कम से कम मां सरस्वती के इस पवित्र ज्ञान के पुस्तकालय के मंदिर में किताबों के बीच ओर वो भी लाइब्रेरियन के सामने मर जाता तो कम से कम लाइब्रेरी के इतिहास में मेरा नाम आ जाता और ये बाते आप लिखते ओर दुनिया को पता चलता।" तभी मैडम जी ने कहा दिनेश जी "तुम लाइब्रेरी के स्टाफ ना होकर भी आपने मुझे घायल होने से बचाया ओर खुद को जोखिम में डाल कर ओर साथ ही और जो शब्द आपने बोले वह मेरे लिये ओर अरुण सर के लिये हमेशा हमेशा के लिए दिल मे उतर गयी है" तभी अरुण सर ने कहा आपने बिल्कुल सही कहा और 'इनके जगह ओर होते तो पता नही आज क्या से क्या हो जाता हम मुसीबत में आ सकते थे पर दिनेश जी ने ऐसा नहीं घुसा भी नहीं किया उल्टा हम दोंनो के लिये ज्ञान की बात भी सीखा दी की वास्तव में लाइब्रेरी का ओर पुस्तक का क्या महत्व होता है हम सभी के आम जीवन में।" मैंने कहा "सर ऐसी कोई बात नहीं आपने खुद मुझे बचाया इसके लिये आप दोनों को दिल से शुक्रिया।" मैने कहा "मैडम जी और सर ये आज की ये बात कॉलेज में अन्य किसी को पता नहीं चलना चाहिए ये बात राज ही रहना चाहिए हम तीनों के बीच" इस तरह से कॉलेज में किसी को भी इस घटना का पता नहीं चला उसके एक साल बाद मैंने नोकरी छोड़ दिया था।

  

 वो घटना आज भी मेरे जहन में है कि कैसे काम काम के चक्कर मे एक लाइब्रेरी में किताबों से भरी अलमारी मेरे ऊपर आ रखा है ओर मैं चुपचाप उस अलमारी को थामे हूँ ताकि बगल में काम कर रही मैडम जी कोई चोट ना जायँ । इसीलिए यह घटना को एक संस्मरण के तौर पर सीधे सरल शब्दों में लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। क्योंकि इस कहानी में लेखक के साथ जैसे हुआ वैसे ही लिखा है यह कोई मंगङ्गत या काल्पनिक कहानी नहीं हैं। वैसे भी मैं कोई अनुभवी कहानी लिखने वाला लेखक नहीं हूँ।

       

  


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