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Uttam Agrahari

Tragedy

4.0  

Uttam Agrahari

Tragedy

बेटियों का भी क्या वजूद (सत्य}

बेटियों का भी क्या वजूद (सत्य}

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यह घटना ग्राम पोस्ट सेमरपहा जिला रायबरेली की है। अपने घर, अपनी ड्योणी, अपना आँगन किसको नही लुभाता। कौन चहता है कि ये सब कभी भी छूटे, शायद कोई नही लेकिन जहाँ उद्देश्य ही केवल षड्यंत्र और अनेकों तरह से परेशान करना हो वहाँ तो सरल व्यक्ति का टिकना असंभव हो जाता है। श्रीमती पार्वती जी जिनकी कि 5 बेटियाँ हैं और कोई बेटा नही है। ये उनके संघर्ष की दास्तान है। पतिदेव सूर्यदीन गुप्ता जी का देहांत हो चुका होता है। वृद्ध माता जी को तो बस अब सिर्फ बेटियों का ही सहारा होता है। और बार -2 आग्रह करने पर भी किसी बेटी के घर जाकर सेवा लेना उन्हे स्वीकार नही होता है। माताजी भी अपनी सभी पुत्रियों की आपसी सहमति से अपनी एक बेटी और दामाद को अपनी सेवा हे9तु रख लेती है। कुछ दिन बीतने के साथ ही अब परेशानियों का दौर सुरु हो जाता है। और आस पास के लोग तरह तरह से परेशान करना शुरू कर देतें हैं। माता जी का मार्ग रोका जाता है, जिस रास्ते से हमेशा आना जाना होता था वो रास्ता बंद कर दिया जाता है और कारण पूछने पर पिंटू नामक व्यक्ति द्वारा अत्यंत तीव्र हमला हो जाता है। नशे मे धुत पिंटू माताजी पर लाठियों से कई वार कर देता है जिसमें कि उसका भाई देव कुमार उर्फ पूती व उसकी भाभी पूजा भी होती है। 

माताजी अपने ऊपर हुए इस एकाएक हमले से जख्मी हो जाती हैं और बेहोश हो जाती है। लेकिन अपराधी युवक पिंटू का हमला रुकता नही है अब भी वो बेसुध हुयी माताजी पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसाता है। तभी एक दो युवक हिम्मत करके माताजी को उस घटनास्थल से किसी तरह निकालकर घर तक पहुंचाते हैं। घर पर माताजी को इस स्थिति में देखकर एक विलाप सुरु हो जाता है और बेटी जयश्री द्वारा निकटवर्ती हास्पिटल में माँ को भर्ती किया जाता है। तकरीबन डेढ़ दिन बाद माँ को होश आता है और इसी दरमियान माताजी की सभी बेटियां भी आ जाती हैं। और माँ को इस स्थिति में देखकर सबका धैर्य छूट जाता है। इस आक्रामक हुये हमले के पश्चात माताजी का पूरा शरीर साथ देना छोड़ देता है औेर मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार न्यूरो की ढेर सारी समस्याएं हो जाती हैं। माताजी अब पूर्ण रूप से चलने फिरनें मे असमर्थ हो जाती है और उनको आँख से दिखना भी बंद हो जाता है।

अपराधी को ज्यादा कुछ नही होता है बस लगभग 1

साल की जेल के बाद रिहा हो जाता है। लेकिन मां जी को तो पूरा जीवन ही कष्ट होता है। समय का पहिया घुमता है और पास पड़ोस की स्थिति और भी खराब हो रही होती है लड़ाई झगड़े बढ़ते ही जाते हैं। ये सब देखते हुये बस यही प्रतीत होता है कि समाज कितना गिर गया है किसी कि मात्र बेटियाँ होने की सजा ये होती है कि बेटियों का रहना बहुत ही मुश्किल हो जाता है क्योंकि लोगों का क्या उन्हें तो किसी असहाय की जमीन पर, मकान पर कब्जा करनें के अतिरिक्त कुछ और दिखता ही नही है। और इसी के साथ एक आसाराम नामक व्यक्ति द्वारा जबरन माकान के सामने ही दुकान रख ली जाती है। इधर इस बेटी को अपनी माँ की सेवा के अतिरिक्त फुरसत ही नही होती कि कुछ वाद विवाद किया जाय। और उधर आसाराम का अतिक्रमण जारी रहता है जिसमें वो उस दुकान के क्षेत्रफल को मौका देखते हुये बढ़ाता जाता है।

इधर माँ की तबीयत हमेशा बिगड़ती ही रहती है। परन्तु सभी बच्चों की सेवा सुश्रुवा द्वारा स्थिति को सम्भालने का संघर्ष होता है। दिल्ली के प्रसिद्ध वेणु आई इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च जैसे अच्छे हास्पिटल से इलाज कराकर माता जी कि आंखो की ज्योति वापस लाने का एक असंभव सा प्रयास किया जाता है औेर बहुत सारी प्रार्थनाओं और डाक्टर के पूरे सहयोग से ये दुस्कर कार्य संभव हो जाता है और माताजी फिर से देख पानें में समर्थ हो जाती हैं।

परन्तु न्यूरो के अच्छे हास्पिटल से भी काफी इलाज के बाद भी कुछ सुधार नही हो पाया। माताजी अपने चोटिल शरीर के साथ पूरे आत्मशक्ति से लड़ी और लगभग 7 वर्षों के जटिल संघर्ष के बाद 90 वर्ष की उम्र में शरीर त्याग दिया।

काफी चौड़ा रास्ता होने के बाद भी रास्ते में मना करनें के बाद भी गिट्टी मौरंग डलवा दिया था और शोकाकुल परिवार को अर्थी भी निकालनें में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।  सच है बेटियों का भी क्या वजूद साहब ! अपने ही घर आंगन में रहना मुश्किल हो जाता है। धमकियां आये दिन मिलती रहती हैं। और आज की स्थिति ऐसी है कि माताजी के देहान्त के पश्चात हर तरह से परेशान किया जा रहा है।

 शायद इन आतताइयों के अवैध कब्जे व आक्रामक रवैये से या जबरन कब्जे से एक बेटी को अपने पिता का आंगन छोड़ना पड़े।


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