बेटी से गृहणी ।
बेटी से गृहणी ।
एक बेटी जब ससुराल जाती है, वो बेटी का चोला छोड़ गृहणी बन जाती है, जो बातें घर पर अम्मा से कहती थी ससुराल में छिपा जाती है।
थोड़ा सा दर्द होने पर बिस्तर पकड़ने वाली बिटिया अब उस दर्द को सह जाती है, तकलीफें बर्दाश्त कर जाती है पर किसी से नहीं बताती है।
सिरदर्द होने पर जो अम्मा से सिर दबवाती थी अब खुद ही तेल या बाम लगाती है पर किसी से ना बताती है।
पहले पेटदर्द होने पर पिता जी से तमाम महंगी दवाइयाँ मंगाती थी, पर अब पेट पर कपड़ा बांधकर घुटने मोड़ पेट में लगाकर लेट जाती है, लेकिन उसके पेट में दर्द है यह बात किसी को ना बताती है।
उसकी रीढ़ उसकी कमर पर पूरा घर टिका है उसके खुश होने पर पूरा घर खुश दिखा है झुक कर पूरे घर में झाड़ू लगाना बैठे बैठे बर्तन कपड़े धोना खाना बनाना
पानी से भरी बीस लीटर की बाल्टी उठाना कभी गेहूं कभी चावल बनाना छत की सीढ़ियों से जाकर कपड़े सुखाना आखिर कितना बोझ सहती है पर किसी से कुछ ना कहती है।
जब थक कर कमर दर्द से चूर हो जाती है तो कमर के नीचे तकिया लगाकर सो जाती है दर्द हंसते हंसते सह जाती है  
; पर मदद के लिए किसी को न बुलाती है।
घरों में काम करते करते दौड़ते दौड़ते चकरघिन्नी की तरह घूमते घूमते पूरा ही दिन बीत जाता है खुद के लिए समय न निकाल पाती है।
मायके में मां ने कितना सुकून दिया था पैर दर्द करने पर मालिश किया था पर अब तो दौड़ते दौड़ते काम करते करते पैरों में सूजन आ जाती है।
दर्द बर्दाश्त कर लेती है पर किसी से ना बताती है। नमक पानी गुनगुना कर उसमें पैर डालती है पर किसी से गलती से भी पैर ना दबवाती है।
कभी पति की मार, सास की डांट ससुर की फटकार सब सह जाती है पर ज़ुबान नहीं खोलती और ना ही किसी को बताती है।
चुप रहने में ही भलाई है सोचती है बिटिया होने पर खुद को कोसती है जो कभी पिता से लड़ जाया करती थी, मां को समझाया करती थी,
अब सब कुछ सुन लेती है सह लेती है पर ज़ुबान नहीं खोलती है। क्योंकि उसे पता है जब वह कहेगी तबियत ठीक नहीं तो ससुराल वाले कहेंगे तू बीमार तो नही।
वो दर्द से व्याकुलता नहीं देखेंगे दवा कराने के बजाय कोसेंगे। नहीं देखेंगे तुम्हारा दिन रात का काम करना वो तो बस कमियाँ निकालेंगे।
ये हमारी बेटियों का बेटी से गृहणी तक का सफर है पर अफसोस हम इस 'एहसास' से बेखबर हैं।