बेला

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कुमुदनी की माँ ’बेला’ कई घरों में बर्तन मांजने और झाडू पोछे का काम करती थी। दिन भर काम करने के बाद जब बेला घर को आती तो बेला का पति सत्तू शराब के नशे में उसे खूब पिटता।

 ये रोज-रोज की मारपीट बेला के लिए आम बात थी। उसे अपने से ज्यादा अपनी बच्चियों के भविष्य की चिंता सता रही थी। एक सुबह काम पर जाते समय वो थकान के चलते बरगत के पेड़ की छाँव तले सुस्ताने बैठ गयी। 

  ’’आह.....इस काँटे को क्या अभी चुभना था पाँव में’’, दर्द से छटपटाते हुए बेला ने कहा।

बड़े दुख में था बेला का मन, कि आखिर उसके दुनिया से चले जाने के बाद कौन उसकी मासूूूम बच्चियों का लालन-पालन करेगा? पति तो एक नम्बर का नशेडू था, दिनभर घर में पीकर एक कोने में पड़ा रहता था, उसे अपनी तो सुध नहीं थीं। कहीं अपनी शराब की बुरी लत में मेरी बेटियों को न बेच दे मुआ। 

ऐसे कई सवाल बेला को सता रहे थे, पर बेला की फ्रिक भी जायज थी। उसके आगे पीछे कोई नहीं था। ले देकर छोटा सा काम था जिससे एक वक्त का खाना भी मुश्किल से हो पाता था।

सत्तू कोई काम धंधा तो करता नहीं था, बस उसको तो एक ही काम आता था, वो था गाली गलौच करना। आये दिन अपने निकम्मे दोस्तों के साथ जुआँ खेलना, घर को जुएँ का अड्ढा बना दिया था, सत्तू ने। ऐसे में वो कुमुदनी और श्यामा की सुरक्षा को लेकर हर वक्त चिंतित रहती थी।  

बेला का ब्याह तो बहुत छोटी उम्र में हुआ था। उसके बापू ने बहुत गरीबी के कारण सत्तू से उसका ब्याह करा दिया था। बेला की मां तो बहुत पहले ही चल बसी थी। ब्याह के 1 महीने के भीतर उसके बापू भी नहीं रहे थे। 

उसी बरगत के पेड़ के पास एक छोटा-सा स्कूल चलता था, जिसमें शहरी टीचर दीदी ’मानवी’ छोटे बच्चों को मुफ्त शिक्षा देती थी। बेला की इच्छा थी कि उसकी दोनो बेटियां पढ़ लिख जातीं तो सत्तू का बुरा साया भी उनपर न पड़ता। बेला के मन में एक पल को ख्याल आया कि टीचर दीदी से क्यों न मदद मांगी जाये? 

बेला ने जैसे ही पहला कदम बढ़ाया ही था कि सत्तू नशे की हालत में उसके ऊपर आकर गिर पड़ा। 

’’तू यहाँ क्या कर रही? घर से काम का बहाना लेकर जाती है, और यहाँ मटर गशती कर रही है’’, सत्तू गुस्से से भनभनाते हुए बोला।

’’मैं यहाँ मस्ती नहीं कर रही हूँ, तेरी तरह थोड़े न हूँ। कोई काम धंधा करता नहीं, ऊपर से मुफ्त की रोटियाँ तोड़ता है’’, बेला गुस्से से तनतनाते हुए बाली। 

सत्तू, बेला को बालों से घसीटते हुए बोला- ’’तेरी ये हिम्मत मुझसे जुबान लड़ाती है साली, तू घर चल आज तुझे बताता हूँ मर्दानगी क्या होती है ?’ घर लाकर सत्तू ने ड़डा उठाया और वो बेला को मारता रहा। बेला दर्द से कराहती रही पर सत्तू झूठे धमंड में चूर था।   

कुमुदनी और श्यामा, सत्तू के पैर पकड़ते हुए बोलीं- ’’बापू छोड़ दो अम्मा को, मत मारो अम्मा को’’। 

जितना वो सत्तू से बेला को न मारने को कहतीं, उतना ज्यादा सत्तू बेला को मारता गया। अचानक वो हुआ जिसका किसी को भी अंदाजा न था। डंडा सीधे जाकर बेला के सिर पर लगा। जिससे बेला का सर फट गया और वो लहूलुहान होकर धरती पर अधमरी सी गिर पड़ी। 

कुमुदनी और श्यामा ’’अम्मा, अम्मा करते हुए बेला की ओर भागीं’’, 

बेला ने कुमुदनी से श्यामा का हाथ थमाते हुए बोला- ’’कुमुदनी, तू मुझसे वादा कर कि तू खुद भी पढ़ेगी और श्यामा को भी पढ़ायेगी।’’ 

बस, इतना कहते ही बेला ने दम तोड़ दिया। 

कुमुदनी को अपनी अम्मा को दिया वचन हर हाल में पूरा करना था। उसने तुरन्त थाने जाकर सत्तू के खिलाफ रपट लिखाई। पुलिस ने सत्तू को पकड़कर जेल में डाल दिया। 

टीचर दीदी ’मानवी’ की सहायता से कुमुदनी ने पढ़ाई लिखाई शुरू कर दी। उसने साथ-साथ श्यामा को भी पढ़ाया। बेला की अंतिम इच्छा तो कुमुदनी ने पूरी की ही और पुलिस की नौकरी से जुड़कर देश की सेवा करने की ठान लीं।

 ’’श्यामा, अम्मा ने सच कहा था कि औरत जो चार दीवारी के मकान को स्नेह से स्वर्ग बना सकती है वो अपनी मेहनत और लगन से हर मुश्किल को आसान कर सकती है’’, माँ की स्मृतियों को हृदय में संजोये गीली आँखों से कुमुदनी बोली।


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