Priyanka Sarkar

Inspirational

3.7  

Priyanka Sarkar

Inspirational

बातें वहीं, अंदाज नया!

बातें वहीं, अंदाज नया!

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48


स्थान- वर्धमान।

कहानी के पात्र:

पहला-टोटो चालक,

दूसरा-बैंक कर्मचारी।

समय-संध्या 5।

 

बाहर हल्की बारिश हो रही थी। काम खत्म होते ही, मैं झटपट आँफिस से निकल गई ताकि तेज़ बारिश होने से पहले मैं घर पहुँच जाऊँ। छाता हाथ में लिए, मैं टोटो के आने का इंतजार करने लगी। मानती हूँ, इस परिस्थिति में पैदल चले चलना सही होता,फिर भी!

मैं आज व्यक्त व्यक्तिगत रूप से भयभीत होने के बावजूद भी, एक खाली टोटो को आते देख, हाथ से इशारा कर रोका और चढ़ गई। अब,जब रोक ही लिया है तो फिर सौ बातें बनाने का क्या फायदा!? चलो! जब बैठ भी गई हूँ तो,फिर अनाप-शनाप क्यों सोचना!?


दूसरा पात्र- भाई साहब! आपका मास्क कहाँ है?

पहला पात्र (बेफिक्र होकर)- कौन नियमित रूप से पहन रहा है कि, मुझे जरूरत पड़ेगी!

दूसरा पात्र (आश्चर्यचकित होकर)-अपना न सही, अपने बच्चों और बुजुर्गों के बारे में तो सोचो!

पहला पात्र(मुस्कुरा कर)-मैडम जी! मेरे कोई बाल-बच्चे नहीं हैं। और रही बात बुजुर्गों की, बाबा-माँ घर से निकलते हैं नहीं, इसका पूरा ध्यान रखते हैं।

दूसरा पात्र(ज्ञानदत्त)- फिर भी कोरोना तो क्रमशः बढ़ रहा है,थोड़े ही घट रहा है?

पहला पात्र- हमें नहीं होगा मैडम जी! वो तो 10 साल से नीचे और 60 साल से ऊपर की उम्र वालों को होने कि संभावना ज्यादा है। बीच के उम्र वालों में जीतनो को भी हुआ है, उसमें से 90% ठीक भी हो रहें हैं। जो नहीं हो रहें, उनमें पहले से ही कोई बीमारी थी।

दूसरा पात्र (चिंतित भाव से)- परन्तु फिर भी ...

पहला पात्र- कोई नहीं मैडम जी! हमें नहीं होगा। और पता है, ज्यादा समय तक मास्क पहनने से हृदय रोग होता है!


हँसी आकर भी कहीं दब गई!!! उस व्यक्ति का तीव्र हौसला देखकर लगा कि, क्या हम कोरोना को भयंकर रूप दे रहे हैं? क्या यह रोग सचमुच में छोटी सी बात है?


दूसरा पात्र- रोको भैया, मेरा घर आ गया! टोटो वाले ने टोटो रोकी...

भाड़े के बदले मुफ्त की सलाह दी: मैडम जी! खाने में प्रोटीन युक्त खाद्य ज्यादा खायें, कोरोना-वोरोना कुछ नहीं होगा।


कुछ देर तक दूसरा पात्र सोचने लगा...

इस संकट कि घड़ी में, अपने सरल भावों द्वारा टोटो वाले ने, रोज़ मर्रा की बहुत ही साधारण बातों को, एक अलग अंदाज में कह गया!


अंत में,कहानी का अभिप्राय:-

जिंदगी बड़ी ही हसीन है, बस! कुछ भूली बिसरी सामान्य बातों को, नयें ढंग से सोचने की देरी है।



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