बाकी सब ठीक है

बाकी सब ठीक है

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मोहन राव आज 65 वर्ष के हो गए।वो ना जाने किन विचारों में खोए हुए थे। पत्नी ने टोका,अजी ! किस सोच में डूबे हो ? ध्यान भंग हुआ, कहा, कुछ खास नहीं। तुम रसोई में जाओ और थोड़ा गुड़ ले आओ। भगवान को भोग लगा दो, फिर थोड़ा-थोड़ा प्रसाद हम ले लेते हैं। जन्मदिन है भई हमारा, इतना तो करेंगे ही ना। जैसा कहा, वैसा मना ही लिया मोहनजी ने अपनी पत्नी संग जन्मदिन।

फिर मोहनजी ने कहा, आज माँगीलाल की बहुत याद आ रही है, अरे मेरा वो पुराना यार माँगू। देख तेरे पास जो कुछ पैसे पड़े है ना, वो ही दे दे, दूर है ना वो वृद्धाश्रम, सिटीबस मिल गई तो ठीक, नहीं तो ऑटो कर चला जाऊँगा।

आखिर पहुँच गए मोहनजी उस वृद्धाश्रम में जहाँ उनका दोस्त करीब पाँच वर्षों से रह रहा था। दोनों दोस्त बीते वक्त की यादें ताजी करने लगे।

बतियाते-बतियाते काफी समय गुजर गया। मोहनजी उठे और बोले, अब चलना पड़ेगा माँगू, तेरी भाभी चिन्ता कर रही होगी कि कितनी टाइम हो गई बुड्ढे को गए हुए और अभी तक लौटने का पता ही नहीं। ऐसा बोला कि दोनों यार हँसने लगे। ज्योंहि घर को चलने मुड़े, माँगीलालजी ने कहा, सुन मोहन, एक बात तो बता तेरे बेटे की शादी हुए मेरे ख़्याल से करीब तीन साल तो हो गए होंगे ---- थोड़ा रुककर फिर बोला -- सब ठीक है ना, वो तो नहीं बदला। मोहनजी एक बारगी तो अवाक् से रह गए फिर बोले ना रे ! कुछ खास नहीं, बस पहले उस दरवाजे से ही आता था जहाँ पहले मेरा कमरा आता है और अब वह उस दूसरे दरवाजे से आता-जाता है जहाँ पहले उसका कमरा आता है।

माँगू ने यह सुन दूसरा प्रश्न दागा, कहीं पार्क-वार्क घूमने भी जाता है कि रोज घर में ही पड़ा रहता है। जाता हूँ ना यार। पहले तो बेटे के काँधे पर हाथ रख अक्सर पार्क घूम आया करता था पर अब वो इतना व्यस्त रहने लगा है कि समय ही नहीं निकाल पाता है इसलिए कभी-कभार जब मन नहीं लगता, अपनी छड़ी ले थोड़ा घूम आता हूँ। कोई चिन्ता ना करियो मेरे यार,-- 'बाकी सब ठीक है' कहते-कहते मोहनजी रवाना हो गए।

 माँगीलालजी बुत से बने सोच में डूब गए, कहीं मेरे यार का भी यहाँ आने के सफर की यह शुरूआत तो नहीं।


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