"असफलता एक चुनौती है , क्या कमी रह गयी होगी ,देखो और सुधार करो "
"असफलता एक चुनौती है , क्या कमी रह गयी होगी ,देखो और सुधार करो "


"असफलता एक चुनौती है ,
क्या कमी रह गयी होगी ,देखो और सुधर करो "
हम सबने अपने जीवन में एक बार तो चुनौती और अवसर शब्द सुना ही होंग परन्तु हमने उन्हें हमेशा नज़रअंदाज़ किया है । हम सोचते हैं की मौके तो एक कर्ण की तरह है कुकी वो हमसे जानी से दूर हो जाते हैं पर चुनौतियाँ खम्बो की तरह अपनी जगह स हिलती भी नहीं हैं पर साल बात तो यह है की मनुष्यों को सत्य पता ही नहीं ह। लोगों से सुना है की मौके बार बार नहीं आते हैं पर देखने वाली बात तो ये है की सत्य पता होने के बाद भी लोगों में कुछ नहीं बदला। खुद को ये सोच के सहम लेते हैं की मौका ही तो है फिर आजायेगी। वहीँ अगर बात करें चुनौतियों की तो लोगों ने कहा है ,"चुनोतियों से बाघों मत, लडो। " पर भैया मनुष्य कैसे अजीब हैं ,करते सब कुछ बिलकुल उल्टा। बुजर्गों से सुनी यही बात पर ,"जी बाबा बिलकु। " भी कहते हैं और अगले ही मिनट उसे भूल जाते हैं, चुनौतियों से भाग जाना चाहते है। सत्य तो यह है की मनुष्य अपनी दिनचर्या में इतना व्यस्त होता है की उन्हें लगता है धन -दौलत और नाम ही सब कुछ ह। लोग इसी चक्कर में खुद को बेहतर बनाने के सभी मौके नज़रअंदाज़ करदेते है। मैं ये नहीं कहती की मैं ऐसी नहीं पर यह बातें सोच कर मेरे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया ह।
अब मैं आपसे ये कहना चाहती हूं -
"काम करो, नाम अपने आप होगा"
अब आप सोचेंगे की अभी तो मैंने कहा कि मनुष्य अपनी दिनचर्या मे व्यस्त हो गया है परंतु जरा गौर दें मेरे कहने का तात्पर्य केवल एक है कि काम के चक्कर मैं अवसर मत छोड़ो। अब आप में से कयी लोग कहेंगे कि हमारे पास तो अवसर आता ही नहीं है तो मैं आपको बता दूँ कि अवसर ढूँढने से मिलता है। अवसर किसी भी तरफ से आ सकता है पढ़ाई से खेल कूद से आदि।मैंने अपने जीवन में अनुभव किया है कि मुझे मौके तो मिले हैं पर बात नहीं बनी या मैं उनका फायदा नहीं उठा पायी ।मैं तब सोचती थी कि मुझमे ही कुछ कमी होगी मैंने ही उस कार्य को शै से नहीं किया होगा। पर जब मैंने इस बात के बारे में बहुत सोचा तो एक मार्ग दिखा एक बात सीखी की अवसर को चुनौती की तरह लो और उसे कभी भी मत गावाओ।अब अगर हम चुनौती के बार में बात करें तो चुनौती हम सबके लिए एक दीवार है, एक बाधा है ।पर मैं कहना चाहती हूं कि चुनौती की दीवार के उस पार सफलता की सीडियां हैं ।मैं आपको एक उदहारण देना चाहती हूँ वो है हेलेन केलर का आपने देखा ही है कि उन्होंने किस तरह अपनी कमजोरियों और चुनौतियों को गले लगा कर बिना किसी हिचकिचाहट के उनको अवसर मे बदल दिया।मेरे हिसाब इंसान जो भी है वो अपनी सोच के कारण है। जो लोग हेलेन केलर की तरह सोचते हैं और कभी भी चुनौतियों से भागते नहीं हैं उनके लिया चुनौती एक अवसर है पर दूसरों के लिए वो एक बाधा है। अब मैं आप लोगों को अपने जीवन के उन पहलुओं के बारे मे बताती हूं जब मैंने एक चुनौती को अवसर मे बदल दिया था ।।पहले मैं आपको अपने बारे मे थोड़ी सी बातें बता दूँ कि मेरा नाम प्रियाशा त्रिपाठी है और मैं कक्षा 9 की छात्रा हूं और मैं टाइकवानडो करती हूं उसमे ब्लैक बेल्ट भी हूँ । आप में से कुछ लोग सोचेंगे की भला इसके जीवन मे 9 क्लास मे कौनसी चुनौती आ खाड़ी हुई! कयी तो हंस भी रहे होंगे । बस जिस दिन आपने ये सोच बदल की उस दिन यकीन मानिये आप सफलता के करीब पहूँच जायेंगे क्युकी आप छोटी सी छटी और बड़ी से बड़ी चुनौती को अवसर के रूप में देखेंगे ।चलिए अब मैं आपको बता हूं उस चुनौती के बारे में।
मैं टाइकवानडोकी की 
;नेशनल चैंपियन हूं और मैंने टाइकवानडोकी कक्षा 2 से शुरू किया था और अब मुझे सात साल हो गये हैं।जब मैं अपनी पहली प्रतियोगिता में गई तो मेरी तो हालात खराब हो गयी मैं दर गयी थी बच्चों को देख के ।फिर 2 साल के अभ्यास के बाद मैंने यू पी स्टेट टाइकवानडो प्रतियोगिता मे गोल्ड मेडल हासिल किया ।मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था अब उसके बाद मुझे नेशनल l खेलने पुणे जाना था पर भला आप ही बताइए कि मुझे उस वक्त कितनी अक्ल थी ? खैर मेरी जैसी एक चौथी कक्षा की छात्रा को भला नेशनल का महत्त्व कहाँ पता होगा? किसी कारण मैं नेशनल नहीं जाँ पायी पर मेरे मन मे दुख नहीं था, छोटी थी बहुत. फिर धीरे धीरे अभ्यास के साथ मेरी फाइट अछि हो गयी थी और मैंने कक्षा 5,6,7,8 मे 4 साल लगातार सीबीएस क्लस्टर मे गोल्ड मेडल जीता ।मै 5 कक्षा के सीबीएस नेशनल के लिए वाराणसी गई वहां पहले राउन्ड में बाह र हो गयी थी थोड़ा दुख तो हुआ पर लगा कि मेरा पहला नेशनल l था तो कोई बात नहीं दूसरे साल जाना था उड़ीसा वहां भी पहले राउन्ड में बाहर हो गयी इस बार ये हार दिल मे चुभी क्युकी टाइकवानडो के प्रति प्रेम जाग रहा था और स्पोर्ट्स मैन स्पिरिट भी जाग्रत होने लगी थी।10 लोग सुनाने वाले मिल जाये तो बाकी मुझे बहुत प्रोत्साहित करते । इस हार के बाद मैंने सोच लिया था कि मुझे सीबीएसई नेशनल में गोल्ड जीतना ही है ।मैंने उस हार के अगले दिन से गोल्ड मेडल के लिए अभ्यास शुरू कर दिया लक्ष्य था केवल एक सीबीएस नेशनल मे गोल्ड पर दिल मे दर था कि अगले साल की सीबीएसई क्लस्टर प्रतियोगिता मे गोल्ड आ भी पाएगा? क्युकी लोगों से सुना तह मौके बार बार नहीं आते पर भगवान ने साथ दिया और मैं सीबीएसई नेशनल के लिए सिलेक्ट हो गयी । प्रतियोगिता का दिन था नजर केवल गोल्ड मेडल पे थी तब मेरे लिए वो एक चुनौती थी।
गोल्ड तो नहीं मिला पर सिलवर हाथ लगा । थोड़ी निराशा भी थी पर मन मे खुशी की जगह संतुष्टि थी कि का से कम इस बार खाली हाथ घर तो नहीं जाउंगी । उसी साल मैंने यू पी स्टेट टाइकवानडो प्रतियोगिता मे फिर गोल्ड जीता अब जाना था चेन्नई विद्यालय में परिक्षा का समय था पर स्कूल वालों ने सपोर्ट किया वहां हर स्टेट के गोल्ड मेडलिस्ट ही आ रहे थे मतलब सब अपने स्टेट के बेस्ट प्लेयर । हृदय में चिंता थी और सामने एक चुनौती थी ये चुनौती की दीवार मेरे और गोल्ड मेडल के बीच खड़ी थी बस उसी समय मैंने अपनी सोच बदली और उस चुनौती को अपना आखिरी अवसर समझ लिया । 25 बच्चे थे मेरी केटेगरी मे कुल 6 फाइट थी पर ये मेरा आखिरी अवसर है अभी नहीं तो कभी नहीं बस यही सोच कर फाइट की और आखिरकार गोल्ड मेडल जीत ही लिया । उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई । इस जीत के बाद मुझे बहुत सारे लोगों का सम्मान और आशीर्वाद मिला, कई राजनीतिक और गैर राजनीतिक लोग मुझसे मिलने भी आए। यू पी के लिए गोल्ड जीता था मैंने ।दोस्तों मैंने आपको अपने जीवन का उदहारण दिया है ।
मेरी माँ कहती हैं -"दूसरों के उदहारण से सीखो और खुद को दूसरों के लिए उदहारण बनाओ ।"
हमेशा याद रखे चुनौती अवसर का रूप है जिसने इस रूप को पहचान लिया वो जिंदगी में सफल हो जायेगा । हमारे जीवन में चुनौती एक मुश्किल के रूप में भी आ सकती है और पढ़ाई के भी रूप में आ सकती है बस इसे पार करें ।
जीवन के अनेक मंत्र कई महात्माओं ने बताएँ हैं उन्हीं मे से एक यह है।
"थामना चलना हर पाल यहाँ
खोना पालना सौ बार है ,
साँसों की आखिरी तपिश तक
हर चुनौती स्वीकार है ।"