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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

अपने अपने सुख

अपने अपने सुख

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बड़ा कठिन प्रश्न है यह । "सुख क्या है" ? क्या इसकी कोई परिभाषा है ? बहुत ढूंढा । बहुत खोजा । मगर हाथ कुछ नहीं आया । सुख कहीं दिखाई नहीं दिया । फिर किसी ने कहा कि दीया लेकर ढूंढो । 

अब आज के जमाने में दीया कहां से लाएं ? कोई जमाने में तो घर में लालटेन हुआ करती थी मगर वह तो लालू जी ने हथिया ली । फिर चिमनी आई । मगर केरोसिन की किल्लत के कारण वह सिरे नहीं चढ़ पाई । फिर दीया आया मगर तब तक संविधान में धर्म निरपेक्षता शब्द जुड़ गया था इसलिए दीया को सांप्रदायिक शब्द करार दे दिया गया और "दीया" का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया। फिर "टॉर्च" आई मगर मुए मोबाइल ने टॉर्च को भी निगल लिया । अब तो केवल "बिजली" ही बची है । इस पर किसी ने कोई ऐतराज भी नहीं किया क्योंकि सभी धर्म निरपेक्ष लोग "बिजली" के दीवाने थे । शाम को जब हलक में "चखना" के साथ "अंगूर की बेटी" के दो घूंट उतर जाते हैं तो उनके पूरे शरीर में बिजली का करंट दौड़ जाता है । फिर उनकी आंखों में बिजली ही बिजली कौंधती है । ऐसे धर्म निरपेक्ष लोगों के चेले अपने मालिकों के लिए जल्दी से किसी "बिजली" की व्यवस्था करते हैं तब जाकर उन्हें चैन आता है । इसलिए बिजली सबकी पसंद बन गई । 


हम बिजली की रोशनी में सुख ढूंढने निकले । रास्ते में सड़क के किनारे एक व्यक्ति औंधे मुंह पड़ा हुआ था । कुछ "श्वान" उसे घेरे खड़े हुए थे शायद पता कर रहे थे कि वह व्यक्ति उन्हीं की प्रजाति का है या कीचड़ में लोट लगाने वाली प्रजाति का है । कुत्तों को जब कुछ समझ में नहीं आता तो वे अपना "सर्वप्रिय" कार्य करते हैं । एक टांग आसमान की ओर उठाकर अपने अंदर का सारा "फ्रस्ट्रेशन" उस व्यक्ति पर छोड़ देते हैं और फिर चले जाते हैं । यहां पर भी सभी "कुत्ते महाराजों" ने ऐसा ही किया और अपनी पवित्र "धार" से उस औंधे मुंह पड़े हुए व्यक्ति का "अभिषेक" किया और चलते बने । 


हमने देखा कि वह औंधे मुंह पड़ा हुआ व्यक्ति इस "अभिषेक" से प्रसन्न हो गया । उसकी तंद्रा कुछ कुछ लौट आई । उसके होंठ प्रसन्नता से खुलकर फैलने लगे । आंखों में कुछ और सुरूर चढ़ने लगा और वह व्यक्ति आनन्द के सागर में और भी गहरे गोते लगाने लगा । हमें कुछ समझ में नहीं आया । हमें पता है कि हम निरे मूर्ख व्यक्ति हैं इसलिए जब सुख ढ़ूढने निकले थे तो हमने अपने साथ "ज्ञानी जी" को ले लिया था । हम पता नहीं सुख को पहचान पायें या नहीं मगर ज्ञानी जी तो परम विद्वान व्यक्ति हैं । पूरे मौहल्ले में इनके ज्ञान का डंका बज रहा है । ये अलग बात है कि इनकी पत्नी इनको रोज सुबह से शाम तक "ज्ञान की घुट्टी" पिलाती रहतीं हैं , फिर भी ज्ञानी जी के ज्ञान की धाक पूरे मौहल्ले में ऐसे ही फैली हुई है जैसे कि छमिया भाभी के सौंदर्य के जलवे । 


हमने ज्ञानी जी से इस "अभिषेक" के बारे में पूछा तो वे कहने लगे । "सुख की यह चरम अवस्था है । इस व्यक्ति ने अपने सारे कष्टों से मुक्ति पाने के लिए "लाल हरा पीला नीला पानी" वाली बोतल का सेवन कर लिया था । जिसके जितने ज्यादा कष्ट , बोतलों की संख्या भी उतनी अधिक । इसलिए इसने तब तक बोतलों का सेवन किया जब तक सारे कष्ट सुख में परिवर्तित होकर नाचने नहीं लग गये । फिर यह व्यक्ति अपने डगमगाते कदमों से अपने घर की ओर चल पड़ा । मगर सुख इस पर इतना भारी पड़ गया कि बेचारे के कमजोर कदम उस सुख के भार को संभाल नहीं सके और यह व्यक्ति यहीं पर नाले में ही "धड़ाम" हो गया । अपने भाई को संकट में देखकर कुछ "कुत्ते" इसकी मदद करने को आगे आये मगर उन्हें यह व्यक्ति अपनी प्रजाति का नहीं लगा । वस्तुत: यह व्यक्ति "शूकर" ओह क्षमा कीजिए "आदरणीय शूकर" प्रजाति का निकला । इसलिए सारे कुत्ते इस पर अपने "जल" का "अभिषेक" करके चलते बने । 


जैसे ही इस पर "अमृत वर्षा" हुई इस व्यक्ति की चेतना कुछ कुछ लौटने लगी । इस व्यक्ति को यह धरती जन्नत से भी अधिक हंसी लगने लगी । इस व्यक्ति को ऐसा लगा कि वह इस जन्नत का बादशाह है । ऐसा सोचकर इसके सुखों में चार चांद लग गये । इसके होंठों पर मुस्कान खेलने लगी। आंखें सुरूर से और भी सुर्ख होने लगी । गालों पर चमक और बढ़ने लगी और दिल की धड़कन भी तेज तेज चलने लगी । शास्त्रों में इस अवस्था को "चरम सुख" की अवस्था कहा गया है । मनुष्य का अंतिम ध्येय क्या है ? "चरम सुख" प्राप्त करना । इस व्यक्ति ने यह चरम सुख "लाल हरे नीले पीले" पानी की बोतल में प्राप्त कर लिया है और अब इसकी "सद्गति" हो गई है । ज्ञानी जी कहने लगे "अतः इस विराट व्यक्तित्व को साष्टांग दंडवत करो और इसका आशीर्वाद ले लो । ऐसी महान आत्माएं बहुत मुश्किल से दर्शन देतीं हैं । तुम बहुत सौभाग्यशाली हो जो "सुख की खोज" यात्रा पर निकलते ही ऐसी महान विभूति के दर्शन हो गये । तुम्हारे साथ साथ मैं भी धन्य हो गया हूं" । 


और हम दोनों ने उस महान विभूति को साष्टांग दंडवत किया । इस प्रकार हमने पहले सुख का अनुभव किया । 


( अगले अंक में एक दूसरे प्रकार के सुख का दर्शन किया जायेगा । )


क्रमशः 



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