अनुभूति

अनुभूति

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घर में घुसते देर हुई नहीं कि फिर से घन्टी बजी। मूड खराब था इसलिये पापा ने दरवाजा खोला। सपने में भी नहीं सोचा था कि “वो” बिन बुलाए मेहमान की तरह आ जाएगा। पर नहीं, “उसे” तो मैंने ही बुलाया था। जब तक मैं हाल तक पहुँचती, “वो” मम्मी-पापा को अपना परिचय दे चुका था। उनके लिए आश्चर्य था और मेरे लिये भी। “वो” यानि आदित्य (आदि)। मेरी और उसकी ये पहली मुलाकात थी पर पहचान 6 महीने पहले इन्टरनेट पर जीवनसाथी वेबसाइट से हुई थी। उसका खुद को पेश करने का अन्दाज़ मुझे भा गया था। हमने थोडी बातें भी कीं पर जब उसे पता चला कि मेरे घर में जाति के बाहर शादी नहीं हो सकती तो हमने एक दूसरे से बातें बन्द करना ही बेहतर समझा। उसके बाद ज़िन्दगी फ़िर चल पड़ी पर कुछ तो था उस अनछुए एहसास में। इस बीच मम्मी-पापा ने कुछ रिश्ते दिखाए पर वो बात नहीं थी।

जिस दिन आदि मिलने आया उस दिन भी एक नमूने से मिलकर मूड खराब हो गया पर आदि को देख कर खुश हुई । मैंने सोचा नहीं था कि एक बार बोलने से ही वो घर आ जायेगा। हुआ यूँ कि कुछ दिन पहले उसने मेरे जन्मदिन पर फोन किया। मुझे आश्चर्य हुआ ये सोचकर कि उसे याद रहा। हमने काफ़ी देर तक बातें कीं। जब उसे पता चला कि अभी मेरी शादी नहीं हुई उसने हँसकर कहा-“ तो मेरे लिये रास्ता अभी भी साफ़ है”। इस बात पर मुझे गुस्सा आ गया और कहा-“ तुम तो ऐसे कह रहे जैसे मेरे घर आ जाओगे मेरा हाथ माँगने”। उसने कुछ नहीं कहा। मुझे क्या पता था वो हकीकत में आ जाएगा। वो बडे प्यार से मम्मी-पापा से मिला। उनको जाति का पता चल गया फ़िर भी थोडा समय देने को कहा। मेरे आते ही पानी लाने को बोला। माँ के लिए वो फ़ूल लाया था, पापा के लिए बीपी नापने वाली मशीन और मेरे लिए-शेक बनाने की मशीन। हँसी आई फ़ल भी देखकर पर शेक सबको पसन्द आया। बातों का सिलसिला चल पड़ा था । मुझे उसका मम्मी-पापा के प्रति आदर और उनकी सेहत को लेकर चिन्ता करना अच्छा लगा। उसे पता था पापा दिल के मरीज हैं। मैंने हमेशा ऐसे जीवनसाथी की ख्वाहिश की थी जो मेरे मम्मी-पापा को वही आदर दे जो मैं देती हूँ। फ़िर उसकी अपनी मम्मी ने फोन किया । वो उसे कुछ दिखाना चाह्ती थीं।

उसके बाद उसने विडियो-चैटिंग शुरु की। हमारे लिए एक और आश्चर्य इन्तजार कर रहा था- मेरी बड़ी सी पेंटिंग जो उसने अपने कमरे में लगवाने के लिए कहा था। ये वही फोटो की पेंटिंग थी जो मैंने जीवनसाथी वेबसाइट पर लगाई थी- गुलाबी साड़ी और गुलाबी चूड़ियों वाली, जो उसे बहुत पसंद थी। मुझे बहुत अच्छा लगा। उसके मम्मी-पापा ने मेरे मम्मी-पापा से बात की और इस रिश्ते को स्वीकार करने को कहा। मेरे पापा ने कहा- ये साथ -साथ पढ़ रहे होते और शादी करते तो हमारे समाज को अचंभा न होता किन्तु , जाति अक्सर दीवार बन जाती है माता-पिता की इच्छा के आगे। उसके पिता ने कहा -"तोड़ने से सब दीवारें टूट जाती हैं , ये तो दो परिवारों के बीच की दीवार है"। पापा ने कहा-हम सोचकर बतायेंगे। फ़िर चैटिंग बाद में करने को कहा। मुझे बात बिगड़ती दिखाई दी, पर नहीं, आदि पूरी तैयारी से आया था। उसने मेरे मम्मी-पापा से कहा-“आप लोग सोच लें. मुझे पता है आप लोग हमेशा अपनी बेटी की खुशी ही चाहेंगे। वो आप लोगों से बहुत प्यार करती है और आप लोग भी उससे जानता हूँ आप लोग अपने बेटी की शादी ऐसे इंसान से करना चाहते हैं जो उसे आप लोगों जैसा प्यार दे और खुश रखे और मैं आप लोगों को आश्वस्त करता हूँ कि मैं ऐसा ही करूँगा ”।

उसने वो लिस्ट भी सुनाई कि वो मेरा ख्याल कैसे रखेगा। उसे लिखना पसंद नहीं, पर ये देखकर की उसने मेरे लिए इतना कुछ लिखा, मुझे बहुत ख़ुशी मिली। वैसे भी मुझे ये छोटी-छोटी बातें ही दिल को छू जाती हैं । उसने कहा- वो मुझे हर दिन ice cream खिलायेगा जिसे सुनकर मम्मी-पापा हँसने लगे. उसे पता था ice cream मेरी कमजोरी है। मेरा अनछुआ एहसास मेरे सामने था एक सच्चाई बनकर। पर उसे हकीक़त बनाना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल तो था ही। आदि ने कहा वो इंतज़ार करेगा जवाब का और फिर चला गया। 

मम्मी-पापा ने मुझे कुछ ख़ास नहीं कहा। शायद आदि का असर उन पर भी हुआ था। मैंने धीरे-धीरे फिर बात की इस बारे में। भाई -बहन ने भी समझाया कि जात-पात आज कल के समय में मायने नहीं रखता बल्कि लड़का, उसका परिवार और नौकरी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। समय तो लगा पर आखिरकार मेरे मम्मी -पापा मान ही गए। उस दिन हम बहुत खुश हुए , जश्न का माहौल था। आदि को पापा ने खुद ही फ़ोन किया। अगले दिन वो, उसके मम्मी -पापा और बहन  हमारे घर आ गए. हम सबको पूरा परिवार ही पागल लगा. पर मैं भी तो पागल ही रही सदा। 

हमारी शादी बड़े धूम-धाम से हुई। मेरे और आदि के परिवार ने खर्च मिल बाँट लिए। मेरे सभी दोस्त आये और आदि से मिल कर बहुत खुश हुए। उसके दोस्तों से मैं भी मिली। सब कुछ सपने जैसा था। मुझे एक ऐसा जीवनसाथी चाहिए था, 'एक सहचर', जो हमेशा अपना लगे , जिसके साथ अपना सुख-दुःख बाँट सकूँ, जिस पर प्यार लुटा सकूँ, जिस पर अपना अधिकार जमा सकूँ। मुझे एक ऐसा 'नीड़' चाहिए जहाँ बच्चे की किलकारी गूंजे। और मुझे ये सब आदि में मिल रहा था. मुझे मेरी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था।  

हनीमून पर मैं हमेशा कश्मीर जाना चाहती थी और आदि मुझे वहीं ले गया। मैंने कश्मीर पहले भी देखा था जब पापा की ट्रांसफर वहां थी इसलिए मैं आदि की गाइड बनी। हमने गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगांव, डल झील, शालीमार और निशात गार्डन देखा। बर्फ में स्की का आनंद लिया. हरी-हरी घास और पेड़ों पर पड़े हुए बर्फ के छोटे-छोटे कण ऐसे प्रतीत होते थे जैसे मखमली गलीचे पर श्वेत रंग के मोती टंके हों। प्रकृति सौंदर्य में हम 'दो पागल' खो गए थे. हाउसबोट , शिकारे पर खूब मस्ती की और कश्मीरी पोशाक पहनकर बहुत सारी फ़ोटो खिंचवाई। बहुत खूबसूरत पल थे वो।  

इसके बाद आदि अपने वादे के अनुसार मुझे हर उस जगह ले गया जहाँ पापा की ट्रांसफर हुई थी - बरेली, असम, अम्बाला, अमृतसर, बैंगलोर , लखनऊ और जबलपुर। मैं उसके साथ बड़ी नहीं हुई पर उसने मेरा बचपन इस तरह से फिर जिया। उसकी आँखों में जो ख़ुशी थी, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हम मम्मी-पापा और दूसरे दोस्तों से भी मिलते जाते रहते हैं। 

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है आदि के साथ. बारिश, ice cream और घूमना हम दोनों को ही पसंद है। जिंदगी को भरपूर जीने वाला हमारा नजरिया भी एक है। मेरे मम्मी-पापा अपने व हमारे इस फैसले पर नाज़ करते हैं। मेरे भाई-बहन भी आदि को बहुत प्यार करते हैं। आदि के मम्मी-पापा और बहन मेरी तारीफ करते नहीं थकते।  

प्यार एक खूबसूरत एहसास है, जो एक इंसान को जहाँ की खुशियाँ देता है और खुशहाल जीवन जीने का जज्बा भी। रिश्तों को मजबूती भी देता है प्यार।उसमें नई ऊर्जा और ताजगी लाने के लिए Valentine’s day से बढ़िया मौका भला क्या हो सकता है? यही सोच रखता है 'मेरा आदि'। उसके साथ तीन Valentine’s day पर बहुत प्यारे तोहफ़े मिले पर सबसे प्यारा व अनमोल तोहफ़ा है हमारी बेटी-"अनुभूति"।


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