अंतिम वाक्य
अंतिम वाक्य
वह रेत की चट्टान पर बैठी... शोक निमग्न दर्द में डूबी... हर पल पछताते हुए सामने बहती लोहित नदी की धारा को देख रही थी। ये नदी ना जाने कितनी यादों को अपने में समेटे निरंतर बहती जा रही है। ये साक्षी है अतीत के धरोहर की...सदियों से यूंही बहती
आ रही है। सब कुछ इसमें विलीन हो चुका है।
आलो रह- रह कर अपनी प्रिय सहेली याजो को याद कर रही थी।
दोनों में बचपन से ही बहुत गहरी मित्रता थी। एक साथ खेली.. स्कूल..कॉलेज सब एक साथ खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ पूरा किया...और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह था कि विवाह के बाद भी दोनों कभी अलग नहीं हुई। दोनों का विवाह अरुणाचल के एक ही शहर पासीघाट में हुआ था।
आलो और याजो दोनों ने ही
अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की थी। पासीघाट के महिला महाविद्यालय में दोनों को नौकरी भी एक साथ मिली।
बचपन की सहेलियाँ एक साथ कॉलेज जाती और एक साथ आती थीं। उन दोनों के घर भी आस-पास एक किलो मीटर की ही दूरी पर थे। दोनों के परिवार में भी आपस में स्नेहिल संबंध था।
आलो और याजो के बीच कोई भेदभाव नहीं था...दोनों एक साथ मिलजुल कर हर काम करती थीं।
कोविड की महामारी ने दोनों को हमेशा-हमेशा के लिए अलग कर दिया था। एकांत में चट्टान पर बैठी
आलो अपने आप से बतिया रही थी। याजो तुझे मैंने कितना समझाया था...पर तूने अपना ध्यान नहीं रखा। अब तेरे इन दूधमुंहे बच्चों का क्या होगा...कौन इनकी देखभाल करेगा ? मैं भी तेरे बिना कैसे रह सकूंगी।
आलो और याजो बारह दिन पहले पुस्तकालय में मिली थीं। दोनों ने मास्क लगाकर दूर-दूर बैठकर बातचीत की थी। बातचीत का मुख्य विषय कोरोना ही था...आलो इस भयावह महामारी की आलोचना करके सावधान रहने पर बल दे रही थी...जबकि याजो जीवन की जीवंतता पर बल दे रही थी। जाना तो सभी को है...पर ऐसे जाओ कि लोग तुम्हें चाहकर भी न भूल पायें।
मुझे क्या पता था कि कुछ दिन पहले का वो मिलन हमारा अंतिम मिलन होगा...अरे सुन तुझे तो बहुत सारी बातें बतानी थी। कुछ दिन से तेरा फोन भी नहीं लग रहा था... इसलिए मैं बहुत बेचैन हो रही थी। दो दिन बाद तेरे छोटे बेटे का पांचवां जन्मदिन भी है। मैंने मुनकु के लिए अपने हाथों से स्वेटर बनाया है...वो भी तेरी पसंद के गुलाबी रंग का। देखना तुझे बहुत पसंद आयेगा...और हां याजो तूने कहा था ना...कि इस बार हम लोग गर्मियों में एक साथ नैनीताल चलेंगे। मैंने अपने बच्चों को भी बता दिया है...वे दोनों बहुत खुश हैं।
आलो एकांत में अकेले बतियाये जा रही थी...पर वहां सुनने के लिए उसकी अंतरंग सहेली याजो नहीं थी। वह तो वहां पहुंच चुकी थी...जहां सभी लोग उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
आज आलो...याजो के अंतिम वाक्यों को बार- बार चुभला रही थी।
स्वयं को ऐसा बनाओ...जहाँ तुम हो वहाँ सब तुम्हें प्यार करें...और जहाँ से तुम चले जाओ...वहां तुम्हें लोग हमेशा याद करें...और जहाँ तुम पहुँचने वाले हो...वहां तुम्हारा सभी लोग बेसब्री से इंतजार करें।
