अनपढ़

अनपढ़

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शेखर बहुत होशियार लड़का था।

उसके दोस्त भी अच्छे थे। शेखर पढ़ाई के साथ साथ मोबाइल के काम में भी बहुत तेज था।

वह घर के ज्यादातर काम मोबाइल पर ही करता था। जैसे कि बिजली का बिल, घर के अन्य बिल इत्यादि पर शेखर जितना पढ़ा-लिखा था उतने ही उसके पिताजी अनपढ़ !

उसे इस वजह से बहुत शर्मिंदगी महसूस होती थी। क्योंकि शेखर के दोस्तों के पिताजी पढ़े-लिखे थे। शेखर को लगता था, "अगर मेरे पिताजी के बारे में किसी ने पूछा और किसी ने मुझे उनसे मिलवाने के लिए कहा तो मैं क्या करूँगा ? कैसे मिलवाऊंगा ?"

इसी वजह से शेखर हमेशा परेशान रहता था। एक दिन शेखर को पढ़ाने वाले शिक्षक उसके घर आ गए। शेखर के शिक्षकजी ने जब उसके पिताजी को देखा तो मुस्कुराकर उनके पैर छुए।

शेखर उनकी ओर देखता रहा और उसने पूछा, "आपने मेरे पिताजी के पैर क्यों छुए ?"

तब शेखर के शिक्षक ने उसे कहा, "मैं आज जो भी हूँ, इनकी ही वजह से हूँ। इन्होंने मेरे बचपन में मेरी बहुत सहायता की थी। संस्कार दिए तब ही मैं आज शिक्षक हूँ और उससे भी ज्यादा एक अच्छा इंसान !"

यह सब बातचीत होने के बाद शिक्षक जी निकल गए। ये सब बातें सुनकर शेखर को अपने पिताजी पर गर्व होने लगा और अपनी सोच पर शर्मिंदगी !


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