अनकही चिट्ठी
अनकही चिट्ठी
मेरे प्रिय मित्र,
मैं तुम्हारा हाल-चाल पूछने चिट्ठी नहीं लिख रहा हूं। क्योंकि मुझे तो पता है, तुम तो मस्ती से खाना ठूस रहे होंगे। तुम्हारी नींद अब तक पूरी हो गई कि नहीं? तुम्हारी मां का रुदन सातवें आसमान तक पहुंच गया था पर तुम तो उठे ही नहीं।
हां! एक और बात तुम मुझे कहीं भूल तो नहीं गए? मुझे तो तुम अच्छे से याद हो। याद है न! पहली बार हम कहां मिले थे? मेरा चौथी कक्षा में नया-नया तबादला हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन हम सभी बच्चे तुम्हारा नाटक देखने पहुंच गए थे। ऐन मौके पर मुझे कृष्ण बना दिया गया था। मैं तो बस बांसुरी लेकर खड़ा रहा। लेकिन नाटक की शोभा तो तुम ही ने बढ़ाई थी। तुम्हें नहीं पता राधा के वेश में तुम बहुत सुंदर दिख रहे थे। मैं तो बस तुम्हें देखते खड़ा रह गया। नाटक के बाद जब मैंने तुम्हारा नाम पूछा, तो तुमने हल्के से मुस्कुरा कर अपना नाम ‘रोजी’ बताया था। तुम्हें नहीं पता मैंने बहुत दूर की बातें सोच ली थी। मैंने मन ही मन में कहने लगा था कि पाठशाला बदलने का फैसला बहुत सही था। तभी मैंने तुम्हारी बहन को चिल्लाते हुए सुना था कि वह आग बबूला होकर तुम्हारे पास आई और तुम्हारे कान मरोड़ते हुए चिल्लाने लगी- राजू! तुमने मेरे गहने फिर से चुरा लिया? आ चल! पिताजी से कहकर तेरी कुटाई करवाऊंगी। यह शब्द सुनकर मेरे दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। तब से हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए हैं न? तुम तो कक्षा में हमेशा फर्स्ट आते थे और मैं शरारत करने में। जब हम छठवीं में थे तो तेरे लाख मना करने पर भी मैं तुम्हें भूल-भुलैया में लेकर गया था। दो घंटे बाद मैं तो रोने लगा था, क्योंकि मुझे लग रहा था कि मेरे बाल सफेद हो जाएंगे और हम दोनों यही अटके रहेंगे। अगर उस दिन तुम मेरे साथ नहीं होते तो मैं अभी भी उसी भूल-भुलैया में ही भटक रहा होता। इस घटना के बाद सजा भी मिली, स्कूल ट्रिप में ऐसी शैतानी जो की थी। आठवीं कक्षा की तो बात ही मत कर। मेरी पढ़ाई में रुचि बढ़ गई थी। मैं तो हमेशा एक ही चैप्टर का इंतजार करता था। याद है न तुम्हें? ‘Reproduction in human’ पर तुम तब तक बहुत बदल गए थे। तुम्हारे नंबर भी बहुत कम आने लगे थे। तुमने नाटक करना भी बंद कर दिया था। गायत्री मैँम भी तुम्हें प्रोत्साहन करने के लिए नहीं थी। न जाने क्यों सारे लड़के तुम्हारा मजाक उड़ाते थे। जब भी कक्षा में तुम कोई जवाब देते तो वह अजीब तरह से तालियां बजाते थे। उन्होंने तुम्हारा कुछ नाम रखा था छक्का, सिक्सर, हिजड़ा और न जाने क्या-क्या। एक दिन तो उन्होंने हद ही कर दी। हम दोनों जब पाठशाला के कॉरिडोर में जा रहे थे, तो सारे लड़के तुम्हें देखकर हंस रहे थे। फिर तुमने अपने पीठ से कागज हटाया और उसे पढ़ा था। तुम चंद मिनट के लिए वही खड़े रह गए थे। तुम्हारी आंखों के आंसू मुझे साफ-साफ दिख रहे थे। मैंने पूछा भी था- क्या हुआ? तुम ठीक हो? तब तुमने कहा- हां! मैं ठीक हूं। तुमने यह कहकर अपनी नजरें नीचे कर ली और तब से तुम्हारी नजरें नीचे झुकी हुई थी।
एक दिन जब क्रिकेट टीम का सिलेक्शन हो रहा था तो मुझे टीम में नहीं लिया गया था। क्योंकि उन्हें लगता था तुम बीमार हो और मैं जो तुम्हारे साथ रहता हूं तो यह बीमारी मुझे भी है। यह बीमारी उन तक भी फैल जाएगी। उसी दिन तुम रोते हुए मेरे पास आए थे और कहने लगे थे कि तुम्हारे भाई तुम्हें डांटते हैं। वह तुम्हें लड़कों की तरह चलने के लिए कहते हैं। और तुमने कहा था तुम्हें एक प्रॉब्लम है। तुम्हें लड़की की तरह चलना अच्छा लगता है। लड़कियों की तरह सजना पसंद है। उनकी तरह कपड़े पहनना पसंद है। यह सुनकर मैंने तुम्हें धक्का दिया था। और कहा था कि मुझे घिन आती है कि तुम मेरे दोस्त हो। आज से हम दोनों दोस्त नहीं रहेंगे। यह कहकर मैं चला गया था। अब मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। जब भी मैं तुम्हारे घर के पास से गुजरता हूं, तो लगता है तुम कूद कर मेरी साइकिल पर बैठोगे। और शुक्रवार के दिन खीर की मीठी खुशबू मेरी नाक को सताती है। वह कहती है- तुमने अपना टिफिन का डब्बा यहीं कहीं छुपाया है। तुम यहीं कहीं हो।
तुम्हारी मां को लगता है, तुम गहरी नींद में हो। बस अब जाग ही जाओगे। तुम्हारी बहन को लगता है, तुम्हीं ने उसके गहने चुराए हैं। वह तुम्हें ढूंढ रही है।
क्या तुम मुझे माफ कर सकते हो? मैंने कभी तुम्हारी मदद नहीं की। शायद मन ही मन मुझे लगता था, वे लोग सही थे। शायद मैं मानता था तुम्हें वह नाम सूट करता है। पर मैं गलत था। एक बात बता बचपन में जब भी तुम्हें सुसु जाना होता तो तुम मुझे खींच के अपने साथ ले चलते। जब तुमने हम सब से दूर जाने का इतना बड़ा फैसला लिया तो तुम्हें जरूरी नहीं लगा कि एक बार मुझे बता दें? हां! हां मैं मानता हूँ, मैं समझ नहीं पाया तुम्हारे अंदर क्या चल रहा है। मैं ठहरा नासमझ। तुम मुझे दो-चार थप्पड़ जड़ देते और फिर समझाते। कम से कम कॉल तो कर सकते थे। jio का सिम तो फ्री ही है। मैं सोच रहा हूं ऊपर नेटवर्क तो होगा ही सैटेलाइट तो वहां से बहुत पास में है। मेरी चिट्ठी का जवाब देना साथ में अपना फोन नंबर और व्हाट्सएप नंबर भीदेना। और इंस्टा का आईडी भी। जब से तुम गए हो मैंने कोई पोस्ट नहीं डाली। हां, एक आखरी बात, अगर तुम राजू की जगह रोजी भी होते तो तब भी तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त होते।
तुम्हारा नासमझ मित्र
- सिड
